Wednesday, December 29, 2021

Tuesday, December 21, 2021

विदाई गीत

 सिसक सिसक कर गा रहा, 

वर्ष  विदाई   गीत,

मुश्किल में काटा समय , 

उमर गई अब बीत !

-ओम प्रकाश नौटियाल

(सर्वाधिकार सुरक्षित )


Sunday, December 12, 2021

विश्व पर्वत दिवस

 


 संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को अंतराष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया था | तत्पश्चात 11 दिसमबर 2003  से  प्रति वर्ष यह दिन अंतराष्ट्रीय पर्वत दिवस के रूप में विश्व भर में मनाया जाता है । पहाड़ सौन्दर्य, द्दढ़ता, शीतल सौम्य जलवायु के प्रतीक तो हैं ही ,किंतु  इन पर मानव सभ्यता जन्य अतिरिक्त बोझ भी है । विश्व की आबादी के लगभग 12 प्रतिशत लोगों का निवास पहाडों पर है । लगभग इतने ही लोग इनके एकदम पास के क्षेत्रों में निवास करते हैं । विश्व का लगभग 25 प्रतिशत क्षेत्र पहाडो से ढका है । भारत का लगभग 33 प्रतिशत भू भाग पर्वताच्छादित है । भारत में भी लगभग 25 प्रतिशत लोग पहाडों या उनके निकटस्थ क्षेत्रों में सामान्य रूप से निवास करते हैं । अस्थायी मौसमी आबादी इससे काफी अधिक हो सकती है ।  

पर्वतों का ध्यान रखना और  उनका क्षरण रोकना न केवल उनकी प्राकृतिक, सांस्कृतिक ,आध्यात्मिक विरासत और वहाँ के जनजीवन और जलवायु संरक्षण के लिए नितांत आवश्यक है वरन  वहाँ की जैव विविधता और सभी के भोजन और औषधियों के लिए अत्यंत उपयोगी पैदावार को बचाने और बढाने के लिए भी अत्यंत जरूरी है।

अंतराष्ट्रीय पर्वत दिवस  के अवसर पर प्रति वर्ष पर्वतों के संरक्षण से जुडे विषयों में से एक विषय थीम के रूप में चयनित होता है । 2020 में विश्व पर्वत दिवस का थीम था “पर्वत जैव विविधता” । इस वर्ष 2021 का विषय  “सतत पर्वतीय पर्यटन” है। पर्वतीय क्षेत्रो में जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण  संतुलित विकास के साथ साथ हर कीमत पर बनाए रखना है । पर्वत वासियों के लिए गरीबी उन्मूलन के लिए आजीविका विकल्प ढूँढ़ने , स्थानीय शिल्प और उच्च मूल्य वाले उत्पादों को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है ।

इस दिन को मनाने के लिए विभिन्न मंचों विशेषकर पाठशालाओं में इस वर्ष के थीम पर  भाषण , कविता निबंध आदि प्रतियोगिताएं  होनी चाहिए लोग अपनी पर्वतीय यात्राओं के अनुभव , तस्वीरें और सुझाव भी एक दूसरे से साझा कर सकते हैं । पर्वतों के संतुलित विकास और उनके संरक्षण का विषय अब और अधिक टाला नहीं जा सकता ।

पहाडों से दूर 

-

पहाडों से दूर रहकर, हुई जिन्दगी पहाड सी,

हरियाली दूर हो गई ये जिन्दगी उजाड़ सी ।

-

मिमिया गई आवाज  शहर के शोर शार में,

गूंजी थी पर्वतों पर जो , सिंह की दहाड़ सी।

-

जीवन में ताजगी कहाँ, हवा नहीं ताजी नसीब,

मुर्दे मे प्राण फूंकने , हो मानो चीर फ़ाड सी।

-

हवा में शुद्ध गाँव की  हर साँस को सुकू्न था,

जो मिल रही है  हवा, वो साँस का जुगाड सी।

-

छोटी लगी मुश्किलें , पहाड़ी निश्छ्ल प्यार में,

शहर के झंझट में बनी, तिल सी मुसीबत ताड सी।

-

-ओम प्रकाश नौटियाल ,बडौदा , मो. 9427345810

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Wednesday, December 8, 2021

Monday, December 6, 2021

Friday, December 3, 2021

Wednesday, December 1, 2021

Wednesday, November 24, 2021

Sunday, November 7, 2021

Wednesday, November 3, 2021

Sunday, October 31, 2021

Friday, October 1, 2021

Thursday, September 30, 2021

Wednesday, September 29, 2021

Tuesday, September 21, 2021

Tuesday, September 14, 2021

"हिंदी भूषण"

