Tuesday, February 7, 2012
Friday, January 20, 2012
बात करो न माँ (पुण्य तिथि २१ जनवरी)
-ओंम प्रकाश नौटियाल
*
स्वर्ग गई तो तुम क्या
सब भूल गई हो माँ ,
नित्य स्वप्न में आकर
ढेरों बात करो न माँ !
*
तुम्हें सदा मासूम लगा
छलबल से महरूम लगा ,
मेरे सर पर ममता वाला
वह हाथ धरो ना माँ !
*
यदाकदा पावस बूंदे जब
तन मेरा भिगाती हैं ,
आँचल के उस छाते की
याद बडी तब आती है ,
बचपन वाले उस पल्लु की
फ़िर छाँव करो ना माँ !
नित्य स्वप्न में आकर
ढेरों बात करो न माँ !
*
ग्रीष्म ऋतु में वट छाँव
सर्द मौसम में अलाव
स्नेह गोद में बैठा जब
धरती पर थे कहाँ पाँव
स्निग्ध आवरण में लेकर
सब संताप हरो न माँ !
मेरे सर पर ममता वाला
वह हाथ धरो ना माँ !
*
अब तक रची बसी है
यादें नालबडी पुलाव की
डाँट प्यार के हाव भाव की
ममता और लगाव की
चुल्हे वाला खाना परसो
अतृप्त क्षुधा हरो न माँ !
*
स्वर्ग गई तो तुम क्या
सब भूल गई हो माँ ,
नित्य स्वप्न में आकर
ढेरों बात करो न माँ !
*
स्वर्ग गई तो तुम क्या
सब भूल गई हो माँ ,
नित्य स्वप्न में आकर
ढेरों बात करो न माँ !
*
तुम्हें सदा मासूम लगा
छलबल से महरूम लगा ,
मेरे सर पर ममता वाला
वह हाथ धरो ना माँ !
*
यदाकदा पावस बूंदे जब
तन मेरा भिगाती हैं ,
आँचल के उस छाते की
याद बडी तब आती है ,
बचपन वाले उस पल्लु की
फ़िर छाँव करो ना माँ !
नित्य स्वप्न में आकर
ढेरों बात करो न माँ !
*
ग्रीष्म ऋतु में वट छाँव
सर्द मौसम में अलाव
स्नेह गोद में बैठा जब
धरती पर थे कहाँ पाँव
स्निग्ध आवरण में लेकर
सब संताप हरो न माँ !
मेरे सर पर ममता वाला
वह हाथ धरो ना माँ !
*
अब तक रची बसी है
यादें नालबडी पुलाव की
डाँट प्यार के हाव भाव की
ममता और लगाव की
चुल्हे वाला खाना परसो
अतृप्त क्षुधा हरो न माँ !
*
स्वर्ग गई तो तुम क्या
सब भूल गई हो माँ ,
नित्य स्वप्न में आकर
ढेरों बात करो न माँ !
Saturday, January 14, 2012
हो चर्चा खेत, किसान, बागों की
-ओंम प्रकाश नौटियाल
*
बहुत हो गई बातें अब
गालों और गुलाबों की,
जागो, उठो, करो चर्चा अब
खेत, किसान और बागों की !
*
ईश्क, मुहब्बत के बदले
रोजी, रोटी हो अशआरों में,
पाँव रहें धरती पर भाई
घूमों ना चाँद सितारों में,
बहुत किताबें लिख दी हैं
परियों की और ख़्वाबों की,
न वक्त गंवाओ, हो चर्चा
खेत, किसान और बागों की !
*
क्यों उलझे हो जुल्फ़ों में
रिसालों और अफ़सानों में,
जल ,जंगल की बातें हों
कविता में और गानों में,
वो ही नज़्में क्यों दोहराना
हुस्न की और शबाबों की,
वक्त बचाओ, सोचो तुम
खेत, किसान और बागों की !
*
चाँद, चाँदनी, बादल, तारे
हंसते तुमको देख ये सारे,
आशिकी में हो भरमाये
जीते झूठे स्वप्न सहारे ,
भ्रम त्याग गाओ बिहाग
जीवन लय हो रागों की ,
सोचो शान्त हृदय से प्यारे
खेत, किसान और बागों की !
*
बहुत हो गई बातें अब
गालों और गुलाबों की,
जागो, उठो, करो चर्चा अब
खेत, किसान और बागों की !
*
बहुत हो गई बातें अब
गालों और गुलाबों की,
जागो, उठो, करो चर्चा अब
खेत, किसान और बागों की !
*
ईश्क, मुहब्बत के बदले
रोजी, रोटी हो अशआरों में,
पाँव रहें धरती पर भाई
घूमों ना चाँद सितारों में,
बहुत किताबें लिख दी हैं
परियों की और ख़्वाबों की,
न वक्त गंवाओ, हो चर्चा
खेत, किसान और बागों की !
*
क्यों उलझे हो जुल्फ़ों में
रिसालों और अफ़सानों में,
जल ,जंगल की बातें हों
कविता में और गानों में,
वो ही नज़्में क्यों दोहराना
हुस्न की और शबाबों की,
वक्त बचाओ, सोचो तुम
खेत, किसान और बागों की !
*
चाँद, चाँदनी, बादल, तारे
हंसते तुमको देख ये सारे,
आशिकी में हो भरमाये
जीते झूठे स्वप्न सहारे ,
भ्रम त्याग गाओ बिहाग
जीवन लय हो रागों की ,
सोचो शान्त हृदय से प्यारे
खेत, किसान और बागों की !
*
बहुत हो गई बातें अब
गालों और गुलाबों की,
जागो, उठो, करो चर्चा अब
खेत, किसान और बागों की !
पतंग
-ओंम प्रकाश नौटियाल
पोंगल लोढी सक्रांति बिहु के अपने रंग
इन रंगो से रंगी हुई नभ में उडी पतंग,
जन सेवा के वास्ते छीडी जमीं पर जंग
हवा बदलने के लिये नभ में उड़ी पतंग !!
पोंगल लोढी सक्रांति बिहु के अपने रंग
इन रंगो से रंगी हुई नभ में उडी पतंग,
जन सेवा के वास्ते छीडी जमीं पर जंग
हवा बदलने के लिये नभ में उड़ी पतंग !!
Friday, January 6, 2012
इस बार नये साल तू
-ओंम प्रकाश नौटियाल
गत वर्ष कर सका नहीं
उसको न और टाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
मंहगाई, मंहगाई सी बढी
बढ़ कर जवान हो गई,
कैसे इसे कर दें विदा
साँसत में जान हो गई,
कुछ दिन और रह ली तो
सबकुछ हज़म कर जायेगी,
जनता बेचारी भूख से
त्रस्त हो मर जायेगी,
कैसे भी हो घर से इसे
कहीं दूर आ निकाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
जनसंख्या वृद्धि की देश में
फ़ारमूला एक सी रफ़्तार है,
इस उपलब्धि पर हो रही
जनता की जयजयकार है ,
पर तू भी तो कर ले कुछ
यूं कब से पडा निढाल है ,
अकर्मण्यता पर तेरी मचा
है किस कदर बवाल है ,
वर्षों में पैदा न कर सका
एक सशक्त लोकपाल तू,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
गाँधी के उसूलों का कर
कुछ तो यार खयाल तू ,
चपत लगे जनता की तो
कर आगे दूजा गाल तू ,
जनता बेचारी क्या करे
अस्तित्व का सवाल है ,
जीरो से तू हीरो हुआ
उसका तो बदतर हाल है ,
जन सेवा की है ली शपथ
तो छोड टेढी चाल रे ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
सेवक से तू स्वामी बना
बदली सी तेरी चाल है ,
जनता के पास मुश्किलें
अभाव है अकाल है ,
रोटी के इंतजार में
टूटा सा बस एक थाल है ,
उपर से आ गया है
भरा पूरा नया साल है ,
सेवक का दर्जा अपना
दिल से कर बहाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
-सर्वाधिकार सुरक्षित
गत वर्ष कर सका नहीं
उसको न और टाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
मंहगाई, मंहगाई सी बढी
बढ़ कर जवान हो गई,
कैसे इसे कर दें विदा
साँसत में जान हो गई,
कुछ दिन और रह ली तो
सबकुछ हज़म कर जायेगी,
जनता बेचारी भूख से
त्रस्त हो मर जायेगी,
कैसे भी हो घर से इसे
कहीं दूर आ निकाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
जनसंख्या वृद्धि की देश में
फ़ारमूला एक सी रफ़्तार है,
इस उपलब्धि पर हो रही
जनता की जयजयकार है ,
पर तू भी तो कर ले कुछ
यूं कब से पडा निढाल है ,
अकर्मण्यता पर तेरी मचा
है किस कदर बवाल है ,
वर्षों में पैदा न कर सका
एक सशक्त लोकपाल तू,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
गाँधी के उसूलों का कर
कुछ तो यार खयाल तू ,
चपत लगे जनता की तो
कर आगे दूजा गाल तू ,
जनता बेचारी क्या करे
अस्तित्व का सवाल है ,
जीरो से तू हीरो हुआ
उसका तो बदतर हाल है ,
जन सेवा की है ली शपथ
तो छोड टेढी चाल रे ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
सेवक से तू स्वामी बना
बदली सी तेरी चाल है ,
जनता के पास मुश्किलें
अभाव है अकाल है ,
रोटी के इंतजार में
टूटा सा बस एक थाल है ,
उपर से आ गया है
भरा पूरा नया साल है ,
सेवक का दर्जा अपना
दिल से कर बहाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
-सर्वाधिकार सुरक्षित
Saturday, December 31, 2011
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !!!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
"आज भोर जब निद्रा रानी हुई विदा,
देखा द्वारे मुस्काता नव नर्ष खडा,
घटनाओं का लिये पिटारा एक भरा
बारह माहों के लिबास में सजा धजा !!"
"आज भोर जब निद्रा रानी हुई विदा,
देखा द्वारे मुस्काता नव नर्ष खडा,
घटनाओं का लिये पिटारा एक भरा
बारह माहों के लिबास में सजा धजा !!"
*अलविदा दो हजार ग्यारह !!!
ओंम प्रकाश नौटियाल
"लाये जितने दिन थे तुम सभी हुए व्यतीत
कुछ जीवन के मीत थे और कुछ थे विपरीत,
वर्ष! तुम्हारा आज जब जीवन जायेगा बीत
मेरे अतीत में रहना, मेरे मित्र,मेरे मनमीत!!"
"लाये जितने दिन थे तुम सभी हुए व्यतीत
कुछ जीवन के मीत थे और कुछ थे विपरीत,
वर्ष! तुम्हारा आज जब जीवन जायेगा बीत
मेरे अतीत में रहना, मेरे मित्र,मेरे मनमीत!!"
Friday, December 23, 2011
बेटीयाँ
ओंम प्रकाश नौटियाल
अंधेरों से किया निबाह कि चिराग हो रोशन,
बेटी ही सहारा है जिसे समझा ’पराया धन’ !
पुत्री आयी अनचाही, थी इच्छा और पुत्र की,
तनया प्राण से समर्पित, है बेटा कहीं मगन !
जाने कन्या जन्म पर, क्यों मुरझा गये सारे,
मानों उनके सभी स्वप्न, हुए आज हों दहन !
अजन्य, अनर्थक, अनिमित्त सा जिसे जाना,
कभी शक्ति स्वरूप दुर्गा,कभी मलयजा पवन !
ममतामयी, प्रिया अनुरक्ता,अंतरग अनुरागी,
हो रूप माता या पत्नी का, बेटी हो या बहन !
जिस घर में नारी का स्नेह संसार बसता हो,
सदा रहा सुगन्धित है, हुआ मानों अभी हवन !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
अंधेरों से किया निबाह कि चिराग हो रोशन,
बेटी ही सहारा है जिसे समझा ’पराया धन’ !
पुत्री आयी अनचाही, थी इच्छा और पुत्र की,
तनया प्राण से समर्पित, है बेटा कहीं मगन !
जाने कन्या जन्म पर, क्यों मुरझा गये सारे,
मानों उनके सभी स्वप्न, हुए आज हों दहन !
अजन्य, अनर्थक, अनिमित्त सा जिसे जाना,
कभी शक्ति स्वरूप दुर्गा,कभी मलयजा पवन !
ममतामयी, प्रिया अनुरक्ता,अंतरग अनुरागी,
हो रूप माता या पत्नी का, बेटी हो या बहन !
जिस घर में नारी का स्नेह संसार बसता हो,
सदा रहा सुगन्धित है, हुआ मानों अभी हवन !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
सर्दी गरीब की (चंद हाइकु )
-ओंम प्रकाश नौटियाल
-1-
जाडा जो आया,
मजदूर के घर
मातम छाया
-2-
सर्दी की रात
खुद ही काँप गई
घुस झुग्गी में
-3-
सर्दी थी कडी
अंगीठी की लकडी
जी भर लडी
-4-
सर्द थी रात
बिछौना फ़ुटपाथ
दीन अनाथ
-5-
मृत्यु वरण
ठंड से बचा तन
ओढा कफ़न
-6-
अंधेरगर्दी
झुग्गी ढूंढती सर्दी
कैसी बेदर्दी
*
(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित )
-1-
जाडा जो आया,
मजदूर के घर
मातम छाया
-2-
सर्दी की रात
खुद ही काँप गई
घुस झुग्गी में
-3-
सर्दी थी कडी
अंगीठी की लकडी
जी भर लडी
-4-
सर्द थी रात
बिछौना फ़ुटपाथ
दीन अनाथ
-5-
मृत्यु वरण
ठंड से बचा तन
ओढा कफ़न
-6-
अंधेरगर्दी
झुग्गी ढूंढती सर्दी
कैसी बेदर्दी
*
(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित )
जब तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा
-ओंम प्रकाश नौटियाल
*
झूठ बोलकर भी तुम्हारा मन नहीं पछ्तायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
कूड़े के ढेर से किसी नवजात का सुन क्रंदन,
माँ का स्पर्श ढूंढता हर क्षण क्षीण होता रुदन
हृदय व्यथित तुम्हारा किंचित नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
नीरवता भंग करती, अबला की चित्कार सुन,
माँ बहन का राह में खुले आम तिरस्कार सुन ,
कंपित जरा भी मन मष्तिष्क नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
सामने प्रशस्ति राग और पीछे निंदा की कटार,
कथनी करनी के मध्य चौडी गहरी एक दरार
रिश्ते निभाने का निराला ढ़ंग यह बन जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
मुश्किल में फ़ंसे हुए प्रिय मित्र की दरकार भाँप,
निज स्वार्थ ,अनिच्छा को नकली बहानों से ढाँप ,
विवशता का राग तब अलापना तुम्हें आ जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
*
झूठ बोलकर भी तुम्हारा मन नहीं पछ्तायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
कूड़े के ढेर से किसी नवजात का सुन क्रंदन,
माँ का स्पर्श ढूंढता हर क्षण क्षीण होता रुदन
हृदय व्यथित तुम्हारा किंचित नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
नीरवता भंग करती, अबला की चित्कार सुन,
माँ बहन का राह में खुले आम तिरस्कार सुन ,
कंपित जरा भी मन मष्तिष्क नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
सामने प्रशस्ति राग और पीछे निंदा की कटार,
कथनी करनी के मध्य चौडी गहरी एक दरार
रिश्ते निभाने का निराला ढ़ंग यह बन जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
मुश्किल में फ़ंसे हुए प्रिय मित्र की दरकार भाँप,
निज स्वार्थ ,अनिच्छा को नकली बहानों से ढाँप ,
विवशता का राग तब अलापना तुम्हें आ जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
Tuesday, December 13, 2011
बादल
-ओंम प्रकाश नौटियाल
बादल -ओंम प्रकाश नौटियाल
बूंद बूंद पी भर गया बादल
कितने रंगो में सज गया बादल
मैंने कहा मेरे अंगना बरसना
घुडकी देकर चल गया बादल
सूर्य की किरणें भीतर समाकर
शीतल छाँव कर गया बादल
खुद की शक्ल से ऐसे खेला
कई शक्लों में ढ़ल गया बादल
झुक गया देखो उस पहाडी पर
बर्फ़ चूमने मचल गया बादल
गुस्से से जब कभी काला हुआ
बादल देख तब लड़ गया बादल
पीर देख उस पहाडी गाँव की
भारी मन हो फट गया बादल
देख सूरज को अपनी बूंदो से
सतरंगी मुस्कान दे गया बादल
नीर खारा सागर का पीकर
मीठा जल सबको दे गया बादल !
बादल -ओंम प्रकाश नौटियाल
बूंद बूंद पी भर गया बादल
कितने रंगो में सज गया बादल
मैंने कहा मेरे अंगना बरसना
घुडकी देकर चल गया बादल
सूर्य की किरणें भीतर समाकर
शीतल छाँव कर गया बादल
खुद की शक्ल से ऐसे खेला
कई शक्लों में ढ़ल गया बादल
झुक गया देखो उस पहाडी पर
बर्फ़ चूमने मचल गया बादल
गुस्से से जब कभी काला हुआ
बादल देख तब लड़ गया बादल
पीर देख उस पहाडी गाँव की
भारी मन हो फट गया बादल
देख सूरज को अपनी बूंदो से
सतरंगी मुस्कान दे गया बादल
नीर खारा सागर का पीकर
मीठा जल सबको दे गया बादल !
Tuesday, December 6, 2011
मत उदास रहो
-ओंम प्रकाश नौटियाल
घबराहट क्यों प्रीतम इतनी,
है ऐसी क्या उलझन इतनी ,
जीवन में कई सवेरे है,
फ़िर क्यों चिन्ता के डेरे हैं ,
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !
चाहत जितनी तुम पालोगे
परछाई पीछे भागोगे ,
कल्पित से सुख की खातिर
यूं कितनी रातें जागोगे ?
सुख पाने की चाहत में
दुख का क्यों बनकर ग्रास रहो !
एक सच्चा है एक साया है
सुख दुख की ऐसी माया है<
दोनो हैं चलते साथ साथ
सबने ही इनको पाया है<
तुम दूर रहो या पास रहो
पर ना इनके तुम दास रहो
हो प्यार तुम्हारा मंत्र तंत्र
पर प्रेम के क्यों आधीन रहो
बाँटो बाँटे से बढता है
ना मिला तो क्यों गमगीन रहो
दिन में तो सभी चमकते हैं
बन तम में भी प्रकाश रहो
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो।
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
घबराहट क्यों प्रीतम इतनी,
है ऐसी क्या उलझन इतनी ,
जीवन में कई सवेरे है,
फ़िर क्यों चिन्ता के डेरे हैं ,
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !
चाहत जितनी तुम पालोगे
परछाई पीछे भागोगे ,
कल्पित से सुख की खातिर
यूं कितनी रातें जागोगे ?
सुख पाने की चाहत में
दुख का क्यों बनकर ग्रास रहो !
एक सच्चा है एक साया है
सुख दुख की ऐसी माया है<
दोनो हैं चलते साथ साथ
सबने ही इनको पाया है<
तुम दूर रहो या पास रहो
पर ना इनके तुम दास रहो
हो प्यार तुम्हारा मंत्र तंत्र
पर प्रेम के क्यों आधीन रहो
बाँटो बाँटे से बढता है
ना मिला तो क्यों गमगीन रहो
दिन में तो सभी चमकते हैं
बन तम में भी प्रकाश रहो
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो।
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
Tuesday, November 15, 2011
My Thoghts (from my Face Book status)
ज्ञान ध्यान :
"१४ नवम्बर को ’बाल दिवस’ तो हमनें धूमधाम से मना लिया है किंतु हमारे बालविहीन गंजे मित्रों की गुजारिश है कि उनके लिये भी एक दिन मुकर्रर होना चाहिये जिसे हम सब उनकी खातिर इसी जोश के साथ ’ नो बाल दिवस ’ के रूप में हर वर्ष मना सकें ।" (१६ नवम्बर २०११)
***
ज्ञान ध्यान :
"राजस्थान से प्राप्त सत्ता में व्याप्त तथाकथित व्यभिचार के समाचारों को पढ़कर, अब लोगों को विश्वास होने लगा है कि भ्रष्टाचार देश में सबसे बडा मुद्दा नहीं है ।"
***
*
गन्दे जल में नहा भला कब सूरत संवरी
कीच भरे ताल भंवर में फंसी हाए भंवरी।
-ओंम
***
ज्ञान ध्यान :
"आज एक चैनल पर दिखाई जा रही सी डी में राजस्थान की राजनीति का धरा ढका ’ नंगा सच ’ बेनकाब होते देख एक बार फ़िर से इस धारणा पर विश्वास होने लगा है कि मात्र 90% तथाकथित दागदार नेताओं की वजह से बाकी अच्छे नेता व्यर्थ में बदनाम हो रहे हैं ।"
***
ज्ञान ध्यान :
"शायद करीना कपूर के बाद स्त्रीलिंग सूचक नामों में आज सबसे लोक प्रिय नाम "मंहगाई" है जो शादी शुदा गृहस्थ पुरूषों को भी अपने निरंतर निखरते यौवन से मारने की क्षमता रखती है।"
***
ज्ञान ध्यान :
"डिटरजैन्ट कम्पनियाँ अपने उत्पाद द्वारा सारे नये , पुराने , हल्के , गहरे आदि सभी प्रकार के दाग़ साफ़ करने का दावा करती हैं । किन्तु हमारे सैकडों ’दागी’ सांसद और विधायक जो बेचारे वर्षों से ’दाग ’ के साथ गुजर कर रहे हैं , इन जन प्रतिनिधियों के दाग धोने के लिये तो अब तक कुछ भी नहीं बना पाई हैं !!! "
***
ज्ञान ध्यान :
"विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि चीन द्वारा सीमा पर निरंतर हो रही घुसपैठ को अहिंसक और गाँधी वादी तरीके से रोकने के लिये , सरकार ’ बिग बौस ’ के प्रतियोगियों को सीमा पर तैनात करने की सोच रही है जो अपने वाक वाणों से चीनीयों को कई किलोमीटर पीछे धकेलने की क्षमता रखते हैं।"
***
ज्ञान ध्यान :
एक पुराने विदेशी समाचार पत्र की 20 वर्ष पुरानी तथाकथित रिपोर्ट के अनुसार एक भूतपूर्व भारतीय प्रधानमंत्री के स्विस खाते में लगभग 13 करोड़ रुपये जमा हैं । इस खुलासे का कारण है -’ 13 ’ की संख्या वाली अपशकुनी राशि जमा करना - अब उनके बचाव में यह कहना मुश्किल हो गया है कि -- " हम तो तीन में न तेरह में" ।
***
ज्ञान ध्यान :
" सी बी आई द्वारा कनिमोझि और साथियों की जमानत का विरोध नहीं करना सर्वथा उचित लगता है क्योंकि जेल मे स्थानाभाव है और अभी बहुत से साथी लम्बे समय से कतार में हैं ,जिन्होने काफ़ी मेहनत की है और वह भी कम से कम कुछ समय के लिये जेल अनुभव प्राप्त करने के हकदार हैं ।"
***
ज्ञान ध्यान :
" फारमूला वन के आयोजन का एक मात्र उद्देश्य विश्व को इस सच्चाई से अवगत कराना था कि अगर हमारी विकास की राहें भी फारमूला वन ट्रैक की तरह समरस और समतल होती और राहों में जगह जगह भ्रष्टाचार के रोड़े नहीं होते, तो हमारी प्रगति की रफ़्तार भी फारमूला वन कारों की रफ़्तार जैसी ही होती । "
***
ज्ञान ध्यान :
"आज प्राप्त एक समाचार के अनुसार २०१२ लन्दन ओलिम्पिक के स्टेडियम अभी से अभ्यासार्थ व जनता के दर्शनार्थ खोल दिये गये हैं। अब हम भारतीय जो ताजे ताजे बने हुए पेन्ट ,पौलिश से महकते स्टेडियम में खेल देखने के अभ्यस्त हैं उन्हें ऐसे पुराने हो चुके स्टेडियम में खेल देखने का भला क्या मजा आयेगा ?"
***
"हे पालनहार ! मुझे बेशुमार लाड़ न दो,
घर सरकारी हो जरूर, पर तिहाड़ न दो।"
--ओंम
***
ज्ञान ध्यान :
"सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफ़नामे का भाव कुछ इस प्रकार है कि शहरी क्षेत्र में रहने वालों को गुजर बसर करने के लिये प्रतिदिन मात्र बत्तीसी दिखाना काफ़ी है ।"
***
ज्ञान ध्यान :
" ऐसा प्रतीत होता है कि नेताओं को शायद लगने लगा है कि वह भारत को भूख की समस्या से तो निजात नहीं दिला सकते इसलिये अब सारा ध्यान उपवास के प्रचार , प्रसार और लाभ बतानें में लगा रहे हैं ।"
***
ज्ञान चर्चा :
" सरकारी कार्यालयों में अब भी लोग इंगलिश अच्छी तरह न जानते हुए भी इंगलिश का प्रयोग कर अपने को पढा लिखा दिखाने की मानसिकता से ग्रस्त हैं हिन्दी दिवस की सबसे अच्छी बात यह है कि वह बिना ऐसे किसी दबाव के हिन्दी में भाषण दे सकते हैं ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"बच्चों से ही घर में शीतल वायु का प्रवाह और जगमग उजाला रहता है क्योंकि वह फैन और लाइट के स्विच कभी बंद नहीं करते।"
***
ज्ञान चर्चा:
"आज के माहौल में एक बात हमेशा याद रखें , ईश्वर ना करे यदि कोई कभी तिहाड़ जेल में बन्द कर दिया जाता हैं तो उसका सबसे करीबी मित्र जमानत के लिये कभी नहीं आयेगा , क्योंकि वह पहले से ही बगल वाली कोठडी में बन्द होगा ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"प्यारे कुंवारे अन्ना जीते, मिली नई यह सीख
नहीं जरूरी नारी हो, हर सफ़ल व्यक्ति की पीठ।"
-ओंम
***
ज्ञान चर्चा :
"कुछ लोगों को खाने की ऐसी लत पडी होती है कि कुछ भी, यहाँ तक की चारा तक, खा जाते हैं , उनके लिये यह विश्वास करना असंभव सा है कि कोई व्यक्ति बारह दिन तक बिना खाये पीये भी रह सकता है ।"
***
एक समाचार : स्वामी अग्निवेश की काँग्रेस से साठ गाँठ थी ।
"जयचन्द भी रहते हैं अपने देश में
शैतान घूमते कई साधु के वेश में ।"
--ओंम
***
ज्ञान चर्चा :
"देश में भ्रष्टाचार बढ़ने का एक कारण यह भी है कि यहाँ बडे बडे घोटालों को बहुत सम्मान के साथ अंत में ’जी ’ लगाकर पुकारा जाता है जैसे टू ’जी’ ,थ्री ’जी’ , सी डब्लयू ’जी ’ आदि आदि ।"
***
ज्ञान चर्चा " जनहित की योजनाओं की मटकी का मंथन कर उनसे अपने खाने के लिये धन रूपी माखन निकाल कर हमारे ही चुने हुए प्रतिनिधि स्वयं को सेवक से भगवान समझने की गलतफ़हमी पाल लेते हैं और हमें समझाते रहते हैं - ’ जनता मेरी मैं नहीं पैसा खायो ’ !!"
