ओंम प्रकाश नौटियाल
प्रभु ने अपनी यह सृष्टि
नेह के साथ रचाई है,
फ़िर क्योंकर कुपित द्दष्टि
इस सृष्टि पर बरसाई है?
जब एक सुनामी आती है
बवन्डर कैसे कर जाती है,
आबाद चहकते भवनों को
पल में खंड़हर कर जाती है।
तकनीक लगी बेबस सी
विज्ञान रहा मौन तकता,
कुदरती कहर के आगे,
मानव कितना बौना लगता।
क्या होगा मेरे बाद यहाँ
यह चेतन मन की बाते हैं,
चिंता की पीर सताती है,
जब तक चलती ये साँसे हैं।
इस कारण से हे अज्ञानी
तज दे तुरंत यह अहंकार,
कठपुतली सा तेरा वजूद
परवरदिगार है सूत्रधार ।
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