-ओंम प्रकाश नौटियाल
साँसत में हिन्दी है कि आया फ़िर पखवाडा
मात्र दिखावे की खातिर बाजेगा ढ़ोल नगाडा
कब तक ढ़ोयेगा भारत यूं अंग्रेजी का भार
दिखावे के लिये होगा, बस हिन्दी का प्रचार
गर्वीली शर्मीली हिन्दी, अंग्रेजी हैलो हाय
हिन्दी का हक़ मारते लाज तनिक न आय
करोडों की भाषा क्यों हो दया की मोहताज
शिक्षा सफ़ल तभी,जो हो स्वभाषा पर नाज
चले गये अंग्रेज,अंग्रेजी के हैं अब भी ठाठ
हिन्दी देश में जोह रही निज पारी की बाट
पखवाडे भर जश्न है फ़िर लम्बा बनवास
देश में अब तक यही हिन्दी का इतिहास
कितने पखवाडे हुए पर चली अढाई कोस
कार्यालयों में हिन्दी लगे, मानों हो खामोश
हिन्दी के गले में अटकी, अंग्रेजी की फाँस
बेटी की अपने ही घर आफ़त में है साँस
फिर आया पखवाडा सुन, हिन्दी हुई उदास
शेष वर्ष तो कर्मी मुझको नहीं बैठाते पास
भाषा उत्तर दक्षिण की,बंगला हो या सिन्धी
बहनों के लाड़ दुलार से खूब फ़ली है हिन्दी
अंग्रेजी बोली गुरूर से हिन्दी को कर लक्ष्य
पक्ष मना भर लेने से तू आये ना समकक्ष
हृदय से न चाह थी तभी ढीले किये प्रयास
’राजभाषा’ निज देश में घूमे फ़िरे हताश
भाषा जोडेगी वही जिसमें हो माटी की गंध
फिरंगी भाषा कैसे दे, अपनेपन का आनंद
सरकारी पक्ष वर्षों में कर ना सके जो काम
टीवी और हिन्दी फ़िल्मों ने दिया उसे अंजाम
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
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