***
ज्ञान चर्चा :
"कैसी विडम्बना है जब दागी सांसद , विधायक , मंत्री बनते हैं जब चुने हुए प्रतिनिधियों की खरीद फ़रोख़्त होती है ,जब संसद में नोट लहराये जाते हैं , जब जनता के नुमाइन्दें विधान सभाओं में गाली गलौज, मारपीट करते हैं ,जब चुनाव में कालाधन पानी की तरह बहता है तब लोकतंत्र को कभी खतरा नहीं होता किंतु जब वर्षों से त्रस्त जनता एक जुट होकर अपनी मुश्किलों से निजात पाने के लिये आवाज उठाती है तो लोकतंत्र पर एकदम गहरा संकट आ जाता है ,संसद की मर्यादा टूटने लगती हैं । बेचारी जनता !!!!"
***
ज्ञान चर्चा :
" मानव ने अपने उपयोग और मनोरंजन के लिये इतनी अधिक चीजें इजाद कर ली हैं कि उन्हे इस्तेमाल करने के लिये दो हाथ कम पडते हैं । ऐसा समाचार है कि रचयिता ने इस कठिनाई को ध्यान में रखते हुये मानव डिजाइन में कुछ बडे बदलाव किये हैं ।दस हाथ वाले पहले शिशु का प्रोटोटाइप तैय्यार है और ऐसा शिशु आज से २०० वर्ष बाद पृथ्वी पर आयेगा ।"
***
ज्ञान चर्चा :
" शराब इसलिये उपयोगी है क्योंकि यह अपेक्षाकृत धीमा जहर है और कोई भी जल्दी मरना नही चाहता है।"
***
ज्ञान चर्चा :
"आज से बंर्मिंघम मे भारत और इंगलैन्ड के बीच तीसरा क्रिकेट टैस्ट आरम्भ हो रहा है । लंदन दंगो की चपेट मे है , इंगलैन्ड की टीम इस अशान्त फसादी माहौल से घबरायी हुई है , हमें तो खैर आदत है । भारतीय टीम को शुभकामनायें । "
***
ज्ञान चर्चा :
" आप यदि किसी स्त्री के सौन्दर्य प्रशंसा में कहें कि उसकी शक्ल किसी आदमी से मिलती है तो अवश्य ही वह इस बेमेल स्त्री पुरूष सौन्दर्य तुलना पर खफ़ा हो जायेगी , चाहे वह व्यक्ति कितना भी खूबसूरत हो। किंतु लोग सदियों से स्त्री के सौन्दर्य की तुलना पुलिंग चाँद से करते आ रहे है इस आशय के प्रशस्ति गान गा रहे हैं और स्त्रीयाँ इस सौन्दर्य तुलना पर निसंदेह प्रसन्न हैं, न किसी स्त्री ने कभी कोई शिकायत दर्ज की है न कोई पी आई ऐल फाइल हुई है ! क्या राज है इसका ?ज्ञानी मित्र कृपया शंका निवारण करें ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"अगर संविधान हमें बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है तो हमें फोन बिल्स भिजवा कर इस स्वतंत्रता में रोडे अटकाने का गैर संवैधानिक कार्य क्यों किया जा रहा है ?"
***
ज्ञान चर्चा :
"अब तक पूर्ण रूप से ऐसा आदर्श कमप्य़ूटर बनाने में सफलता नही मिल पाई है जो गलती करने के बाद दूसरे कमप्य़ूटर पर दोषारोपण कर सके और अपना माईक या माउस उस पर फ़ेंक कर मार सके ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"अब तक पूर्ण रूप से ऐसा आदर्श कमप्य़ूटर बनाने में सफलता नही मिल पाई है जो गलती करने के बाद दूसरे कमप्य़ूटर पर दोषारोपण कर सके और अपना माईक या माउस उस पर फ़ेंक कर मार सके ।"
***
ज्ञान चर्चा :
’यह बेहद आश्चर्य की बात है कि प्रतिदिन संसार में केवल उतनी ही घटनायें घटित होती हैं जिनसे एक समाचार पत्र पूरा पूरा भरा जा सकता है।"
***
ज्ञान चर्चा :
" हर सफ़ल व्यक्ति के पीछे ( चिर कुमार परम प्रिय श्री अन्ना हजारे जी को छोड़कर ) एक स्त्री होती है और उस स्त्री के पीछे उस व्यक्ति की पत्नी अपने पूरे रौद्र रूप में होती है ।"
***
"१४ नवम्बर को ’बाल दिवस’ तो हमनें धूमधाम से मना लिया है किंतु हमारे बालविहीन गंजे मित्रों की गुजारिश है कि उनके लिये भी एक दिन मुकर्रर होना चाहिये जिसे हम सब उनकी खातिर इसी जोश के साथ ’ नो बाल दिवस ’ के रूप में हर वर्ष मना सकें ।" (१६ नवम्बर २०११)
***
ज्ञान ध्यान :
"राजस्थान से प्राप्त सत्ता में व्याप्त तथाकथित व्यभिचार के समाचारों को पढ़कर, अब लोगों को विश्वास होने लगा है कि भ्रष्टाचार देश में सबसे बडा मुद्दा नहीं है ।"
***
*
गन्दे जल में नहा भला कब सूरत संवरी
कीच भरे ताल भंवर में फंसी हाए भंवरी।
-ओंम
***
ज्ञान ध्यान :
"आज एक चैनल पर दिखाई जा रही सी डी में राजस्थान की राजनीति का धरा ढका ’ नंगा सच ’ बेनकाब होते देख एक बार फ़िर से इस धारणा पर विश्वास होने लगा है कि मात्र 90% तथाकथित दागदार नेताओं की वजह से बाकी अच्छे नेता व्यर्थ में बदनाम हो रहे हैं ।"
***
ज्ञान ध्यान :
"शायद करीना कपूर के बाद स्त्रीलिंग सूचक नामों में आज सबसे लोक प्रिय नाम "मंहगाई" है जो शादी शुदा गृहस्थ पुरूषों को भी अपने निरंतर निखरते यौवन से मारने की क्षमता रखती है।"
***
ज्ञान ध्यान :
"डिटरजैन्ट कम्पनियाँ अपने उत्पाद द्वारा सारे नये , पुराने , हल्के , गहरे आदि सभी प्रकार के दाग़ साफ़ करने का दावा करती हैं । किन्तु हमारे सैकडों ’दागी’ सांसद और विधायक जो बेचारे वर्षों से ’दाग ’ के साथ गुजर कर रहे हैं , इन जन प्रतिनिधियों के दाग धोने के लिये तो अब तक कुछ भी नहीं बना पाई हैं !!! "
***
ज्ञान ध्यान :
"विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि चीन द्वारा सीमा पर निरंतर हो रही घुसपैठ को अहिंसक और गाँधी वादी तरीके से रोकने के लिये , सरकार ’ बिग बौस ’ के प्रतियोगियों को सीमा पर तैनात करने की सोच रही है जो अपने वाक वाणों से चीनीयों को कई किलोमीटर पीछे धकेलने की क्षमता रखते हैं।"
***
ज्ञान ध्यान :
एक पुराने विदेशी समाचार पत्र की 20 वर्ष पुरानी तथाकथित रिपोर्ट के अनुसार एक भूतपूर्व भारतीय प्रधानमंत्री के स्विस खाते में लगभग 13 करोड़ रुपये जमा हैं । इस खुलासे का कारण है -’ 13 ’ की संख्या वाली अपशकुनी राशि जमा करना - अब उनके बचाव में यह कहना मुश्किल हो गया है कि -- " हम तो तीन में न तेरह में" ।
***
ज्ञान ध्यान :
" सी बी आई द्वारा कनिमोझि और साथियों की जमानत का विरोध नहीं करना सर्वथा उचित लगता है क्योंकि जेल मे स्थानाभाव है और अभी बहुत से साथी लम्बे समय से कतार में हैं ,जिन्होने काफ़ी मेहनत की है और वह भी कम से कम कुछ समय के लिये जेल अनुभव प्राप्त करने के हकदार हैं ।"
***
ज्ञान ध्यान :
" फारमूला वन के आयोजन का एक मात्र उद्देश्य विश्व को इस सच्चाई से अवगत कराना था कि अगर हमारी विकास की राहें भी फारमूला वन ट्रैक की तरह समरस और समतल होती और राहों में जगह जगह भ्रष्टाचार के रोड़े नहीं होते, तो हमारी प्रगति की रफ़्तार भी फारमूला वन कारों की रफ़्तार जैसी ही होती । "
***
ज्ञान ध्यान :
"आज प्राप्त एक समाचार के अनुसार २०१२ लन्दन ओलिम्पिक के स्टेडियम अभी से अभ्यासार्थ व जनता के दर्शनार्थ खोल दिये गये हैं। अब हम भारतीय जो ताजे ताजे बने हुए पेन्ट ,पौलिश से महकते स्टेडियम में खेल देखने के अभ्यस्त हैं उन्हें ऐसे पुराने हो चुके स्टेडियम में खेल देखने का भला क्या मजा आयेगा ?"
***
"हे पालनहार ! मुझे बेशुमार लाड़ न दो,
घर सरकारी हो जरूर, पर तिहाड़ न दो।"
--ओंम
***
ज्ञान ध्यान :
"सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफ़नामे का भाव कुछ इस प्रकार है कि शहरी क्षेत्र में रहने वालों को गुजर बसर करने के लिये प्रतिदिन मात्र बत्तीसी दिखाना काफ़ी है ।"
***
ज्ञान ध्यान :
" ऐसा प्रतीत होता है कि नेताओं को शायद लगने लगा है कि वह भारत को भूख की समस्या से तो निजात नहीं दिला सकते इसलिये अब सारा ध्यान उपवास के प्रचार , प्रसार और लाभ बतानें में लगा रहे हैं ।"
***
ज्ञान चर्चा :
" सरकारी कार्यालयों में अब भी लोग इंगलिश अच्छी तरह न जानते हुए भी इंगलिश का प्रयोग कर अपने को पढा लिखा दिखाने की मानसिकता से ग्रस्त हैं हिन्दी दिवस की सबसे अच्छी बात यह है कि वह बिना ऐसे किसी दबाव के हिन्दी में भाषण दे सकते हैं ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"बच्चों से ही घर में शीतल वायु का प्रवाह और जगमग उजाला रहता है क्योंकि वह फैन और लाइट के स्विच कभी बंद नहीं करते।"
***
ज्ञान चर्चा:
"आज के माहौल में एक बात हमेशा याद रखें , ईश्वर ना करे यदि कोई कभी तिहाड़ जेल में बन्द कर दिया जाता हैं तो उसका सबसे करीबी मित्र जमानत के लिये कभी नहीं आयेगा , क्योंकि वह पहले से ही बगल वाली कोठडी में बन्द होगा ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"प्यारे कुंवारे अन्ना जीते, मिली नई यह सीख
नहीं जरूरी नारी हो, हर सफ़ल व्यक्ति की पीठ।"
-ओंम
***
ज्ञान चर्चा :
"कुछ लोगों को खाने की ऐसी लत पडी होती है कि कुछ भी, यहाँ तक की चारा तक, खा जाते हैं , उनके लिये यह विश्वास करना असंभव सा है कि कोई व्यक्ति बारह दिन तक बिना खाये पीये भी रह सकता है ।"
***
एक समाचार : स्वामी अग्निवेश की काँग्रेस से साठ गाँठ थी ।
"जयचन्द भी रहते हैं अपने देश में
शैतान घूमते कई साधु के वेश में ।"
--ओंम
***
ज्ञान चर्चा :
"देश में भ्रष्टाचार बढ़ने का एक कारण यह भी है कि यहाँ बडे बडे घोटालों को बहुत सम्मान के साथ अंत में ’जी ’ लगाकर पुकारा जाता है जैसे टू ’जी’ ,थ्री ’जी’ , सी डब्लयू ’जी ’ आदि आदि ।"
***
ज्ञान चर्चा " जनहित की योजनाओं की मटकी का मंथन कर उनसे अपने खाने के लिये धन रूपी माखन निकाल कर हमारे ही चुने हुए प्रतिनिधि स्वयं को सेवक से भगवान समझने की गलतफ़हमी पाल लेते हैं और हमें समझाते रहते हैं - ’ जनता मेरी मैं नहीं पैसा खायो ’ !!"
***
ज्ञान चर्चा :
"कैसी विडम्बना है जब दागी सांसद , विधायक , मंत्री बनते हैं जब चुने हुए प्रतिनिधियों की खरीद फ़रोख़्त होती है ,जब संसद में नोट लहराये जाते हैं , जब जनता के नुमाइन्दें विधान सभाओं में गाली गलौज, मारपीट करते हैं ,जब चुनाव में कालाधन पानी की तरह बहता है तब लोकतंत्र को कभी खतरा नहीं होता किंतु जब वर्षों से त्रस्त जनता एक जुट होकर अपनी मुश्किलों से निजात पाने के लिये आवाज उठाती है तो लोकतंत्र पर एकदम गहरा संकट आ जाता है ,संसद की मर्यादा टूटने लगती हैं । बेचारी जनता !!!!"
***
ज्ञान चर्चा :
" मानव ने अपने उपयोग और मनोरंजन के लिये इतनी अधिक चीजें इजाद कर ली हैं कि उन्हे इस्तेमाल करने के लिये दो हाथ कम पडते हैं । ऐसा समाचार है कि रचयिता ने इस कठिनाई को ध्यान में रखते हुये मानव डिजाइन में कुछ बडे बदलाव किये हैं ।दस हाथ वाले पहले शिशु का प्रोटोटाइप तैय्यार है और ऐसा शिशु आज से २०० वर्ष बाद पृथ्वी पर आयेगा ।"
***
ज्ञान चर्चा :
" शराब इसलिये उपयोगी है क्योंकि यह अपेक्षाकृत धीमा जहर है और कोई भी जल्दी मरना नही चाहता है।"
***
ज्ञान चर्चा :
"आज से बंर्मिंघम मे भारत और इंगलैन्ड के बीच तीसरा क्रिकेट टैस्ट आरम्भ हो रहा है । लंदन दंगो की चपेट मे है , इंगलैन्ड की टीम इस अशान्त फसादी माहौल से घबरायी हुई है , हमें तो खैर आदत है । भारतीय टीम को शुभकामनायें । "
***
ज्ञान चर्चा :
" आप यदि किसी स्त्री के सौन्दर्य प्रशंसा में कहें कि उसकी शक्ल किसी आदमी से मिलती है तो अवश्य ही वह इस बेमेल स्त्री पुरूष सौन्दर्य तुलना पर खफ़ा हो जायेगी , चाहे वह व्यक्ति कितना भी खूबसूरत हो। किंतु लोग सदियों से स्त्री के सौन्दर्य की तुलना पुलिंग चाँद से करते आ रहे है इस आशय के प्रशस्ति गान गा रहे हैं और स्त्रीयाँ इस सौन्दर्य तुलना पर निसंदेह प्रसन्न हैं, न किसी स्त्री ने कभी कोई शिकायत दर्ज की है न कोई पी आई ऐल फाइल हुई है ! क्या राज है इसका ?ज्ञानी मित्र कृपया शंका निवारण करें ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"अगर संविधान हमें बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है तो हमें फोन बिल्स भिजवा कर इस स्वतंत्रता में रोडे अटकाने का गैर संवैधानिक कार्य क्यों किया जा रहा है ?"
***
ज्ञान चर्चा :
"अब तक पूर्ण रूप से ऐसा आदर्श कमप्य़ूटर बनाने में सफलता नही मिल पाई है जो गलती करने के बाद दूसरे कमप्य़ूटर पर दोषारोपण कर सके और अपना माईक या माउस उस पर फ़ेंक कर मार सके ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"अब तक पूर्ण रूप से ऐसा आदर्श कमप्य़ूटर बनाने में सफलता नही मिल पाई है जो गलती करने के बाद दूसरे कमप्य़ूटर पर दोषारोपण कर सके और अपना माईक या माउस उस पर फ़ेंक कर मार सके ।"
***
ज्ञान चर्चा :
’यह बेहद आश्चर्य की बात है कि प्रतिदिन संसार में केवल उतनी ही घटनायें घटित होती हैं जिनसे एक समाचार पत्र पूरा पूरा भरा जा सकता है।"
***
ज्ञान चर्चा :
" हर सफ़ल व्यक्ति के पीछे ( चिर कुमार परम प्रिय श्री अन्ना हजारे जी को छोड़कर ) एक स्त्री होती है और उस स्त्री के पीछे उस व्यक्ति की पत्नी अपने पूरे रौद्र रूप में होती है ।"
***
Sunday, November 6, 2011
चाँद और चाँदनी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
-१-
कहा चाँद ने चाँदनी से,
"यह जो तुम रात में,
छोड़ मुझे आकाश में,
निकल मेरे बहुपाश से
पृथ्वी पर
पहुंच जाती हो,
प्रेमी युगलों की गोद में
निसंकोच बैठ जाती हो,,
खिडकी खुली देख
किसी भी
कक्ष में घुस जाती हो,
वृक्षों पर इठलाती हो,
पानी पर लहराती हो,
विरह में जलने वालों को
और जलाती हो,
तुम इससे क्या पाती हो ?
हाँ मुझे अवश्य ही
विरह वेदना दे जाती हो ",
-२-
चाँदनी ने कहा
"प्रियतम, लोगों की
असली सूरत और सीरत
रात में साफ़ नजर आती है,
चेहरे से नकाब हटा होता है
मेकअप मिटा होता है,
दिन के देश प्रेमी
रात में सिर्फ़ प्रेमी होते हैं,
श्वेत उजाले में
जो धुले उजले दिखते हैं,
रात के अंधेरे में
चोरी , बलात्कार
तसकरी ,व्यभिचार
और न जाने
किन किन अपराधों के
इतिहास रचते हैं,
उनके इस रूप को
निहारने का अलग आनन्द है
हर कोई कवि है
हर किसी के पास छंद हैं
नये नये रूप उन्हें पसंद हैं ,
दिन के जो योगी हैं
रात में सिर्फ़ भोगी हैं !!
-३-
मेरे प्रिय, मेरे चन्दा !
तुन्हीं बताओ
आकाशीय समरसता में
कहाँ रस हैं ,
यहाँ सिर्फ़ उबाऊ विस्तार है
पृथ्वी पर मीना बाजार है !!!!
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
-१-
कहा चाँद ने चाँदनी से,
"यह जो तुम रात में,
छोड़ मुझे आकाश में,
निकल मेरे बहुपाश से
पृथ्वी पर
पहुंच जाती हो,
प्रेमी युगलों की गोद में
निसंकोच बैठ जाती हो,,
खिडकी खुली देख
किसी भी
कक्ष में घुस जाती हो,
वृक्षों पर इठलाती हो,
पानी पर लहराती हो,
विरह में जलने वालों को
और जलाती हो,
तुम इससे क्या पाती हो ?
हाँ मुझे अवश्य ही
विरह वेदना दे जाती हो ",
-२-
चाँदनी ने कहा
"प्रियतम, लोगों की
असली सूरत और सीरत
रात में साफ़ नजर आती है,
चेहरे से नकाब हटा होता है
मेकअप मिटा होता है,
दिन के देश प्रेमी
रात में सिर्फ़ प्रेमी होते हैं,
श्वेत उजाले में
जो धुले उजले दिखते हैं,
रात के अंधेरे में
चोरी , बलात्कार
तसकरी ,व्यभिचार
और न जाने
किन किन अपराधों के
इतिहास रचते हैं,
उनके इस रूप को
निहारने का अलग आनन्द है
हर कोई कवि है
हर किसी के पास छंद हैं
नये नये रूप उन्हें पसंद हैं ,
दिन के जो योगी हैं
रात में सिर्फ़ भोगी हैं !!
-३-
मेरे प्रिय, मेरे चन्दा !
तुन्हीं बताओ
आकाशीय समरसता में
कहाँ रस हैं ,
यहाँ सिर्फ़ उबाऊ विस्तार है
पृथ्वी पर मीना बाजार है !!!!
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
Tuesday, November 1, 2011
Saturday, October 1, 2011
Monday, September 26, 2011
बेटी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
अंधेरों से किया निबाह कि चिराग हो रोशन,
बेटी ही सहारा है जिसे समझा ’पराया धन’ !
पुत्री आयी अनचाही, थी इच्छा और पुत्र की,
तनया प्राण से समर्पित, है बेटा कहीं मगन !
जाने कन्या जन्म पर, क्यों मुरझा गये सारे,
मानों उनके सभी स्वप्न, हुए आज हों दहन !
अजन्य, अनर्थक, अनिमित्त सा जिसे जाना,
कभी शक्ति स्वरूप दुर्गा,कभी मलयजा पवन !
ममतामयी, प्रिया अनुरक्ता,अंतरग अनुरागी,
हो रूप माता या पत्नी का, बेटी हो या बहन !
जिस घर में नारी का स्नेह संसार बसता हो,
सदा रहा सुगन्धित है, हुआ मानों अभी हवन !
अंधेरों से किया निबाह कि चिराग हो रोशन,
बेटी ही सहारा है जिसे समझा ’पराया धन’ !
पुत्री आयी अनचाही, थी इच्छा और पुत्र की,
तनया प्राण से समर्पित, है बेटा कहीं मगन !
जाने कन्या जन्म पर, क्यों मुरझा गये सारे,
मानों उनके सभी स्वप्न, हुए आज हों दहन !
अजन्य, अनर्थक, अनिमित्त सा जिसे जाना,
कभी शक्ति स्वरूप दुर्गा,कभी मलयजा पवन !
ममतामयी, प्रिया अनुरक्ता,अंतरग अनुरागी,
हो रूप माता या पत्नी का, बेटी हो या बहन !
जिस घर में नारी का स्नेह संसार बसता हो,
सदा रहा सुगन्धित है, हुआ मानों अभी हवन !
मोह बंधन
ओंम प्रकाश नौटियाल
प्रबल मोह पाश से
स्नेहसिक्त मिठास से
अर्चना उपवास से
सदभावना विश्वास से
निर्मल पावन मन से,
सृष्टि के उदगम से
नारी ने सबको
निज दास बना रक्खा है !
कर्म धर्म जाप हो
क्रंदन, प्रलाप हो
दुख हो विलाप हो
किसी का संताप हो
सर्वहारी नारी ने,
पत्नी महतारी ने,
बेटी , बहन प्यारी ने,
जीवन में सबके
उल्लास बना रक्खा है,
सृष्टि के प्रारंभ से
निज दास बना रक्खा है !
बंधकर कई बंधन में
इस जग प्रांगण में
निष्ठ, शिष्ट आचरण से
द्दढ़ता से प्रण से,
सबके जीवन में
सुवासित सा सुन्दर पलाश
खिला रक्खा है,
नारी ने सदियों से
निज दास बना रक्खा है !
प्रबल मोह पाश से
स्नेहसिक्त मिठास से
अर्चना उपवास से
सदभावना विश्वास से
निर्मल पावन मन से,
सृष्टि के उदगम से
नारी ने सबको
निज दास बना रक्खा है !
कर्म धर्म जाप हो
क्रंदन, प्रलाप हो
दुख हो विलाप हो
किसी का संताप हो
सर्वहारी नारी ने,
पत्नी महतारी ने,
बेटी , बहन प्यारी ने,
जीवन में सबके
उल्लास बना रक्खा है,
सृष्टि के प्रारंभ से
निज दास बना रक्खा है !
बंधकर कई बंधन में
इस जग प्रांगण में
निष्ठ, शिष्ट आचरण से
द्दढ़ता से प्रण से,
सबके जीवन में
सुवासित सा सुन्दर पलाश
खिला रक्खा है,
नारी ने सदियों से
निज दास बना रक्खा है !
हाल-ए-हिन्दी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
साँसत में हिन्दी है कि आया फ़िर पखवाडा
मात्र दिखावे की खातिर बाजेगा ढ़ोल नगाडा
कब तक ढ़ोयेगा भारत यूं अंग्रेजी का भार
दिखावे के लिये होगा, बस हिन्दी का प्रचार
गर्वीली शर्मीली हिन्दी, अंग्रेजी हैलो हाय
हिन्दी का हक़ मारते लाज तनिक न आय
करोडों की भाषा क्यों हो दया की मोहताज
शिक्षा सफ़ल तभी,जो हो स्वभाषा पर नाज
चले गये अंग्रेज,अंग्रेजी के हैं अब भी ठाठ
हिन्दी देश में जोह रही निज पारी की बाट
पखवाडे भर जश्न है फ़िर लम्बा बनवास
देश में अब तक यही हिन्दी का इतिहास
कितने पखवाडे हुए पर चली अढाई कोस
कार्यालयों में हिन्दी लगे, मानों हो खामोश
हिन्दी के गले में अटकी, अंग्रेजी की फाँस
बेटी की अपने ही घर आफ़त में है साँस
फिर आया पखवाडा सुन, हिन्दी हुई उदास
शेष वर्ष तो कर्मी मुझको नहीं बैठाते पास
भाषा उत्तर दक्षिण की,बंगला हो या सिन्धी
बहनों के लाड़ दुलार से खूब फ़ली है हिन्दी
अंग्रेजी बोली गुरूर से हिन्दी को कर लक्ष्य
पक्ष मना भर लेने से तू आये ना समकक्ष
हृदय से न चाह थी तभी ढीले किये प्रयास
’राजभाषा’ निज देश में घूमे फ़िरे हताश
भाषा जोडेगी वही जिसमें हो माटी की गंध
फिरंगी भाषा कैसे दे, अपनेपन का आनंद
सरकारी पक्ष वर्षों में कर ना सके जो काम
टीवी और हिन्दी फ़िल्मों ने दिया उसे अंजाम
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
साँसत में हिन्दी है कि आया फ़िर पखवाडा
मात्र दिखावे की खातिर बाजेगा ढ़ोल नगाडा
कब तक ढ़ोयेगा भारत यूं अंग्रेजी का भार
दिखावे के लिये होगा, बस हिन्दी का प्रचार
गर्वीली शर्मीली हिन्दी, अंग्रेजी हैलो हाय
हिन्दी का हक़ मारते लाज तनिक न आय
करोडों की भाषा क्यों हो दया की मोहताज
शिक्षा सफ़ल तभी,जो हो स्वभाषा पर नाज
चले गये अंग्रेज,अंग्रेजी के हैं अब भी ठाठ
हिन्दी देश में जोह रही निज पारी की बाट
पखवाडे भर जश्न है फ़िर लम्बा बनवास
देश में अब तक यही हिन्दी का इतिहास
कितने पखवाडे हुए पर चली अढाई कोस
कार्यालयों में हिन्दी लगे, मानों हो खामोश
हिन्दी के गले में अटकी, अंग्रेजी की फाँस
बेटी की अपने ही घर आफ़त में है साँस
फिर आया पखवाडा सुन, हिन्दी हुई उदास
शेष वर्ष तो कर्मी मुझको नहीं बैठाते पास
भाषा उत्तर दक्षिण की,बंगला हो या सिन्धी
बहनों के लाड़ दुलार से खूब फ़ली है हिन्दी
अंग्रेजी बोली गुरूर से हिन्दी को कर लक्ष्य
पक्ष मना भर लेने से तू आये ना समकक्ष
हृदय से न चाह थी तभी ढीले किये प्रयास
’राजभाषा’ निज देश में घूमे फ़िरे हताश
भाषा जोडेगी वही जिसमें हो माटी की गंध
फिरंगी भाषा कैसे दे, अपनेपन का आनंद
सरकारी पक्ष वर्षों में कर ना सके जो काम
टीवी और हिन्दी फ़िल्मों ने दिया उसे अंजाम
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
Saturday, September 10, 2011
मासूम लडकी
(नेता द्वारा एक मासूम के तथाकथित बलात्कार और शोषण के समाचार पर आधारित)
-ओंम प्रकाश नौटियाल
झलक उसकी पाने को,
यूं ही छत पे जाता था,
घबरायी चोर नजरों से
उधर नजरें घुमाता था,
जाने किन खयालों में, मगर खोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
कभी इस ओर देखेगी
गीत मैं गुनगुनाता था,
कभी तो तंद्रा टूटेगी
पैर भी थपथपाता था ,
मगर कोने में बैठी वह, कुछ सोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
शीतल सर्द मौसम में
पवन सनसनाती थी,
वह जुल्फ़ें हटाती थी
चूडी खनक जाती थी,
दुपट्टे से ढ़क अंखियाँ , रोयी रोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
कभी कमरे को उसके,
मैंने रोशन नही देखा,
तम दूर करने का हो,
उसका मन, नहीं देखा,
अंधेरों को अंधेरों में , वह पिरोई सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
एक दिन उधर घर से,
रोना सा सुन कर के,
झाँका जब वहाँ मैने,
छ्त पर चढ़ कर के,
खाली था पड़ा कोना, वह जहाँ सोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
उस दिन सुनी मैंने,
जो करुण कहानी थी,
उसकी मौत के पीछे,
सच्चाई वहशियानी थी,
गई खुद छोड दुनिया को, जो खोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
किसी दानवी दरिन्दे ने,
दिया जख्म था गहरा,
प्रताडित भी किया उल्टा,
मुरझाया भोला सा चेहरा,
चली ’धिक्कार’ , माँ जिन्दगी ढ़ोयी सी रहती है,
बडी मासूम लगती है मुझे सपनों में मिलती है।
(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन" से )
-ओंम प्रकाश नौटियाल
झलक उसकी पाने को,
यूं ही छत पे जाता था,
घबरायी चोर नजरों से
उधर नजरें घुमाता था,
जाने किन खयालों में, मगर खोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
कभी इस ओर देखेगी
गीत मैं गुनगुनाता था,
कभी तो तंद्रा टूटेगी
पैर भी थपथपाता था ,
मगर कोने में बैठी वह, कुछ सोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
शीतल सर्द मौसम में
पवन सनसनाती थी,
वह जुल्फ़ें हटाती थी
चूडी खनक जाती थी,
दुपट्टे से ढ़क अंखियाँ , रोयी रोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
कभी कमरे को उसके,
मैंने रोशन नही देखा,
तम दूर करने का हो,
उसका मन, नहीं देखा,
अंधेरों को अंधेरों में , वह पिरोई सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
एक दिन उधर घर से,
रोना सा सुन कर के,
झाँका जब वहाँ मैने,
छ्त पर चढ़ कर के,
खाली था पड़ा कोना, वह जहाँ सोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
उस दिन सुनी मैंने,
जो करुण कहानी थी,
उसकी मौत के पीछे,
सच्चाई वहशियानी थी,
गई खुद छोड दुनिया को, जो खोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।
किसी दानवी दरिन्दे ने,
दिया जख्म था गहरा,
प्रताडित भी किया उल्टा,
मुरझाया भोला सा चेहरा,
चली ’धिक्कार’ , माँ जिन्दगी ढ़ोयी सी रहती है,
बडी मासूम लगती है मुझे सपनों में मिलती है।
(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन" से )
Saturday, September 3, 2011
पुत्र प्रधान मंत्री कैसे बने?
