Friday, April 29, 2011

चैन से बेहोश हूं यारों

-ओंमप्रकाश नौटियाल


मयखाने में चैन से बेहोश हूं यारों,
तडपेगा, भुगतेगा होश वाला यारों।

महलों में रहने वाले ये तंग दिल लोग,
हर तंगी से निकलेगा जोशवाला यारों।

हम फकीरों को कहाँ चोरों का डर,
डरा सा रातों जागेगा कोष वाला यारों।

लालची सेठों को फिक्र पीढियों की है,
फटेहाल भी खुश है संतोष वाला यारों।

काले धन कुबेरों का कलेजा तब काँपेगा
क्रान्ति आघोष देगा जब रोषवाला यारों।

Monday, April 25, 2011

देश की हालत में अब सुधार है

- ओंम प्रकाश नौटियाल


अभी अभी मिला एक
अपुष्ट समाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।

भूखों को कहीं कहीं
अब रोटी हुई नसीब,
गरीबी नही बढी उनकी
जो पहले भी थे गरीब,
कुछ भ्रष्टों को सता रहा
अब स्वयं भ्रष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।

पहले लगाते थे कुछ
शिष्ट सभ्य एक ’जी’ ,
अब दो ’जी’ , तीन ’जी’
पर भी लुटाने को हैं राजी,
काली कमाई की खातिर
बढा ’जी’ शिष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।

Thursday, April 21, 2011

पहाडों से दूर जिन्दगी पहाड़ सी

- ओंम प्रकाश नौटियाल


पहाडों से दूर रहकर हुई जिन्दगी पहाड सी,
हरियाली दूर हो गई ये जिन्दगी उजाड़ सी।

मिमिया गई आवाज शहर के शोर शार में,
घाटियों में गूंजी कभी जो सिंह की दहाड़ सी।

जीवन में ताजगी कहाँ, हवा नहीं ताजी नसीब,
मुर्दे मे प्राण फूंकने को, हो रही चीर फ़ाड सी।

गाँव की शुद्ध हवा में हर साँस को सुकू्न था,
यहाँ मिल रही जो हवा, है साँस का जुगाड सी।

तिल सी लगी मुश्किलें गाँव के निश्छ्ल प्यार में,
शहर के झमेले में बनी तिल सी मुसीबत ताड सी।

Friday, April 8, 2011

कोई तो है जिसे हम पुकारे अन्ना हजारे

- ओंम प्रकाश नौटियाल



कोई तो है तडपता जो
हमारे दर्द के मारे,
कोई तो है अजीज़ इतना
जिसे हम जान से प्यारे ।

कोई तो है जिसे गम
सुना सकते हैं हम सारे,
कोई तो है बनाया जिसने
हम को आँख के तारे ।

कोई तो है नहीं जिसके
आँसू मगरमच्छी ,
कोई तो है नहीं भाते जिसे
बस खोखले नारे।

कोई तो है समझने को
हमारी जान की कीमत,
कोई तो औषधि बनकर के
आया आज है द्वारे।

कोई तो है हमारी खातिर
हजारों साल जियेगा,
कोइ तो है जिसे हम
पुकारे अन्ना हजारे !!!

Thursday, April 7, 2011

फुटपाथ पर पैदा हुआ

- ओंम प्रकाश नौटियाल



फुटपाथ पर पैदा हुआ फुटपाथ पर मरा,
इतना था शेर दिल गरीबी से नहीं डरा ।

जन्म लिया और बस वो जवान हो गया,
इस छलाँग में पर उसे बचपन नही मिला।

जवानी के एक जोडी कपडे यूं रास आ गये,
तन से रहे जब तक था साँसों का सिलसिला।

राष्ट्रीय मार्ग के लोग फ़ुटपाथ नहीं पहुंचे,
शिकवे सुनाता किसको कहता किसे गिला ।

भारत चमक रहा है उसे गर्मी में लगता था,
तिलमिलाता सूरज जब करता था पिलपिला।

’ओंम’ अन्ना के आमरण अनशन से आई आस,
इन बडी भूख वालों को तू भूख छोडकर हिला।

Wednesday, April 6, 2011

भ्रष्टाचार की दीमक का विष

-ओंम प्रकाश नौटियाल



सर्व विदीत सत्य है
भ्रष्टाचार की दीमक
है नोट की हर गड्डी पर लगी
चिंतित हैं सभी,
देश की पूंजी बचाने को
भ्रष्टाचार की दींमक
के लिये विष बनाने को !

