Saturday, December 31, 2011

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !!!

-ओंम प्रकाश नौटियाल

"आज भोर जब निद्रा रानी हुई विदा,
देखा द्वारे मुस्काता नव नर्ष खडा,
घटनाओं का लिये पिटारा एक भरा
बारह माहों के लिबास में सजा धजा !!"

*अलविदा दो हजार ग्यारह !!!

ओंम प्रकाश नौटियाल

"लाये जितने दिन थे तुम सभी हुए व्यतीत
कुछ जीवन के मीत थे और कुछ थे विपरीत,
वर्ष! तुम्हारा आज जब जीवन जायेगा बीत
मेरे अतीत में रहना, मेरे मित्र,मेरे मनमीत!!"

Friday, December 23, 2011

बेटीयाँ

ओंम प्रकाश नौटियाल

अंधेरों से किया निबाह कि चिराग हो रोशन,
बेटी ही सहारा है जिसे समझा ’पराया धन’ !

पुत्री आयी अनचाही, थी इच्छा और पुत्र की,
तनया प्राण से समर्पित, है बेटा कहीं मगन !

जाने कन्या जन्म पर, क्यों मुरझा गये सारे,
मानों उनके सभी स्वप्न, हुए आज हों दहन !

अजन्य, अनर्थक, अनिमित्त सा जिसे जाना,
कभी शक्ति स्वरूप दुर्गा,कभी मलयजा पवन !

ममतामयी, प्रिया अनुरक्ता,अंतरग अनुरागी,
हो रूप माता या पत्नी का, बेटी हो या बहन !

जिस घर में नारी का स्नेह संसार बसता हो,
सदा रहा सुगन्धित है, हुआ मानों अभी हवन !

( सर्वाधिकार सुरक्षित )

सर्दी गरीब की (चंद हाइकु )

-ओंम प्रकाश नौटियाल

-1-
जाडा जो आया,
मजदूर के घर
मातम छाया
-2-
सर्दी की रात
खुद ही काँप गई
घुस झुग्गी में
-3-
सर्दी थी कडी
अंगीठी की लकडी
जी भर लडी
-4-
सर्द थी रात
बिछौना फ़ुटपाथ
दीन अनाथ
-5-
मृत्यु वरण
ठंड से बचा तन
ओढा कफ़न
-6-
अंधेरगर्दी
झुग्गी ढूंढती सर्दी
कैसी बेदर्दी

*

(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित )

जब तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा

-ओंम प्रकाश नौटियाल

*
झूठ बोलकर भी तुम्हारा मन नहीं पछ्तायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
कूड़े के ढेर से किसी नवजात का सुन क्रंदन,
माँ का स्पर्श ढूंढता हर क्षण क्षीण होता रुदन
हृदय व्यथित तुम्हारा किंचित नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
नीरवता भंग करती, अबला की चित्कार सुन,
माँ बहन का राह में खुले आम तिरस्कार सुन ,
कंपित जरा भी मन मष्तिष्क नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
सामने प्रशस्ति राग और पीछे निंदा की कटार,
कथनी करनी के मध्य चौडी गहरी एक दरार
रिश्ते निभाने का निराला ढ़ंग यह बन जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
मुश्किल में फ़ंसे हुए प्रिय मित्र की दरकार भाँप,
निज स्वार्थ ,अनिच्छा को नकली बहानों से ढाँप ,
विवशता का राग तब अलापना तुम्हें आ जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
(सर्वाधिकार सुरक्षित )

Tuesday, December 13, 2011

बादल

-ओंम प्रकाश नौटियाल

बादल -ओंम प्रकाश नौटियाल

बूंद बूंद पी भर गया बादल
कितने रंगो में सज गया बादल

मैंने कहा मेरे अंगना बरसना
घुडकी देकर चल गया बादल

सूर्य की किरणें भीतर समाकर
शीतल छाँव कर गया बादल

खुद की शक्ल से ऐसे खेला
कई शक्लों में ढ़ल गया बादल

झुक गया देखो उस पहाडी पर
बर्फ़ चूमने मचल गया बादल

गुस्से से जब कभी काला हुआ
बादल देख तब लड़ गया बादल

पीर देख उस पहाडी गाँव की
भारी मन हो फट गया बादल

देख सूरज को अपनी बूंदो से
सतरंगी मुस्कान दे गया बादल

नीर खारा सागर का पीकर
मीठा जल सबको दे गया बादल !

Tuesday, December 6, 2011

मत उदास रहो

-ओंम प्रकाश नौटियाल


घबराहट क्यों प्रीतम इतनी,
है ऐसी क्या उलझन इतनी ,
जीवन में कई सवेरे है,
फ़िर क्यों चिन्ता के डेरे हैं ,
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !

चाहत जितनी तुम पालोगे
परछाई पीछे भागोगे ,
कल्पित से सुख की खातिर
यूं कितनी रातें जागोगे ?
सुख पाने की चाहत में
दुख का क्यों बनकर ग्रास रहो !

एक सच्चा है एक साया है
सुख दुख की ऐसी माया है<
दोनो हैं चलते साथ साथ
सबने ही इनको पाया है<
तुम दूर रहो या पास रहो
पर ना इनके तुम दास रहो

हो प्यार तुम्हारा मंत्र तंत्र
पर प्रेम के क्यों आधीन रहो
बाँटो बाँटे से बढता है
ना मिला तो क्यों गमगीन रहो
दिन में तो सभी चमकते हैं
बन तम में भी प्रकाश रहो

मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो।

( सर्वाधिकार सुरक्षित )

Tuesday, November 15, 2011

My Thoghts (from my Face Book status)