-ओंम प्रकाश नौटियाल
पुत्र बनाना चाहते मंत्री यदि ’प्रधान’
लें अभी से आप ये बातें जरा जान,
बुरी लतों से आप अपना पुत्र बचायें
देखें कहीं उसे कि मुस्काना ना आये,
इस बात का भी हो पूरा पूरा ध्यान
यदाकदा बामुश्किल खोले वह जुबान,
सारे हों तिकड़मी उसके अपने मित्र
दागियों के बीच में चमके और चरित्र,
जीवन में अपनाये गर अहम ये सूत्र
तय है प्रधान मंत्री होगा आपका पुत्र,
पुत्र बनाना चाहते मंत्री यदि ’प्रधान’
लें अभी से आप ये बातें जरा जान,
बुरी लतों से आप अपना पुत्र बचायें
देखें कहीं उसे कि मुस्काना ना आये,
इस बात का भी हो पूरा पूरा ध्यान
यदाकदा बामुश्किल खोले वह जुबान,
सारे हों तिकड़मी उसके अपने मित्र
दागियों के बीच में चमके और चरित्र,
जीवन में अपनाये गर अहम ये सूत्र
तय है प्रधान मंत्री होगा आपका पुत्र,
Wednesday, August 31, 2011
श्री गणेश स्तुति हाइकु
-ओंम प्रकाश नौटियाल
भाद्र पद में
शुक्ल पक्ष चतुर्थी
आप अतिथि
गजवदन
शत शत नमन
कष्ट शमन
आपका जाप
जगमग प्रताप
दे शुभ लाभ
पुष्प अक्षत
आपको समर्पित
मिष्ट मोदक
गण नायक
दिव्य बुद्धि धारक
विघ्न तारक
प्रखर बुद्धि
हो मन वाणी शुद्धि
आये समृद्धि
हे गणपति
ॠद्धि सिद्धि श्रीपति
हरो विपत्ति
मूष वाहक
आप दें आलंबन
कार्य प्रारंभ !!!
भाद्र पद में
शुक्ल पक्ष चतुर्थी
आप अतिथि
गजवदन
शत शत नमन
कष्ट शमन
आपका जाप
जगमग प्रताप
दे शुभ लाभ
पुष्प अक्षत
आपको समर्पित
मिष्ट मोदक
गण नायक
दिव्य बुद्धि धारक
विघ्न तारक
प्रखर बुद्धि
हो मन वाणी शुद्धि
आये समृद्धि
हे गणपति
ॠद्धि सिद्धि श्रीपति
हरो विपत्ति
मूष वाहक
आप दें आलंबन
कार्य प्रारंभ !!!
Thursday, August 25, 2011
(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन " से )
-ओंम प्रकाश नौटियाल
साँस साँस जीवन है
पल पल समय धार,
बूंद बूंद सागर है
लघु लघु विस्त्तार,
ईश्वर वास कण कण
काल योग क्षण क्षण,
सीमटे से आंचल में
ममता का संसार अक्षुण्ण,
अक्षर अक्षर ज्ञान है
श्वास श्वास प्राण है,
तृण तृण सुप्त ताप,
मन कोष्ठ में छुपा
सदियों का प्रलाप ।
अणु अणु है पदार्थ,
अहं अहं मूल स्वार्थ,
लघु कली कली में बन्द
विश्वव्यापी सुगन्ध,
मेघ मेघ आकाश,
पुष्प पुष्प सौन्दर्य वास,
महा पाप लोभ लोभ,
ध्यान ध्यान योग योग।
जन जन जनतंत्र
अन्ना अन्ना शक्ति यंत्र,
दीनहित भक्ति मंत्र,
समर्पित सत्यनाद से
झंकृत दिग दिगंत ।
साँस साँस जीवन है
पल पल समय धार,
बूंद बूंद सागर है
लघु लघु विस्त्तार ।
(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन " से )
साँस साँस जीवन है
पल पल समय धार,
बूंद बूंद सागर है
लघु लघु विस्त्तार,
ईश्वर वास कण कण
काल योग क्षण क्षण,
सीमटे से आंचल में
ममता का संसार अक्षुण्ण,
अक्षर अक्षर ज्ञान है
श्वास श्वास प्राण है,
तृण तृण सुप्त ताप,
मन कोष्ठ में छुपा
सदियों का प्रलाप ।
अणु अणु है पदार्थ,
अहं अहं मूल स्वार्थ,
लघु कली कली में बन्द
विश्वव्यापी सुगन्ध,
मेघ मेघ आकाश,
पुष्प पुष्प सौन्दर्य वास,
महा पाप लोभ लोभ,
ध्यान ध्यान योग योग।
जन जन जनतंत्र
अन्ना अन्ना शक्ति यंत्र,
दीनहित भक्ति मंत्र,
समर्पित सत्यनाद से
झंकृत दिग दिगंत ।
साँस साँस जीवन है
पल पल समय धार,
बूंद बूंद सागर है
लघु लघु विस्त्तार ।
(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन " से )
Saturday, August 20, 2011
अन्ना हजारे
-ओंम प्रकाश नौटियाल
कोई तो है तडपता जो
हमारे दर्द के मारे,
कोई तो है अजीज़ अपना
जिसे हम जान से प्यारे ।
कोई तो है जिसे गम
सुना सकते हैं हम सारे,
कोई तो है बनाया जिसने
हम को आँख के तारे ।
कोई तो है नहीं जिसके
आँसू मगरमच्छी ,
कोई तो है नहीं भाते जिसे
बस खोखले नारे।
कोई तो है समझता जो
हमारी जान की कीमत,
कोई तो औषधि बनकर के
आया आज है द्वारे।
कोई तो है हमारी साँस
जिसकी साँस बसती है,
हृदय पवित्र , हमदर्द मित्र
हमारा अन्ना हजारे !!!
(पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित)
कोई तो है तडपता जो
हमारे दर्द के मारे,
कोई तो है अजीज़ अपना
जिसे हम जान से प्यारे ।
कोई तो है जिसे गम
सुना सकते हैं हम सारे,
कोई तो है बनाया जिसने
हम को आँख के तारे ।
कोई तो है नहीं जिसके
आँसू मगरमच्छी ,
कोई तो है नहीं भाते जिसे
बस खोखले नारे।
कोई तो है समझता जो
हमारी जान की कीमत,
कोई तो औषधि बनकर के
आया आज है द्वारे।
कोई तो है हमारी साँस
जिसकी साँस बसती है,
हृदय पवित्र , हमदर्द मित्र
हमारा अन्ना हजारे !!!
(पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित)
Sunday, August 14, 2011
आजाद लोग
-ओंम प्रकाश नौटियाल
आजादी की उम्र हुई
अब साठ के उपर,
कुछ इठलाये, बलखाये,
कुछ घिघियाये, सठियाये से लोग !
कहीं गाल पिचके पिचके
कहीं नाज , लटके झटके,
कुछ भूखे, प्यासे तडपें
कुछ रिश्वत खाये से लोग !
कुछ ऐसे घूमे दुनियाँ
जैसे हो गाँव अपना ,
रोटी की दौड ही पर
कुछ का जैसे सपना,
कुछ पैसों के पंख वाले
कुछ रोगी, गठियाये से लोग !
कुछ फ़ैलाते नफ़रत
हर शख़्स कुछ को प्यारा,
हिंसा ही कुछ की फ़ितरत
कुछ का धर्म भाईचारा,
कुछ दयालु, सहिष्णु
कुछ जिद्दी, हठियाये से लोग !
कुछ देश की खातिर
अपनी जान तक दे डालें,
स्व जान की सेवा में
कुछ देश बेच डालें ,
कुछ गर्वीले मन भाये,
कुछ खुद पे भरमाये से लोग !
हर मौसम से घबराये
कुछ लरजाये, सताये से लोग,
कुछ लाचार, आधे अधूरे
कुछ ड्योढे सवाये से लोग,
बेमौसम ही खिलखिलायें
कुछ गरमाये, गदराये से लोग !
बेबस नजरों से देखें
कुछ तरसाये ललचाये से लोग,
पाँवों में कुछ के दुनियाँ
कुछ इतराये अघाये से लोग,
कुछ वक्त के सरमाये
कुछ वक्त के सताये से लोग !
कुछ सहमें , चरमराये
डरे डराये, धमकाये से लोग,
कुछ जन्म से बने बनाये
साँचे में ढले ढलाये से लोग,
कुछ निस्तेज, रात के साये
कुछ चमचमाये, तमतमाये से लोग
आजादी की उम्र हुई
अब साठ के उपर,
कुछ इठलाये, बलखाये,
कुछ घिघियाये, सठियाये से लोग !
आजादी की उम्र हुई
अब साठ के उपर,
कुछ इठलाये, बलखाये,
कुछ घिघियाये, सठियाये से लोग !
कहीं गाल पिचके पिचके
कहीं नाज , लटके झटके,
कुछ भूखे, प्यासे तडपें
कुछ रिश्वत खाये से लोग !
कुछ ऐसे घूमे दुनियाँ
जैसे हो गाँव अपना ,
रोटी की दौड ही पर
कुछ का जैसे सपना,
कुछ पैसों के पंख वाले
कुछ रोगी, गठियाये से लोग !
कुछ फ़ैलाते नफ़रत
हर शख़्स कुछ को प्यारा,
हिंसा ही कुछ की फ़ितरत
कुछ का धर्म भाईचारा,
कुछ दयालु, सहिष्णु
कुछ जिद्दी, हठियाये से लोग !
कुछ देश की खातिर
अपनी जान तक दे डालें,
स्व जान की सेवा में
कुछ देश बेच डालें ,
कुछ गर्वीले मन भाये,
कुछ खुद पे भरमाये से लोग !
हर मौसम से घबराये
कुछ लरजाये, सताये से लोग,
कुछ लाचार, आधे अधूरे
कुछ ड्योढे सवाये से लोग,
बेमौसम ही खिलखिलायें
कुछ गरमाये, गदराये से लोग !
बेबस नजरों से देखें
कुछ तरसाये ललचाये से लोग,
पाँवों में कुछ के दुनियाँ
कुछ इतराये अघाये से लोग,
कुछ वक्त के सरमाये
कुछ वक्त के सताये से लोग !
कुछ सहमें , चरमराये
डरे डराये, धमकाये से लोग,
कुछ जन्म से बने बनाये
साँचे में ढले ढलाये से लोग,
कुछ निस्तेज, रात के साये
कुछ चमचमाये, तमतमाये से लोग
आजादी की उम्र हुई
अब साठ के उपर,
कुछ इठलाये, बलखाये,
कुछ घिघियाये, सठियाये से लोग !
Saturday, July 30, 2011
बहुत याद आती है !!!
--ओंम प्रकाश नौटियाल
धानी धान के खेतों से
महकती महक चावल की,
शिव श्रावण पूजने जाती
झनक कन्या की पायल की,
गौरैय्या के चींचींयाने की
बहुत याद आती है,
सहन में सूखते दानों की
जो दावत उडाती थीं।
अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।
हवा बारिश के मौसम में
घर से निकल जाना,
बगीचों से गुजर जाना
आम ’टपके’ के भर लाना,
गालियों की वो बौछार
अकसर याद आती है
फलों की चोरी पर जो
कहीं से दनदनाती थी ।
अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।
लगता मुट्ठी में बंद सा
वक्त फिसला पर रेत सा
यादों की धुंधली बदलियाँ
साया लगती प्रेत सा
अकसर उस पैमाने की
बहुत याद आती है ,
साकी की मानिंद जो
तुम आँखों से पिलाती थी
अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।
(मेरी नव प्रकाशित पुस्तक "साँस साँस जीवन " से
Mob: 9427345810)
धानी धान के खेतों से
महकती महक चावल की,
शिव श्रावण पूजने जाती
झनक कन्या की पायल की,
गौरैय्या के चींचींयाने की
बहुत याद आती है,
सहन में सूखते दानों की
जो दावत उडाती थीं।
अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।
हवा बारिश के मौसम में
घर से निकल जाना,
बगीचों से गुजर जाना
आम ’टपके’ के भर लाना,
गालियों की वो बौछार
अकसर याद आती है
फलों की चोरी पर जो
कहीं से दनदनाती थी ।
अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।
लगता मुट्ठी में बंद सा
वक्त फिसला पर रेत सा
यादों की धुंधली बदलियाँ
साया लगती प्रेत सा
अकसर उस पैमाने की
बहुत याद आती है ,
साकी की मानिंद जो
तुम आँखों से पिलाती थी
अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।
(मेरी नव प्रकाशित पुस्तक "साँस साँस जीवन " से
Mob: 9427345810)
Tuesday, July 26, 2011
आई गई बात
-ओंम प्रकाश नौटियाल
जीवन प्रभात था,
ममतामय हाथ था,
थाप हुई आई गई ।
मैंने तुम्हें प्यार किया,
तुमने दुत्कार दिया,
बात हुई आई गई।
उनके व्यंग वाणों से,
जहरीले तानों से,
आन हुई आई गई ।
उपेक्षा की कसक से,
उम्र भर की सिसक से,
जान हुई आई गई ।
पीडा की तडपन से,
चीख और क्रंदन से,
रात हुई आई गई ।
मिलन की चाह थी,
बंद पडी राह थी,
आस हुई आई गई ।
स्वार्थ भरे नातों से,
मीठी मीठी बातों से,
आह हुई आई गई ।
मुश्किलें सयानी हुई,
जिन्दगी तब फानी हुई,
दुनियाँ हुई आई गई ।
उम्र की ढलान थी,
जर्जर सी जान थी,
साँस हुई आई गई
(मेरी पुस्तक " साँस साँस जीवन" से
ompnautiyal@yahoo.com
Mob : 09427345810 )
जीवन प्रभात था,
ममतामय हाथ था,
थाप हुई आई गई ।
मैंने तुम्हें प्यार किया,
तुमने दुत्कार दिया,
बात हुई आई गई।
उनके व्यंग वाणों से,
जहरीले तानों से,
आन हुई आई गई ।
उपेक्षा की कसक से,
उम्र भर की सिसक से,
जान हुई आई गई ।
पीडा की तडपन से,
चीख और क्रंदन से,
रात हुई आई गई ।
मिलन की चाह थी,
बंद पडी राह थी,
आस हुई आई गई ।
स्वार्थ भरे नातों से,
मीठी मीठी बातों से,
आह हुई आई गई ।
मुश्किलें सयानी हुई,
जिन्दगी तब फानी हुई,
दुनियाँ हुई आई गई ।
उम्र की ढलान थी,
जर्जर सी जान थी,
साँस हुई आई गई
(मेरी पुस्तक " साँस साँस जीवन" से
ompnautiyal@yahoo.com
Mob : 09427345810 )
Sunday, July 17, 2011
यहाँ सब बिकता है
ओंम प्रकाश नौटियाल
दो जून रोटी के लिए
जिल्लत के थपेडे हैं,
ईमान की हर राह में
रोडे ही रोडे हैं।
सांस लेने की खातिर
यहाँ कितने झमेले हैं,
कुछ भीड़ में खोये से हैं
कुछ अपनों मे अकेले हैं।
बाजार है दुनियाँ
लगे मेले ही मेले हैं,
कुछ को झेलती दुनियाँ
कुछ दुनियाँ को झेले हैं,
कहीं अभाव बिकता है,
कही दुर्भाव बिकता है,
कही अद्दश्य शक्ति सा
प्रभाव बिकता है,
भाव अपना तय कर
कोई हर भाव बिकता है ।
किसी का गीत बिकता है
किसी का साज बिकता है,
बडे यत्न से छुपाया
किसी का राज बिकता है।
किसी के वक्त पर ग्राहक
कोई कुछ लेट बिकता है,
कही सब शुद्ध नकली है
कहीं सब ठेठ बिकता है,
कहीं शिक्षा बिकाऊ है
कहीं पर योग बिकता है,
औषधि बेचने को
पहले कहीं पर रोग बिकता है।
कुछ परोक्ष बिकता है
कुछ प्रत्यक्ष बिकता है,
कहीं साधन बिके पहले
कहीं लक्ष्य बिकता है,
बाजार है दुनियाँ
लगे मेले ही मेले हैं,
कुछ को झेलती दुनियाँ
कुछ दुनियाँ को झेले हैं।
(मेरी नव प्रकाशित पुस्तक " साँस साँस जीवन से"
संपर्क :ompnautiyal@yahoo.com
Mob : 09427345810
दो जून रोटी के लिए
जिल्लत के थपेडे हैं,
ईमान की हर राह में
रोडे ही रोडे हैं।
सांस लेने की खातिर
यहाँ कितने झमेले हैं,
कुछ भीड़ में खोये से हैं
कुछ अपनों मे अकेले हैं।
बाजार है दुनियाँ
लगे मेले ही मेले हैं,
कुछ को झेलती दुनियाँ
कुछ दुनियाँ को झेले हैं,
कहीं अभाव बिकता है,
कही दुर्भाव बिकता है,
कही अद्दश्य शक्ति सा
प्रभाव बिकता है,
भाव अपना तय कर
कोई हर भाव बिकता है ।
किसी का गीत बिकता है
किसी का साज बिकता है,
बडे यत्न से छुपाया
किसी का राज बिकता है।
किसी के वक्त पर ग्राहक
कोई कुछ लेट बिकता है,
कही सब शुद्ध नकली है
कहीं सब ठेठ बिकता है,
कहीं शिक्षा बिकाऊ है
कहीं पर योग बिकता है,
औषधि बेचने को
पहले कहीं पर रोग बिकता है।
कुछ परोक्ष बिकता है
कुछ प्रत्यक्ष बिकता है,
कहीं साधन बिके पहले
कहीं लक्ष्य बिकता है,
बाजार है दुनियाँ
लगे मेले ही मेले हैं,
कुछ को झेलती दुनियाँ
कुछ दुनियाँ को झेले हैं।
(मेरी नव प्रकाशित पुस्तक " साँस साँस जीवन से"
संपर्क :ompnautiyal@yahoo.com
Mob : 09427345810
Thursday, July 7, 2011
जाखू में प्रभु हनुमान
- ओंम प्रकाश नौटियाल
जाखू में प्रभु हनुमान - ओंम प्रकाश नौटियाल
संजीवनी लेने जाते वक्त, था किया जहाँ विश्राम
जाखू पहाडी शिमला पर हैं विराजमान हनुमान,
वानर सेना यहाँ घूमती निरापद ,निर्भय, स्वछंद,
कलियुग के इंसां में आती उन्हें रावण जैसी गंध,
उनकी बाधा कर पार जो भी पहुंच गया प्रभु द्वार,
पवन पुत्र हनुमान की पायी आशीष, कृपा अपार।
जाखू में प्रभु हनुमान - ओंम प्रकाश नौटियाल
संजीवनी लेने जाते वक्त, था किया जहाँ विश्राम
जाखू पहाडी शिमला पर हैं विराजमान हनुमान,
वानर सेना यहाँ घूमती निरापद ,निर्भय, स्वछंद,
कलियुग के इंसां में आती उन्हें रावण जैसी गंध,
उनकी बाधा कर पार जो भी पहुंच गया प्रभु द्वार,
पवन पुत्र हनुमान की पायी आशीष, कृपा अपार।
Wednesday, July 6, 2011
खेल प्रबंधन
-ओंम प्रकाश नौटियाल
खेल प्रबंधन मे आवश्यक जरा दूर की सोच,
खिलाडियों के लिये करो, नियुक्त विदेशी कोच,
डोप टैस्ट में जब कभी पकडे जायें खिलाडी
कोच करें बर्खास्त, चलती रहे तुम्हारी गाडी,
कोच, खिलाडी पकड कर , मढ दे सारा दोष
खुद सदा की तरह रहें पाक साफ निर्दोष,
विदेश यात्रा,मस्ती मौज,रहे जारी लूट खसोट
खेल खिलाने में मजा, गर बैठे सही से गोट,
ड्रग्स खिला पदक जिता, करवा लो अभिनंदन,
’ओंम’ न्यारा प्यारा पेशा है खेलों का प्रबंधन।
खेल प्रबंधन मे आवश्यक जरा दूर की सोच,
खिलाडियों के लिये करो, नियुक्त विदेशी कोच,
डोप टैस्ट में जब कभी पकडे जायें खिलाडी
कोच करें बर्खास्त, चलती रहे तुम्हारी गाडी,
कोच, खिलाडी पकड कर , मढ दे सारा दोष
खुद सदा की तरह रहें पाक साफ निर्दोष,
विदेश यात्रा,मस्ती मौज,रहे जारी लूट खसोट
खेल खिलाने में मजा, गर बैठे सही से गोट,
ड्रग्स खिला पदक जिता, करवा लो अभिनंदन,
’ओंम’ न्यारा प्यारा पेशा है खेलों का प्रबंधन।
Sunday, July 3, 2011
पूजने आये मुझे वो
ओंम प्रकाश नौटियाल
सुध कहाँ मुझको रही, बेसुध होने के बाद,
पूजने आये मुझे वो, मेरे बुत होने के बाद।
काबिल-ए-तारीफ़ है साकी की दरिया दिली,
पैमाने भर लाती रही, मेरे धुत होने के बाद।
फ़क रंग हो गया, देख उनकी वो रंगीनियाँ,
रुत तडपती है सदा ही बेरुत होने के बाद ।
रकीब की बातों में मजा उनको आने लगा,
साँसे मेरी थम गई ऐसा रुख़ होने के बाद।
रास्ता कटता ही है कष्टों की जब लत सी हो
गम गुलाम होते हैं, इतने दुख़ होने के बाद।
चोर या चितचोर हो अंधेरों से उसका वास्ता,
प्रेम प्रीतम का पनपता,धुंध कुछ होने के बाद।
सुध कहाँ मुझको रही, बेसुध होने के बाद,
पूजने आये मुझे वो, मेरे बुत होने के बाद।
काबिल-ए-तारीफ़ है साकी की दरिया दिली,
पैमाने भर लाती रही, मेरे धुत होने के बाद।
फ़क रंग हो गया, देख उनकी वो रंगीनियाँ,
रुत तडपती है सदा ही बेरुत होने के बाद ।
रकीब की बातों में मजा उनको आने लगा,
साँसे मेरी थम गई ऐसा रुख़ होने के बाद।
रास्ता कटता ही है कष्टों की जब लत सी हो
गम गुलाम होते हैं, इतने दुख़ होने के बाद।
चोर या चितचोर हो अंधेरों से उसका वास्ता,
प्रेम प्रीतम का पनपता,धुंध कुछ होने के बाद।
Wednesday, June 29, 2011
कैसे मैं जिया
ओंम प्रकाश नौटियाल
इस जिन्दगी को कितने संताप से जिया,
पुण्य से जिया कभी, कभी पाप से जिया।
हावी रहा जीवन भर, जिन्दगी खोने का डर,
दहशत से मौत की मैं काँप काँप के जिया।
हालात जीने के न थे, फिर भी मैं जी लिया,
मुझमें कहाँ था ज़ज्बा, प्रभु प्रताप से जिया।
कुछ दर्द जो मिले , थे वो दर्दीले इस कदर,
भर भर के आहें ,उनके ही आलाप से जिया।
जैसे नचाया जिन्दगी ने बस मैं नाचता रहा,
वक्त की दस्तक पर, उसकी थाप से जिया।
ताउम्र संघर्ष रत रहा, मैं जीने की जुगत में,
कई किये जतन, बडे क्रिया कलाप से जिया।
सुख से रही अदावत और खुशियों से दुश्मनी,
रंज-ओ-गम के साथ मेल मिलाप से जिया।
झंकार से जिया , तो कभी टंकार से जिया,
चरणों में भी झुका, कभी अहंकार से जिया।
कुछ को अजीज, खास समझने का भ्रम पाल,
खा खा के धोखे ,प्रलाप और विलाप में जिया।
(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन" से
ompnautiyal@yahoo.com : 09427345810)
इस जिन्दगी को कितने संताप से जिया,
पुण्य से जिया कभी, कभी पाप से जिया।
हावी रहा जीवन भर, जिन्दगी खोने का डर,
दहशत से मौत की मैं काँप काँप के जिया।
हालात जीने के न थे, फिर भी मैं जी लिया,
मुझमें कहाँ था ज़ज्बा, प्रभु प्रताप से जिया।
कुछ दर्द जो मिले , थे वो दर्दीले इस कदर,
भर भर के आहें ,उनके ही आलाप से जिया।
जैसे नचाया जिन्दगी ने बस मैं नाचता रहा,
वक्त की दस्तक पर, उसकी थाप से जिया।
ताउम्र संघर्ष रत रहा, मैं जीने की जुगत में,
कई किये जतन, बडे क्रिया कलाप से जिया।
सुख से रही अदावत और खुशियों से दुश्मनी,
रंज-ओ-गम के साथ मेल मिलाप से जिया।
झंकार से जिया , तो कभी टंकार से जिया,
चरणों में भी झुका, कभी अहंकार से जिया।
कुछ को अजीज, खास समझने का भ्रम पाल,
खा खा के धोखे ,प्रलाप और विलाप में जिया।
(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन" से
ompnautiyal@yahoo.com : 09427345810)
Sunday, June 26, 2011
लडके
--ओंम प्रकाश नौटियाल
जिन लड़कों के बींधे नाक, पडे बून्दे हैं कानों मे
शादी के लिये उनकी है आज गिनती सयानों मे,
दर्द सहने का उनको अभी से खासा तजुरबा है
फिर अनुभव भी है जाने का गहनों की दुकानों में।
जिन लड़कों के बींधे नाक, पडे बून्दे हैं कानों मे
शादी के लिये उनकी है आज गिनती सयानों मे,
दर्द सहने का उनको अभी से खासा तजुरबा है
फिर अनुभव भी है जाने का गहनों की दुकानों में।
Tuesday, June 14, 2011
साँस साँस जीवन
ओंम प्रकाश नौटियाल (मेरी लोकप्रिय कविताओं का संग्रह)
88 कवितायें - व्यंग ,गीत और गज़ल ,प्रकृति ,जीवन दर्शन ,अन्य
उत्तम गुण्वत्ता एवं पुस्तक सज्जा
