-ओंम प्रकाश नौटियाल
मेरे’मिश्री’’हुस्न मुबारक’ हो तुझे तेरा,
तुझे तकने से पेट पर भरता नहीं मेरा,
महलों के झरोखों से हमें निहारने वाले,
रोजी रोटी को तरसें हैं तेरे चाहने वाले।
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मैं चुप रहा तो और गलतफ़हमियाँ बढी , वो भी सुना है उसने, जो मैने कहा नहीं । -----डा. बशीर बद्र
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