Thursday, May 6, 2010

देवदार का वृक्ष -ओंम प्रकाश नौटियाल

(शिमला 07.05.2010)


शिमला की एक ऊंची पहाडी पर,
मैं देवदार का वृक्ष हूं ,
यहाँ मेरा वर्षों पुराना वास है ।

पहले मेरा एक भरा पूरा
परिवार होता था ,
मैं बन्धु बान्धवों से घिरा रहता था ,
आज मैं अकेला यहाँ उदास खडा हूं ,
सच पूछो तो मृत्यु शय्या पर पडा हूं ।

याद आते हैं अतीत के वो दिन,
जब दूर तक मेरे अपनों का बसेरा था ,
रंग बिरंगे कितने ही पक्षियों का डेरा था ,
अनेक जीवधारियों ने हमें घेरा था ,
सब हमारे मीत थे ,
गूंजते हर ओर उनके गीत थे ।

फ़िर कहीं बाहर से ,
एक मानव यहाँ आय़ा,
हमारे बीच उसने अपना घर बनाया,
मेरे कुछ मित्रॊं को गिरा कर उसे सजाया।

मेरे अपनों की कानन वाडी मध्य,
उसका आवास बना,
समय के साथ अपने साथियों के संग,
वह इस क्षेत्र में फ़ैलता रहा,
हमारे निर्मम विनाश को,
अपना विकास समझ खेलता रहा ।

पहले हमारे जंगल मध्य,
एक आध मानवी आवास था ,
अब चारों ओर जंगल है कन्क्रीट का ,
और उसके बीच, मैं तनहा,
तथाकथित विकास का गवाह,
अपने दिन गिन रहा हूं ।

मुझे शिकायत है उन भीष्म पितामहों से,
जो हर युग में द्रौपदी के चीरहरण के,
मूक दर्शक मात्र रहते हैं ।
और अपने अंतिम समय में ,
शर शय्या पर लेटे लेटॆ पश्चाताप कर,
अपने कर्तव्य की इति श्री समझ लेते हैं ।

Tuesday, May 4, 2010

मकान या घर

---ओंम प्रकाश नौटियाल



मकान बनाने में कष्ट कितने लोग सहते हैं,

कुछ कहने वाले नहीं उसे पर घर कहते हैं ,

देते हैं तर्क कि घर तो घरवाली से होता है ,

ना कि दिवारों ,बावर्ची या माली से होता है,

तो भाई! कुंवारेपन पर जो "अटल"रहते हैं,

क्या वो उम्र भर नहीं अपने घर में रहते है?

’बेघर’ थे क्या भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री कलाम?

ऐसा भी क्या सोच कोई सकता है ,हे राम!

मकान कहो , घर कहो, दोनों के एक अर्थ हैं,

इस विषय पर अब अधिक चर्चा ही व्यर्थ है ,

मकान के स्वामी, कुंवारे मित्रों से गुजारिश है,

यह फ़र्क तुम्हे दामाद बनाने की साजिश है ।