Tuesday, May 17, 2011

पीछे वाली पहाडी

-ओंम प्रकाश नौटियाल


घाटी में धूप दिन भर,
लम्बी तान के सोई रही,
पीछे वाली पहाडी
उसके इंतजार में खोई रही।
पर वह न आई
और सूरज के पीछे पीछे
चली गई साँझ के धुँधलके में,
सर्द वेदना से पहाडी कंपकंपा गई
रात के अंधकार में समा गई,
यह उसकी समझ से बाहर था,
कि धूप पर भी कुछ का ही अधिकार था।

या यह धूप का अहंकार था,
जो तुष्ट होता था,
पर्वत शिखर पर पहुंचने में
जहाँ उसकी शक्ति को सब देख सकें,
उसकी किरणों को सराह सकें ।
छोटी सी पहाडी के कुंज में,
कौन देखेगा उसके तेज पुंज को ?

धूप को पाना है तो स्वयं आना होगा बाहर
उस पहाडी के पीछे से,
तुम्हारे लिए
कोई वहां धूप लेकर आयेगा,
मुझे शंका है ।

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