पुस्तक परिचय - अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठित कवयित्री -डा. सरोजिनी प्रीतम द्वारा
"....कवितायें अच्छी हैं ....कथ्य मार्मिक है......." -पद्म भूषण डा. गोपाल दास ’ नीरज ’
"....छ्न्द ,ताल , शैली सहज ,सरल ,प्रवाह मय व सर्वगुण संपन्न.." -डा. सरोजिनी प्रीतम
"--इन्ही रचनाओं से....चिंतन की गहन उदधि से कितने मणि माणिक उपलब्ध हों ज्ञात नहीं .." -डा. सरोजिनी प्रीतम
संपर्क -ओंम प्रकाश नौटियाल :ompnautiyal@yahoo.com : मोबाइल 09427345810 :ब्लाग www.opnautiyal.blogspot.com
स्थायी पता :301 मारुति फ्लैट्स,गायकवाड़ कम्पाउन्ड ,अपौजिट ओ ऐन जी सी ,मकरपुरा रोड ,वडोदरा ,गुजरात 390 009
(15जून से 16जुलाई तक देहरादून व शिमला के दौरे पर हूं )
पुस्तक मूल्य :165/-
विशेष छूट :31 जुलाई 2011 तक
डाक- द्वारा मंगाने पर मात्र 110/- प्रति पुस्तक (डाक खर्च समेत)
( Om Prakash Nautiyal : ICICI Bank A/C no.000301043055)
लेखक से व्यक्तिगत तौर पर लेने से मात्र ₨ 85/-
देहरादून 17 जून से 19जून तक (संपर्क देहरा दून0135-2768770:मोबाइल 09427345810 )
शिमला 23 जून से 14 जुलाई तक(संपर्क शिमला 0177-2626550:मोबाइल 09427345810 )
वडोदरा 16 जुलाई से -......... (संपर्क वडोदरा 0265-2635266 :मोबाइल 09427345810 )
88 कवितायें - व्यंग ,गीत और गज़ल ,प्रकृति ,जीवन दर्शन ,अन्य
उत्तम गुण्वत्ता एवं पुस्तक सज्जा
पुस्तक परिचय - अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठित कवयित्री -डा. सरोजिनी प्रीतम द्वारा
"....कवितायें अच्छी हैं ....कथ्य मार्मिक है......." -पद्म भूषण डा. गोपाल दास ’ नीरज ’
"....छ्न्द ,ताल , शैली सहज ,सरल ,प्रवाह मय व सर्वगुण संपन्न.." -डा. सरोजिनी प्रीतम
"--इन्ही रचनाओं से....चिंतन की गहन उदधि से कितने मणि माणिक उपलब्ध हों ज्ञात नहीं .." -डा. सरोजिनी प्रीतम
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देहरादून 17 जून से 19जून तक (संपर्क देहरा दून0135-2768770:मोबाइल 09427345810 )
शिमला 23 जून से 14 जुलाई तक(संपर्क शिमला 0177-2626550:मोबाइल 09427345810 )
वडोदरा 16 जुलाई से -......... (संपर्क वडोदरा 0265-2635266 :मोबाइल 09427345810 )
Saturday, June 11, 2011
कलियुग मे ’मोहन’
-ओंम प्रकाश नौटियाल
उठाते थे निज उंगली पर कभी पर्वत समूचा जो,
वह ’मन’ ’मोहन’ भी कितने लाचार से लगते ।
नचाते थे कभी वंशी की धुन पर गोपियाँ सारी,
उनको बेसुरे कुछ लोग, अपने अनाचार से ठगते।
मनचलों की मनमानी, मनहूस मन्सूबों के किस्से ,
मन मन ही ’मोहन’ को किसी तलवार से चुभते।
सभी सृष्टि है ’मोहन’ की तभी मजबूरी है सहना,
यह मनसबदार सारे पर बडे मक्कार से लगते ।
फ़सल जो पैदा की जनता के उपभोग की खातिर ,
उसे चरने में कोई शर्म ये उनके साथी नहीं करते।
’ओंम’ इस घोर कलियुग में ’मोहन’ भी विवश हैं,
राजा हो या दिग्विजयी , नहीं फ़टकार से डरते।
उठाते थे निज उंगली पर कभी पर्वत समूचा जो,
वह ’मन’ ’मोहन’ भी कितने लाचार से लगते ।
नचाते थे कभी वंशी की धुन पर गोपियाँ सारी,
उनको बेसुरे कुछ लोग, अपने अनाचार से ठगते।
मनचलों की मनमानी, मनहूस मन्सूबों के किस्से ,
मन मन ही ’मोहन’ को किसी तलवार से चुभते।
सभी सृष्टि है ’मोहन’ की तभी मजबूरी है सहना,
यह मनसबदार सारे पर बडे मक्कार से लगते ।
फ़सल जो पैदा की जनता के उपभोग की खातिर ,
उसे चरने में कोई शर्म ये उनके साथी नहीं करते।
’ओंम’ इस घोर कलियुग में ’मोहन’ भी विवश हैं,
राजा हो या दिग्विजयी , नहीं फ़टकार से डरते।
Sunday, June 5, 2011
तजुर्बे की बात है
-ओंम प्रकाश नौटियाल
बयाँ झूठ इस अन्दाज से करना कि सच लगे,
तुमसे कहाँ हो पाएगा , ये तजुर्बे की बात है।
हम तुम मिलें चोरी से किसी को न दें दिखाई,
मुमकिन नहीं इस रात , ये पूनम की रात है।
कहने को तो वो तेरे मेरे दोनों के साथ हैं,
पर असलियत में वो सिर्फ़ कुर्सी के साथ हैं।
क्यों सोचते हो कि चमन में फिर आएगी बहार
ढाक में देखो अब तक भी बस तीन पात हैं।
’ओंम’ कौन समझेगा यहाँ अब आदमी तुम्हे,
सनद जेब में रहे कि तुम्हारी आदम जात है।
बयाँ झूठ इस अन्दाज से करना कि सच लगे,
तुमसे कहाँ हो पाएगा , ये तजुर्बे की बात है।
हम तुम मिलें चोरी से किसी को न दें दिखाई,
मुमकिन नहीं इस रात , ये पूनम की रात है।
कहने को तो वो तेरे मेरे दोनों के साथ हैं,
पर असलियत में वो सिर्फ़ कुर्सी के साथ हैं।
क्यों सोचते हो कि चमन में फिर आएगी बहार
ढाक में देखो अब तक भी बस तीन पात हैं।
’ओंम’ कौन समझेगा यहाँ अब आदमी तुम्हे,
सनद जेब में रहे कि तुम्हारी आदम जात है।
Wednesday, June 1, 2011
अब गाँव कहाँ है
-ओंम प्रकाश नौटियाल
ताल सूखे, बाग उजडे हो गई खेती हवा
है गाँव में बचा मेरे अब गाँव कहाँ है ?
बेइंतहा भीड है हर जगह पे इस कदर,
जमीन ही कहाँ है, मेरे अब पाँव जहाँ हैं ।
पेड कहाँ, हर तरफ़ मकानों का नजारा है,
कोयल की कूक, काग की वो काँव कहाँ है।
लोग घूमते हैं सब नाक पर गुस्सा लिए
जिन्दगी की तपस में अब छाँव कहाँ है ।
समाज सेवा शुरू अपने घर से की जिसने,
ऊंचे महल उनके, तेरा बता पर ठाँव कहाँ है?
तेरी मुफ़लिसी से उनको सता सुख है नसीब
गुरबत से बच पाने का तेरा फ़िर दाँव कहाँ है,
ताल सूखे, बाग उजडे हो गई खेती हवा
है गाँव में बचा मेरे अब गाँव कहाँ है ?
बेइंतहा भीड है हर जगह पे इस कदर,
जमीन ही कहाँ है, मेरे अब पाँव जहाँ हैं ।
पेड कहाँ, हर तरफ़ मकानों का नजारा है,
कोयल की कूक, काग की वो काँव कहाँ है।
लोग घूमते हैं सब नाक पर गुस्सा लिए
जिन्दगी की तपस में अब छाँव कहाँ है ।
समाज सेवा शुरू अपने घर से की जिसने,
ऊंचे महल उनके, तेरा बता पर ठाँव कहाँ है?
तेरी मुफ़लिसी से उनको सता सुख है नसीब
गुरबत से बच पाने का तेरा फ़िर दाँव कहाँ है,
Wednesday, May 25, 2011
आँसू पीकर गुजारी जिन्दगी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
आँसू पी पीकर जिसने जिन्दगी गुजारी,
चैन उसको कहाँ अब कुछ देर रोकर हो।
वक्त के थपेडों ने लुढकाया इधर उधर,
अब दर्द नही होता कैसी भी ठोकर हो।
थकान को जिसकी चिर निद्रा की जरूरत,
आराम भला क्योंकर कुछ देर सोकर हो।
तन को साफ़ करना तेरे वश की बात है,
मन का मैल दूर किस पानी से धोकर हो।
प्यार देकर ही करो तुम प्यार की उम्मीद,
फूलों की खेती कैसे काँटों के बोकर हो।
हाल अपना है जमाना के लिए एक दिल्लगी,
इनके लिए तो ’ओंम’ जैसी कोई जोकर हो।
आँसू पी पीकर जिसने जिन्दगी गुजारी,
चैन उसको कहाँ अब कुछ देर रोकर हो।
वक्त के थपेडों ने लुढकाया इधर उधर,
अब दर्द नही होता कैसी भी ठोकर हो।
थकान को जिसकी चिर निद्रा की जरूरत,
आराम भला क्योंकर कुछ देर सोकर हो।
तन को साफ़ करना तेरे वश की बात है,
मन का मैल दूर किस पानी से धोकर हो।
प्यार देकर ही करो तुम प्यार की उम्मीद,
फूलों की खेती कैसे काँटों के बोकर हो।
हाल अपना है जमाना के लिए एक दिल्लगी,
इनके लिए तो ’ओंम’ जैसी कोई जोकर हो।
Friday, May 20, 2011
दिग दिगन्त का है
-ओंम प्रकाश नौटियाल
खिलने को फूल बेताब हैं बहुत ,
इंतजार पर उनको बसंत का है।
तुमने तो कभी भरोसा न किया,
अपना भरोसा जीवनपर्यंत का है।
कैसे पहचान हो भले मानस की,
लिबास हर किसी का संत का है ।
मन की व्यथाओं की क्या कहिये,
विस्तार इनका तो अनंत का है ।
अपना समझे पर न निकले अपने,
यही किस्सा दिग दिगन्त का है ।
खिलने को फूल बेताब हैं बहुत ,
इंतजार पर उनको बसंत का है।
तुमने तो कभी भरोसा न किया,
अपना भरोसा जीवनपर्यंत का है।
कैसे पहचान हो भले मानस की,
लिबास हर किसी का संत का है ।
मन की व्यथाओं की क्या कहिये,
विस्तार इनका तो अनंत का है ।
अपना समझे पर न निकले अपने,
यही किस्सा दिग दिगन्त का है ।
Wednesday, May 18, 2011
मेरी एक गज़ल से
ओंम प्रकाश नौटियाल
वो तोड़ रहे देश को कि फ़िर से बनायेंगे,
पुख़्ता बनावट के लिए ये तय हुआ होगा।
’ओंम’ हम नेता बहुमुखी प्रतिभा के हैं धनी,
है कौन सा ’धंधा ’जो हमसे अनछुआ होगा।
वो तोड़ रहे देश को कि फ़िर से बनायेंगे,
पुख़्ता बनावट के लिए ये तय हुआ होगा।
’ओंम’ हम नेता बहुमुखी प्रतिभा के हैं धनी,
है कौन सा ’धंधा ’जो हमसे अनछुआ होगा।
Tuesday, May 17, 2011
पीछे वाली पहाडी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
घाटी में धूप दिन भर,
लम्बी तान के सोई रही,
पीछे वाली पहाडी
उसके इंतजार में खोई रही।
पर वह न आई
और सूरज के पीछे पीछे
चली गई साँझ के धुँधलके में,
सर्द वेदना से पहाडी कंपकंपा गई
रात के अंधकार में समा गई,
यह उसकी समझ से बाहर था,
कि धूप पर भी कुछ का ही अधिकार था।
या यह धूप का अहंकार था,
जो तुष्ट होता था,
पर्वत शिखर पर पहुंचने में
जहाँ उसकी शक्ति को सब देख सकें,
उसकी किरणों को सराह सकें ।
छोटी सी पहाडी के कुंज में,
कौन देखेगा उसके तेज पुंज को ?
धूप को पाना है तो स्वयं आना होगा बाहर
उस पहाडी के पीछे से,
तुम्हारे लिए
कोई वहां धूप लेकर आयेगा,
मुझे शंका है ।
घाटी में धूप दिन भर,
लम्बी तान के सोई रही,
पीछे वाली पहाडी
उसके इंतजार में खोई रही।
पर वह न आई
और सूरज के पीछे पीछे
चली गई साँझ के धुँधलके में,
सर्द वेदना से पहाडी कंपकंपा गई
रात के अंधकार में समा गई,
यह उसकी समझ से बाहर था,
कि धूप पर भी कुछ का ही अधिकार था।
या यह धूप का अहंकार था,
जो तुष्ट होता था,
पर्वत शिखर पर पहुंचने में
जहाँ उसकी शक्ति को सब देख सकें,
उसकी किरणों को सराह सकें ।
छोटी सी पहाडी के कुंज में,
कौन देखेगा उसके तेज पुंज को ?
धूप को पाना है तो स्वयं आना होगा बाहर
उस पहाडी के पीछे से,
तुम्हारे लिए
कोई वहां धूप लेकर आयेगा,
मुझे शंका है ।
Monday, May 9, 2011
रुक रुक ठहर ठहर
- ओंम प्रकाश नौटियाल
नजरों को जब से लग गई है उम्र की नज़र
बस एक सी लगती हैं मुझे शाम ओ सहर।
रिश्तों की ओट से जो फ़रिश्ते से लगते थे
जाने कब से दे रहे थे, एक मीठा सा जहर।
’तरक्की’ से गाँव इस कदर बदरूप सा हुआ
ना गाँव का होकर रहा , ना ही बना शहर।
शराफ़त के लबादे को ’बिन लादे न’ निकलना
मिटा देगी अहंकार को, सुनामी की एक लहर।
देश में जमीं के लिये जंग जारी है जबर्दस्त,
हर शहर में ’आदर्श धाम’ बनाने की है खबर।
मंथर गति से चलने की है सबको लत यहाँ,
काश वक्त भी तो चलता रुक रुक ठहर ठहर।
नजरों को जब से लग गई है उम्र की नज़र
बस एक सी लगती हैं मुझे शाम ओ सहर।
रिश्तों की ओट से जो फ़रिश्ते से लगते थे
जाने कब से दे रहे थे, एक मीठा सा जहर।
’तरक्की’ से गाँव इस कदर बदरूप सा हुआ
ना गाँव का होकर रहा , ना ही बना शहर।
शराफ़त के लबादे को ’बिन लादे न’ निकलना
मिटा देगी अहंकार को, सुनामी की एक लहर।
देश में जमीं के लिये जंग जारी है जबर्दस्त,
हर शहर में ’आदर्श धाम’ बनाने की है खबर।
मंथर गति से चलने की है सबको लत यहाँ,
काश वक्त भी तो चलता रुक रुक ठहर ठहर।
Tuesday, May 3, 2011
वहाँ लादेन ना हो
-ओंम प्रकाश नौटियाल
पापियों को अब न मिल पाये पनाह
जमीं पाप से पहले ही बडी भारी है।
देखना कोई रहता वहाँ लादेन ना हो,
ऊंची बडी उस घर की चार दिवारी है।
नापाक पाक,आतंकियों को देगा सजा?
हंसी इस मजाक पर अब भी जारी है।
’मेरा महबूब’ मेरे दिल में कब छुप गया,
मुझे पता नहीं,पर ’तुमको’ खबर सारी है।
’बिन लादे न’ कोई जाये गठरी पापों की
’उपरवाला ’ पुण्य पाप का व्यापारी है।
’ओंम’ मेरी दिवारें हैं हवा, छत आसमां
है मजबूरी तभी , इतनी भी पर्देदारी है।
पापियों को अब न मिल पाये पनाह
जमीं पाप से पहले ही बडी भारी है।
देखना कोई रहता वहाँ लादेन ना हो,
ऊंची बडी उस घर की चार दिवारी है।
नापाक पाक,आतंकियों को देगा सजा?
हंसी इस मजाक पर अब भी जारी है।
’मेरा महबूब’ मेरे दिल में कब छुप गया,
मुझे पता नहीं,पर ’तुमको’ खबर सारी है।
’बिन लादे न’ कोई जाये गठरी पापों की
’उपरवाला ’ पुण्य पाप का व्यापारी है।
’ओंम’ मेरी दिवारें हैं हवा, छत आसमां
है मजबूरी तभी , इतनी भी पर्देदारी है।
Monday, May 2, 2011
ए आइ ई ई ई का प्रश्नपत्र लीक ’
(०१.०५.२०११ को)
-ओंम प्रकाश नौटियाल
’विक्की बाबू ’ होगा नाज
तुमको अपनी लीक पर ,
आये पर कभी भारत तो,
नहीं जाओगे जीत कर ।
हम वो राज कर दें फ़ाश
लाख पर्दों में हों जो कैद ,
धंधे में पैसा बन सके तो
नहीं हमसा कोई मुस्तैद ।
परीक्षा पत्र लीक करने में
कोई कहाँ अपने समान है?
अनेकों बार इस हुनर का
दे चुके हम इम्तहान है।
-ओंम प्रकाश नौटियाल
’विक्की बाबू ’ होगा नाज
तुमको अपनी लीक पर ,
आये पर कभी भारत तो,
नहीं जाओगे जीत कर ।
हम वो राज कर दें फ़ाश
लाख पर्दों में हों जो कैद ,
धंधे में पैसा बन सके तो
नहीं हमसा कोई मुस्तैद ।
परीक्षा पत्र लीक करने में
कोई कहाँ अपने समान है?
अनेकों बार इस हुनर का
दे चुके हम इम्तहान है।
Friday, April 29, 2011
चैन से बेहोश हूं यारों
-ओंमप्रकाश नौटियाल
मयखाने में चैन से बेहोश हूं यारों,
तडपेगा, भुगतेगा होश वाला यारों।
महलों में रहने वाले ये तंग दिल लोग,
हर तंगी से निकलेगा जोशवाला यारों।
हम फकीरों को कहाँ चोरों का डर,
डरा सा रातों जागेगा कोष वाला यारों।
लालची सेठों को फिक्र पीढियों की है,
फटेहाल भी खुश है संतोष वाला यारों।
काले धन कुबेरों का कलेजा तब काँपेगा
क्रान्ति आघोष देगा जब रोषवाला यारों।
मयखाने में चैन से बेहोश हूं यारों,
तडपेगा, भुगतेगा होश वाला यारों।
महलों में रहने वाले ये तंग दिल लोग,
हर तंगी से निकलेगा जोशवाला यारों।
हम फकीरों को कहाँ चोरों का डर,
डरा सा रातों जागेगा कोष वाला यारों।
लालची सेठों को फिक्र पीढियों की है,
फटेहाल भी खुश है संतोष वाला यारों।
काले धन कुबेरों का कलेजा तब काँपेगा
क्रान्ति आघोष देगा जब रोषवाला यारों।
Monday, April 25, 2011
देश की हालत में अब सुधार है
- ओंम प्रकाश नौटियाल
अभी अभी मिला एक
अपुष्ट समाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
भूखों को कहीं कहीं
अब रोटी हुई नसीब,
गरीबी नही बढी उनकी
जो पहले भी थे गरीब,
कुछ भ्रष्टों को सता रहा
अब स्वयं भ्रष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
पहले लगाते थे कुछ
शिष्ट सभ्य एक ’जी’ ,
अब दो ’जी’ , तीन ’जी’
पर भी लुटाने को हैं राजी,
काली कमाई की खातिर
बढा ’जी’ शिष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
अभी अभी मिला एक
अपुष्ट समाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
भूखों को कहीं कहीं
अब रोटी हुई नसीब,
गरीबी नही बढी उनकी
जो पहले भी थे गरीब,
कुछ भ्रष्टों को सता रहा
अब स्वयं भ्रष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
पहले लगाते थे कुछ
शिष्ट सभ्य एक ’जी’ ,
अब दो ’जी’ , तीन ’जी’
पर भी लुटाने को हैं राजी,
काली कमाई की खातिर
बढा ’जी’ शिष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
Thursday, April 21, 2011
पहाडों से दूर जिन्दगी पहाड़ सी
- ओंम प्रकाश नौटियाल
पहाडों से दूर रहकर हुई जिन्दगी पहाड सी,
हरियाली दूर हो गई ये जिन्दगी उजाड़ सी।
मिमिया गई आवाज शहर के शोर शार में,
घाटियों में गूंजी कभी जो सिंह की दहाड़ सी।
जीवन में ताजगी कहाँ, हवा नहीं ताजी नसीब,
मुर्दे मे प्राण फूंकने को, हो रही चीर फ़ाड सी।
गाँव की शुद्ध हवा में हर साँस को सुकू्न था,
यहाँ मिल रही जो हवा, है साँस का जुगाड सी।
तिल सी लगी मुश्किलें गाँव के निश्छ्ल प्यार में,
शहर के झमेले में बनी तिल सी मुसीबत ताड सी।
पहाडों से दूर रहकर हुई जिन्दगी पहाड सी,
हरियाली दूर हो गई ये जिन्दगी उजाड़ सी।
मिमिया गई आवाज शहर के शोर शार में,
घाटियों में गूंजी कभी जो सिंह की दहाड़ सी।
जीवन में ताजगी कहाँ, हवा नहीं ताजी नसीब,
मुर्दे मे प्राण फूंकने को, हो रही चीर फ़ाड सी।
गाँव की शुद्ध हवा में हर साँस को सुकू्न था,
यहाँ मिल रही जो हवा, है साँस का जुगाड सी।
तिल सी लगी मुश्किलें गाँव के निश्छ्ल प्यार में,
शहर के झमेले में बनी तिल सी मुसीबत ताड सी।
Friday, April 8, 2011
कोई तो है जिसे हम पुकारे अन्ना हजारे
- ओंम प्रकाश नौटियाल
कोई तो है तडपता जो
हमारे दर्द के मारे,
कोई तो है अजीज़ इतना
जिसे हम जान से प्यारे ।
कोई तो है जिसे गम
सुना सकते हैं हम सारे,
कोई तो है बनाया जिसने
हम को आँख के तारे ।
कोई तो है नहीं जिसके
आँसू मगरमच्छी ,
कोई तो है नहीं भाते जिसे
बस खोखले नारे।
कोई तो है समझने को
हमारी जान की कीमत,
कोई तो औषधि बनकर के
आया आज है द्वारे।
कोई तो है हमारी खातिर
हजारों साल जियेगा,
कोइ तो है जिसे हम
पुकारे अन्ना हजारे !!!
कोई तो है तडपता जो
हमारे दर्द के मारे,
कोई तो है अजीज़ इतना
जिसे हम जान से प्यारे ।
कोई तो है जिसे गम
सुना सकते हैं हम सारे,
कोई तो है बनाया जिसने
हम को आँख के तारे ।
कोई तो है नहीं जिसके
आँसू मगरमच्छी ,
कोई तो है नहीं भाते जिसे
बस खोखले नारे।
कोई तो है समझने को
हमारी जान की कीमत,
कोई तो औषधि बनकर के
आया आज है द्वारे।
कोई तो है हमारी खातिर
हजारों साल जियेगा,
कोइ तो है जिसे हम
पुकारे अन्ना हजारे !!!
Thursday, April 7, 2011
फुटपाथ पर पैदा हुआ
- ओंम प्रकाश नौटियाल
फुटपाथ पर पैदा हुआ फुटपाथ पर मरा,
इतना था शेर दिल गरीबी से नहीं डरा ।
जन्म लिया और बस वो जवान हो गया,
इस छलाँग में पर उसे बचपन नही मिला।
जवानी के एक जोडी कपडे यूं रास आ गये,
तन से रहे जब तक था साँसों का सिलसिला।
राष्ट्रीय मार्ग के लोग फ़ुटपाथ नहीं पहुंचे,
शिकवे सुनाता किसको कहता किसे गिला ।
भारत चमक रहा है उसे गर्मी में लगता था,
तिलमिलाता सूरज जब करता था पिलपिला।
’ओंम’ अन्ना के आमरण अनशन से आई आस,
इन बडी भूख वालों को तू भूख छोडकर हिला।
फुटपाथ पर पैदा हुआ फुटपाथ पर मरा,
इतना था शेर दिल गरीबी से नहीं डरा ।
जन्म लिया और बस वो जवान हो गया,
इस छलाँग में पर उसे बचपन नही मिला।
जवानी के एक जोडी कपडे यूं रास आ गये,
तन से रहे जब तक था साँसों का सिलसिला।
राष्ट्रीय मार्ग के लोग फ़ुटपाथ नहीं पहुंचे,
शिकवे सुनाता किसको कहता किसे गिला ।
भारत चमक रहा है उसे गर्मी में लगता था,
तिलमिलाता सूरज जब करता था पिलपिला।
’ओंम’ अन्ना के आमरण अनशन से आई आस,
इन बडी भूख वालों को तू भूख छोडकर हिला।
Wednesday, April 6, 2011
भ्रष्टाचार की दीमक का विष
-ओंम प्रकाश नौटियाल
सर्व विदीत सत्य है
भ्रष्टाचार की दीमक
है नोट की हर गड्डी पर लगी
चिंतित हैं सभी,
देश की पूंजी बचाने को
भ्रष्टाचार की दींमक
के लिये विष बनाने को !
मुद्दा केवल इतना है
कौन बनाये यह विष,
सता पक्ष का कहना है
जनता करे स्वीकार,
उसके पास नही है
विष बनाने का
संवैधानिक अधिकार,
मान लिया हम उसे दे भी दें
इस विष का लाइसैन्स
पर भोली जनता ने विष की जगह
असली विष बना दिया तो?