ज्ञान ध्यान :
"१४ नवम्बर को ’बाल दिवस’ तो हमनें धूमधाम से मना लिया है किंतु हमारे बालविहीन गंजे मित्रों की गुजारिश है कि उनके लिये भी एक दिन मुकर्रर होना चाहिये जिसे हम सब उनकी खातिर इसी जोश के साथ ’ नो बाल दिवस ’ के रूप में हर वर्ष मना सकें ।" (१६ नवम्बर २०११)
***
ज्ञान ध्यान :
"राजस्थान से प्राप्त सत्ता में व्याप्त तथाकथित व्यभिचार के समाचारों को पढ़कर, अब लोगों को विश्वास होने लगा है कि भ्रष्टाचार देश में सबसे बडा मुद्दा नहीं है ।"
***
*
गन्दे जल में नहा भला कब सूरत संवरी
कीच भरे ताल भंवर में फंसी हाए भंवरी।
-ओंम
***
ज्ञान ध्यान :
"आज एक चैनल पर दिखाई जा रही सी डी में राजस्थान की राजनीति का धरा ढका ’ नंगा सच ’ बेनकाब होते देख एक बार फ़िर से इस धारणा पर विश्वास होने लगा है कि मात्र 90% तथाकथित दागदार नेताओं की वजह से बाकी अच्छे नेता व्यर्थ में बदनाम हो रहे हैं ।"
***
ज्ञान ध्यान :
"शायद करीना कपूर के बाद स्त्रीलिंग सूचक नामों में आज सबसे लोक प्रिय नाम "मंहगाई" है जो शादी शुदा गृहस्थ पुरूषों को भी अपने निरंतर निखरते यौवन से मारने की क्षमता रखती है।"
***
ज्ञान ध्यान :
"डिटरजैन्ट कम्पनियाँ अपने उत्पाद द्वारा सारे नये , पुराने , हल्के , गहरे आदि सभी प्रकार के दाग़ साफ़ करने का दावा करती हैं । किन्तु हमारे सैकडों ’दागी’ सांसद और विधायक जो बेचारे वर्षों से ’दाग ’ के साथ गुजर कर रहे हैं , इन जन प्रतिनिधियों के दाग धोने के लिये तो अब तक कुछ भी नहीं बना पाई हैं !!! "
***
ज्ञान ध्यान :
"विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि चीन द्वारा सीमा पर निरंतर हो रही घुसपैठ को अहिंसक और गाँधी वादी तरीके से रोकने के लिये , सरकार ’ बिग बौस ’ के प्रतियोगियों को सीमा पर तैनात करने की सोच रही है जो अपने वाक वाणों से चीनीयों को कई किलोमीटर पीछे धकेलने की क्षमता रखते हैं।"
***
ज्ञान ध्यान :
एक पुराने विदेशी समाचार पत्र की 20 वर्ष पुरानी तथाकथित रिपोर्ट के अनुसार एक भूतपूर्व भारतीय प्रधानमंत्री के स्विस खाते में लगभग 13 करोड़ रुपये जमा हैं । इस खुलासे का कारण है -’ 13 ’ की संख्या वाली अपशकुनी राशि जमा करना - अब उनके बचाव में यह कहना मुश्किल हो गया है कि -- " हम तो तीन में न तेरह में" ।
***
ज्ञान ध्यान :
" सी बी आई द्वारा कनिमोझि और साथियों की जमानत का विरोध नहीं करना सर्वथा उचित लगता है क्योंकि जेल मे स्थानाभाव है और अभी बहुत से साथी लम्बे समय से कतार में हैं ,जिन्होने काफ़ी मेहनत की है और वह भी कम से कम कुछ समय के लिये जेल अनुभव प्राप्त करने के हकदार हैं ।"
***
ज्ञान ध्यान :
" फारमूला वन के आयोजन का एक मात्र उद्देश्य विश्व को इस सच्चाई से अवगत कराना था कि अगर हमारी विकास की राहें भी फारमूला वन ट्रैक की तरह समरस और समतल होती और राहों में जगह जगह भ्रष्टाचार के रोड़े नहीं होते, तो हमारी प्रगति की रफ़्तार भी फारमूला वन कारों की रफ़्तार जैसी ही होती । "
***
ज्ञान ध्यान :
"आज प्राप्त एक समाचार के अनुसार २०१२ लन्दन ओलिम्पिक के स्टेडियम अभी से अभ्यासार्थ व जनता के दर्शनार्थ खोल दिये गये हैं। अब हम भारतीय जो ताजे ताजे बने हुए पेन्ट ,पौलिश से महकते स्टेडियम में खेल देखने के अभ्यस्त हैं उन्हें ऐसे पुराने हो चुके स्टेडियम में खेल देखने का भला क्या मजा आयेगा ?"
***
"हे पालनहार ! मुझे बेशुमार लाड़ न दो,
घर सरकारी हो जरूर, पर तिहाड़ न दो।"
--ओंम
***
ज्ञान ध्यान :
"सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफ़नामे का भाव कुछ इस प्रकार है कि शहरी क्षेत्र में रहने वालों को गुजर बसर करने के लिये प्रतिदिन मात्र बत्तीसी दिखाना काफ़ी है ।"
***
ज्ञान ध्यान :
" ऐसा प्रतीत होता है कि नेताओं को शायद लगने लगा है कि वह भारत को भूख की समस्या से तो निजात नहीं दिला सकते इसलिये अब सारा ध्यान उपवास के प्रचार , प्रसार और लाभ बतानें में लगा रहे हैं ।"
***
ज्ञान चर्चा :
" सरकारी कार्यालयों में अब भी लोग इंगलिश अच्छी तरह न जानते हुए भी इंगलिश का प्रयोग कर अपने को पढा लिखा दिखाने की मानसिकता से ग्रस्त हैं हिन्दी दिवस की सबसे अच्छी बात यह है कि वह बिना ऐसे किसी दबाव के हिन्दी में भाषण दे सकते हैं ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"बच्चों से ही घर में शीतल वायु का प्रवाह और जगमग उजाला रहता है क्योंकि वह फैन और लाइट के स्विच कभी बंद नहीं करते।"
***
ज्ञान चर्चा:
"आज के माहौल में एक बात हमेशा याद रखें , ईश्‍वर ना करे यदि कोई कभी तिहाड़ जेल में बन्द कर दिया जाता हैं तो उसका सबसे करीबी मित्र जमानत के लिये कभी नहीं आयेगा , क्योंकि वह पहले से ही बगल वाली कोठडी में बन्द होगा ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"प्यारे कुंवारे अन्ना जीते, मिली नई यह सीख
नहीं जरूरी नारी हो, हर सफ़ल व्यक्ति की पीठ।"
-ओंम
***
ज्ञान चर्चा :
"कुछ लोगों को खाने की ऐसी लत पडी होती है कि कुछ भी, यहाँ तक की चारा तक, खा जाते हैं , उनके लिये यह विश्वास करना असंभव सा है कि कोई व्यक्ति बारह दिन तक बिना खाये पीये भी रह सकता है ।"
***
एक समाचार : स्वामी अग्निवेश की काँग्रेस से साठ गाँठ थी ।
"जयचन्द भी रहते हैं अपने देश में
शैतान घूमते कई साधु के वेश में ।"
--ओंम
***
ज्ञान चर्चा :
"देश में भ्रष्टाचार बढ़ने का एक कारण यह भी है कि यहाँ बडे बडे घोटालों को बहुत सम्मान के साथ अंत में ’जी ’ लगाकर पुकारा जाता है जैसे टू ’जी’ ,थ्री ’जी’ , सी डब्लयू ’जी ’ आदि आदि ।"
***
ज्ञान चर्चा " जनहित की योजनाओं की मटकी का मंथन कर उनसे अपने खाने के लिये धन रूपी माखन निकाल कर हमारे ही चुने हुए प्रतिनिधि स्वयं को सेवक से भगवान समझने की गलतफ़हमी पाल लेते हैं और हमें समझाते रहते हैं - ’ जनता मेरी मैं नहीं पैसा खायो ’ !!"
***
ज्ञान चर्चा :
"कैसी विडम्बना है जब दागी सांसद , विधायक , मंत्री बनते हैं जब चुने हुए प्रतिनिधियों की खरीद फ़रोख़्त होती है ,जब संसद में नोट लहराये जाते हैं , जब जनता के नुमाइन्दें विधान सभाओं में गाली गलौज, मारपीट करते हैं ,जब चुनाव में कालाधन पानी की तरह बहता है तब लोकतंत्र को कभी खतरा नहीं होता किंतु जब वर्षों से त्रस्त जनता एक जुट होकर अपनी मुश्किलों से निजात पाने के लिये आवाज उठाती है तो लोकतंत्र पर एकदम गहरा संकट आ जाता है ,संसद की मर्यादा टूटने लगती हैं । बेचारी जनता !!!!"
***
ज्ञान चर्चा :
" मानव ने अपने उपयोग और मनोरंजन के लिये इतनी अधिक चीजें इजाद कर ली हैं कि उन्हे इस्तेमाल करने के लिये दो हाथ कम पडते हैं । ऐसा समाचार है कि रचयिता ने इस कठिनाई को ध्यान में रखते हुये मानव डिजाइन में कुछ बडे बदलाव किये हैं ।दस हाथ वाले पहले शिशु का प्रोटोटाइप तैय्यार है और ऐसा शिशु आज से २०० वर्ष बाद पृथ्वी पर आयेगा ।"
***
ज्ञान चर्चा :
" शराब इसलिये उपयोगी है क्योंकि यह अपेक्षाकृत धीमा जहर है और कोई भी जल्दी मरना नही चाहता है।"
***
ज्ञान चर्चा :
"आज से बंर्मिंघम मे भारत और इंगलैन्ड के बीच तीसरा क्रिकेट टैस्ट आरम्भ हो रहा है । लंदन दंगो की चपेट मे है , इंगलैन्ड की टीम इस अशान्त फसादी माहौल से घबरायी हुई है , हमें तो खैर आदत है । भारतीय टीम को शुभकामनायें । "
***
ज्ञान चर्चा :
" आप यदि किसी स्त्री के सौन्दर्य प्रशंसा में कहें कि उसकी शक्ल किसी आदमी से मिलती है तो अवश्य ही वह इस बेमेल स्त्री पुरूष सौन्दर्य तुलना पर खफ़ा हो जायेगी , चाहे वह व्यक्ति कितना भी खूबसूरत हो। किंतु लोग सदियों से स्त्री के सौन्दर्य की तुलना पुलिंग चाँद से करते आ रहे है इस आशय के प्रशस्ति गान गा रहे हैं और स्त्रीयाँ इस सौन्दर्य तुलना पर निसंदेह प्रसन्न हैं, न किसी स्त्री ने कभी कोई शिकायत दर्ज की है न कोई पी आई ऐल फाइल हुई है ! क्या राज है इसका ?ज्ञानी मित्र कृपया शंका निवारण करें ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"अगर संविधान हमें बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है तो हमें फोन बिल्स भिजवा कर इस स्वतंत्रता में रोडे अटकाने का गैर संवैधानिक कार्य क्यों किया जा रहा है ?"
***
ज्ञान चर्चा :
"अब तक पूर्ण रूप से ऐसा आदर्श कमप्य़ूटर बनाने में सफलता नही मिल पाई है जो गलती करने के बाद दूसरे कमप्य़ूटर पर दोषारोपण कर सके और अपना माईक या माउस उस पर फ़ेंक कर मार सके ।"
***
ज्ञान चर्चा :
"अब तक पूर्ण रूप से ऐसा आदर्श कमप्य़ूटर बनाने में सफलता नही मिल पाई है जो गलती करने के बाद दूसरे कमप्य़ूटर पर दोषारोपण कर सके और अपना माईक या माउस उस पर फ़ेंक कर मार सके ।"
***
ज्ञान चर्चा :
’यह बेहद आश्चर्य की बात है कि प्रतिदिन संसार में केवल उतनी ही घटनायें घटित होती हैं जिनसे एक समाचार पत्र पूरा पूरा भरा जा सकता है।"

***
ज्ञान चर्चा :
" हर सफ़ल व्यक्ति के पीछे ( चिर कुमार परम प्रिय श्री अन्ना हजारे जी को छोड़कर ) एक स्त्री होती है और उस स्त्री के पीछे उस व्यक्ति की पत्नी अपने पूरे रौद्र रूप में होती है ।"
***

Sunday, November 6, 2011

चाँद और चाँदनी

-ओंम प्रकाश नौटियाल
-१-
कहा चाँद ने चाँदनी से,
"यह जो तुम रात में,
छोड़ मुझे आकाश में,
निकल मेरे बहुपाश से
पृथ्वी पर
पहुंच जाती हो,
प्रेमी युगलों की गोद में
निसंकोच बैठ जाती हो,,
खिडकी खुली देख
किसी भी
कक्ष में घुस जाती हो,
वृक्षों पर इठलाती हो,
पानी पर लहराती हो,
विरह में जलने वालों को
और जलाती हो,
तुम इससे क्या पाती हो ?
हाँ मुझे अवश्य ही
विरह वेदना दे जाती हो ",
-२-
चाँदनी ने कहा
"प्रियतम, लोगों की
असली सूरत और सीरत
रात में साफ़ नजर आती है,
चेहरे से नकाब हटा होता है
मेकअप मिटा होता है,
दिन के देश प्रेमी
रात में सिर्फ़ प्रेमी होते हैं,
श्वेत उजाले में
जो धुले उजले दिखते हैं,
रात के अंधेरे में
चोरी , बलात्कार
तसकरी ,व्यभिचार
और न जाने
किन किन अपराधों के
इतिहास रचते हैं,
उनके इस रूप को
निहारने का अलग आनन्द है
हर कोई कवि है
हर किसी के पास छंद हैं
नये नये रूप उन्हें पसंद हैं ,
दिन के जो योगी हैं
रात में सिर्फ़ भोगी हैं !!
-३-
मेरे प्रिय, मेरे चन्दा !
तुन्हीं बताओ
आकाशीय समरसता में
कहाँ रस हैं ,
यहाँ सिर्फ़ उबाऊ विस्तार है
पृथ्वी पर मीना बाजार है !!!!

(सर्वाधिकार सुरक्षित )

Tuesday, November 1, 2011

Saturday, October 1, 2011

हरसिंगार की बातें

- ओंम प्रकाश नौटियाल

भ्रष्टाचारी ज्ञान

-ओंम प्रकाश नौटियाल

Monday, September 26, 2011

बेटी

-ओंम प्रकाश नौटियाल


अंधेरों से किया निबाह कि चिराग हो रोशन,
बेटी ही सहारा है जिसे समझा ’पराया धन’ !

पुत्री आयी अनचाही, थी इच्छा और पुत्र की,
तनया प्राण से समर्पित, है बेटा कहीं मगन !

जाने कन्या जन्म पर, क्यों मुरझा गये सारे,
मानों उनके सभी स्वप्न, हुए आज हों दहन !

अजन्य, अनर्थक, अनिमित्त सा जिसे जाना,
कभी शक्ति स्वरूप दुर्गा,कभी मलयजा पवन !

ममतामयी, प्रिया अनुरक्ता,अंतरग अनुरागी,
हो रूप माता या पत्नी का, बेटी हो या बहन !

जिस घर में नारी का स्नेह संसार बसता हो,
सदा रहा सुगन्धित है, हुआ मानों अभी हवन !

मोह बंधन

ओंम प्रकाश नौटियाल

प्रबल मोह पाश से
स्नेहसिक्त मिठास से
अर्चना उपवास से
सदभावना विश्वास से
निर्मल पावन मन से,
सृष्टि के उदगम से
नारी ने सबको
निज दास बना रक्खा है !

कर्म धर्म जाप हो
क्रंदन, प्रलाप हो
दुख हो विलाप हो
किसी का संताप हो
सर्वहारी नारी ने,
पत्नी महतारी ने,
बेटी , बहन प्यारी ने,
जीवन में सबके
उल्लास बना रक्खा है,
सृष्टि के प्रारंभ से
निज दास बना रक्खा है !

बंधकर कई बंधन में
इस जग प्रांगण में
निष्ठ, शिष्ट आचरण से
द्दढ़ता से प्रण से,
सबके जीवन में
सुवासित सा सुन्दर पलाश
खिला रक्खा है,
नारी ने सदियों से
निज दास बना रक्खा है !

हाल-ए-हिन्दी

-ओंम प्रकाश नौटियाल

साँसत में हिन्दी है कि आया फ़िर पखवाडा
मात्र दिखावे की खातिर बाजेगा ढ़ोल नगाडा

कब तक ढ़ोयेगा भारत यूं अंग्रेजी का भार
दिखावे के लिये होगा, बस हिन्दी का प्रचार

गर्वीली शर्मीली हिन्दी, अंग्रेजी हैलो हाय
हिन्दी का हक़ मारते लाज तनिक न आय

करोडों की भाषा क्यों हो दया की मोहताज
शिक्षा सफ़ल तभी,जो हो स्वभाषा पर नाज

चले गये अंग्रेज,अंग्रेजी के हैं अब भी ठाठ
हिन्दी देश में जोह रही निज पारी की बाट

पखवाडे भर जश्न है फ़िर लम्बा बनवास
देश में अब तक यही हिन्दी का इतिहास

कितने पखवाडे हुए पर चली अढाई कोस
कार्यालयों में हिन्दी लगे, मानों हो खामोश

हिन्दी के गले में अटकी, अंग्रेजी की फाँस
बेटी की अपने ही घर आफ़त में है साँस

फिर आया पखवाडा सुन, हिन्दी हुई उदास
शेष वर्ष तो कर्मी मुझको नहीं बैठाते पास

भाषा उत्तर दक्षिण की,बंगला हो या सिन्धी
बहनों के लाड़ दुलार से खूब फ़ली है हिन्दी

अंग्रेजी बोली गुरूर से हिन्दी को कर लक्ष्य
पक्ष मना भर लेने से तू आये ना समकक्ष

हृदय से न चाह थी तभी ढीले किये प्रयास
’राजभाषा’ निज देश में घूमे फ़िरे हताश

भाषा जोडेगी वही जिसमें हो माटी की गंध
फिरंगी भाषा कैसे दे, अपनेपन का आनंद

सरकारी पक्ष वर्षों में कर ना सके जो काम
टीवी और हिन्दी फ़िल्मों ने दिया उसे अंजाम

(सर्वाधिकार सुरक्षित )

Saturday, September 10, 2011

मासूम लडकी

(नेता द्वारा एक मासूम के तथाकथित बलात्कार और शोषण के समाचार पर आधारित)
-ओंम प्रकाश नौटियाल

झलक उसकी पाने को,
यूं ही छत पे जाता था,
घबरायी चोर नजरों से
उधर नजरें घुमाता था,
जाने किन खयालों में, मगर खोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।

कभी इस ओर देखेगी
गीत मैं गुनगुनाता था,
कभी तो तंद्रा टूटेगी
पैर भी थपथपाता था ,
मगर कोने में बैठी वह, कुछ सोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।

शीतल सर्द मौसम में
पवन सनसनाती थी,
वह जुल्फ़ें हटाती थी
चूडी खनक जाती थी,
दुपट्टे से ढ़क अंखियाँ , रोयी रोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।

कभी कमरे को उसके,
मैंने रोशन नही देखा,
तम दूर करने का हो,
उसका मन, नहीं देखा,
अंधेरों को अंधेरों में , वह पिरोई सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।

एक दिन उधर घर से,
रोना सा सुन कर के,
झाँका जब वहाँ मैने,
छ्त पर चढ़ कर के,
खाली था पड़ा कोना, वह जहाँ सोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।

उस दिन सुनी मैंने,
जो करुण कहानी थी,
उसकी मौत के पीछे,
सच्चाई वहशियानी थी,
गई खुद छोड दुनिया को, जो खोयी सी रहती थी,
बडी मासूम लगती थी मुझे सपनों में मिलती थी।

किसी दानवी दरिन्दे ने,
दिया जख्म था गहरा,
प्रताडित भी किया उल्टा,
मुरझाया भोला सा चेहरा,
चली ’धिक्कार’ , माँ जिन्दगी ढ़ोयी सी रहती है,
बडी मासूम लगती है मुझे सपनों में मिलती है।


(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन" से )

Saturday, September 3, 2011

पुत्र प्रधान मंत्री कैसे बने?

-ओंम प्रकाश नौटियाल


पुत्र बनाना चाहते मंत्री यदि ’प्रधान’
लें अभी से आप ये बातें जरा जान,

बुरी लतों से आप अपना पुत्र बचायें
देखें कहीं उसे कि मुस्काना ना आये,

इस बात का भी हो पूरा पूरा ध्यान
यदाकदा बामुश्किल खोले वह जुबान,

सारे हों तिकड़मी उसके अपने मित्र
दागियों के बीच में चमके और चरित्र,

जीवन में अपनाये गर अहम ये सूत्र
तय है प्रधान मंत्री होगा आपका पुत्र,

Wednesday, August 31, 2011

श्री गणेश स्तुति हाइकु

-ओंम प्रकाश नौटियाल

भाद्र पद में
शुक्ल पक्ष चतुर्थी
आप अतिथि

गजवदन
शत शत नमन
कष्ट शमन

आपका जाप
जगमग प्रताप
दे शुभ लाभ

पुष्प अक्षत
आपको समर्पित
मिष्ट मोदक

गण नायक
दिव्य बुद्धि धारक
विघ्न तारक

प्रखर बुद्धि
हो मन वाणी शुद्धि
आये समृद्धि

हे गणपति
ॠद्धि सिद्धि श्रीपति
हरो विपत्ति

मूष वाहक
आप दें आलंबन
कार्य प्रारंभ !!!

Thursday, August 25, 2011

(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन " से )

-ओंम प्रकाश नौटियाल

साँस साँस जीवन है
पल पल समय धार,
बूंद बूंद सागर है
लघु लघु विस्त्तार,

ईश्वर वास कण कण
काल योग क्षण क्षण,
सीमटे से आंचल में
ममता का संसार अक्षुण्ण,

अक्षर अक्षर ज्ञान है
श्वास श्वास प्राण है,
तृण तृण सुप्त ताप,
मन कोष्ठ में छुपा
सदियों का प्रलाप ।

अणु अणु है पदार्थ,
अहं अहं मूल स्वार्थ,
लघु कली कली में बन्द
विश्वव्यापी सुगन्ध,
मेघ मेघ आकाश,
पुष्प पुष्प सौन्दर्य वास,
महा पाप लोभ लोभ,
ध्यान ध्यान योग योग।

जन जन जनतंत्र
अन्ना अन्ना शक्ति यंत्र,
दीनहित भक्ति मंत्र,
समर्पित सत्यनाद से
झंकृत दिग दिगंत ।

साँस साँस जीवन है
पल पल समय धार,
बूंद बूंद सागर है
लघु लघु विस्त्तार ।


(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन " से )

Saturday, August 20, 2011

अन्ना हजारे

-ओंम प्रकाश नौटियाल

कोई तो है तडपता जो
हमारे दर्द के मारे,
कोई तो है अजीज़ अपना
जिसे हम जान से प्यारे ।

कोई तो है जिसे गम
सुना सकते हैं हम सारे,
कोई तो है बनाया जिसने
हम को आँख के तारे ।

कोई तो है नहीं जिसके
आँसू मगरमच्छी ,
कोई तो है नहीं भाते जिसे
बस खोखले नारे।

कोई तो है समझता जो
हमारी जान की कीमत,
कोई तो औषधि बनकर के
आया आज है द्वारे।

कोई तो है हमारी साँस
जिसकी साँस बसती है,
हृदय पवित्र , हमदर्द मित्र
हमारा अन्ना हजारे !!!

(पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, August 14, 2011

आजाद लोग

-ओंम प्रकाश नौटियाल


आजादी की उम्र हुई
अब साठ के उपर,
कुछ इठलाये, बलखाये,
कुछ घिघियाये, सठियाये से लोग !

कहीं गाल पिचके पिचके
कहीं नाज , लटके झटके,
कुछ भूखे, प्यासे तडपें
कुछ रिश्वत खाये से लोग !

कुछ ऐसे घूमे दुनियाँ
जैसे हो गाँव अपना ,
रोटी की दौड ही पर
कुछ का जैसे सपना,
कुछ पैसों के पंख वाले
कुछ रोगी, गठियाये से लोग !

कुछ फ़ैलाते नफ़रत
हर शख़्स कुछ को प्यारा,
हिंसा ही कुछ की फ़ितरत
कुछ का धर्म भाईचारा,
कुछ दयालु, सहिष्णु
कुछ जिद्दी, हठियाये से लोग !

कुछ देश की खातिर
अपनी जान तक दे डालें,
स्व जान की सेवा में
कुछ देश बेच डालें ,
कुछ गर्वीले मन भाये,
कुछ खुद पे भरमाये से लोग !


हर मौसम से घबराये
कुछ लरजाये, सताये से लोग,
कुछ लाचार, आधे अधूरे
कुछ ड्योढे सवाये से लोग,
बेमौसम ही खिलखिलायें
कुछ गरमाये, गदराये से लोग !


बेबस नजरों से देखें
कुछ तरसाये ललचाये से लोग,
पाँवों में कुछ के दुनियाँ
कुछ इतराये अघाये से लोग,
कुछ वक्त के सरमाये
कुछ वक्त के सताये से लोग !


कुछ सहमें , चरमराये
डरे डराये, धमकाये से लोग,
कुछ जन्म से बने बनाये
साँचे में ढले ढलाये से लोग,
कुछ निस्तेज, रात के साये
कुछ चमचमाये, तमतमाये से लोग

आजादी की उम्र हुई
अब साठ के उपर,
कुछ इठलाये, बलखाये,
कुछ घिघियाये, सठियाये से लोग !

Saturday, July 30, 2011

बहुत याद आती है !!!

--ओंम प्रकाश नौटियाल

धानी धान के खेतों से
महकती महक चावल की,
शिव श्रावण पूजने जाती
झनक कन्या की पायल की,
गौरैय्या के चींचींयाने की
बहुत याद आती है,
सहन में सूखते दानों की
जो दावत उडाती थीं।

अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।


हवा बारिश के मौसम में
घर से निकल जाना,
बगीचों से गुजर जाना
आम ’टपके’ के भर लाना,
गालियों की वो बौछार
अकसर याद आती है
फलों की चोरी पर जो
कहीं से दनदनाती थी ।

अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।


लगता मुट्ठी में बंद सा
वक्त फिसला पर रेत सा
यादों की धुंधली बदलियाँ
साया लगती प्रेत सा
अकसर उस पैमाने की
बहुत याद आती है ,
साकी की मानिंद जो
तुम आँखों से पिलाती थी

अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।

(मेरी नव प्रकाशित पुस्तक "साँस साँस जीवन " से
Mob: 9427345810)

Tuesday, July 26, 2011

आई गई बात

-ओंम प्रकाश नौटियाल


जीवन प्रभात था,
ममतामय हाथ था,
थाप हुई आई गई ।

मैंने तुम्हें प्यार किया,
तुमने दुत्कार दिया,
बात हुई आई गई।

उनके व्यंग वाणों से,
जहरीले तानों से,
आन हुई आई गई ।

उपेक्षा की कसक से,
उम्र भर की सिसक से,
जान हुई आई गई ।

पीडा की तडपन से,
चीख और क्रंदन से,
रात हुई आई गई ।

मिलन की चाह थी,
बंद पडी राह थी,
आस हुई आई गई ।

स्वार्थ भरे नातों से,
मीठी मीठी बातों से,
आह हुई आई गई ।

मुश्किलें सयानी हुई,
जिन्दगी तब फानी हुई,
दुनियाँ हुई आई गई ।

उम्र की ढलान थी,
जर्जर सी जान थी,
साँस हुई आई गई

(मेरी पुस्तक " साँस साँस जीवन" से
ompnautiyal@yahoo.com
Mob : 09427345810 )

Sunday, July 17, 2011

यहाँ सब बिकता है

ओंम प्रकाश नौटियाल



दो जून रोटी के लिए
जिल्लत के थपेडे हैं,
ईमान की हर राह में
रोडे ही रोडे हैं।

सांस लेने की खातिर
यहाँ कितने झमेले हैं,
कुछ भीड़ में खोये से हैं
कुछ अपनों मे अकेले हैं।

बाजार है दुनियाँ
लगे मेले ही मेले हैं,
कुछ को झेलती दुनियाँ
कुछ दुनियाँ को झेले हैं,
कहीं अभाव बिकता है,
कही दुर्भाव बिकता है,
कही अद्दश्य शक्ति सा
प्रभाव बिकता है,
भाव अपना तय कर
कोई हर भाव बिकता है ।

किसी का गीत बिकता है
किसी का साज बिकता है,
बडे यत्न से छुपाया
किसी का राज बिकता है।

किसी के वक्त पर ग्राहक
कोई कुछ लेट बिकता है,
कही सब शुद्ध नकली है
कहीं सब ठेठ बिकता है,
कहीं शिक्षा बिकाऊ है
कहीं पर योग बिकता है,
औषधि बेचने को
पहले कहीं पर रोग बिकता है।

कुछ परोक्ष बिकता है
कुछ प्रत्यक्ष बिकता है,
कहीं साधन बिके पहले
कहीं लक्ष्य बिकता है,
बाजार है दुनियाँ
लगे मेले ही मेले हैं,
कुछ को झेलती दुनियाँ
कुछ दुनियाँ को झेले हैं।

(मेरी नव प्रकाशित पुस्तक " साँस साँस जीवन से"
संपर्क :ompnautiyal@yahoo.com
Mob : 09427345810

Thursday, July 7, 2011

जाखू में प्रभु हनुमान

- ओंम प्रकाश नौटियाल


जाखू में प्रभु हनुमान - ओंम प्रकाश नौटियाल

संजीवनी लेने जाते वक्त, था किया जहाँ विश्राम
जाखू पहाडी शिमला पर हैं विराजमान हनुमान,

वानर सेना यहाँ घूमती निरापद ,निर्भय, स्वछंद,
कलियुग के इंसां में आती उन्हें रावण जैसी गंध,

उनकी बाधा कर पार जो भी पहुंच गया प्रभु द्वार,
पवन पुत्र हनुमान की पायी आशीष, कृपा अपार।

Wednesday, July 6, 2011

खेल प्रबंधन

-ओंम प्रकाश नौटियाल


खेल प्रबंधन मे आवश्यक जरा दूर की सोच,
खिलाडियों के लिये करो, नियुक्त विदेशी कोच,

डोप टैस्ट में जब कभी पकडे जायें खिलाडी
कोच करें बर्खास्त, चलती रहे तुम्हारी गाडी,

कोच, खिलाडी पकड कर , मढ दे सारा दोष
खुद सदा की तरह रहें पाक साफ निर्दोष,

विदेश यात्रा,मस्ती मौज,रहे जारी लूट खसोट
खेल खिलाने में मजा, गर बैठे सही से गोट,

ड्रग्स खिला पदक जिता, करवा लो अभिनंदन,
’ओंम’ न्यारा प्यारा पेशा है खेलों का प्रबंधन।

Sunday, July 3, 2011

पूजने आये मुझे वो

ओंम प्रकाश नौटियाल


सुध कहाँ मुझको रही, बेसुध होने के बाद,
पूजने आये मुझे वो, मेरे बुत होने के बाद।

काबिल-ए-तारीफ़ है साकी की दरिया दिली,
पैमाने भर लाती रही, मेरे धुत होने के बाद।

फ़क रंग हो गया, देख उनकी वो रंगीनियाँ,
रुत तडपती है सदा ही बेरुत होने के बाद ।

रकीब की बातों में मजा उनको आने लगा,
साँसे मेरी थम गई ऐसा रुख़ होने के बाद।

रास्ता कटता ही है कष्टों की जब लत सी हो
गम गुलाम होते हैं, इतने दुख़ होने के बाद।

चोर या चितचोर हो अंधेरों से उसका वास्ता,
प्रेम प्रीतम का पनपता,धुंध कुछ होने के बाद।