 पखवाडा कैसे मने , 

इसके पक्ष अनेक,

"हिंदी भूषण" दें किसे, 

यक्ष प्रश्न यह एक,


यक्ष प्रश्न यह एक, 

हुई जब विस्तृत चर्चा,

निकला यह निष्कर्ष, 

वहन जो कर ले खर्चा,


सबका भोजन भार , 

दे सके सारा भाड़ा,

वही श्रेष्ठ विद्वान,

नाम उसके पखवाड़ा !!

-ओम प्रकाश नौटियाल 

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Saturday, September 4, 2021

शिक्षक दिवस

 गीता में श्रीकृष्ण ने, 

वाचा अद्भुत ज्ञान ,

मर्म मानव जीवन के,

धर्म ,कर्म, अज्ञान ,


धर्म, कर्म, अज्ञान ,

सत्य सनातन यह है,

नश्वर है यह देह,

जीव पर अजर अमर है


रहे बात यह ध्यान,

जीवन गुरू बिन रीता,

गुरू बने थे ईश,

सुवाची जब थी गीता !

-ओम प्रकाश नौटियाल 

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Saturday, August 21, 2021

Saturday, August 14, 2021

Wednesday, August 11, 2021

मँहगाई

 मँहगाई को क्या पता,  

न्यूटन का सिद्धांत,

गुरूत्व शक्ति भंजन का,  

पहला यह द्दष्टांत, 

-

पहला यह द्दष्टांत ,  

कि बस ऊपर को जाए, 

जब  अन्य सभी पिंड, 

धरा पर  नीचे आएं,

-

है घमंड में चूर , 

ज्ञान को  धता  बताई, 

न्य़ूटन जी की बात, 

नहीं माने मँहगाई  !!

-ओम प्रकाश नौटियाल

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Saturday, August 7, 2021

Tuesday, August 3, 2021

Saturday, July 31, 2021

प्रेमचंद जयंती पर

 उपन्यास और कहानी विधा के सम्राट हिंदी उर्दु के अत्यंत लोकप्रिय साहित्यकार प्रेमचंद का जन्म बनारस के लमही गाँव में 31 जुलाई 1880 में हुआ था । आठ अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की आयु में जलोदर रोग से उनका निधन हो गया । अपने जीवन काल में उन्होंने  अधिकतर सामाजिक और कृषक जीवन से संबंधित विषयों पर लगभग डेढ दर्जन उपन्यास और 300 के आसपास अनूठी कहानियाँ लिखी । उनकी कहानियाँ अपने जमाने की सभी लोकप्रिय पत्र पत्रिकाओं जैसे मर्यादा, जमाना, चाँद, सरस्वती, माधुरी आदि में हिंदी और उर्दु दोनों मे प्रकाशित हुई । उनकी कहानियों और उपन्यासों की अतीव लोकप्रियता को देखते हुए उनके निधन के पश्चात कई निर्माता/निर्देशकों ने  उन पर फिल्में बनाई । गोदान 1963 (त्रिलोक जेटली) , सेवा सदन 1938 (के सुब्रमनियम) और गबन 1966 (ऋषिकेष मुखर्जी ) उपन्यासों पर इन्हीं नामों से फिल्में बनी तथा उनकी अनेक कहानियों जैसे त्रिया चरित्र ( ए आर कारदार ,फिल्म स्वामी नाम से 1941),शतरंज के खिलाडी (सत्यजीत रे 1997 ),सद्गति (सत्य्जीत रे 1981 ), कफन ,मजदूर आदि पर भी फिल्में बनी ।

