Friday, December 23, 2011

जब तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा

-ओंम प्रकाश नौटियाल

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झूठ बोलकर भी तुम्हारा मन नहीं पछ्तायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
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कूड़े के ढेर से किसी नवजात का सुन क्रंदन,
माँ का स्पर्श ढूंढता हर क्षण क्षीण होता रुदन
हृदय व्यथित तुम्हारा किंचित नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
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नीरवता भंग करती, अबला की चित्कार सुन,
माँ बहन का राह में खुले आम तिरस्कार सुन ,
कंपित जरा भी मन मष्तिष्क नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
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सामने प्रशस्ति राग और पीछे निंदा की कटार,
कथनी करनी के मध्य चौडी गहरी एक दरार
रिश्ते निभाने का निराला ढ़ंग यह बन जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
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मुश्किल में फ़ंसे हुए प्रिय मित्र की दरकार भाँप,
निज स्वार्थ ,अनिच्छा को नकली बहानों से ढाँप ,
विवशता का राग तब अलापना तुम्हें आ जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
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(सर्वाधिकार सुरक्षित )

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