जनता तो भूख में
खुदकशी तक कर लेती है
फ़िर कैसे सुनिश्चित होगा
इस विष को स्वयं नही पियेगी
मरती मरती और नहीं मरेगी ?
आखिर हमें भी लोगों की चिंता है
हम नही चाहते,
भूखी प्यासी जनता
स्वयं ही विष देखकर ललचाये,
और संविधान बदनाम हो जाये !!
बडे मुद्दे हैं इसके साथ जुडे,
चाहे कोई खुश हो या कुढे,
हमें सबपर गौर करना है,
और फ़िर भ्रष्टाचार तो मर ही जायेगा
जब सबको मरना है !
जनता में तो संतोष की कमी है
आँखे बस भ्रष्टाचार पर जमीं हैं ,
हमें सारे पहलू गौर से देखेंगे,
तभी कोई पासा फ़ेकेंगें,
हम साठ साल से यही करते आये हैं,
कोई पागल हैं या सठियाये हैं ?
यह मुद्दा नहीं है
सांसदों के भत्ते या वेतन का,
कि क्षणों में मतैक्य हो जाये,
गंभीर मसला है
वर्षों तक सोचना होगा
बाल की खाल नोचना होगा ,
भ्रष्टाचार की दीमक के लिये
पर विष तो हमीं बनायेंगे ,
और अपने हाथों से पिलायंगे ,
दरमियाना विष बनाना होगा
जो विष होकर भी विष नही होगा।
जिन दीमको को इतने वर्षों में
पाला पोसा बडा किया,
उनको ऐसे ही नही मरने देंगे
विष देंगे भी और नही भी देगें,
विष हल्का हो
तो पीने में मजा भी है,
और दिखाने के लिये एक सजा भी है,
और फ़िर अनुभव भी है हमें
धीमे मीठे विष बनाने का,
सरकारी भंडारों में सडा
अनाज जनता को खिलाने का !
और फ़िर धन की रक्षा
अब भी तो होती है
स्विश जैसे ठंडे देशों में भी बैंक हैं
वहाँ दीमक कहाँ होती है
वहाँ भी भारतीय नोटों की
गड्डीयाँ होती हैं ।
पर भोली है जनता
जल्दबाजी चाहती है
अरे, वर्षों लगते हैं
तब युग बदलते है
कलयुग में क्यों
त्रेता द्वापर की
आस करते हैं !!!
सर्व विदीत सत्य है
भ्रष्टाचार की दीमक
है नोट की हर गड्डी पर लगी
चिंतित हैं सभी,
देश की पूंजी बचाने को
भ्रष्टाचार की दींमक
के लिये विष बनाने को !
मुद्दा केवल इतना है
कौन बनाये यह विष,
सता पक्ष का कहना है
जनता करे स्वीकार,
उसके पास नही है
विष बनाने का
संवैधानिक अधिकार,
मान लिया हम उसे दे भी दें
इस विष का लाइसैन्स
पर भोली जनता ने विष की जगह
असली विष बना दिया तो?
जनता तो भूख में
खुदकशी तक कर लेती है
फ़िर कैसे सुनिश्चित होगा
इस विष को स्वयं नही पियेगी
मरती मरती और नहीं मरेगी ?
आखिर हमें भी लोगों की चिंता है
हम नही चाहते,
भूखी प्यासी जनता
स्वयं ही विष देखकर ललचाये,
और संविधान बदनाम हो जाये !!
बडे मुद्दे हैं इसके साथ जुडे,
चाहे कोई खुश हो या कुढे,
हमें सबपर गौर करना है,
और फ़िर भ्रष्टाचार तो मर ही जायेगा
जब सबको मरना है !
जनता में तो संतोष की कमी है
आँखे बस भ्रष्टाचार पर जमीं हैं ,
हमें सारे पहलू गौर से देखेंगे,
तभी कोई पासा फ़ेकेंगें,
हम साठ साल से यही करते आये हैं,
कोई पागल हैं या सठियाये हैं ?
यह मुद्दा नहीं है
सांसदों के भत्ते या वेतन का,
कि क्षणों में मतैक्य हो जाये,
गंभीर मसला है
वर्षों तक सोचना होगा
बाल की खाल नोचना होगा ,
भ्रष्टाचार की दीमक के लिये
पर विष तो हमीं बनायेंगे ,
और अपने हाथों से पिलायंगे ,
दरमियाना विष बनाना होगा
जो विष होकर भी विष नही होगा।
जिन दीमको को इतने वर्षों में
पाला पोसा बडा किया,
उनको ऐसे ही नही मरने देंगे
विष देंगे भी और नही भी देगें,
विष हल्का हो
तो पीने में मजा भी है,
और दिखाने के लिये एक सजा भी है,
और फ़िर अनुभव भी है हमें
धीमे मीठे विष बनाने का,
सरकारी भंडारों में सडा
अनाज जनता को खिलाने का !
और फ़िर धन की रक्षा
अब भी तो होती है
स्विश जैसे ठंडे देशों में भी बैंक हैं
वहाँ दीमक कहाँ होती है
वहाँ भी भारतीय नोटों की
गड्डीयाँ होती हैं ।
पर भोली है जनता
जल्दबाजी चाहती है
अरे, वर्षों लगते हैं
तब युग बदलते है
कलयुग में क्यों
त्रेता द्वापर की
आस करते हैं !!!
Saturday, April 2, 2011
बधाई भारत !!! (विजेता विश्व क्रिकेट २०११)
-ओंम प्रकाश नौटियाल
तम छाँटा ’गौतम ’ ने बदली भारत की तकदीर,
विजय सलोनी ’होनी’ हुई वाह, धोनी धुरंधर धीर।
’विराट’ इच्छा शक्ति हो तो जग जाहिर यह राज,
विजय अवश्य ही दिलवायेगा कभी कोई ’युवराज’।
सरल सचिन का स्वप्न सधा, है देश अति प्रसन्न,
हरभजन , जहीर , युवी वार से रहे विरोधी सन्न।
अंतिम दौर तक पहुंचाया बल्ले से उगल कर आग,
तुम सा नहीं दूसरा कोई ,जय जय विरेन्द्र सहवाग।
संत, मुनाफ़, पियुष, अश्विन,रैना,पठान और नेहरा,
धन्य सभी का योगदान,तभी बंधा विजय का सेहरा।
खेलों की गौरव गाथा में जुडा नवीन सुनहरा पन्ना,
नाचो,गाओ खुशी मनाओ,धिन धिन ना धिन धिन ना।
तम छाँटा ’गौतम ’ ने बदली भारत की तकदीर,
विजय सलोनी ’होनी’ हुई वाह, धोनी धुरंधर धीर।
’विराट’ इच्छा शक्ति हो तो जग जाहिर यह राज,
विजय अवश्य ही दिलवायेगा कभी कोई ’युवराज’।
सरल सचिन का स्वप्न सधा, है देश अति प्रसन्न,
हरभजन , जहीर , युवी वार से रहे विरोधी सन्न।
अंतिम दौर तक पहुंचाया बल्ले से उगल कर आग,
तुम सा नहीं दूसरा कोई ,जय जय विरेन्द्र सहवाग।
संत, मुनाफ़, पियुष, अश्विन,रैना,पठान और नेहरा,
धन्य सभी का योगदान,तभी बंधा विजय का सेहरा।
खेलों की गौरव गाथा में जुडा नवीन सुनहरा पन्ना,
नाचो,गाओ खुशी मनाओ,धिन धिन ना धिन धिन ना।
Friday, April 1, 2011
फ़ेसबुक और जनसंख्या
-ओंम प्रकाश नौटियाल
नव जनगणना आँकडों ने दिया शुभ समाचार,
जन संख्या वृद्धि दर की है तेज घटी रफ़्तार ।
शोध कर जब कारण का इसके पता लगाया,
निष्कर्ष बडा ही रोचक यह तब सामने आया ।
भारतीय जोडों मे बढ़ा है फ़ेस बुक से लगाव,
इस के द्वारा बातें करते , हो जब मनमुटाव ।
दोनों की गोद में होता रात में, अपना लैपटौप,
ऐसे में क्या जरुरत खायें प्यार का लालीपाप ।
जो वर्षों से हुआ नहीं भले कितने किये उपाय,
देवी फ़ेस बुक की कृपा हो,सब संभव हो जाय !!
नव जनगणना आँकडों ने दिया शुभ समाचार,
जन संख्या वृद्धि दर की है तेज घटी रफ़्तार ।
शोध कर जब कारण का इसके पता लगाया,
निष्कर्ष बडा ही रोचक यह तब सामने आया ।
भारतीय जोडों मे बढ़ा है फ़ेस बुक से लगाव,
इस के द्वारा बातें करते , हो जब मनमुटाव ।
दोनों की गोद में होता रात में, अपना लैपटौप,
ऐसे में क्या जरुरत खायें प्यार का लालीपाप ।
जो वर्षों से हुआ नहीं भले कितने किये उपाय,
देवी फ़ेस बुक की कृपा हो,सब संभव हो जाय !!
Sunday, March 27, 2011
आम आदमी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
बडा आम सा लगे बेचारा आम आदमी,
बेखबर ज्यों अंजाम से हो आम आदमी।
रोटी की चिंता में यहाँ वहाँ फिरे मारा,
बेदाम सा बिक जाता है आम आदमी।
बडे बडे लोग तो कितने नाम वाले हैं,
’अनाम’ सा घूमे बेचारा आम आदमी।
हर तरफ़ से उसको दुत्कार ही मिले,
’हाय राम’ सा है बेचारा आम आदमी।
काम की तलाश के बस काम में जुटा,
कहने को बेकाम सा है आम आदमी ।
चेहरों पर उनके काले धन की चमक है,
दोपहर में पर शाम सा है आम आदमी।
सारे फलों का यूं तो है ’आम’ बादशाह,
पर ’आम’ से मजाक सा है आम आदमी।
अखबारों मे उसकी चर्चा है कभी कभी,
पर कार्टून में काम का है आम आदमी।
’ओंम’ कुछ कहें वह किसी काम का नही,
चुनाव में पर शान सा है आम आदमी।
बडा आम सा लगे बेचारा आम आदमी,
बेखबर ज्यों अंजाम से हो आम आदमी।
रोटी की चिंता में यहाँ वहाँ फिरे मारा,
बेदाम सा बिक जाता है आम आदमी।
बडे बडे लोग तो कितने नाम वाले हैं,
’अनाम’ सा घूमे बेचारा आम आदमी।
हर तरफ़ से उसको दुत्कार ही मिले,
’हाय राम’ सा है बेचारा आम आदमी।
काम की तलाश के बस काम में जुटा,
कहने को बेकाम सा है आम आदमी ।
चेहरों पर उनके काले धन की चमक है,
दोपहर में पर शाम सा है आम आदमी।
सारे फलों का यूं तो है ’आम’ बादशाह,
पर ’आम’ से मजाक सा है आम आदमी।
अखबारों मे उसकी चर्चा है कभी कभी,
पर कार्टून में काम का है आम आदमी।
’ओंम’ कुछ कहें वह किसी काम का नही,
चुनाव में पर शान सा है आम आदमी।
Saturday, March 26, 2011
बाल सुलभ चिंता
ओंम प्रकाश नौटियाल
’मोहन’ बोले ’लालकृष्ण’ से, यह तथ्य करो स्वीकार,
पी एम पद पर नहीं, किसी का जन्म सिद्ध अधिकार।
सुनकर बात ’अविवाहित बालक’ मन मन में घबराया,
तीर ’लाल’ की आड ले,कहीं मुझ पर तो नहीं चलाया।
मैने ही जननी से कह इनको इस पद पर बिठलाया ,
बस में सीट सुरक्षित करने हेतु,ज्यों रुमाल रखवाया।
चली आई जो वंश रीत, अब मैं गद्दी लेने को तैय्यार,
क्यों बोले ’मोहन’ नहीं गद्दी पर जन्म सिद्ध अधिकार?
’मोहन’ बोले ’लालकृष्ण’ से, यह तथ्य करो स्वीकार,
पी एम पद पर नहीं, किसी का जन्म सिद्ध अधिकार।
सुनकर बात ’अविवाहित बालक’ मन मन में घबराया,
तीर ’लाल’ की आड ले,कहीं मुझ पर तो नहीं चलाया।
मैने ही जननी से कह इनको इस पद पर बिठलाया ,
बस में सीट सुरक्षित करने हेतु,ज्यों रुमाल रखवाया।
चली आई जो वंश रीत, अब मैं गद्दी लेने को तैय्यार,
क्यों बोले ’मोहन’ नहीं गद्दी पर जन्म सिद्ध अधिकार?
Monday, March 21, 2011
जापानी ज़लज़ला
ओंम प्रकाश नौटियाल
मजीरे, ढ़ोल काँपें, लगे बेरंग सा गुलाल है,
भूकम्प त्रासदी का बन्धु , बेहद मलाल है।
रुख़सारों पे रंग का कहाँ वैसा जमाल है,
विकिरण के ज़हर का ज़हन में खयाल है।
मुहब्बत का जज्बा,पर सुस्त पड़ी चाल है,
विकास इस कीमत पर? मन में सवाल है।
जापानी जलजले से जख्मी जी निढाल है,
भीषण ऐसे दुख देख, जीना ही मुहाल है।
प्रभू आप सर्वज्ञ आपको सबका खयाल है,
पहले सी हो भोर वहाँ ,मिटे जो बवाल है।
मजीरे, ढ़ोल काँपें, लगे बेरंग सा गुलाल है,
भूकम्प त्रासदी का बन्धु , बेहद मलाल है।
रुख़सारों पे रंग का कहाँ वैसा जमाल है,
विकिरण के ज़हर का ज़हन में खयाल है।
मुहब्बत का जज्बा,पर सुस्त पड़ी चाल है,
विकास इस कीमत पर? मन में सवाल है।
जापानी जलजले से जख्मी जी निढाल है,
भीषण ऐसे दुख देख, जीना ही मुहाल है।
प्रभू आप सर्वज्ञ आपको सबका खयाल है,
पहले सी हो भोर वहाँ ,मिटे जो बवाल है।
Friday, March 18, 2011
हा हा हा होली है
-ओंम प्रकाश नौटियाल
जमाना आज ब्लाग का है,
स्लम और स्लमडाग का है,
नोट वोट का ऐसा रिश्ता,
जैसे चीन पाक का है,
स्वार्थ के रिश्ते बने
दामन और चोली है
हा हा हा होली है।
चाँद रोज बदलता है,
फ़िजा में भी बदलाव है,
मुम्बई हमले के अब तक
हरे सारे घाव हैं,
खुश है हर हाल में पर
जनता बडी भोली है,
हा हा हा होली है।
कितने घोटाले हुए
हुई जाने कितनी जाँच,
साक्ष्य बडे पुख्ता थे,
पर ’उन’ पर न आई आँच,
उनके नये ’आदर्श धाम’ ,
अपनी वही खोली है,
हा हा हा होली है ।
पदक की खातिर ,
खिलाडी स्वेद बहाते रहे,
खेल से न जिनका रिश्ता
बढते उनके खाते रहे,
खिलाडियों ने भर दी,
पदकों से झोली है,
हा हा हा होली है ।
चलाते जो देश वह,
दूरदर्शी लोग होते हैं,
अपनी पीढ़ीयों के लिये,
अपार धन संजोते हैं,
जनता खोयी सी मानों
अलसायों की टोली है,
हा हा हा होली है ।
उंचे उंचे पद पर जो
बड़े उनके घोटाले हैं,
पंगु प्रहरी देखें पर,
उनके मुंह लगे ताले हैं,
भ्रष्टाचारीयों और पुलिस में
रिश्ता बडा ’होली’ है,
हा हा हा होली है ।
जमाना आज ब्लाग का है,
स्लम और स्लमडाग का है,
नोट वोट का ऐसा रिश्ता,
जैसे चीन पाक का है,
स्वार्थ के रिश्ते बने
दामन और चोली है
हा हा हा होली है।
चाँद रोज बदलता है,
फ़िजा में भी बदलाव है,
मुम्बई हमले के अब तक
हरे सारे घाव हैं,
खुश है हर हाल में पर
जनता बडी भोली है,
हा हा हा होली है।
कितने घोटाले हुए
हुई जाने कितनी जाँच,
साक्ष्य बडे पुख्ता थे,
पर ’उन’ पर न आई आँच,
उनके नये ’आदर्श धाम’ ,
अपनी वही खोली है,
हा हा हा होली है ।
पदक की खातिर ,
खिलाडी स्वेद बहाते रहे,
खेल से न जिनका रिश्ता
बढते उनके खाते रहे,
खिलाडियों ने भर दी,
पदकों से झोली है,
हा हा हा होली है ।
चलाते जो देश वह,
दूरदर्शी लोग होते हैं,
अपनी पीढ़ीयों के लिये,
अपार धन संजोते हैं,
जनता खोयी सी मानों
अलसायों की टोली है,
हा हा हा होली है ।
उंचे उंचे पद पर जो
बड़े उनके घोटाले हैं,
पंगु प्रहरी देखें पर,
उनके मुंह लगे ताले हैं,
भ्रष्टाचारीयों और पुलिस में
रिश्ता बडा ’होली’ है,
हा हा हा होली है ।
Saturday, March 12, 2011
परवरदिगार है सूत्रधार
ओंम प्रकाश नौटियाल
प्रभु ने अपनी यह सृष्टि
नेह के साथ रचाई है,
फ़िर क्योंकर कुपित द्दष्टि
इस सृष्टि पर बरसाई है?
जब एक सुनामी आती है
बवन्डर कैसे कर जाती है,
आबाद चहकते भवनों को
पल में खंड़हर कर जाती है।
तकनीक लगी बेबस सी
विज्ञान रहा मौन तकता,
कुदरती कहर के आगे,
मानव कितना बौना लगता।
क्या होगा मेरे बाद यहाँ
यह चेतन मन की बाते हैं,
चिंता की पीर सताती है,
जब तक चलती ये साँसे हैं।
इस कारण से हे अज्ञानी
तज दे तुरंत यह अहंकार,
कठपुतली सा तेरा वजूद
परवरदिगार है सूत्रधार ।
प्रभु ने अपनी यह सृष्टि
नेह के साथ रचाई है,
फ़िर क्योंकर कुपित द्दष्टि
इस सृष्टि पर बरसाई है?
जब एक सुनामी आती है
बवन्डर कैसे कर जाती है,
आबाद चहकते भवनों को
पल में खंड़हर कर जाती है।
तकनीक लगी बेबस सी
विज्ञान रहा मौन तकता,
कुदरती कहर के आगे,
मानव कितना बौना लगता।
क्या होगा मेरे बाद यहाँ
यह चेतन मन की बाते हैं,
चिंता की पीर सताती है,
जब तक चलती ये साँसे हैं।
इस कारण से हे अज्ञानी
तज दे तुरंत यह अहंकार,
कठपुतली सा तेरा वजूद
परवरदिगार है सूत्रधार ।
Wednesday, March 2, 2011
जय भोले बाबा
-ओंम प्रकाश नौटियाल
भोले बाबा, तरस खाओ
पसीजो तुम, जरा सुन लो,
हम भक्तों के सवालों को,
प्रलयंकर ! हो अब बम बम बम,
बजे डमरू डमा डम डम,
हो छ्म छ्म छ्म, छ्मा छ्म छ्म
रमालो भस्म, जटा खोलो,
झटक दो अपने बालों को,
बहुत कुछ सह लिया तुमने,
हलाहल पी लिया तुमने,
ध्वस्त कर दो न देरी हो,
पापियों की कुचालों को,
कालरात्रि का लाग है,
तन मन में एक आग है,
तन तान्डव में तन्मय,
उठो खोलो नयन तीजा,
भस्म अब तो कर दो
घोटाला करने वालों को,
घोटालों के दलालों को,
जय जय मेरे शंकर,
नीलकंठ, प्रलयंकर !
पसीजो तुम , तरस खाओ
बचा लो अपने भक्तों के
मुंह से छीने निवालों को,
उनके अगले सालों को ,
तन तान्डव में करो तन्मय,
उठो खोलो नयन तीजा,
भस्म अब तो कर दो ,
घोटाला करने वालों को,
घोटालों के दलालों को ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
भोले बाबा, तरस खाओ
पसीजो तुम, जरा सुन लो,
हम भक्तों के सवालों को,
प्रलयंकर ! हो अब बम बम बम,
बजे डमरू डमा डम डम,
हो छ्म छ्म छ्म, छ्मा छ्म छ्म
रमालो भस्म, जटा खोलो,
झटक दो अपने बालों को,
बहुत कुछ सह लिया तुमने,
हलाहल पी लिया तुमने,
ध्वस्त कर दो न देरी हो,
पापियों की कुचालों को,
कालरात्रि का लाग है,
तन मन में एक आग है,
तन तान्डव में तन्मय,
उठो खोलो नयन तीजा,
भस्म अब तो कर दो
घोटाला करने वालों को,
घोटालों के दलालों को,
जय जय मेरे शंकर,
नीलकंठ, प्रलयंकर !
पसीजो तुम , तरस खाओ
बचा लो अपने भक्तों के
मुंह से छीने निवालों को,
उनके अगले सालों को ,
तन तान्डव में करो तन्मय,
उठो खोलो नयन तीजा,
भस्म अब तो कर दो ,
घोटाला करने वालों को,
घोटालों के दलालों को ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Monday, February 28, 2011
काला धन
-ओंम प्रकाश नौटियाल
श्वेतपोश नेताओं को भली प्रकार यह ज्ञात,
कोयले की करो दलाली तो काले होते हाथ ।
धन काला छूने से तभी वह परहेज फ़रमाते,
दाता से कहकर सीधे खातों में जमा कराते ।
इसी वास्ते काले धन पर अपने शासक मौन,
काले धन को लाने में काले हाथ करेगा कौन?
रंग निखारने के लिए वह शीत देशों मे जाते,
श्वेत श्याम धन करने हेतु वहाँ खोलते खाते।
श्वेत श्याम धन समझो, जैसे अनुलोम विलोम,
स्वस्थ,प्रसन्न हो तन,मन भजता हरि ’ओंम’।
श्वेतपोश नेताओं को भली प्रकार यह ज्ञात,
कोयले की करो दलाली तो काले होते हाथ ।
धन काला छूने से तभी वह परहेज फ़रमाते,
दाता से कहकर सीधे खातों में जमा कराते ।
इसी वास्ते काले धन पर अपने शासक मौन,
काले धन को लाने में काले हाथ करेगा कौन?
रंग निखारने के लिए वह शीत देशों मे जाते,
श्वेत श्याम धन करने हेतु वहाँ खोलते खाते।
श्वेत श्याम धन समझो, जैसे अनुलोम विलोम,
स्वस्थ,प्रसन्न हो तन,मन भजता हरि ’ओंम’।
Thursday, February 17, 2011
कलियुग के ’मोहन’
-ओंम प्रकाश नौटियाल
उठाते थे निज उंगली पर कभी पर्वत समूचा जो,
वह ’मन’’मोहन’ भी कितने आज लाचार से लगते ।
नचाते थे कभी वंशी की धुन पर गोपियाँ सारी,
उनको बेसुरे कुछ लोग, अपने अनाचार से ठगते ।
मनचलों की मनमानी, मनहूस मन्सूबों के किस्से ,
मन मन ही ’मोहन’ को किसी तलवार से चुभते।
सभी सृष्टि है ’मोहन’ की तभी मजबूरी है सहना,
यह मनसबदार सारे पर बडे मक्कार से लगते ।
’ओंम’ कलियुग घोर है तभी ’मोहन’ भी विवश हैं,
राजा कंस, शिशुपाल नहीं उनकी फ़टकार से डरते।
उठाते थे निज उंगली पर कभी पर्वत समूचा जो,
वह ’मन’’मोहन’ भी कितने आज लाचार से लगते ।
नचाते थे कभी वंशी की धुन पर गोपियाँ सारी,
उनको बेसुरे कुछ लोग, अपने अनाचार से ठगते ।
मनचलों की मनमानी, मनहूस मन्सूबों के किस्से ,
मन मन ही ’मोहन’ को किसी तलवार से चुभते।
सभी सृष्टि है ’मोहन’ की तभी मजबूरी है सहना,
यह मनसबदार सारे पर बडे मक्कार से लगते ।
’ओंम’ कलियुग घोर है तभी ’मोहन’ भी विवश हैं,
राजा कंस, शिशुपाल नहीं उनकी फ़टकार से डरते।
Wednesday, February 16, 2011
देहरा दून
-ओंम प्रकाश नौटियाल
वास्ता जिस शख्श का भी, कभी इस शहर से रहा,
इसकी यादों में खोया रहा, जिस भी शहर में रहा।
इसके हुस्न में ना कमी , ना कोई मुझे दाग मिला,
टहलता निकला जिधर, लीची,आम का बाग मिला।
हवा में ताजगी और सरगम, माहौल में सुकून है,
रहूं कहीं पर भी मगर बसा दिल में देहरादून है।
वास्ता जिस शख्श का भी, कभी इस शहर से रहा,
इसकी यादों में खोया रहा, जिस भी शहर में रहा।
इसके हुस्न में ना कमी , ना कोई मुझे दाग मिला,
टहलता निकला जिधर, लीची,आम का बाग मिला।
हवा में ताजगी और सरगम, माहौल में सुकून है,
रहूं कहीं पर भी मगर बसा दिल में देहरादून है।
Sunday, February 13, 2011
प्रेम दिवस
-ओंम प्रकाश नौटियाल
इस देश में हर दिन ही पहले प्यार की रुत थी,
है उस जमाने की बात जब फ़ुर्सत ही फ़ु्र्सत थी,
अब कहाँ वक्त रोज इश्क का इजहार कर सकें,
इस तेज रफ़्तार जीवन में ’उन्हे’ प्यार कर सकें,
लो आ गया है फिर से ’प्रेम दिवस’ का त्यौहार,
चलो मिल लें कहीं आज, बहा दें प्रेम की बयार,
’ओंम’ देखो प्यार को,पर ना इतने प्यार से देखो,
काफ़ी है ’प्रेम दिवस’ शेष दिन व्यापार को देखो।
इस देश में हर दिन ही पहले प्यार की रुत थी,
है उस जमाने की बात जब फ़ुर्सत ही फ़ु्र्सत थी,
अब कहाँ वक्त रोज इश्क का इजहार कर सकें,
इस तेज रफ़्तार जीवन में ’उन्हे’ प्यार कर सकें,
लो आ गया है फिर से ’प्रेम दिवस’ का त्यौहार,
चलो मिल लें कहीं आज, बहा दें प्रेम की बयार,
’ओंम’ देखो प्यार को,पर ना इतने प्यार से देखो,
काफ़ी है ’प्रेम दिवस’ शेष दिन व्यापार को देखो।
मिस्र क्रान्ति - कुछ हाइकु
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मिस्र के मित्रों,
मुबारक का जाना,
हो मुबारक ।
मन उमंग,
जश्न और उमंग,
मिस्र प्रसन्न ।
मिस्र में क्रान्ति,
लायी परिवर्तन,
चैन अमन ।
आई खुशियाँ,
मुबारक के बाद,
क्रान्ति को दाद ।
अहिंसा पर,
जिनको रहा नाज,
आजाद आज ।
बापू का कहा,
विजय अहिंसा से,
उतरा खरा ।
गाँधी ने दिया,
अहिंसा का जो बल,
रहा सफ़ल ।
मिस्र के मित्रों,
मुबारक का जाना,
हो मुबारक ।
मन उमंग,
जश्न और उमंग,
मिस्र प्रसन्न ।
मिस्र में क्रान्ति,
लायी परिवर्तन,
चैन अमन ।
आई खुशियाँ,
मुबारक के बाद,
क्रान्ति को दाद ।
अहिंसा पर,
जिनको रहा नाज,
आजाद आज ।
बापू का कहा,
विजय अहिंसा से,
उतरा खरा ।
गाँधी ने दिया,
अहिंसा का जो बल,
रहा सफ़ल ।
Saturday, February 12, 2011
मायावी जूते
ओंम प्रकाश नौटियाल
जूते में आपके जब कभी रजकण को देखा है,
यकीं मानों नजारा यह दुखते मन से देखा है,
तत्क्षण उन्हे दमका,चेहरा उस दर्पण में देखा है,
उज्जवल है भविष्य अपना, समर्पण में देखा है,
पुलिस वालों से ज्यादा, न ’माया’ जाल समझोगे
’माया’ से मिले ’माया’, लिखा कण कण में देखा है।
जूते में आपके जब कभी रजकण को देखा है,
यकीं मानों नजारा यह दुखते मन से देखा है,
तत्क्षण उन्हे दमका,चेहरा उस दर्पण में देखा है,
उज्जवल है भविष्य अपना, समर्पण में देखा है,
पुलिस वालों से ज्यादा, न ’माया’ जाल समझोगे
’माया’ से मिले ’माया’, लिखा कण कण में देखा है।
Thursday, February 3, 2011
मिश्र में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के विरोध में आंदोलन
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मेरे’मिश्री’’हुस्न मुबारक’ हो तुझे तेरा,
तुझे तकने से पेट पर भरता नहीं मेरा,
महलों के झरोखों से हमें निहारने वाले,
रोजी रोटी को तरसें हैं तेरे चाहने वाले।
मेरे’मिश्री’’हुस्न मुबारक’ हो तुझे तेरा,
तुझे तकने से पेट पर भरता नहीं मेरा,
महलों के झरोखों से हमें निहारने वाले,
रोजी रोटी को तरसें हैं तेरे चाहने वाले।
वसंत -कुछ हाइकु
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मन प्रसन्न
अब आया वसंत
शीत का अंत
धरती प्यारी
पीले पुष्पों का हार
स्वर्ण श्रंगार
छोटे से दिन
वसंत के आने से
हुए सयाने
फूलों की गंध
हवा में मंद मंद
वाह वसंत
ऋतु वसंत
पतझड का अंत
शान्त पवन
हे ऋतुराज
कोयल गाये गीत
तुमसे प्रीत
मन प्रसन्न
अब आया वसंत
शीत का अंत
धरती प्यारी
पीले पुष्पों का हार
स्वर्ण श्रंगार
छोटे से दिन
वसंत के आने से
हुए सयाने
फूलों की गंध
हवा में मंद मंद
वाह वसंत
ऋतु वसंत
पतझड का अंत
शान्त पवन
हे ऋतुराज
कोयल गाये गीत
तुमसे प्रीत
Saturday, January 29, 2011
रोशनी में तुम रहो
-ओंम प्रकाश नौटियाल
रोशनी में तुम रहो,और रोशनी में हम रहें,
रोशन रहें खुशियां जो अंधेरों में गम रहें।
जितने बने थे दोस्त वो रकीबों के यार थे,
बस मेरे ही पाँव थे जो मेरे हम कदम रहे।
सोचता हूं कर लूं अब तुम्हारे प्यार से तौबा,
बची जिन्दगी मे मेरी भी चैन-ओ-अमन रहे।
आराम से जीने को क्या कुछ नहीं मिलता,
पर चैन तो तब है जो हसरतें ही कम रहे।
’ओंम’ दुनियाँ देती रही ताकतवरों का साथ,
साँस तब तक है जब तक तुम में दम रहे।
रोशनी में तुम रहो,और रोशनी में हम रहें,
रोशन रहें खुशियां जो अंधेरों में गम रहें।
जितने बने थे दोस्त वो रकीबों के यार थे,
बस मेरे ही पाँव थे जो मेरे हम कदम रहे।
सोचता हूं कर लूं अब तुम्हारे प्यार से तौबा,
बची जिन्दगी मे मेरी भी चैन-ओ-अमन रहे।
आराम से जीने को क्या कुछ नहीं मिलता,
पर चैन तो तब है जो हसरतें ही कम रहे।
’ओंम’ दुनियाँ देती रही ताकतवरों का साथ,
साँस तब तक है जब तक तुम में दम रहे।
Wednesday, January 26, 2011
६२ वा गणतंत्र
-ओंम प्रकाश नौटियाल
आजादी मिले हमें, हो गये वर्ष साठ से उपर,
खुशहाल मस्त महौल का जमाना कहाँ आया?