मुद्दा केवल इतना है
कौन बनाये यह विष,
सता पक्ष का कहना है
जनता करे स्वीकार,
उसके पास नही है
विष बनाने का
संवैधानिक अधिकार,
मान लिया हम उसे दे भी दें
इस विष का लाइसैन्स
पर भोली जनता ने विष की जगह
असली विष बना दिया तो?
जनता तो भूख में
खुदकशी तक कर लेती है
फ़िर कैसे सुनिश्चित होगा
इस विष को स्वयं नही पियेगी
मरती मरती और नहीं मरेगी ?
आखिर हमें भी लोगों की चिंता है
हम नही चाहते,
भूखी प्यासी जनता
स्वयं ही विष देखकर ललचाये,
और संविधान बदनाम हो जाये !!

बडे मुद्दे हैं इसके साथ जुडे,
चाहे कोई खुश हो या कुढे,
हमें सबपर गौर करना है,
और फ़िर भ्रष्टाचार तो मर ही जायेगा
जब सबको मरना है !

जनता में तो संतोष की कमी है
आँखे बस भ्रष्टाचार पर जमीं हैं ,
हमें सारे पहलू गौर से देखेंगे,
तभी कोई पासा फ़ेकेंगें,
हम साठ साल से यही करते आये हैं,
कोई पागल हैं या सठियाये हैं ?
यह मुद्दा नहीं है
सांसदों के भत्ते या वेतन का,
कि क्षणों में मतैक्य हो जाये,
गंभीर मसला है
वर्षों तक सोचना होगा
बाल की खाल नोचना होगा ,

भ्रष्टाचार की दीमक के लिये
पर विष तो हमीं बनायेंगे ,
और अपने हाथों से पिलायंगे ,
दरमियाना विष बनाना होगा
जो विष होकर भी विष नही होगा।

जिन दीमको को इतने वर्षों में
पाला पोसा बडा किया,
उनको ऐसे ही नही मरने देंगे
विष देंगे भी और नही भी देगें,
विष हल्का हो
तो पीने में मजा भी है,
और दिखाने के लिये एक सजा भी है,
और फ़िर अनुभव भी है हमें
धीमे मीठे विष बनाने का,
सरकारी भंडारों में सडा
अनाज जनता को खिलाने का !

और फ़िर धन की रक्षा
अब भी तो होती है
स्विश जैसे ठंडे देशों में भी बैंक हैं
वहाँ दीमक कहाँ होती है
वहाँ भी भारतीय नोटों की
गड्डीयाँ होती हैं ।

पर भोली है जनता
जल्दबाजी चाहती है
अरे, वर्षों लगते हैं
तब युग बदलते है
कलयुग में क्यों
त्रेता द्वापर की
आस करते हैं !!!

Saturday, April 2, 2011

बधाई भारत !!! (विजेता विश्व क्रिकेट २०११)

-ओंम प्रकाश नौटियाल

तम छाँटा ’गौतम ’ ने बदली भारत की तकदीर,
विजय सलोनी ’होनी’ हुई वाह, धोनी धुरंधर धीर।

’विराट’ इच्छा शक्ति हो तो जग जाहिर यह राज,
विजय अवश्य ही दिलवायेगा कभी कोई ’युवराज’।

सरल सचिन का स्वप्न सधा, है देश अति प्रसन्न,
हरभजन , जहीर , युवी वार से रहे विरोधी सन्न।

अंतिम दौर तक पहुंचाया बल्ले से उगल कर आग,
तुम सा नहीं दूसरा कोई ,जय जय विरेन्द्र सहवाग।

संत, मुनाफ़, पियुष, अश्विन,रैना,पठान और नेहरा,
धन्य सभी का योगदान,तभी बंधा विजय का सेहरा।

खेलों की गौरव गाथा में जुडा नवीन सुनहरा पन्ना,
नाचो,गाओ खुशी मनाओ,धिन धिन ना धिन धिन ना।

Friday, April 1, 2011

फ़ेसबुक और जनसंख्या

-ओंम प्रकाश नौटियाल



नव जनगणना आँकडों ने दिया शुभ समाचार,
जन संख्या वृद्धि दर की है तेज घटी रफ़्तार ।

शोध कर जब कारण का इसके पता लगाया,
निष्कर्ष बडा ही रोचक यह तब सामने आया ।

भारतीय जोडों मे बढ़ा है फ़ेस बुक से लगाव,
इस के द्वारा बातें करते , हो जब मनमुटाव ।

दोनों की गोद में होता रात में, अपना लैपटौप,
ऐसे में क्या जरुरत खायें प्यार का लालीपाप ।

जो वर्षों से हुआ नहीं भले कितने किये उपाय,
देवी फ़ेस बुक की कृपा हो,सब संभव हो जाय !!