-ओंम प्रकाश नौटियाल
दिवाली इस बार भी आई, और आकर चली गई,
नकली रोशनी से उम्मीद का अब भ्रम नहीं होता।
मचा देश में कुहराम और चैन की वो नींद सोते हैं,
भूखा पेट है सदियों से किसी मौसम नहीं सोता।
मोम सा दिल उनका,मगर फिसलता है इस कदर
किसी का गम नहीं रुकता, कहीं जुडना नहीं होता।
’जेड’ सुरक्षा का उन पर कुछ ऐसा सख्त पहरा है,
जनता का कोई कष्ट हो, वहाँ पहुंचना नहीं होता।
देश की पूंजी को वो अपनी ही जागीर समझे हैं,
खुले आम चट करते हैं, पर उनको कुछ नहीं होता।
’ओंम’ पंछी व्योम में, बडे सुखी स्वच्छंद उडते हैं,
क्योंकि वहाँ धर्म, देश , नेता सा कुछ नहीं होता ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment