Sunday, February 13, 2011

प्रेम दिवस

-ओंम प्रकाश नौटियाल


इस देश में हर दिन ही पहले प्यार की रुत थी,
है उस जमाने की बात जब फ़ुर्सत ही फ़ु्र्सत थी,

अब कहाँ वक्त रोज इश्क का इजहार कर सकें,
इस तेज रफ़्तार जीवन में ’उन्हे’ प्यार कर सकें,

लो आ गया है फिर से ’प्रेम दिवस’ का त्यौहार,
चलो मिल लें कहीं आज, बहा दें प्रेम की बयार,

’ओंम’ देखो प्यार को,पर ना इतने प्यार से देखो,
काफ़ी है ’प्रेम दिवस’ शेष दिन व्यापार को देखो।

7 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति

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  2. मौजूदा बाजारवाद के दौर का सुंदर तरीके से चित्रण करती रचना।
    बधाई हो आपको।

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  3. ओंम’ देखो प्यार को,पर ना इतने प्यार से देखो,
    काफ़ी है ’प्रेम दिवस’ शेष दिन व्यापार को देखो।

    आज यह दिन व्यापार के नाम ही रह गया है ....

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  4. शेष दिन व्यापार को देखो
    बेहतरीन व्यंग्य ओम भाई

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  5. बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति...

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  6. उडन जी, अजय जी ,अतुल जी ,संगीता जी, नवीन जी एवं कैलाश जी -आपने कविता पढ़ने और सराहने के लिये आप सबका हृदय से आभार ।

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