-ओंम प्रकाश नौटियाल
इस देश में हर दिन ही पहले प्यार की रुत थी,
है उस जमाने की बात जब फ़ुर्सत ही फ़ु्र्सत थी,
अब कहाँ वक्त रोज इश्क का इजहार कर सकें,
इस तेज रफ़्तार जीवन में ’उन्हे’ प्यार कर सकें,
लो आ गया है फिर से ’प्रेम दिवस’ का त्यौहार,
चलो मिल लें कहीं आज, बहा दें प्रेम की बयार,
’ओंम’ देखो प्यार को,पर ना इतने प्यार से देखो,
काफ़ी है ’प्रेम दिवस’ शेष दिन व्यापार को देखो।
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बढ़िया.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमौजूदा बाजारवाद के दौर का सुंदर तरीके से चित्रण करती रचना।
ReplyDeleteबधाई हो आपको।
ओंम’ देखो प्यार को,पर ना इतने प्यार से देखो,
ReplyDeleteकाफ़ी है ’प्रेम दिवस’ शेष दिन व्यापार को देखो।
आज यह दिन व्यापार के नाम ही रह गया है ....
शेष दिन व्यापार को देखो
ReplyDeleteबेहतरीन व्यंग्य ओम भाई
बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteउडन जी, अजय जी ,अतुल जी ,संगीता जी, नवीन जी एवं कैलाश जी -आपने कविता पढ़ने और सराहने के लिये आप सबका हृदय से आभार ।
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