प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायबराय श्रीवास्तव था तथा वह डाकमुँशी के रूप में कार्यरत रहे ,उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था । प्रेमचंद का बचपन का नाम धनपत राय था । प्रेमचंद  की संघर्ष कथा बचपन में ही शुरु हो गई थी जब सात वर्ष की उम्र में उनकी माता का देहांत हो गया था और उसके बाद उन्हें विमाता के कठोर नियंत्रण में रहना पडा था। उनका पहला  विवाह  पंद्रह वर्ष की आयु में ही कर दिया गया जिसके लगभग एक वर्ष पश्चात ही उनके पिता की मृत्यु हो गई । प्रेमचंद का दूसरा विवाह एक शिक्षित बाल विधवा शिवरानी देवी से 1906 में हुआ । शिवरानी देवी ने कुछ कहानियाँ तथा ’ प्रेमचंद घर में ’ नाम से एक पुस्तक भी लिखी । प्रेम चंद जी की प्रारंभिक शिक्षा फारसी में हुई । मैट्रिक करने के पश्चात ही वह स्कूल शिक्षक के रूप में कार्यरत हो गए । लेकिन नौकरी के बाद भी उन्होंने पढना जारी रक्खा | सुप्रसिद्ध साहित्यकार , विचारक एवं आलोचक डा. डॉ॰ रामविलास शर्मा ने लिखा है कि उन्होंने 1910 में अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास विषय लेकर इण्टर किया और 1919  बी. ए. किया जिसके बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। अंतर्जाल पर उपलब्ध प्रामाणिक सूत्रों की जानकारी के अनुसार उनके जीवन से संबंधित कुछ रोचक जानकारी इस प्रकार हैं :

--1918 से 1936 तक की  समयावधि को कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद युग कहा जाता है ।

-- प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्म शताब्दी पर डाक टिकट जारी किया था।

--उनकी जन्म शताब्दी पर ही गोरखपुर के उस स्कूल में जहाँ वह शिक्षक थे ,प्रेमचंद साहित्य संस्थान की भी स्थापना की गई  ।

--प्रेमचंद ने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। 

--’कफन’ प्रेमचंद की अंतिम कहानी थी तथा ’गोदान’ अंतिम उपन्यास था । उनका लिखा अंतिम निबंध 'महाजनी' सभ्यता एवं अंतिम व्याख्यान ’साहित्य का उद्देश्य ’ था । 'दुनियाँ के  अनमोल रतन' को आमतौर पर प्रेमचंद की पहली कहानी माना जाता है जो उनके 1908 में प्रकाशित पहले कहानी संग्रह ’सोज ए वतन ’ की पहली कहानी थी ।

-- मंगल सूत्र उनका अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।उनकी बडी इच्छा थी कि इसे पूर्ण कर सकें पर वह असमय ही कालग्रस्त हो गए। 

--असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर प्रेमचंद ने स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून 1921 को त्यागपत्र दे दिया था ।

-- त्यागपत्र के बाद प्रेमचंद ने लेखन को ही अपना व्यवसाय बना लिया था ।

--.प्रेमचंद ने 1933 में सिनेटोन फिल्म कम्पनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का अनुबंध  किया था पर वह जल्दी ही मुम्बई छोडकर घर लौट गए क्योंकि उन्हे मायानगरी का जीवन रास नहीं आया।

--शुरू में प्रेमचंद  नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे।

--1908 में देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत नवाबराय के कहानी संग्रह ’सोज़े-वतन’ को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और लेखक नवाब राय को भविष्‍य में लेखन न करने की चेतावनी भी दे दी गई। इसके बाद उन्होंने नाम बदल कर प्रेमचंद नाम से लिखना शुरू कर दिया ।

--'प्रेमचंद के फटे जूते'  में  हरि शंकर परसाई जी ने प्रेमचंद की दारुण आर्थिक अवस्था का वर्णन किया है।

-- ’ज़माना” के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम प्रेमचंद के अभिन्न मित्र थे । प्रेमचंद की मृत्यु के पशचात निगम जी ने प्रेमचंद द्वारा उन्हें लिखे गए पत्रों के आधार पर एक लेख श्रंखला प्रकाशित की थी जिसके माध्यम से  प्रेमचंद्र के व्यक्तित्व के अनेकों पहलुओं तथा उनके विचारों के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है ।

--प्रेम चंद की लिखी लगभग 300 कहानियों को उनकी मृत्यु उपरांत मानसरोवर के आठ खण्डो में प्रकाशित किया गया ।