न जाने किन दुरात्माओं का है देश में साया,
झंडे को निर्भय हो, हमें फ़हराना कहाँ आया?
आजादी मिले हमें, हो गये वर्ष साठ से उपर,
खुशहाल मस्त महौल का जमाना कहाँ आया?
न जाने किन दुरात्माओं का है देश में साया,
झंडे को निर्भय हो, हमें फ़हराना कहाँ आया?
Saturday, January 15, 2011
१६ जनवरी -मेरा जन्म दिन
-ओंम प्रकाश नौटियाल
-1-
१६ जनवरी आई है,
वह तिथि जो
याद दिलाती है प्रति वर्ष,
मेरा पृथ्वी पर आना,
और बताना कि
मैं अजन्मा नहीं रहा,
बृह्मान्ड के किसी कोने में
कहीं तनहा पडा नहीं रहा,
अब मैं सांसारिक हूं, जैविक हूं,
वर्षों से धरती का अंग हूं,
कुछ के लिए अंतरंग,
कुछ के लिए मात्र प्रसंग हूं,
कुछ का अजीज हूं
कुछ के लिए अजनबी।
पढाती है यह तिथि,
उम्र के गणित का वैचित्र्य,
जिसमें एक वर्ष का योग,
अर्थात वय से एक वर्ष का वियोग।
-2-
ले जाती है यह तिथि
गलियारे में बचपन के,
जब इस दिन माता पिता,
मुझे तुला पर बैठा कर,
मेरे भार बराबर
करते थे अन्नदान,
पूजा होती थी,
एक उत्साह रहता था,
क्योंकि यह दिन ले जाता था
मुझे और करीब युवा उम्र के,
यानि शिखर की ओर ।
-3-
और अब यह तिथि धकेल रही
वर्ष प्रतिवर्ष मुझे,
कदम दर कदम नीचे की ओर,
शिखर छूट गया पीछे की ओर,
ढलान में संभाल की आवश्यकता है,
यात्रा अब कुछ कठिन है,
पर यही वास्तविक परीक्षा है,
आपकी शुभकामनाओं की
अब अधिक अपेक्षा है ।
-1-
१६ जनवरी आई है,
वह तिथि जो
याद दिलाती है प्रति वर्ष,
मेरा पृथ्वी पर आना,
और बताना कि
मैं अजन्मा नहीं रहा,
बृह्मान्ड के किसी कोने में
कहीं तनहा पडा नहीं रहा,
अब मैं सांसारिक हूं, जैविक हूं,
वर्षों से धरती का अंग हूं,
कुछ के लिए अंतरंग,
कुछ के लिए मात्र प्रसंग हूं,
कुछ का अजीज हूं
कुछ के लिए अजनबी।
पढाती है यह तिथि,
उम्र के गणित का वैचित्र्य,
जिसमें एक वर्ष का योग,
अर्थात वय से एक वर्ष का वियोग।
-2-
ले जाती है यह तिथि
गलियारे में बचपन के,
जब इस दिन माता पिता,
मुझे तुला पर बैठा कर,
मेरे भार बराबर
करते थे अन्नदान,
पूजा होती थी,
एक उत्साह रहता था,
क्योंकि यह दिन ले जाता था
मुझे और करीब युवा उम्र के,
यानि शिखर की ओर ।
-3-
और अब यह तिथि धकेल रही
वर्ष प्रतिवर्ष मुझे,
कदम दर कदम नीचे की ओर,
शिखर छूट गया पीछे की ओर,
ढलान में संभाल की आवश्यकता है,
यात्रा अब कुछ कठिन है,
पर यही वास्तविक परीक्षा है,
आपकी शुभकामनाओं की
अब अधिक अपेक्षा है ।
Thursday, January 13, 2011
मेरी पतंग
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मित्रों वह जो पीली लाल,
उडती उडती लहराती है,
लहरा लहरा कर उडती है,
गगन की शान बढाती है,
वह नील गगन की रानी,
मेरी पतंग शहजादी है,
उससे पेंच लडाना चाहो
इसकी तुमको आजादी है,
पर उसको काट गिराओगे,
यह मात्र तुम्हारी भ्रान्ति है,
क्योंकि मेरी प्यारी पतंग
विजेता मिस मकरसक्रांति है।
मित्रों वह जो पीली लाल,
उडती उडती लहराती है,
लहरा लहरा कर उडती है,
गगन की शान बढाती है,
वह नील गगन की रानी,
मेरी पतंग शहजादी है,
उससे पेंच लडाना चाहो
इसकी तुमको आजादी है,
पर उसको काट गिराओगे,
यह मात्र तुम्हारी भ्रान्ति है,
क्योंकि मेरी प्यारी पतंग
विजेता मिस मकरसक्रांति है।
Sunday, January 2, 2011
नव वर्ष आ रहा है
-ओंम प्रकाश नौटियाल
नव वर्ष आ रहा है , नव वर्ष आ रहा है ,
ढेरों पलों मे भर क्या क्या ये ला रहा है ।
कुछ पल निश्चय ही मीठे मधुर भी होंगे,
मिलन की चाह में, प्रिय कैसे आतुर होंगे,
शुभघडी की आस में,मन मस्त गा रहा है,
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।
बारह महीनों में कितने काम करने होंगे,
मेरे भी हैं सपने,कुछ प्रीतम के सपने होंगे,
सपनों के सागर में मन हिलोंरे खा रहा है,
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।
कुछ पलों में छुपा, दुख का कोई फ़साना,
आखिर तो जग नश्वर,लगा है आना जाना,
इस मौके पर कभी यह डर भी सता रहा है
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।
समय के साथ चलना है तेरी जिन्दगानी,
समय फिसल गया तो बेकार जिन्दगानी,
वक्त बेवक्त वक्त,बस यही समझा रहा है,
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।
तुम्हारे पलों में होंगी पिछ्ले पलों की बातें,
अपनों के प्यार की और छ्लकपट की बातें,
कुछ किस्सों की याद से मन पछ्ता रहा है,
नव वर्ष आ रहा है , नव वर्ष आ रहा है ।
पावन परिणय कुछ होंगे, नाचेंगे मीत सारे,
नवजात किलकारियाँ भी गूंजेगी तेरे द्वारे,
जो कुछ संजोया होगा सब याद आ रहा है,
नव वर्ष आ रहा है , नव वर्ष आ रहा है ।
ढेरों पलों मे भर क्या क्या ये ला रहा है।
नव वर्ष आ रहा है , नव वर्ष आ रहा है ,
ढेरों पलों मे भर क्या क्या ये ला रहा है ।
कुछ पल निश्चय ही मीठे मधुर भी होंगे,
मिलन की चाह में, प्रिय कैसे आतुर होंगे,
शुभघडी की आस में,मन मस्त गा रहा है,
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।
बारह महीनों में कितने काम करने होंगे,
मेरे भी हैं सपने,कुछ प्रीतम के सपने होंगे,
सपनों के सागर में मन हिलोंरे खा रहा है,
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।
कुछ पलों में छुपा, दुख का कोई फ़साना,
आखिर तो जग नश्वर,लगा है आना जाना,
इस मौके पर कभी यह डर भी सता रहा है
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।
समय के साथ चलना है तेरी जिन्दगानी,
समय फिसल गया तो बेकार जिन्दगानी,
वक्त बेवक्त वक्त,बस यही समझा रहा है,
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।
तुम्हारे पलों में होंगी पिछ्ले पलों की बातें,
अपनों के प्यार की और छ्लकपट की बातें,
कुछ किस्सों की याद से मन पछ्ता रहा है,
नव वर्ष आ रहा है , नव वर्ष आ रहा है ।
पावन परिणय कुछ होंगे, नाचेंगे मीत सारे,
नवजात किलकारियाँ भी गूंजेगी तेरे द्वारे,
जो कुछ संजोया होगा सब याद आ रहा है,
नव वर्ष आ रहा है , नव वर्ष आ रहा है ।
ढेरों पलों मे भर क्या क्या ये ला रहा है।
Friday, December 31, 2010
नव वर्ष -०१.०१.२०११
-ओंम प्रकाश नौटियाल
आज भोर जब निद्रा रानी हुई विदा,
देखा द्वार पर मुस्काता नव नर्ष खडा,
बारह महीनों के लिबास में सजा धजा,
घटनाओं का लिए पिटारा रत्न जडा ।
आज भोर जब निद्रा रानी हुई विदा,
देखा द्वार पर मुस्काता नव नर्ष खडा,
बारह महीनों के लिबास में सजा धजा,
घटनाओं का लिए पिटारा रत्न जडा ।
Thursday, December 30, 2010
३१ दिसम्बर २०१०
--ओंम प्रकाश नौटियाल
सर्द मौसम,कोहरे का कोहराम सा है,
भोर में दिखता धुंधलका शाम का है,
ऐसे में प्रतीक्षा है,नववर्ष आने की,
यह वर्ष कुछ देर का मेहमान सा है।
’ओंम’ सब मित्रों को नववर्ष शुभ हो,
समय श्रम का है, नहीं विश्राम का है।
सर्द मौसम,कोहरे का कोहराम सा है,
भोर में दिखता धुंधलका शाम का है,
ऐसे में प्रतीक्षा है,नववर्ष आने की,
यह वर्ष कुछ देर का मेहमान सा है।
’ओंम’ सब मित्रों को नववर्ष शुभ हो,
समय श्रम का है, नहीं विश्राम का है।
Tuesday, December 28, 2010
रेल और लोकतंत्र
-ओंम प्रकाश नौटियाल
अपने देश में रेलों की भूमिका बडी अहम,
हर मुश्किल में ये हैं,अपनी सच्ची हमदम,
बात हो जायज,नाजायज पटरी पर आ जा,
माँग न पूरी हो जब तक, उठ कर ना जा,
मित्रों के संग गप मार,उडा उत्तम भोजन,
मंत्री खुद वहाँ आयेंगे,उनका वोट प्रयोजन,
क्या लेना तुझे,रुके जो ट्रेन्स का आना जाना,
इतना सोच हो कैसे , खुद का सफ़र सुहाना,
ट्रेनें रोक,पटरी तोड,जहाँ चाहे आग लगा जा,
कुछ नहीं होगा तुझे,तू अपनी मर्जी का राजा,
’ओंम’ बोलो जय देश ,धन्य अपना लोकतंत्र,
तोडफोड,आगजनी,हिंसा को, हर कोई स्वतंत्र ।
अपने देश में रेलों की भूमिका बडी अहम,
हर मुश्किल में ये हैं,अपनी सच्ची हमदम,
बात हो जायज,नाजायज पटरी पर आ जा,
माँग न पूरी हो जब तक, उठ कर ना जा,
मित्रों के संग गप मार,उडा उत्तम भोजन,
मंत्री खुद वहाँ आयेंगे,उनका वोट प्रयोजन,
क्या लेना तुझे,रुके जो ट्रेन्स का आना जाना,
इतना सोच हो कैसे , खुद का सफ़र सुहाना,
ट्रेनें रोक,पटरी तोड,जहाँ चाहे आग लगा जा,
कुछ नहीं होगा तुझे,तू अपनी मर्जी का राजा,
’ओंम’ बोलो जय देश ,धन्य अपना लोकतंत्र,
तोडफोड,आगजनी,हिंसा को, हर कोई स्वतंत्र ।
Wednesday, December 22, 2010
सखी मैं तो प्याज दिवानी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मुहब्बत मे तेरी दिवानी,ओ प्याज, आज भी हूं,
तुझ पर चलाकर छुरी,अश्क बहाती आज भी हूं,
पर कीमत लगाई तूने,जो आने की मेरे दर पर,
उससे परेशां कल थी,और परेशाँ मैं आज भी हूं।
मुहब्बत मे तेरी दिवानी,ओ प्याज, आज भी हूं,
तुझ पर चलाकर छुरी,अश्क बहाती आज भी हूं,
पर कीमत लगाई तूने,जो आने की मेरे दर पर,
उससे परेशां कल थी,और परेशाँ मैं आज भी हूं।
पंछी व्योम में
-ओंम प्रकाश नौटियाल
दिवाली इस बार भी आई, और आकर चली गई,
नकली रोशनी से उम्मीद का अब भ्रम नहीं होता।
मचा देश में कुहराम और चैन की वो नींद सोते हैं,
भूखा पेट है सदियों से किसी मौसम नहीं सोता।
मोम सा दिल उनका,मगर फिसलता है इस कदर
किसी का गम नहीं रुकता, कहीं जुडना नहीं होता।
’जेड’ सुरक्षा का उन पर कुछ ऐसा सख्त पहरा है,
जनता का कोई कष्ट हो, वहाँ पहुंचना नहीं होता।
देश की पूंजी को वो अपनी ही जागीर समझे हैं,
खुले आम चट करते हैं, पर उनको कुछ नहीं होता।
’ओंम’ पंछी व्योम में, बडे सुखी स्वच्छंद उडते हैं,
क्योंकि वहाँ धर्म, देश , नेता सा कुछ नहीं होता ।
दिवाली इस बार भी आई, और आकर चली गई,
नकली रोशनी से उम्मीद का अब भ्रम नहीं होता।
मचा देश में कुहराम और चैन की वो नींद सोते हैं,
भूखा पेट है सदियों से किसी मौसम नहीं सोता।
मोम सा दिल उनका,मगर फिसलता है इस कदर
किसी का गम नहीं रुकता, कहीं जुडना नहीं होता।
’जेड’ सुरक्षा का उन पर कुछ ऐसा सख्त पहरा है,
जनता का कोई कष्ट हो, वहाँ पहुंचना नहीं होता।
देश की पूंजी को वो अपनी ही जागीर समझे हैं,
खुले आम चट करते हैं, पर उनको कुछ नहीं होता।
’ओंम’ पंछी व्योम में, बडे सुखी स्वच्छंद उडते हैं,
क्योंकि वहाँ धर्म, देश , नेता सा कुछ नहीं होता ।
Wednesday, December 15, 2010
हम हैं नेता
ओंम प्रकाश नौटियाल
दिग्विजयी अर्थात दिशाओं के विजेता हैं,
बेसिरपैर की वोटीली खबरों के प्रणेता हैं।
उलटफ़ेर चाहो कोई,हम उसमें भी माहिर हैं,
ऐसे सच को झूठ कर दें,जो जग जाहिर है।
जोडने की ओट में, देश को तोड सकते हैं,
वोटों के लिए तथ्यों को भी मरोड़ सकते हैं।
हों शौर्य के किस्से, या शहीदों की शहादत,
हर मुद्दे पे सियासत, तो अपनी रही आदत।
बडे हथकण्डों से भाई, यह कुर्सी मिलती है,
कुर्सी से धडकता दिल और साँस चलती है।
तुम सोचते हो ग्रीवा दर्द कारण से ऐंठे है,
अरे,कन्धों पे ’ओंम’ देश को संभाले बैठे हैं।
दिग्विजयी अर्थात दिशाओं के विजेता हैं,
बेसिरपैर की वोटीली खबरों के प्रणेता हैं।
उलटफ़ेर चाहो कोई,हम उसमें भी माहिर हैं,
ऐसे सच को झूठ कर दें,जो जग जाहिर है।
जोडने की ओट में, देश को तोड सकते हैं,
वोटों के लिए तथ्यों को भी मरोड़ सकते हैं।
हों शौर्य के किस्से, या शहीदों की शहादत,
हर मुद्दे पे सियासत, तो अपनी रही आदत।
बडे हथकण्डों से भाई, यह कुर्सी मिलती है,
कुर्सी से धडकता दिल और साँस चलती है।
तुम सोचते हो ग्रीवा दर्द कारण से ऐंठे है,
अरे,कन्धों पे ’ओंम’ देश को संभाले बैठे हैं।
Sunday, December 12, 2010
पहाडों की दाल
ओंम प्रकाश नौटियाल
कक्षा सात विज्ञान परीक्षा में,यह पूछा गया सवाल,
पहाडों पर लम्बे समय तक क्यों नही गलती दाल?
क्या हैं कारण इसके बच्चों, विस्तार से समझाना,
आखिर क्यों इतना मुश्किल है, दाल वहाँ गलाना ?
अनुभव का जो उत्तर था, वह लगा एकदम सच्चा,
सीधे तथ्यों से परिपूर्ण,जिनसे वाकिफ़ बच्चा बच्चा,
लिखा,पहाडों पर स्त्रियाँ करती, बाहर के कई काम,
होती भोर व्यस्त हो जाती, भाग्य में नही आराम।
सुबह उठकर जंगल से वह, लकडियाँ बीनने जाती,
दूध दुहें, कण्डे पाथें, तब फिर चश्में से पानी लाती।
घास लाएं, कुट्टी भी काटें, पशुओं को चारा खिलाएं,
इतने अधिक हैं काम सुबह के, कहाँ तक गिनवाएं।
यह सब करने के बाद ही फुरसत कुछ मिल पाती,
चुल्हा ,सिगडी सुलगा कर तब उस पर दाल चढाती।
देर से दाल चढेगी जब,तो फ़िर देर से ही तो पकेगी
यही कारण है कि पहाडों पर,जल्दी दाल नहीं गलेगी।
मुझको बडे जंचे यह कारण सीधे, मासूम और नेक,
परीक्षक ने जाने क्या सोचा पर, अंक दिया न एक ।
पहाडों का जीवन ऐसा , शहरी सुविधाएं बनी मुहाल,
’ओंम’ इसीलिए वहाँ , सबकी नही गल पाती दाल ।
कक्षा सात विज्ञान परीक्षा में,यह पूछा गया सवाल,
पहाडों पर लम्बे समय तक क्यों नही गलती दाल?
क्या हैं कारण इसके बच्चों, विस्तार से समझाना,
आखिर क्यों इतना मुश्किल है, दाल वहाँ गलाना ?
अनुभव का जो उत्तर था, वह लगा एकदम सच्चा,
सीधे तथ्यों से परिपूर्ण,जिनसे वाकिफ़ बच्चा बच्चा,
लिखा,पहाडों पर स्त्रियाँ करती, बाहर के कई काम,
होती भोर व्यस्त हो जाती, भाग्य में नही आराम।
सुबह उठकर जंगल से वह, लकडियाँ बीनने जाती,
दूध दुहें, कण्डे पाथें, तब फिर चश्में से पानी लाती।
घास लाएं, कुट्टी भी काटें, पशुओं को चारा खिलाएं,
इतने अधिक हैं काम सुबह के, कहाँ तक गिनवाएं।
यह सब करने के बाद ही फुरसत कुछ मिल पाती,
चुल्हा ,सिगडी सुलगा कर तब उस पर दाल चढाती।
देर से दाल चढेगी जब,तो फ़िर देर से ही तो पकेगी
यही कारण है कि पहाडों पर,जल्दी दाल नहीं गलेगी।
मुझको बडे जंचे यह कारण सीधे, मासूम और नेक,
परीक्षक ने जाने क्या सोचा पर, अंक दिया न एक ।
पहाडों का जीवन ऐसा , शहरी सुविधाएं बनी मुहाल,
’ओंम’ इसीलिए वहाँ , सबकी नही गल पाती दाल ।
गुजारिश और एक था....
ओंम प्रकाश नौटियाल
भ्रष्ट कार्यो में जितने भी बहन भाई हैं लिप्त,
कृपया कुछ दिनों की खातिर कर दें स्थगित,
सी बी आई के पास है अधिक काम का बोझ,
नोच खसोट रोक कर जरा उनकी भी हो सोच।
एक था राजा....
ठण्डे हुए कहाँ किस्से, मुन्नी की बदनामी के,
कि अब होने लगे चर्चे, शीला की जवानी के,
ग़जब मुल्क मेरा, चटपटी खबरों का पिटारा है,
कोई ’राजा’ का मारा है,कोई ’राडिया’ ने मारा है ।
भ्रष्ट कार्यो में जितने भी बहन भाई हैं लिप्त,
कृपया कुछ दिनों की खातिर कर दें स्थगित,
सी बी आई के पास है अधिक काम का बोझ,
नोच खसोट रोक कर जरा उनकी भी हो सोच।
एक था राजा....