Wednesday, June 29, 2011

कैसे मैं जिया

ओंम प्रकाश नौटियाल


इस जिन्दगी को कितने संताप से जिया,
पुण्य से जिया कभी, कभी पाप से जिया।

हावी रहा जीवन भर, जिन्दगी खोने का डर,
दहशत से मौत की मैं काँप काँप के जिया।

हालात जीने के न थे, फिर भी मैं जी लिया,
मुझमें कहाँ था ज़ज्बा, प्रभु प्रताप से जिया।

कुछ दर्द जो मिले , थे वो दर्दीले इस कदर,
भर भर के आहें ,उनके ही आलाप से जिया।

जैसे नचाया जिन्दगी ने बस मैं नाचता रहा,
वक्त की दस्तक पर, उसकी थाप से जिया।

ताउम्र संघर्ष रत रहा, मैं जीने की जुगत में,
कई किये जतन, बडे क्रिया कलाप से जिया।

सुख से रही अदावत और खुशियों से दुश्मनी,
रंज-ओ-गम के साथ मेल मिलाप से जिया।

झंकार से जिया , तो कभी टंकार से जिया,
चरणों में भी झुका, कभी अहंकार से जिया।

कुछ को अजीज, खास समझने का भ्रम पाल,
खा खा के धोखे ,प्रलाप और विलाप में जिया।

(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन" से
ompnautiyal@yahoo.com : 09427345810)

Sunday, June 26, 2011

लडके

--ओंम प्रकाश नौटियाल

जिन लड़कों के बींधे नाक, पडे बून्दे हैं कानों मे
शादी के लिये उनकी है आज गिनती सयानों मे,
दर्द सहने का उनको अभी से खासा तजुरबा है
फिर अनुभव भी है जाने का गहनों की दुकानों में।

Tuesday, June 14, 2011

अनशन उनका

"अनशन यूं तो उनका चट्टान सा द्दढ़ था
चंद रस की बूंदे पडी चूर चूर हो गया ।"
--ओंम

साँस साँस जीवन

ओंम प्रकाश नौटियाल (मेरी लोकप्रिय कविताओं का संग्रह)

88 कवितायें - व्यंग ,गीत और गज़ल ,प्रकृति ,जीवन दर्शन ,अन्य
उत्तम गुण्वत्ता एवं पुस्तक सज्जा

पुस्तक परिचय - अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठित कवयित्री -डा. सरोजिनी प्रीतम द्वारा

"....कवितायें अच्छी हैं ....कथ्य मार्मिक है......." -पद्म भूषण डा. गोपाल दास ’ नीरज ’
"....छ्न्द ,ताल , शैली सहज ,सरल ,प्रवाह मय व सर्वगुण संपन्न.." -डा. सरोजिनी प्रीतम

"--इन्ही रचनाओं से....चिंतन की गहन उदधि से कितने मणि माणिक उपलब्ध हों ज्ञात नहीं .." -डा. सरोजिनी प्रीतम

संपर्क -ओंम प्रकाश नौटियाल :ompnautiyal@yahoo.com : मोबाइल 09427345810 :ब्लाग www.opnautiyal.blogspot.com
स्थायी पता :301 मारुति फ्लैट्स,गायकवाड़ कम्पाउन्ड ,अपौजिट ओ ऐन जी सी ,मकरपुरा रोड ,वडोदरा ,गुजरात 390 009
(15जून से 16जुलाई तक देहरादून व शिमला के दौरे पर हूं )
पुस्तक मूल्य :165/-
विशेष छूट :31 जुलाई 2011 तक
डाक- द्वारा मंगाने पर मात्र 110/- प्रति पुस्तक (डाक खर्च समेत)
( Om Prakash Nautiyal : ICICI Bank A/C no.000301043055)
लेखक से व्यक्तिगत तौर पर लेने से मात्र ₨ 85/-
देहरादून 17 जून से 19जून तक (संपर्क देहरा दून0135-2768770:मोबाइल 09427345810 )
शिमला 23 जून से 14 जुलाई तक(संपर्क शिमला 0177-2626550:मोबाइल 09427345810 )
वडोदरा 16 जुलाई से -......... (संपर्क वडोदरा 0265-2635266 :मोबाइल 09427345810 )

साँस साँस जीवन

ओंम प्रकाश नौटियाल

Saturday, June 11, 2011

कलियुग मे ’मोहन’

-ओंम प्रकाश नौटियाल


उठाते थे निज उंगली पर कभी पर्वत समूचा जो,
वह ’मन’ ’मोहन’ भी कितने लाचार से लगते ।

नचाते थे कभी वंशी की धुन पर गोपियाँ सारी,
उनको बेसुरे कुछ लोग, अपने अनाचार से ठगते।

मनचलों की मनमानी, मनहूस मन्सूबों के किस्से ,
मन मन ही ’मोहन’ को किसी तलवार से चुभते।

सभी सृष्टि है ’मोहन’ की तभी मजबूरी है सहना,
यह मनसबदार सारे पर बडे मक्कार से लगते ।

फ़सल जो पैदा की जनता के उपभोग की खातिर ,
उसे चरने में कोई शर्म ये उनके साथी नहीं करते।

’ओंम’ इस घोर कलियुग में ’मोहन’ भी विवश हैं,
राजा हो या दिग्विजयी , नहीं फ़टकार से डरते।

Sunday, June 5, 2011

तजुर्बे की बात है

-ओंम प्रकाश नौटियाल




बयाँ झूठ इस अन्दाज से करना कि सच लगे,
तुमसे कहाँ हो पाएगा , ये तजुर्बे की बात है।

हम तुम मिलें चोरी से किसी को न दें दिखाई,
मुमकिन नहीं इस रात , ये पूनम की रात है।

कहने को तो वो तेरे मेरे दोनों के साथ हैं,
पर असलियत में वो सिर्फ़ कुर्सी के साथ हैं।

क्यों सोचते हो कि चमन में फिर आएगी बहार
ढाक में देखो अब तक भी बस तीन पात हैं।

’ओंम’ कौन समझेगा यहाँ अब आदमी तुम्हे,
सनद जेब में रहे कि तुम्हारी आदम जात है।

Wednesday, June 1, 2011

अब गाँव कहाँ है

-ओंम प्रकाश नौटियाल


ताल सूखे, बाग उजडे हो गई खेती हवा
है गाँव में बचा मेरे अब गाँव कहाँ है ?

बेइंतहा भीड है हर जगह पे इस कदर,
जमीन ही कहाँ है, मेरे अब पाँव जहाँ हैं ।

पेड कहाँ, हर तरफ़ मकानों का नजारा है,
कोयल की कूक, काग की वो काँव कहाँ है।

लोग घूमते हैं सब नाक पर गुस्सा लिए
जिन्दगी की तपस में अब छाँव कहाँ है ।

समाज सेवा शुरू अपने घर से की जिसने,
ऊंचे महल उनके, तेरा बता पर ठाँव कहाँ है?

तेरी मुफ़लिसी से उनको सता सुख है नसीब
गुरबत से बच पाने का तेरा फ़िर दाँव कहाँ है,

Wednesday, May 25, 2011

आँसू पीकर गुजारी जिन्दगी

-ओंम प्रकाश नौटियाल



आँसू पी पीकर जिसने जिन्दगी गुजारी,
चैन उसको कहाँ अब कुछ देर रोकर हो।

वक्त के थपेडों ने लुढकाया इधर उधर,
अब दर्द नही होता कैसी भी ठोकर हो।

थकान को जिसकी चिर निद्रा की जरूरत,
आराम भला क्योंकर कुछ देर सोकर हो।

तन को साफ़ करना तेरे वश की बात है,
मन का मैल दूर किस पानी से धोकर हो।

प्यार देकर ही करो तुम प्यार की उम्मीद,
फूलों की खेती कैसे काँटों के बोकर हो।

हाल अपना है जमाना के लिए एक दिल्लगी,
इनके लिए तो ’ओंम’ जैसी कोई जोकर हो।

Friday, May 20, 2011

दिग दिगन्त का है

-ओंम प्रकाश नौटियाल



खिलने को फूल बेताब हैं बहुत ,
इंतजार पर उनको बसंत का है।

तुमने तो कभी भरोसा न किया,
अपना भरोसा जीवनपर्यंत का है।

कैसे पहचान हो भले मानस की,
लिबास हर किसी का संत का है ।

मन की व्यथाओं की क्या कहिये,
विस्तार इनका तो अनंत का है ।

अपना समझे पर न निकले अपने,
यही किस्सा दिग दिगन्त का है ।

Wednesday, May 18, 2011

मेरी एक गज़ल से

ओंम प्रकाश नौटियाल

वो तोड़ रहे देश को कि फ़िर से बनायेंगे,
पुख़्ता बनावट के लिए ये तय हुआ होगा।
’ओंम’ हम नेता बहुमुखी प्रतिभा के हैं धनी,
है कौन सा ’धंधा ’जो हमसे अनछुआ होगा।

Tuesday, May 17, 2011

पीछे वाली पहाडी

-ओंम प्रकाश नौटियाल


घाटी में धूप दिन भर,
लम्बी तान के सोई रही,
पीछे वाली पहाडी
उसके इंतजार में खोई रही।
पर वह न आई
और सूरज के पीछे पीछे
चली गई साँझ के धुँधलके में,
सर्द वेदना से पहाडी कंपकंपा गई
रात के अंधकार में समा गई,
यह उसकी समझ से बाहर था,
कि धूप पर भी कुछ का ही अधिकार था।

या यह धूप का अहंकार था,
जो तुष्ट होता था,
पर्वत शिखर पर पहुंचने में
जहाँ उसकी शक्ति को सब देख सकें,
उसकी किरणों को सराह सकें ।
छोटी सी पहाडी के कुंज में,
कौन देखेगा उसके तेज पुंज को ?

