ओंम प्रकाश नौटियाल
अंधेरों से किया निबाह कि चिराग हो रोशन,
बेटी ही सहारा है जिसे समझा ’पराया धन’ !
पुत्री आयी अनचाही, थी इच्छा और पुत्र की,
तनया प्राण से समर्पित, है बेटा कहीं मगन !
जाने कन्या जन्म पर, क्यों मुरझा गये सारे,
मानों उनके सभी स्वप्न, हुए आज हों दहन !
अजन्य, अनर्थक, अनिमित्त सा जिसे जाना,
कभी शक्ति स्वरूप दुर्गा,कभी मलयजा पवन !
ममतामयी, प्रिया अनुरक्ता,अंतरग अनुरागी,
हो रूप माता या पत्नी का, बेटी हो या बहन !
जिस घर में नारी का स्नेह संसार बसता हो,
सदा रहा सुगन्धित है, हुआ मानों अभी हवन !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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