ठण्डे हुए कहाँ किस्से, मुन्नी की बदनामी के,
कि अब होने लगे चर्चे, शीला की जवानी के,
ग़जब मुल्क मेरा, चटपटी खबरों का पिटारा है,
कोई ’राजा’ का मारा है,कोई ’राडिया’ ने मारा है ।
Thursday, December 9, 2010
उत्तराखण्ड की याद में
ओंम प्रकाश नौटियाल
१
मेरी धरती तुझसे जो मिला,
जब उस दुलार की बातें होंगी,
तेरी अप्रतिम छ्टा, सौन्दर्य ,
और अद्भुत शान की बातें होंगी ।
२
तेरी घाटियों के घुमाव,
निर्मल नदियों के बहाव,
सुन्दर वादियों, पगडंडियों की,
चढ़ाई , ढलान की बातें होंगी।
३
तेरे खेत, बाग, वन,घाटियाँ,
ताल , नदियाँ, वादियाँ
सभी दिलकश नजारों की,
प्रकृति के वरदान की बातें होगी ।
४
गर्मी की बेइंतहा तपस,
तपायेगी तुझसे बिछडों को,
शान्त वादियों की छाँव ,
खुले आसमान की बातें होंगी ।
५
याद आयेंगे वीर बाँके जवाँ,
जो तेरी गोद में खेले,पले
वतन पर हुए शहीदों के जब ,
शौर्य, बलिदान की बातें होंगी।
६
तेरे लोगों की सादगी ,प्यार,
सुख, दुख में होना भागीदार,
याद बहुत आयेंगे कहीं, जब
रहम दिल इंसान की बातें होगी ।
७
तमाशे त्योहार ,रेले ,मेले,
लोक नृत्यों व गीतों की कशिश,
मन में उठेगी कसक, जब
मधुर संगीत व तान की बातें होंगी।
८
खनकती घन्टियाँ मंदिर की ,
दूर से आई मस्जिद की अजान ,
कानों में गूंजेगी देरतक, जब
’ओंम’, राम, कुरान की बातें होंगी।
१
मेरी धरती तुझसे जो मिला,
जब उस दुलार की बातें होंगी,
तेरी अप्रतिम छ्टा, सौन्दर्य ,
और अद्भुत शान की बातें होंगी ।
२
तेरी घाटियों के घुमाव,
निर्मल नदियों के बहाव,
सुन्दर वादियों, पगडंडियों की,
चढ़ाई , ढलान की बातें होंगी।
३
तेरे खेत, बाग, वन,घाटियाँ,
ताल , नदियाँ, वादियाँ
सभी दिलकश नजारों की,
प्रकृति के वरदान की बातें होगी ।
४
गर्मी की बेइंतहा तपस,
तपायेगी तुझसे बिछडों को,
शान्त वादियों की छाँव ,
खुले आसमान की बातें होंगी ।
५
याद आयेंगे वीर बाँके जवाँ,
जो तेरी गोद में खेले,पले
वतन पर हुए शहीदों के जब ,
शौर्य, बलिदान की बातें होंगी।
६
तेरे लोगों की सादगी ,प्यार,
सुख, दुख में होना भागीदार,
याद बहुत आयेंगे कहीं, जब
रहम दिल इंसान की बातें होगी ।
७
तमाशे त्योहार ,रेले ,मेले,
लोक नृत्यों व गीतों की कशिश,
मन में उठेगी कसक, जब
मधुर संगीत व तान की बातें होंगी।
८
खनकती घन्टियाँ मंदिर की ,
दूर से आई मस्जिद की अजान ,
कानों में गूंजेगी देरतक, जब
’ओंम’, राम, कुरान की बातें होंगी।
Monday, December 6, 2010
गुजारिश
--ओंम प्रकाश नौटियाल
भ्रष्ट कार्यो में जितने भी बहन भाई हैं लिप्त,
कृपया कुछ दिनों की खातिर कर दें स्थगित,
सी बी आई के पास है अधिक काम का बोझ,
नोच खसोट रोक कर जरा उनकी भी हो सोच।
भ्रष्ट कार्यो में जितने भी बहन भाई हैं लिप्त,
कृपया कुछ दिनों की खातिर कर दें स्थगित,
सी बी आई के पास है अधिक काम का बोझ,
नोच खसोट रोक कर जरा उनकी भी हो सोच।
Friday, December 3, 2010
मुन्नी और ’विक्की’ बाबू
ओंम प्रकाश नौटियाल
मुन्नी
अबला गरीब मुन्नी तो बदनाम हो गई,
भर दुपहरी में ही उसकी शाम हो गई,
बेच रहे देश को उन्हें सब कुछ माफ़ हैं,
रुतबा है धाक है,और दामन भी साफ़ है।
’विक्की’ बाबू
’विक्की’ बाबू ने की, घर की सब बातें लीक,
मित्रवत जो लगते ,था उनका चलन न ठीक,
मगरमच्छ के आँसू लेकर गम में हुए शरीक,
बाम लगाते रहे दर्द पर,बनकर जनाब शरीफ़,
दगाबाजों की पोल खोल ,गुम की सिट्टि पिट्टी,
बेनकाब कर दिए चेहरे, वाह रे बाबू ’विक्की’।
मुन्नी
अबला गरीब मुन्नी तो बदनाम हो गई,
भर दुपहरी में ही उसकी शाम हो गई,
बेच रहे देश को उन्हें सब कुछ माफ़ हैं,
रुतबा है धाक है,और दामन भी साफ़ है।
’विक्की’ बाबू
’विक्की’ बाबू ने की, घर की सब बातें लीक,
मित्रवत जो लगते ,था उनका चलन न ठीक,
मगरमच्छ के आँसू लेकर गम में हुए शरीक,
बाम लगाते रहे दर्द पर,बनकर जनाब शरीफ़,
दगाबाजों की पोल खोल ,गुम की सिट्टि पिट्टी,
बेनकाब कर दिए चेहरे, वाह रे बाबू ’विक्की’।
Sunday, November 21, 2010
दोहे कुछ भृष्ट कुछ शिष्ट
ओंम प्रकाश नौटियाल
इतने बरसों में हमने देखी हैं जाने कितनी जाँच,
किस नेता पर कब आई? जो अब आएगी आँच ।
कितने ताने मारो हमको कितने ही करो कटाक्ष,
साक्ष्य वही सच्चे जिनको हम नेता मानें साक्ष्य।
कारगिल की धरती पर लडते हुए शहीद जवान,
अपने भाई यहाँ हडप गये उनके जमीन मकान।
वक्त की दी हुई झुर्रियाँ,न पाट सका कोई क्रीम,
चिर युवा रहना महज,बस एक ड्रीम रहेगा ड्रीम।
धरती माँ तेरी खातिर हमने, कितने ही जंग लडे,
जख्म तुझे खुद देनें में माँ, पर हम थे बढे चढे।
कानून के भारत देश में, बडे ही लम्बे लम्बे हाथ,
पास खडे अपराधी पकडें,नहीं इनके बस की बात।
किसी धर्म या जाति का हो,है सबको इससे प्यार,
सचमुच धर्मनिरपेक्ष अगर कोई,तो है ’भृष्टाचार’।
अपाहिज तन प्रभु इच्छा, पर मन हो निर्मल नेक,
तन तंदरूस्त से क्या मिले,जो मन में खोट अनेक।
अति सुन्दर सदा लगती आई पर नारी और साली,
उनकी हो रूखी सूखी थाली,लगती है व्यंजन वाली ।
नैतिक और कानूनी दो पक्ष जुडे हर कार्य के साथ,
तुमको सही लगे वह करो,फिर फ़ैसला ईश्वर हाथ।
पुतले उनके जला रहे तुम कितने वर्षो से ऐ मित्र ,
असली रावण पर निरंकुश विचरें यत्र,तत्र, सर्वत्र ।
हम तो रहें सलामत, हमारे स्विस खाते में कैश रहे ,
’ओंम’फिर क्या क्लेश हमें,चाहे यहाँ रहें परदेश रहें।
(पूर्व प्रकाशित --सर्वाधिकार सुरक्षित)
इतने बरसों में हमने देखी हैं जाने कितनी जाँच,
किस नेता पर कब आई? जो अब आएगी आँच ।
कितने ताने मारो हमको कितने ही करो कटाक्ष,
साक्ष्य वही सच्चे जिनको हम नेता मानें साक्ष्य।
कारगिल की धरती पर लडते हुए शहीद जवान,
अपने भाई यहाँ हडप गये उनके जमीन मकान।
वक्त की दी हुई झुर्रियाँ,न पाट सका कोई क्रीम,
चिर युवा रहना महज,बस एक ड्रीम रहेगा ड्रीम।
धरती माँ तेरी खातिर हमने, कितने ही जंग लडे,
जख्म तुझे खुद देनें में माँ, पर हम थे बढे चढे।
कानून के भारत देश में, बडे ही लम्बे लम्बे हाथ,
पास खडे अपराधी पकडें,नहीं इनके बस की बात।
किसी धर्म या जाति का हो,है सबको इससे प्यार,
सचमुच धर्मनिरपेक्ष अगर कोई,तो है ’भृष्टाचार’।
अपाहिज तन प्रभु इच्छा, पर मन हो निर्मल नेक,
तन तंदरूस्त से क्या मिले,जो मन में खोट अनेक।
अति सुन्दर सदा लगती आई पर नारी और साली,
उनकी हो रूखी सूखी थाली,लगती है व्यंजन वाली ।
नैतिक और कानूनी दो पक्ष जुडे हर कार्य के साथ,
तुमको सही लगे वह करो,फिर फ़ैसला ईश्वर हाथ।
पुतले उनके जला रहे तुम कितने वर्षो से ऐ मित्र ,
असली रावण पर निरंकुश विचरें यत्र,तत्र, सर्वत्र ।
हम तो रहें सलामत, हमारे स्विस खाते में कैश रहे ,
’ओंम’फिर क्या क्लेश हमें,चाहे यहाँ रहें परदेश रहें।
(पूर्व प्रकाशित --सर्वाधिकार सुरक्षित)
Friday, September 24, 2010
दोहे खेल के
-ओंम प्रकाश नौटियाल
खेलों के आयोजक बाँटते रोज अनूठा ज्ञान,
माप दंड गर बदल दो गूलर भी पकवान।
सब चीजें भगवान की कुछ गन्दा न साफ़,
कीच वाली नज़र से साफ़ न लगता साफ।
खेल खेल में चली दुरन्तो दलाली वाली रेल,
पहले से खाए पिए तो भी माल रहे हैं पेल।
सोचें सारे गाँव देश के, कैसा यह खेल गाँव,
करोडों गया डकार पर नहीं वृक्षों की छाँव।
पुल टूटे ,सीलिंग गिरे, छोटी मोटी है बात,
छोटे अपशकुन ही बचाते बडी बडी वारदात।
मुद्दत में मौका मिला, मत जाना कहीं चूक,
माल-ए-मुफ़्त गटकने से खुलती,बढ़ती भूख।
’ओंम’ रोम रोम से बस यही दुआ है आज,
खेल सफल निर्विघ्न हों बचे देश की लाज।
खेलों के आयोजक बाँटते रोज अनूठा ज्ञान,
माप दंड गर बदल दो गूलर भी पकवान।
सब चीजें भगवान की कुछ गन्दा न साफ़,
कीच वाली नज़र से साफ़ न लगता साफ।
खेल खेल में चली दुरन्तो दलाली वाली रेल,
पहले से खाए पिए तो भी माल रहे हैं पेल।
सोचें सारे गाँव देश के, कैसा यह खेल गाँव,
करोडों गया डकार पर नहीं वृक्षों की छाँव।
पुल टूटे ,सीलिंग गिरे, छोटी मोटी है बात,
छोटे अपशकुन ही बचाते बडी बडी वारदात।
मुद्दत में मौका मिला, मत जाना कहीं चूक,
माल-ए-मुफ़्त गटकने से खुलती,बढ़ती भूख।
’ओंम’ रोम रोम से बस यही दुआ है आज,
खेल सफल निर्विघ्न हों बचे देश की लाज।
Thursday, August 5, 2010
खेल खेल में
-ओंम प्रकाश नौटियाल
तेरी भी है मेरी भी, ये ’कामन वैल्थ" है यारों,
मिल बाँट के खा लें, तो इसमें शर्म क्या यारों।
ऐसा घर फूंक तमाशा,रोज तो होता नहीं यारों,
रुपया रोज तो पानी सा यूं बहता नहीं यारों।
’खेल खतम पैसा हजम’, सुनते आए हो यारों,
’पैसा गटक कर के खेलो तो क्या हर्ज़ है यारों।
ये कुम्भ यहाँ इस बार तो मुश्किल से आया है,
डुबकी नही लगाई गर, तो पछताओगे यारों।
खेल खेल में खाओगे,तो कहाँ कुछ दोष है यारों,
गर लूट भी लो मजे मजे में पूरा कोष ए यारों।
’ऒंम’ कल माडी अगर सेहत तुम्हारी हो गई,
डाक्टर कहेगा ठीक से तुमने खाया नहीं यारों ।
तेरी भी है मेरी भी, ये ’कामन वैल्थ" है यारों,
मिल बाँट के खा लें, तो इसमें शर्म क्या यारों।
ऐसा घर फूंक तमाशा,रोज तो होता नहीं यारों,
रुपया रोज तो पानी सा यूं बहता नहीं यारों।
’खेल खतम पैसा हजम’, सुनते आए हो यारों,
’पैसा गटक कर के खेलो तो क्या हर्ज़ है यारों।
ये कुम्भ यहाँ इस बार तो मुश्किल से आया है,
डुबकी नही लगाई गर, तो पछताओगे यारों।
खेल खेल में खाओगे,तो कहाँ कुछ दोष है यारों,
गर लूट भी लो मजे मजे में पूरा कोष ए यारों।
’ऒंम’ कल माडी अगर सेहत तुम्हारी हो गई,
डाक्टर कहेगा ठीक से तुमने खाया नहीं यारों ।
Sunday, July 25, 2010
यादें बरसात की
---ओंम प्रकाश नौटियाल
बाँधों का छलकना ,
नदियों का उफान,
बहते मवेशी ,
गिरते ढहते मकान ।
भीगती लकडियाँ ,उपले कण्डे,
सडकों में नाले, बडे बडे गद्ढे ।
टपकती छतें ,भीगती. लटें,
मेढ़क की टर्र टर्र , किवाडों की चरमर,
कडकती बिजली , गरजते बादल,
हरे हरे खेत, भरे भरे ताल ।
मच्छर और मक्खी ,
धान और मक्की ।
सावन के झूले , तीज का त्योहार,
शिव पूजा के श्रावणी सोमवार !
व्यवस्था पस्त,
जनता त्रस्त ,
पंद्रह अगस्त !
अमरूद ,भुट्टे, जामुन ,आम ,
इन्द्र धनुषी शाम !!
शह और मात !
वाह री बरसात !!!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बाँधों का छलकना ,
नदियों का उफान,
बहते मवेशी ,
गिरते ढहते मकान ।
भीगती लकडियाँ ,उपले कण्डे,
सडकों में नाले, बडे बडे गद्ढे ।
टपकती छतें ,भीगती. लटें,
मेढ़क की टर्र टर्र , किवाडों की चरमर,
कडकती बिजली , गरजते बादल,
हरे हरे खेत, भरे भरे ताल ।
मच्छर और मक्खी ,
धान और मक्की ।
सावन के झूले , तीज का त्योहार,
शिव पूजा के श्रावणी सोमवार !
व्यवस्था पस्त,
जनता त्रस्त ,
पंद्रह अगस्त !
अमरूद ,भुट्टे, जामुन ,आम ,
इन्द्र धनुषी शाम !!
शह और मात !
वाह री बरसात !!!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Friday, July 23, 2010
भगवान का लाख लाख शुक्र है ३६ दिन बाद उसे होश आ गया !
ओंम प्रकाश नौटियाल
मित्रॊं ! अब वह कौमा से बाहर है ,फ़िलहाल चिन्ता की कोई बात नहीं है ।
३६ दिन तक लगातार कौमा में रहने के बाद कल साँय ५ बजे उसने बात की ।
घर में इतने लम्बे अर्से के बाद फिर से खुशियाँ लौट आई ।चार वर्ष की अल्पायु में उसे अनेकों बार बेहोशी के लम्बे दौरे पड.चुके हैं , विशेषज्ञों की हर बार बस एक ही राय होती है।मौसमी बिमारी है ठीक हो जाएगी,आजकल तो बहुत से बिमार हैं । सचमुच बिमारी मौसमी है ,तभी तो हर मौसम में हो जाती है ।
जिस अस्पताल से उसका जन्म हुआ था वहाँ के लगभग सभी डाक्टरॊं से मैने रोज ही उसकी दशा के बारे में बात की , घर पर देखनें तो कोई नही आया , हाँ , एक दो दिन में ठीक हो जाने की जबानी तसल्ली अवश्य मिलती रही । मुझे उनकी संवेदनहीनता पर कई बार क्रोध भी आता था, पर उनका पाला तो रोज ऐसे कितने ही दुखी जनों से पडता था । दास्त्तां-ए-गम सुनने का उन्हे बहुत अभ्यास था ।
पर मेरी परेशानी हर गुजरते दिन के साथ बढती जा रही थी ।तीस दिन गुजरने के बाद तो चिन्ता घोर निराशा में बदलने लगी । यह नन्हा क्या कभी फिर से होश में आ पाएगा ? सभी लोगों की आवाज में बोलने में सक्षम, क्या यह फिर चहचहाएगा, किलकारियाँ मारेगा ? मित्रॊं और रिश्तेदारों के साँत्वना स्वर भी अब चुभने लगे थे।सबसे ज्यादा तकलीफ तो तब होती थी जब गुजरात से बाहर रहने वाले मित्र व रिश्तेदार मोबाइल पर फोन कर कुछ इस तरह की बातें कह्ते थे , " अरे क्या हुआ , ऐसी बिमारी तो हमारे यहाँ भी होती रहती है, एक दो दिन में इलाज़ हो जाता है । गुजरात तो इतना विकसित प्रदेश है ,वहाँ सब सुविधाएं उपलब्ध हैं ।फिर वहाँ इस साधारण बिमारी को इतना गंभीर रुप क्यॊं लेने दिया गया ? तीन चार महीने पहले भी वह इसी तरह लम्बी बेहोशी में चला गया था । "
इन बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था । बस दर्द और बढ़ जाता था । सबकुछ सुनना पड रहा था ।
तीन दिन पहले ही मैंने अंतिम प्रयास के रुप में अस्पताल के प्रमुख ,जो अहमदाबाद के बडे अस्पताल में बैठते हैं, उन्हें ई-मेल द्वारा विस्तार से बिमारी के इतिहास व सभी लक्षणों से अवगत कराया । अब उन्होने वडोदरा में अपने मातहत डाक्टरों को क्या सलाह दी यह तो मैं नहीं जानता , पर कल साँय पाँच बजे उसके अचानक बोल उठने से घर भर आश्चर्य मिश्रित खुशी में झूम उठा ।
३६ दिन बाद आखिरकार मेरे बी एस एन एल के लैन्ड लाइन फोन २६३५२६६ को नई जिन्दगी मिली । सब परम पिता परमात्मा की कृपा है , व आप जैसे मित्रों की शुभकामनाओं का फल है। दुआ किजिए कि मेरे चहेते को फिर कभी यह बिमारी ना लगे और वह हमेशा खट्टी मीठी बातों से घर में रौनक बनाए रक्खे ।
आपका अपना
ओंम प्रकाश नौटियाल
९४२७३४५८१०
०२६५-२६३५२६६
मित्रॊं ! अब वह कौमा से बाहर है ,फ़िलहाल चिन्ता की कोई बात नहीं है ।
३६ दिन तक लगातार कौमा में रहने के बाद कल साँय ५ बजे उसने बात की ।
घर में इतने लम्बे अर्से के बाद फिर से खुशियाँ लौट आई ।चार वर्ष की अल्पायु में उसे अनेकों बार बेहोशी के लम्बे दौरे पड.चुके हैं , विशेषज्ञों की हर बार बस एक ही राय होती है।मौसमी बिमारी है ठीक हो जाएगी,आजकल तो बहुत से बिमार हैं । सचमुच बिमारी मौसमी है ,तभी तो हर मौसम में हो जाती है ।
जिस अस्पताल से उसका जन्म हुआ था वहाँ के लगभग सभी डाक्टरॊं से मैने रोज ही उसकी दशा के बारे में बात की , घर पर देखनें तो कोई नही आया , हाँ , एक दो दिन में ठीक हो जाने की जबानी तसल्ली अवश्य मिलती रही । मुझे उनकी संवेदनहीनता पर कई बार क्रोध भी आता था, पर उनका पाला तो रोज ऐसे कितने ही दुखी जनों से पडता था । दास्त्तां-ए-गम सुनने का उन्हे बहुत अभ्यास था ।
पर मेरी परेशानी हर गुजरते दिन के साथ बढती जा रही थी ।तीस दिन गुजरने के बाद तो चिन्ता घोर निराशा में बदलने लगी । यह नन्हा क्या कभी फिर से होश में आ पाएगा ? सभी लोगों की आवाज में बोलने में सक्षम, क्या यह फिर चहचहाएगा, किलकारियाँ मारेगा ? मित्रॊं और रिश्तेदारों के साँत्वना स्वर भी अब चुभने लगे थे।सबसे ज्यादा तकलीफ तो तब होती थी जब गुजरात से बाहर रहने वाले मित्र व रिश्तेदार मोबाइल पर फोन कर कुछ इस तरह की बातें कह्ते थे , " अरे क्या हुआ , ऐसी बिमारी तो हमारे यहाँ भी होती रहती है, एक दो दिन में इलाज़ हो जाता है । गुजरात तो इतना विकसित प्रदेश है ,वहाँ सब सुविधाएं उपलब्ध हैं ।फिर वहाँ इस साधारण बिमारी को इतना गंभीर रुप क्यॊं लेने दिया गया ? तीन चार महीने पहले भी वह इसी तरह लम्बी बेहोशी में चला गया था । "
इन बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था । बस दर्द और बढ़ जाता था । सबकुछ सुनना पड रहा था ।
तीन दिन पहले ही मैंने अंतिम प्रयास के रुप में अस्पताल के प्रमुख ,जो अहमदाबाद के बडे अस्पताल में बैठते हैं, उन्हें ई-मेल द्वारा विस्तार से बिमारी के इतिहास व सभी लक्षणों से अवगत कराया । अब उन्होने वडोदरा में अपने मातहत डाक्टरों को क्या सलाह दी यह तो मैं नहीं जानता , पर कल साँय पाँच बजे उसके अचानक बोल उठने से घर भर आश्चर्य मिश्रित खुशी में झूम उठा ।
३६ दिन बाद आखिरकार मेरे बी एस एन एल के लैन्ड लाइन फोन २६३५२६६ को नई जिन्दगी मिली । सब परम पिता परमात्मा की कृपा है , व आप जैसे मित्रों की शुभकामनाओं का फल है। दुआ किजिए कि मेरे चहेते को फिर कभी यह बिमारी ना लगे और वह हमेशा खट्टी मीठी बातों से घर में रौनक बनाए रक्खे ।
आपका अपना
ओंम प्रकाश नौटियाल
९४२७३४५८१०
०२६५-२६३५२६६
Wednesday, June 30, 2010
काम सारे बैठे ठाले हो गये
-ओंम प्रकाश नौटियाल
-१-
अब कहाँ रहा है भय्या वर्ग भेद,
नेता ,गुन्डे हम निवाले हो गये ।
-२-
सुख राम जी उनके नसीब में कहाँ,
घर में छुपाए पैसे काले हो गये ।
-३-
विकास की प्रखर गति तो देखिए,
नदियों के बदले रूप नाले हो गये ।
-४-
पेस मेकर धडका रहा उनका दिल
सुनते हैं वो पैसे वाले हो गये ।
-५-
अपनी गंदगी को नहीं देखा कभी ,
जब गये बस्ती , मैकाले हो गये ।
-६-
आस्था के प्रतीक चिन्ह आज कल ,
महज छुरे , डंडे और भाल्रे हो गये ।
-७-
जब से समाज सेवा की ठान ली,
उनके तो रंग ढंग निराले हो गये ।
-८-
मंत्री जितने दिन रहे अंकल सखी,
बस काम सारे, बैठे ठाले हो गये ।
-९-
’ओंम’कहते हो तरक्की नहीं हुई,
बिन बात ही इतने घोटाले हो गये ?
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
-१-
अब कहाँ रहा है भय्या वर्ग भेद,
नेता ,गुन्डे हम निवाले हो गये ।
-२-
सुख राम जी उनके नसीब में कहाँ,
घर में छुपाए पैसे काले हो गये ।
-३-
विकास की प्रखर गति तो देखिए,
नदियों के बदले रूप नाले हो गये ।
-४-
पेस मेकर धडका रहा उनका दिल
सुनते हैं वो पैसे वाले हो गये ।
-५-
अपनी गंदगी को नहीं देखा कभी ,
जब गये बस्ती , मैकाले हो गये ।
-६-
आस्था के प्रतीक चिन्ह आज कल ,
महज छुरे , डंडे और भाल्रे हो गये ।
-७-
जब से समाज सेवा की ठान ली,
उनके तो रंग ढंग निराले हो गये ।
-८-
मंत्री जितने दिन रहे अंकल सखी,
बस काम सारे, बैठे ठाले हो गये ।
-९-
’ओंम’कहते हो तरक्की नहीं हुई,
बिन बात ही इतने घोटाले हो गये ?
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Tuesday, June 29, 2010
From my Facebook Wall
(From March 2010 to June 2010 )
Om Prakash Nautiyal: Don't blame the doctor if you are not cured. He is only doing his 'Practice'
"When all else is lost,the future still remains"
"Swimming is really good for your figure. Watch the whales"
"Everybody thinks of changing humanity and nobody thinks of changing himself"
"ये किसने कह दिया गुमराह कर देता है मयखाना ,
खुदा के फ़ज़्ल से इसके लिए मस्जिद है, मंदिर है । "
-अर्श मल्सियानी
First law of Socio-Genetics states:
"Celibacy is not hereditary"
Om Prakash Nautiyal: I just can not understand why they are asking Mr. Sharad Pawar's to resign on moral grounds when they themselves allege that during the entire IPL bid process he was on cricket ground.
" Road to success is always under construction. "
"तुमनें किया न याद कभी भूल कर हमें,
हमनें तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया ।"
-बहादुर शाह ज़फर
Om Prakash Nautiyal :Today is World Environment Day . Man’s actions have largely been against nature . He seems to be concerned with environmental damage as threat now is to his very own survival and not for any real concern for nature.
"He reminds me of the man who murdered both his parents and then when scentence was about to be ...pronounced , pleaded for mercy that he was orphan" -Abraham Lincoln
"अय आसमान, तेरे खुदा का नहीं है खौफ़ ,
डरते हैं अय जमीन , तेरे आदमी से हम ।"----जोश
"When it is question of money , everybody is of the same religion."
"Three may keep a secret if two of them are dead"
"It is easy to be brave from a safe distance"
"The beautiful things in life are not things"
"I want to change the world, the problem is they are not giving me the source code."
"An optimist will tell you the glass is half-full; the pessimist, half-empty; and the engineer will tell you the glass is twice the size it needs to be"
"If you think nobody cares if you are alive, try missing a couple of car loan Payments" Earl Wilson
Om Prakash Nautiyal: It is unfortunate that the success of strike or Bund depends not on the genuineness of the cause or demands but the amount of nuisance it creates and its ability to cripple National economy and hold the Nation on ransom. Else, nobody may even talk to you as is happening with poor Newspaper vendors of Vadodara.
Om Prakash Nautiyal: In a gruesome tragedy on Saturday morning an air India flight from Dubai crashed while landing at Manglore airport killing 158 passengers . May their souls rest in peace.May God give strength to their family members to bear this irreparable loss.
"I can resist everything except temptation." --Oscar Wilde.
Om Prakash Nautiyal: Others have only been talking about it but Vadodara has truly gone 100% paperless since 19th morning . Newspapers are not being delivered in Vadodara due to vendor's strike
" Be careful about reading health books.You may die of a misprint" -Mark Twain
"Adam and Eve had an ideal marriage. He didn't have to hear about all the men she could have married, and she didn't have to hear about the way his mother cooked."
---Kimberly Broyles
Om Prakash Nautiyal :Congratulations to Visvanathan Anand for winning the World Chess Championship title against Topalov at Sofia on 11.05.2010 . Anand has been continuously in the top five in the World ranking list for the past two decades .This is his fourth World title in eleven years in a highly competitive sport played by almost over 125 Nations with average ELO rating above 2000.
Om Prakash Nautiyal: 9th May 2010
Happy mother's day to all with living and immortal mothers.
"There is only one pretty child in the world, and every mother has it. " --Chinese Proverb
Om Prakash Nautiyal: I am very impressed with the devotion and determination of Heads of various Sports Federations in India and their spirit of – “ never say quit”. Government must allow them to serve Indian sports till India wins an Olympic gold medal in the respective games they head or up to a life term, whichever is later of course !
Om Prakash Nautiyal: It is said that Cricket is the only game where you gain weight while playing. In IPL it was not the players alone, but also Members of IPL Organizing body and Franchise owners etc. , who gained so much (money) weight that now they find it very difficult to move out of IPL.
Om Prakash Nautiyal: To all my friend who are going through difficult times I can only say not to worry any more as good days are ahead .See tomorrow is Sature day followed by Sun day.So cheer up please
Om Prakash Nautiyal: Somebody has pointed to this amazing fact that the amount of news that happens in the world every day exactly fits the news paper.So if IPL is churning out more news these days, the other important events have themseleves reduced their occurence in a nice gentlemenly gesture to make space for it.
Om Prakash Nautiyal: The exit of our cute ,chivalrous minister Shashi Tharoor who kept us entertained with his childlike pranks and innocent acts which included creating controversies through his twitter slate , playing cricket off field and promptly saying sorry when reprimanded , has left our PM with a challenging task of finding a suitable substitute. Any suggestions ?
Om Prakash Nautiyal: To day is 15th April, the birth day of Himachal Pradesh.I congratulate all my Himachali friends and relatives,including my wife, on this auspicious occassion.Incidentally I happen to be in Shimla these days. This beautiful Hill station,however, like many of our politicians and models, is loosing its cool .Shimla's temperature on this year’s Himachal day is 4-5 degrees more than the average temperature during this period.