धूप को पाना है तो स्वयं आना होगा बाहर
उस पहाडी के पीछे से,
तुम्हारे लिए
कोई वहां धूप लेकर आयेगा,
मुझे शंका है ।

Monday, May 9, 2011

रुक रुक ठहर ठहर

- ओंम प्रकाश नौटियाल


नजरों को जब से लग गई है उम्र की नज़र
बस एक सी लगती हैं मुझे शाम ओ सहर।

रिश्तों की ओट से जो फ़रिश्ते से लगते थे
जाने कब से दे रहे थे, एक मीठा सा जहर।

’तरक्की’ से गाँव इस कदर बदरूप सा हुआ
ना गाँव का होकर रहा , ना ही बना शहर।

शराफ़त के लबादे को ’बिन लादे न’ निकलना
मिटा देगी अहंकार को, सुनामी की एक लहर।

देश में जमीं के लिये जंग जारी है जबर्दस्त,
हर शहर में ’आदर्श धाम’ बनाने की है खबर।

मंथर गति से चलने की है सबको लत यहाँ,
काश वक्त भी तो चलता रुक रुक ठहर ठहर।

Tuesday, May 3, 2011

वहाँ लादेन ना हो

-ओंम प्रकाश नौटियाल


पापियों को अब न मिल पाये पनाह
जमीं पाप से पहले ही बडी भारी है।

देखना कोई रहता वहाँ लादेन ना हो,
ऊंची बडी उस घर की चार दिवारी है।

नापाक पाक,आतंकियों को देगा सजा?
हंसी इस मजाक पर अब भी जारी है।

’मेरा महबूब’ मेरे दिल में कब छुप गया,
मुझे पता नहीं,पर ’तुमको’ खबर सारी है।

’बिन लादे न’ कोई जाये गठरी पापों की
’उपरवाला ’ पुण्य पाप का व्यापारी है।

’ओंम’ मेरी दिवारें हैं हवा, छत आसमां
है मजबूरी तभी , इतनी भी पर्देदारी है।

Monday, May 2, 2011

ए आइ ई ई ई का प्रश्नपत्र लीक ’

(०१.०५.२०११ को)
-ओंम प्रकाश नौटियाल

’विक्की बाबू ’ होगा नाज
तुमको अपनी लीक पर ,
आये पर कभी भारत तो,
नहीं जाओगे जीत कर ।

हम वो राज कर दें फ़ाश
लाख पर्दों में हों जो कैद ,
धंधे में पैसा बन सके तो
नहीं हमसा कोई मुस्तैद ।

परीक्षा पत्र लीक करने में
कोई कहाँ अपने समान है?
अनेकों बार इस हुनर का
दे चुके हम इम्तहान है।

Friday, April 29, 2011

चैन से बेहोश हूं यारों

-ओंमप्रकाश नौटियाल


मयखाने में चैन से बेहोश हूं यारों,
तडपेगा, भुगतेगा होश वाला यारों।

महलों में रहने वाले ये तंग दिल लोग,
हर तंगी से निकलेगा जोशवाला यारों।

हम फकीरों को कहाँ चोरों का डर,
डरा सा रातों जागेगा कोष वाला यारों।

लालची सेठों को फिक्र पीढियों की है,
फटेहाल भी खुश है संतोष वाला यारों।

काले धन कुबेरों का कलेजा तब काँपेगा
क्रान्ति आघोष देगा जब रोषवाला यारों।

Monday, April 25, 2011

देश की हालत में अब सुधार है

- ओंम प्रकाश नौटियाल


अभी अभी मिला एक
अपुष्ट समाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।

भूखों को कहीं कहीं
अब रोटी हुई नसीब,
गरीबी नही बढी उनकी
जो पहले भी थे गरीब,
कुछ भ्रष्टों को सता रहा
अब स्वयं भ्रष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।

पहले लगाते थे कुछ
शिष्ट सभ्य एक ’जी’ ,
अब दो ’जी’ , तीन ’जी’
पर भी लुटाने को हैं राजी,
काली कमाई की खातिर
बढा ’जी’ शिष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।

Thursday, April 21, 2011

पहाडों से दूर जिन्दगी पहाड़ सी

- ओंम प्रकाश नौटियाल


पहाडों से दूर रहकर हुई जिन्दगी पहाड सी,
हरियाली दूर हो गई ये जिन्दगी उजाड़ सी।

मिमिया गई आवाज शहर के शोर शार में,
घाटियों में गूंजी कभी जो सिंह की दहाड़ सी।

जीवन में ताजगी कहाँ, हवा नहीं ताजी नसीब,
मुर्दे मे प्राण फूंकने को, हो रही चीर फ़ाड सी।

गाँव की शुद्ध हवा में हर साँस को सुकू्न था,
यहाँ मिल रही जो हवा, है साँस का जुगाड सी।

तिल सी लगी मुश्किलें गाँव के निश्छ्ल प्यार में,
शहर के झमेले में बनी तिल सी मुसीबत ताड सी।

Friday, April 8, 2011

कोई तो है जिसे हम पुकारे अन्ना हजारे

- ओंम प्रकाश नौटियाल



कोई तो है तडपता जो
हमारे दर्द के मारे,
कोई तो है अजीज़ इतना
जिसे हम जान से प्यारे ।

कोई तो है जिसे गम
सुना सकते हैं हम सारे,
कोई तो है बनाया जिसने
हम को आँख के तारे ।

कोई तो है नहीं जिसके
आँसू मगरमच्छी ,
कोई तो है नहीं भाते जिसे
बस खोखले नारे।

कोई तो है समझने को
हमारी जान की कीमत,
कोई तो औषधि बनकर के
आया आज है द्वारे।

कोई तो है हमारी खातिर
हजारों साल जियेगा,
कोइ तो है जिसे हम
पुकारे अन्ना हजारे !!!

Thursday, April 7, 2011

फुटपाथ पर पैदा हुआ

- ओंम प्रकाश नौटियाल



फुटपाथ पर पैदा हुआ फुटपाथ पर मरा,
इतना था शेर दिल गरीबी से नहीं डरा ।

जन्म लिया और बस वो जवान हो गया,
इस छलाँग में पर उसे बचपन नही मिला।

जवानी के एक जोडी कपडे यूं रास आ गये,
तन से रहे जब तक था साँसों का सिलसिला।

राष्ट्रीय मार्ग के लोग फ़ुटपाथ नहीं पहुंचे,
शिकवे सुनाता किसको कहता किसे गिला ।

भारत चमक रहा है उसे गर्मी में लगता था,
तिलमिलाता सूरज जब करता था पिलपिला।

’ओंम’ अन्ना के आमरण अनशन से आई आस,
इन बडी भूख वालों को तू भूख छोडकर हिला।

Wednesday, April 6, 2011

भ्रष्टाचार की दीमक का विष

-ओंम प्रकाश नौटियाल



सर्व विदीत सत्य है
भ्रष्टाचार की दीमक
है नोट की हर गड्डी पर लगी
चिंतित हैं सभी,
देश की पूंजी बचाने को
भ्रष्टाचार की दींमक
के लिये विष बनाने को !

मुद्दा केवल इतना है
कौन बनाये यह विष,
सता पक्ष का कहना है
जनता करे स्वीकार,
उसके पास नही है
विष बनाने का
संवैधानिक अधिकार,
मान लिया हम उसे दे भी दें
इस विष का लाइसैन्स
पर भोली जनता ने विष की जगह
असली विष बना दिया तो?
जनता तो भूख में
खुदकशी तक कर लेती है
फ़िर कैसे सुनिश्चित होगा
इस विष को स्वयं नही पियेगी
मरती मरती और नहीं मरेगी ?
आखिर हमें भी लोगों की चिंता है
हम नही चाहते,
भूखी प्यासी जनता
स्वयं ही विष देखकर ललचाये,
और संविधान बदनाम हो जाये !!

बडे मुद्दे हैं इसके साथ जुडे,
चाहे कोई खुश हो या कुढे,
हमें सबपर गौर करना है,
और फ़िर भ्रष्टाचार तो मर ही जायेगा
जब सबको मरना है !

जनता में तो संतोष की कमी है
आँखे बस भ्रष्टाचार पर जमीं हैं ,
हमें सारे पहलू गौर से देखेंगे,
तभी कोई पासा फ़ेकेंगें,
हम साठ साल से यही करते आये हैं,
कोई पागल हैं या सठियाये हैं ?
यह मुद्दा नहीं है
सांसदों के भत्ते या वेतन का,
कि क्षणों में मतैक्य हो जाये,
गंभीर मसला है
वर्षों तक सोचना होगा
बाल की खाल नोचना होगा ,

भ्रष्टाचार की दीमक के लिये
पर विष तो हमीं बनायेंगे ,
और अपने हाथों से पिलायंगे ,
दरमियाना विष बनाना होगा
जो विष होकर भी विष नही होगा।

जिन दीमको को इतने वर्षों में
पाला पोसा बडा किया,
उनको ऐसे ही नही मरने देंगे
विष देंगे भी और नही भी देगें,
विष हल्का हो
तो पीने में मजा भी है,
और दिखाने के लिये एक सजा भी है,
और फ़िर अनुभव भी है हमें
धीमे मीठे विष बनाने का,
सरकारी भंडारों में सडा
अनाज जनता को खिलाने का !

और फ़िर धन की रक्षा
अब भी तो होती है
स्विश जैसे ठंडे देशों में भी बैंक हैं
वहाँ दीमक कहाँ होती है
वहाँ भी भारतीय नोटों की
गड्डीयाँ होती हैं ।

पर भोली है जनता
जल्दबाजी चाहती है
अरे, वर्षों लगते हैं
तब युग बदलते है
कलयुग में क्यों
त्रेता द्वापर की
आस करते हैं !!!

