Friday, January 20, 2012

बात करो न माँ (पुण्य तिथि २१ जनवरी)

-ओंम प्रकाश नौटियाल

*
स्वर्ग गई तो तुम क्या
सब भूल गई हो माँ ,
नित्य स्वप्न में आकर
ढेरों बात करो न माँ !
*
तुम्हें सदा मासूम लगा
छलबल से महरूम लगा ,
मेरे सर पर ममता वाला
वह हाथ धरो ना माँ !
*
यदाकदा पावस बूंदे जब
तन मेरा भिगाती हैं ,
आँचल के उस छाते की
याद बडी तब आती है ,
बचपन वाले उस पल्लु की
फ़िर छाँव करो ना माँ !
नित्य स्वप्न में आकर
ढेरों बात करो न माँ !
*
ग्रीष्म ऋतु में वट छाँव
सर्द मौसम में अलाव
स्नेह गोद में बैठा जब
धरती पर थे कहाँ पाँव
स्निग्ध आवरण में लेकर
सब संताप हरो न माँ !
मेरे सर पर ममता वाला
वह हाथ धरो ना माँ !
*
अब तक रची बसी है
यादें नालबडी पुलाव की
डाँट प्यार के हाव भाव की
ममता और लगाव की
चुल्हे वाला खाना परसो
अतृप्त क्षुधा हरो न माँ !
*
स्वर्ग गई तो तुम क्या
सब भूल गई हो माँ ,
नित्य स्वप्न में आकर
ढेरों बात करो न माँ !

Saturday, January 14, 2012

हो चर्चा खेत, किसान, बागों की

-ओंम प्रकाश नौटियाल

*
बहुत हो गई बातें अब
गालों और गुलाबों की,
जागो, उठो, करो चर्चा अब
खेत, किसान और बागों की !
*
ईश्क, मुहब्बत के बदले
रोजी, रोटी हो अशआरों में,
पाँव रहें धरती पर भाई
घूमों ना चाँद सितारों में,
बहुत किताबें लिख दी हैं
परियों की और ख़्वाबों की,
न वक्त गंवाओ, हो चर्चा
खेत, किसान और बागों की !
*
क्यों उलझे हो जुल्फ़ों में
रिसालों और अफ़सानों में,
जल ,जंगल की बातें हों
कविता में और गानों में,
वो ही नज़्में क्यों दोहराना
हुस्न की और शबाबों की,
वक्त बचाओ, सोचो तुम
खेत, किसान और बागों की !
*
चाँद, चाँदनी, बादल, तारे
हंसते तुमको देख ये सारे,
आशिकी में हो भरमाये
जीते झूठे स्वप्न सहारे ,
भ्रम त्याग गाओ बिहाग
जीवन लय हो रागों की ,
सोचो शान्त हृदय से प्यारे
खेत, किसान और बागों की !
*
बहुत हो गई बातें अब
गालों और गुलाबों की,
जागो, उठो, करो चर्चा अब
खेत, किसान और बागों की !

पतंग

-ओंम प्रकाश नौटियाल


पोंगल लोढी सक्रांति बिहु के अपने रंग
इन रंगो से रंगी हुई नभ में उडी पतंग,

जन सेवा के वास्ते छीडी जमीं पर जंग
हवा बदलने के लिये नभ में उड़ी पतंग !!

Friday, January 6, 2012

इस बार नये साल तू

-ओंम प्रकाश नौटियाल

गत वर्ष कर सका नहीं
उसको न और टाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !

मंहगाई, मंहगाई सी बढी
बढ़ कर जवान हो गई,
कैसे इसे कर दें विदा
साँसत में जान हो गई,
कुछ दिन और रह ली तो
सबकुछ हज़म कर जायेगी,
जनता बेचारी भूख से
त्रस्त हो मर जायेगी,
कैसे भी हो घर से इसे
कहीं दूर आ निकाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !

जनसंख्या वृद्धि की देश में
फ़ारमूला एक सी रफ़्तार है,
इस उपलब्धि पर हो रही
जनता की जयजयकार है ,
पर तू भी तो कर ले कुछ
यूं कब से पडा निढाल है ,
अकर्मण्यता पर तेरी मचा
है किस कदर बवाल है ,
वर्षों में पैदा न कर सका
एक सशक्त लोकपाल तू,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !

गाँधी के उसूलों का कर
कुछ तो यार खयाल तू ,
चपत लगे जनता की तो
कर आगे दूजा गाल तू ,
जनता बेचारी क्या करे
अस्तित्व का सवाल है ,
जीरो से तू हीरो हुआ
उसका तो बदतर हाल है ,
जन सेवा की है ली शपथ
तो छोड टेढी चाल रे ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !

सेवक से तू स्वामी बना
बदली सी तेरी चाल है ,
जनता के पास मुश्किलें
अभाव है अकाल है ,
रोटी के इंतजार में
टूटा सा बस एक थाल है ,
उपर से आ गया है
भरा पूरा नया साल है ,
सेवक का दर्जा अपना
दिल से कर बहाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !

-सर्वाधिकार सुरक्षित