Friday, May 20, 2011

दिग दिगन्त का है

-ओंम प्रकाश नौटियाल



खिलने को फूल बेताब हैं बहुत ,
इंतजार पर उनको बसंत का है।

तुमने तो कभी भरोसा न किया,
अपना भरोसा जीवनपर्यंत का है।

कैसे पहचान हो भले मानस की,
लिबास हर किसी का संत का है ।

मन की व्यथाओं की क्या कहिये,
विस्तार इनका तो अनंत का है ।

अपना समझे पर न निकले अपने,
यही किस्सा दिग दिगन्त का है ।

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