Saturday, April 2, 2011

बधाई भारत !!! (विजेता विश्व क्रिकेट २०११)

-ओंम प्रकाश नौटियाल

तम छाँटा ’गौतम ’ ने बदली भारत की तकदीर,
विजय सलोनी ’होनी’ हुई वाह, धोनी धुरंधर धीर।

’विराट’ इच्छा शक्ति हो तो जग जाहिर यह राज,
विजय अवश्य ही दिलवायेगा कभी कोई ’युवराज’।

सरल सचिन का स्वप्न सधा, है देश अति प्रसन्न,
हरभजन , जहीर , युवी वार से रहे विरोधी सन्न।

अंतिम दौर तक पहुंचाया बल्ले से उगल कर आग,
तुम सा नहीं दूसरा कोई ,जय जय विरेन्द्र सहवाग।

संत, मुनाफ़, पियुष, अश्विन,रैना,पठान और नेहरा,
धन्य सभी का योगदान,तभी बंधा विजय का सेहरा।

खेलों की गौरव गाथा में जुडा नवीन सुनहरा पन्ना,
नाचो,गाओ खुशी मनाओ,धिन धिन ना धिन धिन ना।

Friday, April 1, 2011

फ़ेसबुक और जनसंख्या

-ओंम प्रकाश नौटियाल



नव जनगणना आँकडों ने दिया शुभ समाचार,
जन संख्या वृद्धि दर की है तेज घटी रफ़्तार ।

शोध कर जब कारण का इसके पता लगाया,
निष्कर्ष बडा ही रोचक यह तब सामने आया ।

भारतीय जोडों मे बढ़ा है फ़ेस बुक से लगाव,
इस के द्वारा बातें करते , हो जब मनमुटाव ।

दोनों की गोद में होता रात में, अपना लैपटौप,
ऐसे में क्या जरुरत खायें प्यार का लालीपाप ।

जो वर्षों से हुआ नहीं भले कितने किये उपाय,
देवी फ़ेस बुक की कृपा हो,सब संभव हो जाय !!

Sunday, March 27, 2011

आम आदमी

-ओंम प्रकाश नौटियाल



बडा आम सा लगे बेचारा आम आदमी,
बेखबर ज्यों अंजाम से हो आम आदमी।

रोटी की चिंता में यहाँ वहाँ फिरे मारा,
बेदाम सा बिक जाता है आम आदमी।

बडे बडे लोग तो कितने नाम वाले हैं,
’अनाम’ सा घूमे बेचारा आम आदमी।

हर तरफ़ से उसको दुत्कार ही मिले,
’हाय राम’ सा है बेचारा आम आदमी।

काम की तलाश के बस काम में जुटा,
कहने को बेकाम सा है आम आदमी ।

चेहरों पर उनके काले धन की चमक है,
दोपहर में पर शाम सा है आम आदमी।

सारे फलों का यूं तो है ’आम’ बादशाह,
पर ’आम’ से मजाक सा है आम आदमी।

अखबारों मे उसकी चर्चा है कभी कभी,
पर कार्टून में काम का है आम आदमी।

’ओंम’ कुछ कहें वह किसी काम का नही,
चुनाव में पर शान सा है आम आदमी।

Saturday, March 26, 2011

बाल सुलभ चिंता

ओंम प्रकाश नौटियाल


’मोहन’ बोले ’लालकृष्ण’ से, यह तथ्य करो स्वीकार,
पी एम पद पर नहीं, किसी का जन्म सिद्ध अधिकार।

सुनकर बात ’अविवाहित बालक’ मन मन में घबराया,
तीर ’लाल’ की आड ले,कहीं मुझ पर तो नहीं चलाया।

मैने ही जननी से कह इनको इस पद पर बिठलाया ,
बस में सीट सुरक्षित करने हेतु,ज्यों रुमाल रखवाया।

चली आई जो वंश रीत, अब मैं गद्दी लेने को तैय्यार,
क्यों बोले ’मोहन’ नहीं गद्दी पर जन्म सिद्ध अधिकार?

Monday, March 21, 2011

जापानी ज़लज़ला

ओंम प्रकाश नौटियाल


मजीरे, ढ़ोल काँपें, लगे बेरंग सा गुलाल है,
भूकम्प त्रासदी का बन्धु , बेहद मलाल है।

रुख़सारों पे रंग का कहाँ वैसा जमाल है,
विकिरण के ज़हर का ज़हन में खयाल है।

मुहब्बत का जज्बा,पर सुस्त पड़ी चाल है,
विकास इस कीमत पर? मन में सवाल है।

जापानी जलजले से जख्मी जी निढाल है,
भीषण ऐसे दुख देख, जीना ही मुहाल है।

प्रभू आप सर्वज्ञ आपको सबका खयाल है,
पहले सी हो भोर वहाँ ,मिटे जो बवाल है।

Friday, March 18, 2011

हा हा हा होली है

-ओंम प्रकाश नौटियाल



जमाना आज ब्लाग का है,
स्लम और स्लमडाग का है,
नोट वोट का ऐसा रिश्ता,
जैसे चीन पाक का है,
स्वार्थ के रिश्ते बने
दामन और चोली है
हा हा हा होली है।

चाँद रोज बदलता है,
फ़िजा में भी बदलाव है,
मुम्बई हमले के अब तक
हरे सारे घाव हैं,
खुश है हर हाल में पर
जनता बडी भोली है,
हा हा हा होली है।

कितने घोटाले हुए
हुई जाने कितनी जाँच,
साक्ष्य बडे पुख्ता थे,
पर ’उन’ पर न आई आँच,
उनके नये ’आदर्श धाम’ ,
अपनी वही खोली है,
हा हा हा होली है ।

पदक की खातिर ,
खिलाडी स्वेद बहाते रहे,
खेल से न जिनका रिश्ता
बढते उनके खाते रहे,
खिलाडियों ने भर दी,
पदकों से झोली है,
हा हा हा होली है ।

चलाते जो देश वह,
दूरदर्शी लोग होते हैं,
अपनी पीढ़ीयों के लिये,
अपार धन संजोते हैं,
जनता खोयी सी मानों
अलसायों की टोली है,
हा हा हा होली है ।

उंचे उंचे पद पर जो
बड़े उनके घोटाले हैं,
पंगु प्रहरी देखें पर,
उनके मुंह लगे ताले हैं,
भ्रष्टाचारीयों और पुलिस में
रिश्ता बडा ’होली’ है,
हा हा हा होली है ।

Saturday, March 12, 2011

परवरदिगार है सूत्रधार

ओंम प्रकाश नौटियाल


प्रभु ने अपनी यह सृष्टि
नेह के साथ रचाई है,
फ़िर क्योंकर कुपित द्दष्टि
इस सृष्टि पर बरसाई है?

जब एक सुनामी आती है
बवन्डर कैसे कर जाती है,
आबाद चहकते भवनों को
पल में खंड़हर कर जाती है।

तकनीक लगी बेबस सी
विज्ञान रहा मौन तकता,
कुदरती कहर के आगे,
मानव कितना बौना लगता।

क्या होगा मेरे बाद यहाँ
यह चेतन मन की बाते हैं,
चिंता की पीर सताती है,
जब तक चलती ये साँसे हैं।

इस कारण से हे अज्ञानी
तज दे तुरंत यह अहंकार,
कठपुतली सा तेरा वजूद
परवरदिगार है सूत्रधार ।

Wednesday, March 2, 2011

जय भोले बाबा

-ओंम प्रकाश नौटियाल


भोले बाबा, तरस खाओ
पसीजो तुम, जरा सुन लो,
हम भक्तों के सवालों को,

प्रलयंकर ! हो अब बम बम बम,
बजे डमरू डमा डम डम,
हो छ्म छ्म छ्म, छ्मा छ्म छ्म
रमालो भस्म, जटा खोलो,
झटक दो अपने बालों को,

बहुत कुछ सह लिया तुमने,
हलाहल पी लिया तुमने,
ध्वस्त कर दो न देरी हो,
पापियों की कुचालों को,

कालरात्रि का लाग है,
तन मन में एक आग है,
तन तान्डव में तन्मय,
उठो खोलो नयन तीजा,
भस्म अब तो कर दो
घोटाला करने वालों को,
घोटालों के दलालों को,

जय जय मेरे शंकर,
नीलकंठ, प्रलयंकर !
पसीजो तुम , तरस खाओ
बचा लो अपने भक्तों के
मुंह से छीने निवालों को,
उनके अगले सालों को ,

तन तान्डव में करो तन्मय,
उठो खोलो नयन तीजा,
भस्म अब तो कर दो ,
घोटाला करने वालों को,
घोटालों के दलालों को ।

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

Monday, February 28, 2011

काला धन

-ओंम प्रकाश नौटियाल


श्वेतपोश नेताओं को भली प्रकार यह ज्ञात,
कोयले की करो दलाली तो काले होते हाथ ।

धन काला छूने से तभी वह परहेज फ़रमाते,
दाता से कहकर सीधे खातों में जमा कराते ।

इसी वास्ते काले धन पर अपने शासक मौन,
काले धन को लाने में काले हाथ करेगा कौन?

