-ओंम प्रकाश नौटियाल
तेरी भी है मेरी भी, ये ’कामन वैल्थ" है यारों,
मिल बाँट के खा लें, तो इसमें शर्म क्या यारों।
ऐसा घर फूंक तमाशा,रोज तो होता नहीं यारों,
रुपया रोज तो पानी सा यूं बहता नहीं यारों।
’खेल खतम पैसा हजम’, सुनते आए हो यारों,
’पैसा गटक कर के खेलो तो क्या हर्ज़ है यारों।
ये कुम्भ यहाँ इस बार तो मुश्किल से आया है,
डुबकी नही लगाई गर, तो पछताओगे यारों।
खेल खेल में खाओगे,तो कहाँ कुछ दोष है यारों,
गर लूट भी लो मजे मजे में पूरा कोष ए यारों।
’ऒंम’ कल माडी अगर सेहत तुम्हारी हो गई,
डाक्टर कहेगा ठीक से तुमने खाया नहीं यारों ।
Thursday, August 5, 2010
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