Tuesday, July 26, 2011

आई गई बात

-ओंम प्रकाश नौटियाल


जीवन प्रभात था,
ममतामय हाथ था,
थाप हुई आई गई ।

मैंने तुम्हें प्यार किया,
तुमने दुत्कार दिया,
बात हुई आई गई।

उनके व्यंग वाणों से,
जहरीले तानों से,
आन हुई आई गई ।

उपेक्षा की कसक से,
उम्र भर की सिसक से,
जान हुई आई गई ।

पीडा की तडपन से,
चीख और क्रंदन से,
रात हुई आई गई ।

मिलन की चाह थी,
बंद पडी राह थी,
आस हुई आई गई ।

स्वार्थ भरे नातों से,
मीठी मीठी बातों से,
आह हुई आई गई ।

मुश्किलें सयानी हुई,
जिन्दगी तब फानी हुई,
दुनियाँ हुई आई गई ।

उम्र की ढलान थी,
जर्जर सी जान थी,
साँस हुई आई गई

(मेरी पुस्तक " साँस साँस जीवन" से
ompnautiyal@yahoo.com
Mob : 09427345810 )

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