--आठवीं कक्षा की विद्यार्थिनी रही महादेवी वर्मा की पहली कविता ’दीपक’ जब ’चाँद’  में प्रकाशित हुई तब उन्हें  प्रेमचंद जी ने आशीर्वाद स्वरूप कुछ  पंक्तियों लिखकर भेजी थी । महादेवी जी को इस बात की अत्यंत प्रसन्नता हुई कि एक प्रसिद्ध उपन्यासकार और कहानीकार की कविताऒं मे रुचि है और उसने उनकी कविता पढी है ।

--प्रेमचंद   ने   ’संग्राम” ( 1923),  ’कर्बला ’  ( 1924)  और  ”प्रेम   की   वेदी’  ( 1933)  नामक नाटकों   की   भी रचना   की। किंतु इस क्षेत्र में उन्हें अपेक्षाकृत कम सफलता मिली ।

--प्रेमचंद ने अपने सामाजिक और साहित्यिक चिंतन और अनुभव के आधार पर कुछ लेख और निबंध भी लिखे जो उनके पुत्र अमृतराय द्वारा संपादित  ' प्रेमचंद  :  विविध   प्रसंग ' ( तीन   भाग ) ’ में संकलित हैं ।

--प्रेमचंद   ने   पंडित   नेहरू  द्वारा अपनी पुत्री इंदिरा को अंग्रेजी में लिखे पत्रों को  हिन्दी   में   रूपान्तरित   किया   था।  

--प्रेमचंद की   सभी   पुस्तकों   के   अंग्रेज़ी   व   उर्दू  अनुवाद के साथ साथ उनकी कहानियाँ चीनी ,  रूसी   आदि   अनेक   विदेशी   भाषाओं   में   भी बहुत लोकप्रिय हुई   हैं।

-- प्रेमचंद की  श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी नाम से तीन संताने थी ।उनके पुत्र अमृत   राय   ने   ' क़लम   का   सिपाही '  नाम   से   प्रेमचंद की   जीवनी   लिखी   है।   

--प्रेमचंद के समकालीन लेखकों में जयशंकर प्रसाद, राजा राधिकारमण प्रसाद, सुदर्शन, कौशिक जी, शिवपूजन सहाय, राहुल सांकृत्यायन, पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' जैसे ख्यातिप्राप्त साहित्यकार सम्मिलित  हैं ।


प्रेमचंद का साहित्य उनके तीस वर्ष (प्रेमचंद की लेखनी अंतिम समय तक चलती रही )  के काल खण्ड  में हुए  समाजसुधारों ,प्रगतिवादी  आंदोलनों ,स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों, परंपरागत रूढिवादिता के विरुद्ध संघर्ष  ,जन साधारण की समस्याओं पर गहन चिंतन ,नारी की सामाजिक स्थिति और उसके अधिकारों के प्रति जागरुकता, कृषक की दुर्दशा और जमीदारी की जकडन में उसका शोषण , हरिजनों   की   स्थिति   और   उनकी   समस्याएं ,   प्रकृति के ह्वास के प्रति चेतना तथा व्याप्त भ्रष्टाचार और विदेशी दमन के प्रति ध्यानाकर्षित करने वाले रोचक उपन्यासों और कहानियों का ऐसा कालजीवी दस्तावेज है जिसकी वैचारिक प्रासंगिकता युगों युगों तक रहेगी । उनकी भाषा और व्यक्तित्व दोनों ही सहज ,सरल और आडम्बर विहीन रहे हैं ।

हिन्दी   साहित्य   के इस अनुपम रचनाकार , रूढियों और अंधविश्वासों  के विरुद्ध सतत लडने वाले कुशल कलमकार योद्धा को उनकी जयंती पर शत शत नमन । ईश्वर हमें उनकी तरह न्याय संगत मार्ग पर चलने की शक्ति और प्रेरणा दे ।

-ओम प्रकाश नौटियाल

( लेख विकिपिडिया ,प्रेमचंद पर उपलब्ध लेखों एवं अतर्जाल की प्रामाणिक जानकारी के आधार पर -साभार) 


Friday, July 2, 2021

विनती

 सावन के जलधर सुनो , 

विनती एक अशेष,

हद से अधिक जल भर कर, 

करें न नभ प्रवेश,

करें न नभ प्रवेश , 

अतिवृष्टि अति विनाश है,

जल प्रलय,स्खलन ,बाढ, 

ह्वास और संत्रास है, 

बरसे नेह फुहार ,  

द्दश्य हो हर मनभावन

सबकी हो तब चाह , 

कि अब आएगा सावन !!

