-ओंम प्रकाश नौटियाल
घबराहट क्यों प्रीतम इतनी,
है ऐसी क्या उलझन इतनी ,
जीवन में कई सवेरे है,
फ़िर क्यों चिन्ता के डेरे हैं ,
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !
चाहत जितनी तुम पालोगे
परछाई पीछे भागोगे ,
कल्पित से सुख की खातिर
यूं कितनी रातें जागोगे ?
सुख पाने की चाहत में
दुख का क्यों बनकर ग्रास रहो !
एक सच्चा है एक साया है
सुख दुख की ऐसी माया है<
दोनो हैं चलते साथ साथ
सबने ही इनको पाया है<
तुम दूर रहो या पास रहो
पर ना इनके तुम दास रहो
हो प्यार तुम्हारा मंत्र तंत्र
पर प्रेम के क्यों आधीन रहो
बाँटो बाँटे से बढता है
ना मिला तो क्यों गमगीन रहो
दिन में तो सभी चमकते हैं
बन तम में भी प्रकाश रहो
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो।
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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चाहत जितनी तुम पालोगे
ReplyDeleteपरछाई पीछे भागोगे ,
कल्पित से सुख की खातिर
यूं कितनी रातें जागोगे ?
सुख पाने की चाहत में
दुख का क्यों बनकर ग्रास रहो !
....बहुत सुंदर सारगर्भित प्रस्तुति...
कैलाश शर्मा जी ,
ReplyDeleteआपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिये धन्यवाद !!