-ओंम प्रकाश नौटियाल
ताल सूखे, बाग उजडे हो गई खेती हवा
है गाँव में बचा मेरे अब गाँव कहाँ है ?
बेइंतहा भीड है हर जगह पे इस कदर,
जमीन ही कहाँ है, मेरे अब पाँव जहाँ हैं ।
पेड कहाँ, हर तरफ़ मकानों का नजारा है,
कोयल की कूक, काग की वो काँव कहाँ है।
लोग घूमते हैं सब नाक पर गुस्सा लिए
जिन्दगी की तपस में अब छाँव कहाँ है ।
समाज सेवा शुरू अपने घर से की जिसने,
ऊंचे महल उनके, तेरा बता पर ठाँव कहाँ है?
तेरी मुफ़लिसी से उनको सता सुख है नसीब
गुरबत से बच पाने का तेरा फ़िर दाँव कहाँ है,
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