-ओम प्रकाश नौटियाल

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Tuesday, June 22, 2021

सत्य

 जनता के सम्मुख पड़ा , सत्य भरे सिसकार

क्यों मेरा हनन करता , बार बार दरबार !!

-ओम  प्रकाश नौटियाल


Friday, June 4, 2021

विश्व पर्यावरण दिवस -2021

 अमेरिका के पूर्व राष्ट्र्पति अब्राहम लिंकन ने एक बार पाखंडी शब्द को परिभाषित करते हुए कहा था - "यह मुझे उस व्यक्ति की याद दिलाता है जो अपने माता पिता का वध करने के बाद अदालत में यह कहकर दया की भीख माँगता है कि वह अनाथ है ।" कुछ यही हाल आज हमारा है हम वर्षों से पर्यावरण की निर्मम हत्या करते हुए  अब भगवान से हमें विष कूप से बाहर निकालने की प्रार्थना कर रहे हैं जो हमने तथाकथित विकास के नाम पर अपने लिए स्वयं तैयार किया है । हमारा साँसे आज सुरक्षित नहीं हैं । पर्यावरण के निरंतर ह्वास की चिंता भी बहुत पुरानी है किंतु इस विषय में गोष्ठियों, भाषणो अथवा कहीं कही  यदा क्दा किए गए छुट मुट प्रयासों से अधिक कुछ विशेष नहीं हुआ है हाँ चिंता के उद्‍घोष  में बुलंदी अवश्य आई है ।

आज से 49 वर्ष पहले स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पर्यावरण और प्रदूषण पर पहला अंतराष्ट्रीय सम्मेलन 5 जून से 16 जून तक आयोजित किया गया था इसी सम्मेलन में , जिसमें 119 देशों ने भाग लिया था  , संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन किया गया था जिसका नारा  था- "केवल एक पृथ्वी"। तभी से हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस हर वर्ष नए थीम के साथ  मनाया जाता है ।  2018, 2019 , 2020  में यह  थीम्स क्रमशः इस प्रकार  थी -बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन, वायु प्रदूषण एवं जैव विविधता ।

इस वर्ष अर्थात 2021 में ,शायद कोरोना महामारी में पर्यावरण असंतुलता का भारी योगदान देखते हुए, थीम है 'Ecosystem Restoration'  यानि जिसका पारिस्थितिक तंत्र  की पुनर्बहाली । इस थीम का उद्देश्य है - नष्ट प्रायः हो चुके पारिस्थितिक तंत्र को  पुनर्जीवित करने का यथा संभव प्रयास करना तथा  उन पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण करना ,जो  अभी बरकरार हैं, किंतु जिन्हे अत्यंत देखभाल की आवश्यकता है । पर्यावरण के प्रति हर व्यक्ति का सजग होना अत्यंत आवश्यक है । बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन आदि आपदाओं की तीव्रता कम करने के लिए वृक्ष लगाने और उनकी देखभाल करना सभी का कर्तव्य है तभी हम भावी पीढी को अच्छा पर्यावरण धरोहर के रूप में सौंप सकते हैं ।

लिए कुल्हाड़ी हाथ में, आया अंध विकास

बिन देर कर बिछा गया, शत वृक्षों की लाश ,

वृक्षों की रक्षा करें , नई लगाएं पौध 

तब ही निकट भविष्य में, ले पाएंगे श्वास !!

-ओंम प्रकाश नौटियाल


Friday, May 21, 2021

चिपको आंदोलन के प्रणेता डा. सुंदर लाल बहुगुणा

 पर्यावरण चेतना के मुखर और प्रखर स्तंभ , गाँधीवादी डा. सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखण्ड के टिहरी जिले में मरोडा नामक स्थान पर हुआ था । शुक्रवार 21 मई 2021 को दोपहर लगभग 12 बजे  एम्स ऋषिकेश में , जहाँ वह कोरोना संक्रमित होकर 8 मई को भर्ती हुए थे , उन्होंने  94 वर्ष की आयु में इस नश्वर देह को त्याग दिया ।

उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य पर्यावरण सुरक्षा रहा जिसके लिए वह आजीवन प्रयत्नशील रहे । वृक्षों की सुरक्षा के लिए चलाया गया उनका 

