-ओंम प्रकाश नौटियाल
खिलने को फूल बेताब हैं बहुत ,
इंतजार पर उनको बसंत का है।
तुमने तो कभी भरोसा न किया,
अपना भरोसा जीवनपर्यंत का है।
कैसे पहचान हो भले मानस की,
लिबास हर किसी का संत का है ।
मन की व्यथाओं की क्या कहिये,
विस्तार इनका तो अनंत का है ।
अपना समझे पर न निकले अपने,
यही किस्सा दिग दिगन्त का है ।
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