Tuesday, May 4, 2010

मकान या घर

---ओंम प्रकाश नौटियाल



मकान बनाने में कष्ट कितने लोग सहते हैं,

कुछ कहने वाले नहीं उसे पर घर कहते हैं ,

देते हैं तर्क कि घर तो घरवाली से होता है ,

ना कि दिवारों ,बावर्ची या माली से होता है,

तो भाई! कुंवारेपन पर जो "अटल"रहते हैं,

क्या वो उम्र भर नहीं अपने घर में रहते है?

’बेघर’ थे क्या भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री कलाम?

ऐसा भी क्या सोच कोई सकता है ,हे राम!

मकान कहो , घर कहो, दोनों के एक अर्थ हैं,

इस विषय पर अब अधिक चर्चा ही व्यर्थ है ,

मकान के स्वामी, कुंवारे मित्रों से गुजारिश है,

यह फ़र्क तुम्हे दामाद बनाने की साजिश है ।

No comments:

Post a Comment