’चिपको आंदोलन ’ वृक्ष संरक्षण की दिशा में एक अद्वितीय मुहीम के रूप में विश्व भर में जाना और सराहा गया । इस आंदोलन में पर्वतीय महिलाएं उनकी विशेष सहयोगी रही । यह आंदोलन उन्होंने 1970  में गौरा देवी और अन्य महिलाओं के सहयोग से आरंभ किया गया था । 27  मार्च 1974 को चमोली जिले के गाँवों की महिलाएं ठेकेदार के आदमियों से वृक्ष कटान बचाने के लिए वृक्षों पर चिपक कर खड़ी हो गई । वृक्ष बचाने का यह आंदोलन बहुत जल्दी ही पूरे देश ,यहाँ तक की विश्व भर में , एक प्रभावी आंदोलन के रूप में फैल गया । प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी से मिलकर उन्होंने पंद्रह वर्ष के लिए वृक्षों के कटने पर रोक लगवा दी ।

डा. बहुगुणा प्रांरंभिक शिक्षा के पश्चात लाहौर चले गए थे जहाँ से वह स्नातक होने के पश्चात वापस लौटे । किशोर अवस्था में उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन शुरू कर दिया था ,वह गाँधी जी के परम अनुयायी थे । 1949 में मीरा बेन और ठक्कर बाबा से मुलाकात के पश्चात वह दलित वर्ग के विद्यार्थियों की अनेकों समस्याओं को लेकर तथा मंदिर में दलितों के प्रवेश को लेकर आंदोलनरत हुए । 1956 में उनका विवाह विमला नौटियाल जी से हुआ जो जीवन भर उनके कामों में भरपूर सहयोग देती रही ।विमला जी  ने सामाजिक कार्य हेतु स्वयं भी कई संस्थाओं का सफल और प्रभावी संचालन किया । विवाह के पश्चात बहुगुणा जी ने राजनीति से सन्यास लिया और स्वयं को पूरी तरह पर्यावरण सुरक्षा और पर्वतीय लोगों के हित में समर्पित कर दिया । 1971 में उन्होंने पत्नी के सहयोग से नवजीवन मण्डल की स्थापना की तथा पर्वतीय क्षेत्रों में शराब की दुकाने खोलने के विरोध में सोलह दिन का अनशन किया ।

1980 के प्रारंभिक वर्षों मे उन्होने पर्वतीय लोगों के मध्य पर्यावरण का संदेश देने के लिए पाँच हजार किलोमीटर की यात्रा की । उन्होंने टिहरी बाँध निर्माण के विरोध में 84 दिन का लम्बा उपवास रक्खा । वह पर्वतीय  क्षेत्रों मे अंधाधुंध हो रहे निर्माण और लक्जरी टूरिज्म के भी विरोधी थे । कालान्तर में जब उतराखणड में  जल प्रलय , भूकंप ,बाढ ,बादल फटने जैसी घटनाओं की आवृति बढ गयी जिनके अनेक कारणों में पर्यावरण से घातक छेड़ छाड़ प्रमुख कारण था तब लगा कि बहुगुणा जी जैसे पर्यावरणविदों की दूरगामी द्दष्टि की अवहेलना करना कितना घातक हुआ है ।

बहुगुणा जी को 1980 में अमेरिका की फ्रैंड्स आफ नेचर संस्था ने सम्मानित किया । 1986 में उन्हें रचनात्मक कार्यों के लिए जमनालाल पुरस्कार मिला ,1987 में चिपको आंदोलन के लिए राइट टू लाइवलीहुड सम्मान मिला । 1989 में उन्हें IIT रूरकी विश्वविद्यालय ने डाक्टर आफ सोशल साइन्सेस की मानक उपाधि से तथा 2009 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया ।

विश्व में पर्वावरण के सच्चे हितैषियों को जब जब याद किया जाएगा ,देवभूमि पुत्र , देश के गौरव डा. सुन्दर लाल बहुगुणा का नाम सर्वोपरि रहेगा । ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे । और अंत में चिपको आंदोलन का यह प्रेरक घोष युग्म :

क्या हैं जंगल के उपकार , मिट्टी पानी और बयार 

मिट्टी पानी और बयार ,जिंदा रहने के आधार !

डा . सुंदर लाल बहुगुणा जी को कोटि कोटि नमन  !!

