Wednesday, May 25, 2011

आँसू पीकर गुजारी जिन्दगी

-ओंम प्रकाश नौटियाल



आँसू पी पीकर जिसने जिन्दगी गुजारी,
चैन उसको कहाँ अब कुछ देर रोकर हो।

वक्त के थपेडों ने लुढकाया इधर उधर,
अब दर्द नही होता कैसी भी ठोकर हो।

थकान को जिसकी चिर निद्रा की जरूरत,
आराम भला क्योंकर कुछ देर सोकर हो।

तन को साफ़ करना तेरे वश की बात है,
मन का मैल दूर किस पानी से धोकर हो।

प्यार देकर ही करो तुम प्यार की उम्मीद,
फूलों की खेती कैसे काँटों के बोकर हो।

हाल अपना है जमाना के लिए एक दिल्लगी,
इनके लिए तो ’ओंम’ जैसी कोई जोकर हो।

Friday, May 20, 2011

दिग दिगन्त का है

-ओंम प्रकाश नौटियाल



खिलने को फूल बेताब हैं बहुत ,
इंतजार पर उनको बसंत का है।

तुमने तो कभी भरोसा न किया,
अपना भरोसा जीवनपर्यंत का है।

कैसे पहचान हो भले मानस की,
लिबास हर किसी का संत का है ।

मन की व्यथाओं की क्या कहिये,
विस्तार इनका तो अनंत का है ।

अपना समझे पर न निकले अपने,
यही किस्सा दिग दिगन्त का है ।

Wednesday, May 18, 2011

मेरी एक गज़ल से

ओंम प्रकाश नौटियाल

वो तोड़ रहे देश को कि फ़िर से बनायेंगे,
पुख़्ता बनावट के लिए ये तय हुआ होगा।
’ओंम’ हम नेता बहुमुखी प्रतिभा के हैं धनी,
है कौन सा ’धंधा ’जो हमसे अनछुआ होगा।

Tuesday, May 17, 2011

पीछे वाली पहाडी

-ओंम प्रकाश नौटियाल


घाटी में धूप दिन भर,
लम्बी तान के सोई रही,
पीछे वाली पहाडी
उसके इंतजार में खोई रही।
पर वह न आई
और सूरज के पीछे पीछे
चली गई साँझ के धुँधलके में,
सर्द वेदना से पहाडी कंपकंपा गई
रात के अंधकार में समा गई,
यह उसकी समझ से बाहर था,
कि धूप पर भी कुछ का ही अधिकार था।

या यह धूप का अहंकार था,
जो तुष्ट होता था,
पर्वत शिखर पर पहुंचने में
जहाँ उसकी शक्ति को सब देख सकें,
उसकी किरणों को सराह सकें ।
छोटी सी पहाडी के कुंज में,
कौन देखेगा उसके तेज पुंज को ?

धूप को पाना है तो स्वयं आना होगा बाहर
उस पहाडी के पीछे से,
तुम्हारे लिए
कोई वहां धूप लेकर आयेगा,
मुझे शंका है ।

Monday, May 9, 2011

रुक रुक ठहर ठहर

- ओंम प्रकाश नौटियाल


नजरों को जब से लग गई है उम्र की नज़र
बस एक सी लगती हैं मुझे शाम ओ सहर।

रिश्तों की ओट से जो फ़रिश्ते से लगते थे
जाने कब से दे रहे थे, एक मीठा सा जहर।

’तरक्की’ से गाँव इस कदर बदरूप सा हुआ
ना गाँव का होकर रहा , ना ही बना शहर।

शराफ़त के लबादे को ’बिन लादे न’ निकलना
मिटा देगी अहंकार को, सुनामी की एक लहर।

देश में जमीं के लिये जंग जारी है जबर्दस्त,
हर शहर में ’आदर्श धाम’ बनाने की है खबर।

मंथर गति से चलने की है सबको लत यहाँ,
काश वक्त भी तो चलता रुक रुक ठहर ठहर।

Tuesday, May 3, 2011

वहाँ लादेन ना हो

-ओंम प्रकाश नौटियाल


पापियों को अब न मिल पाये पनाह
जमीं पाप से पहले ही बडी भारी है।

देखना कोई रहता वहाँ लादेन ना हो,
ऊंची बडी उस घर की चार दिवारी है।

नापाक पाक,आतंकियों को देगा सजा?
हंसी इस मजाक पर अब भी जारी है।

’मेरा महबूब’ मेरे दिल में कब छुप गया,
मुझे पता नहीं,पर ’तुमको’ खबर सारी है।

’बिन लादे न’ कोई जाये गठरी पापों की
’उपरवाला ’ पुण्य पाप का व्यापारी है।

’ओंम’ मेरी दिवारें हैं हवा, छत आसमां
है मजबूरी तभी , इतनी भी पर्देदारी है।

Monday, May 2, 2011

ए आइ ई ई ई का प्रश्नपत्र लीक ’

(०१.०५.२०११ को)
-ओंम प्रकाश नौटियाल

’विक्की बाबू ’ होगा नाज
तुमको अपनी लीक पर ,
आये पर कभी भारत तो,
नहीं जाओगे जीत कर ।

हम वो राज कर दें फ़ाश
लाख पर्दों में हों जो कैद ,
धंधे में पैसा बन सके तो
नहीं हमसा कोई मुस्तैद ।

परीक्षा पत्र लीक करने में
कोई कहाँ अपने समान है?
अनेकों बार इस हुनर का
दे चुके हम इम्तहान है।