-ओंम प्रकाश नौटियाल
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१६ जनवरी आई है,
वह तिथि जो
याद दिलाती है प्रति वर्ष,
मेरा पृथ्वी पर आना,
और बताना कि
मैं अजन्मा नहीं रहा,
बृह्मान्ड के किसी कोने में
कहीं तनहा पडा नहीं रहा,
अब मैं सांसारिक हूं, जैविक हूं,
वर्षों से धरती का अंग हूं,
कुछ के लिए अंतरंग,
कुछ के लिए मात्र प्रसंग हूं,
कुछ का अजीज हूं
कुछ के लिए अजनबी।
पढाती है यह तिथि,
उम्र के गणित का वैचित्र्य,
जिसमें एक वर्ष का योग,
अर्थात वय से एक वर्ष का वियोग।
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ले जाती है यह तिथि
गलियारे में बचपन के,
जब इस दिन माता पिता,
मुझे तुला पर बैठा कर,
मेरे भार बराबर
करते थे अन्नदान,
पूजा होती थी,
एक उत्साह रहता था,
क्योंकि यह दिन ले जाता था
मुझे और करीब युवा उम्र के,
यानि शिखर की ओर ।
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और अब यह तिथि धकेल रही
वर्ष प्रतिवर्ष मुझे,
कदम दर कदम नीचे की ओर,
शिखर छूट गया पीछे की ओर,
ढलान में संभाल की आवश्यकता है,
यात्रा अब कुछ कठिन है,
पर यही वास्तविक परीक्षा है,
आपकी शुभकामनाओं की
अब अधिक अपेक्षा है ।
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