-ओम प्रकाश नौटियाल

बडौदा ,गुजरात

(चित्र एवं तथ्य -अंतर्जाल के सौजन्य से )


Monday, May 10, 2021

साक्षात्कार

 https://youtu.be/TWVBfSzYH2o  


Friday, April 16, 2021

Wednesday, April 7, 2021

समीक्षा -उपन्यास "अज्ञातवास"

 समीक्षा -उपन्यास "अज्ञातवास"

उपन्यास लेखिका - अनुपमा नौडियाल

प्रकाशक -हिंद युग्म ब्लू

पृष्ठ संख्या -96

मूल्य 125 /-

अमेजन पर उपलब्ध (लिंक) : https://www.amazon.in/Agyaatvaas-Anupama-Naudiyal /dp/9387464881/

उपन्यास समीक्षक -ओम प्रकाश नौटियाल, वडोदरा, मोबाइल 9427345810

2020 में प्रकाशित लेखिका अनुपमा नौडियाल के उपन्यास "अज्ञातवास" का ताना बाना युवाओं के  मन में अपने आने वाले समय में  समाज के लिए कुछ अलग हटकर  अच्छा करने की  आदर्श अभिलाषा के अंकुरित और पल्लवित होने के इर्द गिर्द बुना गया है । भविष्य में सकारात्मक बदलाव लाने   की मंजिल चुनने की उनकी मनोकामना एक स्वस्थ सोच है लेकिन इसके लिए अपने वर्तमान को सँवारना और विद्यार्थी जीवन का समय इस भाँति सुकारथ लगाना कि मँजिल पाने की राह की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए व्यक्ति सक्षम हो सके और अपना संबल स्वयं बन सके , नितांत आवश्यक है । यह वह उम्र है जिसमें अपनी मंजिल तय करने के लिए अपनी क्षमताओं के सही आकलन के साथ साथ स्वस्थ और परिपक्व सलाह की आवश्यकता तो होती है किंतु साथ ही साथ यही वह उम्र होती है जिसमें सबसे अधिक भ्रम पालने और स्वयं को सर्वज्ञानी समझने का जुनून भी चरम पर होता है अतः युवाओं को समझाने के लिए माँ बाप और गुरू जनों में, सलाह देने का आभास दिए बिना, सलाह देने की कला आनी चाहिए । यह समय अपने   बुद्धि ज्ञान, कौशल और सोच  में परिपक्वता लाने और उसे सुद्दढ करने का है ,किंतु साथ ही साथ युवा अवस्था में भ्रमित होने , अव्यवहारिक लच्छेदार बातों से प्रभावित होकर पथ विचलित होने की संभावना भी बहुत अधिक रहती है ।

उपन्यास अस्सी के दशक के मध्य से प्रारंभ होता है । आत्म विश्वास से सराबोर और  प्रतिभासंपन्न छात्रा मंजुला कैसे एक  खोखले आदर्शों पर जीवनयापन कर रहे और वर्षों से कालेज में रहकर एक के बाद एक डीग्री हासिल करने वाले पलायवादी, अधिक उम्र के अथर्व के विचारों  से प्रभावित होकर, उसके साथ प्रेम करने लगती है और जीवन यात्रा में उसकी सहयात्री बनकर अपने आदर्शों को मूर्तरूप देने की सोचने लगती है । साथ ही कालेज में उसकी एक प्रिय सहेली स्वरा भी है सहमी , संकोची सी । इन प्रनुख पात्रों की रोचक जीवन यात्रा में गुंफित यह उपन्यास हर द्दष्टि से अत्यंत प्रभावशाली बन पडा है । उपन्यास कालेज परिवेश में जन्म लेकर मंजुला के युवा मष्तिष्क में चल रहे वैचारिक संघर्ष ,पारंपरिक तय पथ को छोडकर किसी अन्य कंटकपूर्ण मार्ग के माध्यम से एक धुँधली सी मंजिल पाने  की ललक और इसके लिए हर टकराव से मुकाबला करने की अप्रतिम इच्छा के सहारे आगे बढता है । उपन्यास की कथावस्तु के विषय में पाठकों की रोचकता बनाए रखने  के लिए केवल इतना कहना चाहूँगा कि उपन्यास हर द्दष्टि से पाठकों को बाँधे रखने में सक्षम है । कालेज के परिवेश ,विद्यार्थियों के वार्तालाप का सहज, स्वाभाविक और यथार्थपूर्ण चित्र ,कथानक के छोटे छोटे प्रभावशाली मोड उपन्यास की रोचकता और गतिशीलता बनाए रखते हैं। विभिन्न पात्रो के मध्य वार्तालाप छोटे और स्वाभाविक हैं और शब्द चयन भी पात्रों के चरित्र के अनुसार सटीक है । कहीं भी केवल  कलम का चमत्कार दिखाने के लिए लम्बे उबाऊ वर्णन नहीं हैं , छोटे छोटे स्वाभाविक संवाद हैं कोई उपदेशात्मकता नहीं । युवाओं के लिए अत्यंत लाभप्रद और उनके जीवन की दिशा निर्धारित करने वाले संदेश कथानक के अत्यंत रोचक यथार्थ परक प्रस्तुतिकरण एवं  उसमें निहित प्रसंगो से स्वतः निकल आते हैं जो पाठक के हृदय पर गहरी छाप छोडने में सफल रहते हैं ,मेरे विचार से यह उपन्यास  युवा वर्ग को तो अवश्य ही पढना चाहिए , और इसकी प्रतियाँ हर कालेज के पुस्तकालय में  होनी चाहिएं ।