रंग निखारने के लिए वह शीत देशों मे जाते,
श्वेत श्याम धन करने हेतु वहाँ खोलते खाते।

श्वेत श्याम धन समझो, जैसे अनुलोम विलोम,
स्वस्थ,प्रसन्न हो तन,मन भजता हरि ’ओंम’।

Thursday, February 17, 2011

कलियुग के ’मोहन’

-ओंम प्रकाश नौटियाल



उठाते थे निज उंगली पर कभी पर्वत समूचा जो,
वह ’मन’’मोहन’ भी कितने आज लाचार से लगते ।

नचाते थे कभी वंशी की धुन पर गोपियाँ सारी,
उनको बेसुरे कुछ लोग, अपने अनाचार से ठगते ।

मनचलों की मनमानी, मनहूस मन्सूबों के किस्से ,
मन मन ही ’मोहन’ को किसी तलवार से चुभते।

सभी सृष्टि है ’मोहन’ की तभी मजबूरी है सहना,
यह मनसबदार सारे पर बडे मक्कार से लगते ।

’ओंम’ कलियुग घोर है तभी ’मोहन’ भी विवश हैं,
राजा कंस, शिशुपाल नहीं उनकी फ़टकार से डरते।

Wednesday, February 16, 2011

देहरा दून

-ओंम प्रकाश नौटियाल


वास्ता जिस शख्श का भी, कभी इस शहर से रहा,
इसकी यादों में खोया रहा, जिस भी शहर में रहा।
इसके हुस्न में ना कमी , ना कोई मुझे दाग मिला,
टहलता निकला जिधर, लीची,आम का बाग मिला।
हवा में ताजगी और सरगम, माहौल में सुकून है,
रहूं कहीं पर भी मगर बसा दिल में देहरादून है।

Sunday, February 13, 2011

प्रेम दिवस

-ओंम प्रकाश नौटियाल


इस देश में हर दिन ही पहले प्यार की रुत थी,
है उस जमाने की बात जब फ़ुर्सत ही फ़ु्र्सत थी,

अब कहाँ वक्त रोज इश्क का इजहार कर सकें,
इस तेज रफ़्तार जीवन में ’उन्हे’ प्यार कर सकें,

लो आ गया है फिर से ’प्रेम दिवस’ का त्यौहार,
चलो मिल लें कहीं आज, बहा दें प्रेम की बयार,

’ओंम’ देखो प्यार को,पर ना इतने प्यार से देखो,
काफ़ी है ’प्रेम दिवस’ शेष दिन व्यापार को देखो।

मिस्र क्रान्ति - कुछ हाइकु

-ओंम प्रकाश नौटियाल


मिस्र के मित्रों,
मुबारक का जाना,
हो मुबारक ।

मन उमंग,
जश्न और उमंग,
मिस्र प्रसन्न ।

मिस्र में क्रान्ति,
लायी परिवर्तन,
चैन अमन ।

आई खुशियाँ,
मुबारक के बाद,
क्रान्ति को दाद ।

अहिंसा पर,
जिनको रहा नाज,
आजाद आज ।

बापू का कहा,
विजय अहिंसा से,
उतरा खरा ।

गाँधी ने दिया,
अहिंसा का जो बल,
रहा सफ़ल ।

Saturday, February 12, 2011

मायावी जूते

ओंम प्रकाश नौटियाल



जूते में आपके जब कभी रजकण को देखा है,
यकीं मानों नजारा यह दुखते मन से देखा है,
तत्क्षण उन्हे दमका,चेहरा उस दर्पण में देखा है,
उज्जवल है भविष्य अपना, समर्पण में देखा है,
पुलिस वालों से ज्यादा, न ’माया’ जाल समझोगे
’माया’ से मिले ’माया’, लिखा कण कण में देखा है।

Thursday, February 3, 2011

मिश्र में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के विरोध में आंदोलन

-ओंम प्रकाश नौटियाल

मेरे’मिश्री’’हुस्न मुबारक’ हो तुझे तेरा,
तुझे तकने से पेट पर भरता नहीं मेरा,
महलों के झरोखों से हमें निहारने वाले,
रोजी रोटी को तरसें हैं तेरे चाहने वाले।

वसंत -कुछ हाइकु

-ओंम प्रकाश नौटियाल



मन प्रसन्न
अब आया वसंत
शीत का अंत

धरती प्यारी
पीले पुष्पों का हार
स्वर्ण श्रंगार

छोटे से दिन
वसंत के आने से
हुए सयाने

फूलों की गंध
हवा में मंद मंद
वाह वसंत

ऋतु वसंत
पतझड का अंत
शान्त पवन

हे ऋतुराज
कोयल गाये गीत
तुमसे प्रीत

Saturday, January 29, 2011

रोशनी में तुम रहो

-ओंम प्रकाश नौटियाल



रोशनी में तुम रहो,और रोशनी में हम रहें,
रोशन रहें खुशियां जो अंधेरों में गम रहें।

जितने बने थे दोस्त वो रकीबों के यार थे,
बस मेरे ही पाँव थे जो मेरे हम कदम रहे।

सोचता हूं कर लूं अब तुम्हारे प्यार से तौबा,
बची जिन्दगी मे मेरी भी चैन-ओ-अमन रहे।

आराम से जीने को क्या कुछ नहीं मिलता,
पर चैन तो तब है जो हसरतें ही कम रहे।

’ओंम’ दुनियाँ देती रही ताकतवरों का साथ,
साँस तब तक है जब तक तुम में दम रहे।

Wednesday, January 26, 2011

६२ वा गणतंत्र

-ओंम प्रकाश नौटियाल


आजादी मिले हमें, हो गये वर्ष साठ से उपर,
खुशहाल मस्त महौल का जमाना कहाँ आया?
न जाने किन दुरात्माओं का है देश में साया,
झंडे को निर्भय हो, हमें फ़हराना कहाँ आया?

Saturday, January 15, 2011

१६ जनवरी -मेरा जन्म दिन

-ओंम प्रकाश नौटियाल

-1-
१६ जनवरी आई है,
वह तिथि जो
याद दिलाती है प्रति वर्ष,
मेरा पृथ्वी पर आना,
और बताना कि
मैं अजन्मा नहीं रहा,
बृह्मान्ड के किसी कोने में
कहीं तनहा पडा नहीं रहा,
अब मैं सांसारिक हूं, जैविक हूं,
वर्षों से धरती का अंग हूं,
कुछ के लिए अंतरंग,
कुछ के लिए मात्र प्रसंग हूं,
कुछ का अजीज हूं
कुछ के लिए अजनबी।
पढाती है यह तिथि,
उम्र के गणित का वैचित्र्य,
जिसमें एक वर्ष का योग,
अर्थात वय से एक वर्ष का वियोग।
-2-
ले जाती है यह तिथि
गलियारे में बचपन के,
जब इस दिन माता पिता,
मुझे तुला पर बैठा कर,
मेरे भार बराबर
करते थे अन्नदान,
पूजा होती थी,
एक उत्साह रहता था,
क्योंकि यह दिन ले जाता था
मुझे और करीब युवा उम्र के,
यानि शिखर की ओर ।
-3-
और अब यह तिथि धकेल रही
वर्ष प्रतिवर्ष मुझे,
कदम दर कदम नीचे की ओर,
शिखर छूट गया पीछे की ओर,
ढलान में संभाल की आवश्यकता है,
यात्रा अब कुछ कठिन है,
पर यही वास्तविक परीक्षा है,
आपकी शुभकामनाओं की
अब अधिक अपेक्षा है ।

Thursday, January 13, 2011

मेरी पतंग

-ओंम प्रकाश नौटियाल

मित्रों वह जो पीली लाल,
उडती उडती लहराती है,
लहरा लहरा कर उडती है,
गगन की शान बढाती है,
वह नील गगन की रानी,
मेरी पतंग शहजादी है,
उससे पेंच लडाना चाहो
इसकी तुमको आजादी है,
पर उसको काट गिराओगे,
यह मात्र तुम्हारी भ्रान्ति है,
क्योंकि मेरी प्यारी पतंग
विजेता मिस मकरसक्रांति है।

Sunday, January 2, 2011

नव वर्ष आ रहा है

-ओंम प्रकाश नौटियाल

नव वर्ष आ रहा है , नव वर्ष आ रहा है ,
ढेरों पलों मे भर क्या क्या ये ला रहा है ।

कुछ पल निश्चय ही मीठे मधुर भी होंगे,
मिलन की चाह में, प्रिय कैसे आतुर होंगे,
शुभघडी की आस में,मन मस्त गा रहा है,
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।

बारह महीनों में कितने काम करने होंगे,
मेरे भी हैं सपने,कुछ प्रीतम के सपने होंगे,
सपनों के सागर में मन हिलोंरे खा रहा है,
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।

कुछ पलों में छुपा, दुख का कोई फ़साना,
आखिर तो जग नश्वर,लगा है आना जाना,
इस मौके पर कभी यह डर भी सता रहा है
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।

समय के साथ चलना है तेरी जिन्दगानी,
समय फिसल गया तो बेकार जिन्दगानी,
वक्त बेवक्त वक्त,बस यही समझा रहा है,
नव वर्ष आ रहा है, नव वर्ष आ रहा है ।

तुम्हारे पलों में होंगी पिछ्ले पलों की बातें,
अपनों के प्यार की और छ्लकपट की बातें,
कुछ किस्सों की याद से मन पछ्ता रहा है,
नव वर्ष आ रहा है , नव वर्ष आ रहा है ।

पावन परिणय कुछ होंगे, नाचेंगे मीत सारे,
नवजात किलकारियाँ भी गूंजेगी तेरे द्वारे,
जो कुछ संजोया होगा सब याद आ रहा है,
नव वर्ष आ रहा है , नव वर्ष आ रहा है ।
ढेरों पलों मे भर क्या क्या ये ला रहा है।