Om Prakash Nautiyal: "The nice thing about meditation is that it makes doing nothing quite respectable"-Paul Dean: If you are doing anything inconsequential right now, Please read my note on doing nothing .You may get inspired.
Om Prakash Nautiyal: Women reservation bill could get through in Upper House when seven unruly M Ps , stalling the proceedings of the house, were forcibly evicted by Marshals. It leads to the conclusion that Marshals' Law make the democracy function .
Om Prakash Nautiyal: I reproduce below a postulate which should worry all of us on this planet and prompt us to take adequate and effective global measures for quickly achieving zero percent population growth rate for ensuring that some amongst the future generations also understand quantum mechanics and theory of relativity: " The total sum of intelligence on this planet is constant and the population is increasing.
Om Prakash Nautiyal: 9th March is International Panic Day.This day makes a lot of sense to me. You need not worry daily for petty issues. Keep accumulating all your worries for this day and be cheerful for the rest of the year. Heap of accumulated worries may put you in panic on this day but this is how this day has to be celebrated !
Om Prakash Nautiyal: International women day is being celebrated in India today .India is on the verge of creating history by empowering women through acceptance of Women Reservation Bill today.
Om Prakash Nautiyal: Electronic media should be thankful to Ichhadharis,Nityanands,
Anupkumars and other fake Swamis of this world to provide them enough food to last for weeks together.
Om Prakash Nautiyal: Please ponder over the following quotation from William L. Phelps quoted in Autography in Letters “Life would be infinitely happier if we could only be bor at the age of eighty and gradually approach eighteen”
Om Prakash Nautiyal: In these days of ever increasing inflation the ,the following quotation may give you enough reason to live cheerfully: “ Living on earth might be expensive but it includes an annual free trip around the sun .”
Om Prakash Nautiyal: Imperfections sometimes do work to our advantage.A famous actress Ms Gabor was once asked , “ Do you accept gift from perfect strangers?” “No, Never” she replied “ I do not accept gifts from perfect strangers . But then who is perfect in this world ?”
Om Prakash Nautiyal: Don't blame the doctor if you are not cured. He is only doing his 'Practice'
"When all else is lost,the future still remains"
"Swimming is really good for your figure. Watch the whales"
"Everybody thinks of changing humanity and nobody thinks of changing himself"
"ये किसने कह दिया गुमराह कर देता है मयखाना ,
खुदा के फ़ज़्ल से इसके लिए मस्जिद है, मंदिर है । "
-अर्श मल्सियानी
First law of Socio-Genetics states:
"Celibacy is not hereditary"
Om Prakash Nautiyal: I just can not understand why they are asking Mr. Sharad Pawar's to resign on moral grounds when they themselves allege that during the entire IPL bid process he was on cricket ground.
" Road to success is always under construction. "
"तुमनें किया न याद कभी भूल कर हमें,
हमनें तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया ।"
-बहादुर शाह ज़फर
Om Prakash Nautiyal :Today is World Environment Day . Man’s actions have largely been against nature . He seems to be concerned with environmental damage as threat now is to his very own survival and not for any real concern for nature.
"He reminds me of the man who murdered both his parents and then when scentence was about to be ...pronounced , pleaded for mercy that he was orphan" -Abraham Lincoln
"अय आसमान, तेरे खुदा का नहीं है खौफ़ ,
डरते हैं अय जमीन , तेरे आदमी से हम ।"----जोश
"When it is question of money , everybody is of the same religion."
"Three may keep a secret if two of them are dead"
"It is easy to be brave from a safe distance"
"The beautiful things in life are not things"
"I want to change the world, the problem is they are not giving me the source code."
"An optimist will tell you the glass is half-full; the pessimist, half-empty; and the engineer will tell you the glass is twice the size it needs to be"
"If you think nobody cares if you are alive, try missing a couple of car loan Payments" Earl Wilson
Om Prakash Nautiyal: It is unfortunate that the success of strike or Bund depends not on the genuineness of the cause or demands but the amount of nuisance it creates and its ability to cripple National economy and hold the Nation on ransom. Else, nobody may even talk to you as is happening with poor Newspaper vendors of Vadodara.
Om Prakash Nautiyal: In a gruesome tragedy on Saturday morning an air India flight from Dubai crashed while landing at Manglore airport killing 158 passengers . May their souls rest in peace.May God give strength to their family members to bear this irreparable loss.
"I can resist everything except temptation." --Oscar Wilde.
Om Prakash Nautiyal: Others have only been talking about it but Vadodara has truly gone 100% paperless since 19th morning . Newspapers are not being delivered in Vadodara due to vendor's strike
" Be careful about reading health books.You may die of a misprint" -Mark Twain
"Adam and Eve had an ideal marriage. He didn't have to hear about all the men she could have married, and she didn't have to hear about the way his mother cooked."
---Kimberly Broyles
Om Prakash Nautiyal :Congratulations to Visvanathan Anand for winning the World Chess Championship title against Topalov at Sofia on 11.05.2010 . Anand has been continuously in the top five in the World ranking list for the past two decades .This is his fourth World title in eleven years in a highly competitive sport played by almost over 125 Nations with average ELO rating above 2000.
Om Prakash Nautiyal: 9th May 2010
Happy mother's day to all with living and immortal mothers.
"There is only one pretty child in the world, and every mother has it. " --Chinese Proverb
Om Prakash Nautiyal: I am very impressed with the devotion and determination of Heads of various Sports Federations in India and their spirit of – “ never say quit”. Government must allow them to serve Indian sports till India wins an Olympic gold medal in the respective games they head or up to a life term, whichever is later of course !
Om Prakash Nautiyal: It is said that Cricket is the only game where you gain weight while playing. In IPL it was not the players alone, but also Members of IPL Organizing body and Franchise owners etc. , who gained so much (money) weight that now they find it very difficult to move out of IPL.
Om Prakash Nautiyal: To all my friend who are going through difficult times I can only say not to worry any more as good days are ahead .See tomorrow is Sature day followed by Sun day.So cheer up please
Om Prakash Nautiyal: Somebody has pointed to this amazing fact that the amount of news that happens in the world every day exactly fits the news paper.So if IPL is churning out more news these days, the other important events have themseleves reduced their occurence in a nice gentlemenly gesture to make space for it.
Om Prakash Nautiyal: The exit of our cute ,chivalrous minister Shashi Tharoor who kept us entertained with his childlike pranks and innocent acts which included creating controversies through his twitter slate , playing cricket off field and promptly saying sorry when reprimanded , has left our PM with a challenging task of finding a suitable substitute. Any suggestions ?
Om Prakash Nautiyal: To day is 15th April, the birth day of Himachal Pradesh.I congratulate all my Himachali friends and relatives,including my wife, on this auspicious occassion.Incidentally I happen to be in Shimla these days. This beautiful Hill station,however, like many of our politicians and models, is loosing its cool .Shimla's temperature on this year’s Himachal day is 4-5 degrees more than the average temperature during this period.
Om Prakash Nautiyal: "The nice thing about meditation is that it makes doing nothing quite respectable"-Paul Dean: If you are doing anything inconsequential right now, Please read my note on doing nothing .You may get inspired.
Om Prakash Nautiyal: Women reservation bill could get through in Upper House when seven unruly M Ps , stalling the proceedings of the house, were forcibly evicted by Marshals. It leads to the conclusion that Marshals' Law make the democracy function .
Om Prakash Nautiyal: I reproduce below a postulate which should worry all of us on this planet and prompt us to take adequate and effective global measures for quickly achieving zero percent population growth rate for ensuring that some amongst the future generations also understand quantum mechanics and theory of relativity: " The total sum of intelligence on this planet is constant and the population is increasing.
Om Prakash Nautiyal: 9th March is International Panic Day.This day makes a lot of sense to me. You need not worry daily for petty issues. Keep accumulating all your worries for this day and be cheerful for the rest of the year. Heap of accumulated worries may put you in panic on this day but this is how this day has to be celebrated !
Om Prakash Nautiyal: International women day is being celebrated in India today .India is on the verge of creating history by empowering women through acceptance of Women Reservation Bill today.
Om Prakash Nautiyal: Electronic media should be thankful to Ichhadharis,Nityanands,
Anupkumars and other fake Swamis of this world to provide them enough food to last for weeks together.
Om Prakash Nautiyal: Please ponder over the following quotation from William L. Phelps quoted in Autography in Letters “Life would be infinitely happier if we could only be bor at the age of eighty and gradually approach eighteen”
Om Prakash Nautiyal: In these days of ever increasing inflation the ,the following quotation may give you enough reason to live cheerfully: “ Living on earth might be expensive but it includes an annual free trip around the sun .”
Om Prakash Nautiyal: Imperfections sometimes do work to our advantage.A famous actress Ms Gabor was once asked , “ Do you accept gift from perfect strangers?” “No, Never” she replied “ I do not accept gifts from perfect strangers . But then who is perfect in this world ?”
Thursday, May 6, 2010
देवदार का वृक्ष -ओंम प्रकाश नौटियाल
(शिमला 07.05.2010)
शिमला की एक ऊंची पहाडी पर,
मैं देवदार का वृक्ष हूं ,
यहाँ मेरा वर्षों पुराना वास है ।
पहले मेरा एक भरा पूरा
परिवार होता था ,
मैं बन्धु बान्धवों से घिरा रहता था ,
आज मैं अकेला यहाँ उदास खडा हूं ,
सच पूछो तो मृत्यु शय्या पर पडा हूं ।
याद आते हैं अतीत के वो दिन,
जब दूर तक मेरे अपनों का बसेरा था ,
रंग बिरंगे कितने ही पक्षियों का डेरा था ,
अनेक जीवधारियों ने हमें घेरा था ,
सब हमारे मीत थे ,
गूंजते हर ओर उनके गीत थे ।
फ़िर कहीं बाहर से ,
एक मानव यहाँ आय़ा,
हमारे बीच उसने अपना घर बनाया,
मेरे कुछ मित्रॊं को गिरा कर उसे सजाया।
मेरे अपनों की कानन वाडी मध्य,
उसका आवास बना,
समय के साथ अपने साथियों के संग,
वह इस क्षेत्र में फ़ैलता रहा,
हमारे निर्मम विनाश को,
अपना विकास समझ खेलता रहा ।
पहले हमारे जंगल मध्य,
एक आध मानवी आवास था ,
अब चारों ओर जंगल है कन्क्रीट का ,
और उसके बीच, मैं तनहा,
तथाकथित विकास का गवाह,
अपने दिन गिन रहा हूं ।
मुझे शिकायत है उन भीष्म पितामहों से,
जो हर युग में द्रौपदी के चीरहरण के,
मूक दर्शक मात्र रहते हैं ।
और अपने अंतिम समय में ,
शर शय्या पर लेटे लेटॆ पश्चाताप कर,
अपने कर्तव्य की इति श्री समझ लेते हैं ।
शिमला की एक ऊंची पहाडी पर,
मैं देवदार का वृक्ष हूं ,
यहाँ मेरा वर्षों पुराना वास है ।
पहले मेरा एक भरा पूरा
परिवार होता था ,
मैं बन्धु बान्धवों से घिरा रहता था ,
आज मैं अकेला यहाँ उदास खडा हूं ,
सच पूछो तो मृत्यु शय्या पर पडा हूं ।
याद आते हैं अतीत के वो दिन,
जब दूर तक मेरे अपनों का बसेरा था ,
रंग बिरंगे कितने ही पक्षियों का डेरा था ,
अनेक जीवधारियों ने हमें घेरा था ,
सब हमारे मीत थे ,
गूंजते हर ओर उनके गीत थे ।
फ़िर कहीं बाहर से ,
एक मानव यहाँ आय़ा,
हमारे बीच उसने अपना घर बनाया,
मेरे कुछ मित्रॊं को गिरा कर उसे सजाया।
मेरे अपनों की कानन वाडी मध्य,
उसका आवास बना,
समय के साथ अपने साथियों के संग,
वह इस क्षेत्र में फ़ैलता रहा,
हमारे निर्मम विनाश को,
अपना विकास समझ खेलता रहा ।
पहले हमारे जंगल मध्य,
एक आध मानवी आवास था ,
अब चारों ओर जंगल है कन्क्रीट का ,
और उसके बीच, मैं तनहा,
तथाकथित विकास का गवाह,
अपने दिन गिन रहा हूं ।
मुझे शिकायत है उन भीष्म पितामहों से,
जो हर युग में द्रौपदी के चीरहरण के,
मूक दर्शक मात्र रहते हैं ।
और अपने अंतिम समय में ,
शर शय्या पर लेटे लेटॆ पश्चाताप कर,
अपने कर्तव्य की इति श्री समझ लेते हैं ।
Tuesday, May 4, 2010
मकान या घर
---ओंम प्रकाश नौटियाल
मकान बनाने में कष्ट कितने लोग सहते हैं,
कुछ कहने वाले नहीं उसे पर घर कहते हैं ,
देते हैं तर्क कि घर तो घरवाली से होता है ,
ना कि दिवारों ,बावर्ची या माली से होता है,
तो भाई! कुंवारेपन पर जो "अटल"रहते हैं,
क्या वो उम्र भर नहीं अपने घर में रहते है?
’बेघर’ थे क्या भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री कलाम?
ऐसा भी क्या सोच कोई सकता है ,हे राम!
मकान कहो , घर कहो, दोनों के एक अर्थ हैं,
इस विषय पर अब अधिक चर्चा ही व्यर्थ है ,
मकान के स्वामी, कुंवारे मित्रों से गुजारिश है,
यह फ़र्क तुम्हे दामाद बनाने की साजिश है ।
मकान बनाने में कष्ट कितने लोग सहते हैं,
कुछ कहने वाले नहीं उसे पर घर कहते हैं ,
देते हैं तर्क कि घर तो घरवाली से होता है ,
ना कि दिवारों ,बावर्ची या माली से होता है,
तो भाई! कुंवारेपन पर जो "अटल"रहते हैं,
क्या वो उम्र भर नहीं अपने घर में रहते है?
’बेघर’ थे क्या भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री कलाम?
ऐसा भी क्या सोच कोई सकता है ,हे राम!
मकान कहो , घर कहो, दोनों के एक अर्थ हैं,
इस विषय पर अब अधिक चर्चा ही व्यर्थ है ,
मकान के स्वामी, कुंवारे मित्रों से गुजारिश है,
यह फ़र्क तुम्हे दामाद बनाने की साजिश है ।
Friday, April 30, 2010
" चले आओ चक्रधर चमन में "
’कपडा लत्ता क्या है इसकी महत्ता ’
२८ अप्रैल को दूर दर्शन पर साँय ७.१५ बजे श्री अशोक चक्रधर द्वारा संचालित श्रंखला बद्ध कार्यक्रम " चले आओ चक्रधर चमन में " प्रसारित किया गया । इस बार का विषय था -’कपडा लत्ता क्या है इसकी महत्ता ’ । कार्यक्रम में कपडे के इतिहास व पोशाकों में समय के साथ आने वाले बदलाव सम्बंधी जानकारी को चक्रधर जी ने बेहद रोचक शैली में पेश किया ।कविवर डा. विष्णु सक्सेना के साथ उनकी युगल बन्दी अत्यंत प्रभावशाली थी । डा. विष्णु सक्सेना ने अपनी मधुर आवाज में कुछ प्रासंगिक गीत भी पेश किए । ऐसे कार्यक्रम पेश करने के लिए दूरदर्शन को बधाई ।अन्य चैनल्स तो अति व्यवसायिकता की शिकार हैं इसलिए फ़िल्म व क्रिकेट के दायरे से बाहर आने में जोखिम समझती हैं , लिहाजा हमारी नई पौध को स्वस्थ मनोरंजन की तरफ़ ले जाने में उनका योगदान नगण्य है।
इस कार्यक्रम में चक्रधर जी ने इस विषय पर टिप्प्णी स्वरुप भेजी गई कुछ रचनाएं भेजने वालों के चित्र के साथ अपनी आवाज में पढकर सुनाई । मेरे द्वारा रचित चार पंक्तिया भी पढ कर सुनाई गई , जो इस प्रकार हैं ।
कुछ फ़ैशन के मारे नंगे, औरों की मजबूरी है,
कपडा लत्ता पर भय्याजी, सबके लिए जरूरी है ।
नेता लोग चुनाव जीत, जब पाना चाहें सत्ता,
वोटिंग की पूर्व संध्या पर बंटवाते कपडा लत्ता ।
----ओंम प्रकाश नौटियाल
२८ अप्रैल को दूर दर्शन पर साँय ७.१५ बजे श्री अशोक चक्रधर द्वारा संचालित श्रंखला बद्ध कार्यक्रम " चले आओ चक्रधर चमन में " प्रसारित किया गया । इस बार का विषय था -’कपडा लत्ता क्या है इसकी महत्ता ’ । कार्यक्रम में कपडे के इतिहास व पोशाकों में समय के साथ आने वाले बदलाव सम्बंधी जानकारी को चक्रधर जी ने बेहद रोचक शैली में पेश किया ।कविवर डा. विष्णु सक्सेना के साथ उनकी युगल बन्दी अत्यंत प्रभावशाली थी । डा. विष्णु सक्सेना ने अपनी मधुर आवाज में कुछ प्रासंगिक गीत भी पेश किए । ऐसे कार्यक्रम पेश करने के लिए दूरदर्शन को बधाई ।अन्य चैनल्स तो अति व्यवसायिकता की शिकार हैं इसलिए फ़िल्म व क्रिकेट के दायरे से बाहर आने में जोखिम समझती हैं , लिहाजा हमारी नई पौध को स्वस्थ मनोरंजन की तरफ़ ले जाने में उनका योगदान नगण्य है।
इस कार्यक्रम में चक्रधर जी ने इस विषय पर टिप्प्णी स्वरुप भेजी गई कुछ रचनाएं भेजने वालों के चित्र के साथ अपनी आवाज में पढकर सुनाई । मेरे द्वारा रचित चार पंक्तिया भी पढ कर सुनाई गई , जो इस प्रकार हैं ।
कुछ फ़ैशन के मारे नंगे, औरों की मजबूरी है,
कपडा लत्ता पर भय्याजी, सबके लिए जरूरी है ।
नेता लोग चुनाव जीत, जब पाना चाहें सत्ता,
वोटिंग की पूर्व संध्या पर बंटवाते कपडा लत्ता ।
----ओंम प्रकाश नौटियाल
Thursday, April 29, 2010
OM's Law on Earnings of a Cricket Match
(In lighter vein) --O. P. Nautiyal
The amount of money earned in a Cricket match is inversely proportional to the total numbers of overs in the match.
The earnings have been found to be sky rocketing as we have reached the shorter 20-20 version of the game from five day tests en-route 50 overs ODIs . The earnings may further multiply many times if we can reduce the match overs to only one super over , sand witched between dances of cheer girls , ramp walks by Cricketers , film stars ,models and other entertaining stuff for which the cricket without the bat and ball is known of.
It can easily be derived with the help of modern theory of economics, and higher mathematics that revenue earned in the match will be infinite if the overs bowled are zero but then many of our cricket experts may say , “Oh! That is not Cricket.” It is ,therefore, imperative that we pretend to keep our love for cricket at the forefront and organize cricket matches with some flavour of cricket in it and not try to reduce the Cricket match overs any further from the level of one super over per match .Any further change in match format may also adversely affect fast growing popularity of Cricket in the World.
They tell us that the successful staging of IPL3 has given a big boost to the popularity of Cricket world over and now the number of Nations playing competitive cricket has exceeded ten , Afghanistan being the latest addition. The popularity index in terms of Cricket playing Nations at present is 0.05.Let us make efforts to achieve the target that it gets doubled in the next ten years
.May be there is need to have coaching camps for the cheer girls and modernize dances.
The amount of money earned in a Cricket match is inversely proportional to the total numbers of overs in the match.
The earnings have been found to be sky rocketing as we have reached the shorter 20-20 version of the game from five day tests en-route 50 overs ODIs . The earnings may further multiply many times if we can reduce the match overs to only one super over , sand witched between dances of cheer girls , ramp walks by Cricketers , film stars ,models and other entertaining stuff for which the cricket without the bat and ball is known of.
It can easily be derived with the help of modern theory of economics, and higher mathematics that revenue earned in the match will be infinite if the overs bowled are zero but then many of our cricket experts may say , “Oh! That is not Cricket.” It is ,therefore, imperative that we pretend to keep our love for cricket at the forefront and organize cricket matches with some flavour of cricket in it and not try to reduce the Cricket match overs any further from the level of one super over per match .Any further change in match format may also adversely affect fast growing popularity of Cricket in the World.
They tell us that the successful staging of IPL3 has given a big boost to the popularity of Cricket world over and now the number of Nations playing competitive cricket has exceeded ten , Afghanistan being the latest addition. The popularity index in terms of Cricket playing Nations at present is 0.05.Let us make efforts to achieve the target that it gets doubled in the next ten years
.May be there is need to have coaching camps for the cheer girls and modernize dances.
Saturday, March 27, 2010
अलविदा माँ - ओंम प्रकाश नौटियाल :
कुसुम नौटियाल
जन्म 01-09-1926
स्वर्गवास 21-01-2010
-1-
मन अथाह सागर सा तेरा,
अनगिन भावों का आगार,
माप सका कहाँ कोई पर,
उस ममता की गहराई माँ।
-2-
तुझसे सुने कहानी किस्से ,
फ़िर बचपन में पहुंचाते हैं,
उन वक्तों को याद किया,
और आँखे भर भर आई माँ ।
-3-
चंचल मन की अगम पहेली,
कब किसने सुलझाई माँ,
दूर सूदूर बसे रिश्तों में,
बस डूबी और उतराई माँ ।
-4-
यादों के झुरमुट में खोई,
लगती कुछ तरसाई माँ,
थकी और उलझी उलझी सी,
छुईमुई सी मुरझाई माँ । .
-5-
तेरे होने पर कब समझा,
तुझको खोने का अहसास,
तड़पन और घुटन दे गई,
तेरी चुपचाप विदाई माँ ।
-6-
चेतन मन की चिंताए सब,
शाँत हुई, साँस रुकी जब,
बन्धन टूटे , अपने छूटे,
रिश्ते हुए परछाई माँ ।
-7-
थमी हुई साँसो ने तेरी,
गहन मर्म यह समझाया,
भीड़ भरी इस दुनियाँ में,
क्या होती तनहाई माँ ।
opnautiyal.blogspot.com
9427345810
Saturday, March 20, 2010
Doing Nothing - Om Prakash Nautiyal
opnautiyal.blospot.com
One is often confronted with the question: “what are you doing these days?” if you say that you are doing nothing. They look shocked as if doing nothing is a simple task. Some even dare to continue their quizzing, “How do you pass your time then ”. They tend to make you believe that time waits for you for its time passing , and the time will stand frozen if you do not let it pass. Had this been so every individual might have his/her own time zone. They probably are confused with the theory of relativity (they might not have dared to try it when the question on relativity was asked in their examination.) and treat time as fourth dimension whose origin is different for different persons. They do not seem to believe that time and tide and tide wait for none.
I have experienced that doing nothing is the most challenging task for it is simply impossible to have a time frame to finish it .If you do something , you may probably have a schedule but to work timelessly without a schedule makes doing nothing such an Herculean task that people often tend to engage them in useless activities and are rather scared from the thought of doing nothing and think that it is probably impossible for them to cope up to this challenge .One more discouraging factor for them may be that they think if they tirelessly engage themselves in doing nothing they may not get time to relax after doing nothing .The very thought is scary . For a wise man has said that the most satisfying thing in life is: “To do nothing and take rest afterwards”
All this daunt them to no limit to keep them away from doing nothing and they start believing that doing nothing is impossible. They forget that there have been great people in this world whose deeds continue to inspire and motivate us and they have simply discarded this theory that doing nothing is impossible. They have stood up against all odds and experienced the fruits of doing nothing. It is only a matter of mustering enough courage and making a start for doing nothing and one is bound to succeed. I reproduce below the golden words of a great non doer
“Who says nothing is impossible, I have been doing nothing for years ”
O.P.Nautiyal
Vadodara
9427345810
One is often confronted with the question: “what are you doing these days?” if you say that you are doing nothing. They look shocked as if doing nothing is a simple task. Some even dare to continue their quizzing, “How do you pass your time then ”. They tend to make you believe that time waits for you for its time passing , and the time will stand frozen if you do not let it pass. Had this been so every individual might have his/her own time zone. They probably are confused with the theory of relativity (they might not have dared to try it when the question on relativity was asked in their examination.) and treat time as fourth dimension whose origin is different for different persons. They do not seem to believe that time and tide and tide wait for none.
I have experienced that doing nothing is the most challenging task for it is simply impossible to have a time frame to finish it .If you do something , you may probably have a schedule but to work timelessly without a schedule makes doing nothing such an Herculean task that people often tend to engage them in useless activities and are rather scared from the thought of doing nothing and think that it is probably impossible for them to cope up to this challenge .One more discouraging factor for them may be that they think if they tirelessly engage themselves in doing nothing they may not get time to relax after doing nothing .The very thought is scary . For a wise man has said that the most satisfying thing in life is: “To do nothing and take rest afterwards”
All this daunt them to no limit to keep them away from doing nothing and they start believing that doing nothing is impossible. They forget that there have been great people in this world whose deeds continue to inspire and motivate us and they have simply discarded this theory that doing nothing is impossible. They have stood up against all odds and experienced the fruits of doing nothing. It is only a matter of mustering enough courage and making a start for doing nothing and one is bound to succeed. I reproduce below the golden words of a great non doer
“Who says nothing is impossible, I have been doing nothing for years ”
O.P.Nautiyal
Vadodara
9427345810
Thursday, March 18, 2010
“The writing on the wall” – The World of Face book
I was just scanning an article which mentioned that millions of children world over gets scolding or punishment for scribbling or writing on the school or house walls. Human beings have this instinct of communicating and this gets a trigger in children just by the sight of an empty wall to the displeasure of their elders who are keen to maintain the walls bright and clean.
The creations of ancient poets, artists were also carved in stones used in forts, temples and other structures of importance for the obvious reason that walls serves as huge canvass, have endurance and lasting visibility to audiences of several generations. The origin of the phrase”writing on the wall “is also reportedly attributed to the supernatural writings on the walls of Palace of Babylon which appeared for predicting future.
Gone are the days! And we just do not like to read “the writings on the wall” anymore, more so if the wall belongs to us .We get terribly upset and agitated by this creative trespassing.
But please hold on. Look and behold! There is another world coexisting with our world and that is the World of FACE BOOK.
The inhabitants of this world are a completely transformed lot. They invite and welcome others to write on their walls and feel happy, cheerful & obliged. So please do not suppress your creative instincts .Please come, you are welcome to write anything on my wall .
Long live The world of Facebook
The creations of ancient poets, artists were also carved in stones used in forts, temples and other structures of importance for the obvious reason that walls serves as huge canvass, have endurance and lasting visibility to audiences of several generations. The origin of the phrase”writing on the wall “is also reportedly attributed to the supernatural writings on the walls of Palace of Babylon which appeared for predicting future.
Gone are the days! And we just do not like to read “the writings on the wall” anymore, more so if the wall belongs to us .We get terribly upset and agitated by this creative trespassing.
But please hold on. Look and behold! There is another world coexisting with our world and that is the World of FACE BOOK.
The inhabitants of this world are a completely transformed lot. They invite and welcome others to write on their walls and feel happy, cheerful & obliged. So please do not suppress your creative instincts .Please come, you are welcome to write anything on my wall .
Long live The world of Facebook
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