उपन्यास की भाषा में परंपरा और आधुनिकता का समावेश पात्रों ,समय और महौल के अनुरूप विविधता  के रंग और शब्द चयन लिए हैं ,चाहे वह बुद्धिजीवियों का जामा ओढे और खोखले आदर्शों पर जी रहे पात्रों की आपसी बातचीत हो , जसवन्ती के बच्चो की बाल सुलभता हो, या सहेलियों के मध्य हो रही अंतरंग वार्ता हो या फिर अलग अलग पीढियों के पात्रों के मध्य का संवाद । पात्रों के मनोविज्ञान उनके आत्मसंघर्ष के चित्रण में सिद्धहस्त लेखिका अनुपमा जी की पहली पुस्तक "अपने अपने प्रतिबिंब " की कहानियों को भी मैंने पढा है और सादगी तथा बिना अनावश्यक अतिरेकता के कथावस्तु को अत्यंत रोचक और सहज  ढंग से प्रस्तुत करने की उनकी प्रतिभा को सराहा है ।

मुंशी प्रेमचंद ने कहा था, " मैं उपन्यास को मानव-जीवन का चित्रमात्र समझता हूं। मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है। " मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि इस मापदंड पर यह उपन्यास खरा उतरता है ।

सुगठित कथानक , सजीव , स्वाभाविक चरित्र-चित्रण ,पात्रों और परिस्थितियों के अनुसार संवाद तथा सरल एवं व्यवहारिक भाषा ,युवा कल्याण की ओर इंगित करने वाले नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा का प्रयास इस उपन्यास की खूबियाँ हैं ।

उपन्यास विधा भारतेन्दु , द्विवेदी ,प्रेमचंद और प्रेमचंदोत्तर  युगों से गुजर कर आधुनिक युग तक पहँच गई है । अलग अलग युग में उपन्यास की विषय वस्तु और कथन शैली तत्कालिन विचारधाराओं , भौगोलिक और एतिहासिक पृष्ठ भूमि आदि से प्रभावित रही है । हर युग ने हमें बहुत अच्छे उपन्यास दिए हैं और इनकी सफलता का एक मात्र स्वीकार्य मापदंड रहा है पाठकों के मध्य उनकी लोकप्रियता । यही उपन्यास की सफलता का पैमाना होना चाहिए और उसकी श्रेष्ठता के आकलन की सही  तकनीक भी । इस कृति की यह समीक्षा भी इसी पाठकीय द्दष्टि से है ।

 मैं चाहूँगा कि विद्यार्थी , युवावर्ग , साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी एक बार इस उपन्यास को अवश्य पढें ,पढवाएं और अपनी प्रतिक्रिया दें । मैं प्रतिभाशाली लेखिका अनुपमा जी को उनको इस अनुपम सृजन के लिए बधाई देता हूँ आशा है भविष्य में उनसे इसी तरह का स्तरीय साहित्य पढने को मिलेगा । वह संभावनाओं से सराबोर हैं । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

--ओम प्रकाश नौटियाल, वडोदरा,मोबाइल 9427345810

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Saturday, February 13, 2021

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