Wednesday, April 17, 2024

मानीटर का चुनाव


 

लघुकथा -चुनावी टिकट

 "गुमान बाबू , चरण वंदन , अब की बार तो आपको टिकट मिलना पक्का है ,लिख कर ले लो मुझ से ।" मोहन ने सामने से ठाकुर गुमान सिंह को सामने आता देख अभिवादन के साथ खुशामदी लहजे में अर्ज किया । उसने ठाकुर साहब की पोशाक से अंदाज लगा लिया था कि ठाकुर साहब पार्टी की मीटिंग में ही जा रहे हैं।

"पता नहीं भाई ,तुम लोग हर बार  चुनाव से पहले ऐसी ही अटकलबाजियाँ लगाते हो, पार्टी वाला भी जो मिलता है यही कहता है ,पर हर बार निराशा हाथ लगती है । देखते हैं क्या होता है इस बार ।

"होना क्या है ठाकुर साहब । इस बार आपको टिकट देने के अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प ही नहीं है ।पिछले पाँच सालों में आपने इतने विरोध प्रदर्शन करवाये कि  गिनती ही नहीं है, कई बंद करवाये ,धरने दिये ।इन सबमें करोड़ॊ की सरकारी संपत्ति जलकर खाक हुई ।कितनी दुकाने जली, मकान जले ,लोग मरे ,घायल हुए ।यह सारे काम पार्टी हाई कमाण्ड अनदेखा कर सकती है क्या ? आप के  अपने ऊपर भी गाली गलौज , मारपीट ,साजिश वगैरह के दसों केस दर्ज हुए ,इतने सच्चे ,कर्मठ, समर्पित नेता को इस बार भी यदि बार बार टिकट नकारा जाता है तो यह हमारी बर्दाश्त के बाहर होगा ।"

मोहन की बातें सुनकर ठाकुर भीतर ही भीतर बहुत प्रसन हुए और बोले," अरे मोहन तुझे पता नहीं की पार्टी के भीतर क्या क्या चलता है ।सारा खेल पैसे, भाई भतीजा वाद ,वंशवाद पर टिका है । देश की , राज्य की चिंता किसे है ? पर मोहन, इस बार टिकट नहीं मिला तो मैंने भी सोच लिया है अन्याय के खिलाफ ईंट से ईंट बजा दूँगा । तुम देखना मैं क्या करता हूँ तब । जरा जल्दी में हूँ ,फिर मिलता हूँ।।"

"ठीक है ठाकुर साहब .आप निश्चिंत रहें पूरा गाँव आपके साथ है,आग लगा देंगे पार्टी कार्यालय को । आखिर हमारा भी तो देश के प्रति कुछ कर्तव्य है ।"

ठाकुर साहब दुगने आत्म विश्वास और हल्की सी विजयी मुस्कान के साथ मीटिंग में भाग लेने के लिये तेज कदमों से पार्टी कार्यालय की ओर बढ़ गये ।

-ओम प्रकाश नौटियाल

(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित }

बडौदा ,मोबा. 9427345810


Saturday, April 13, 2024

Friday, April 5, 2024

Sunday, March 31, 2024

Saturday, March 30, 2024

कुछ अन्य व्यंग्यात्मक दोहे

 -1-

ताने चाहे मारिए , 

करते रहिए तंज

चाल सदा टेढ़ी चले, 

सत्ता की शतरंज

-2-

जनता जा किससे कहे ,

भूख प्यास का दर्द

सत्ता की अनुभूति पर, 

 चढ़ी   लोभ की गर्द

-3-

स्वप्न मरूथल से हुए ,

अश्रु भी गए  सूख

सत्ता को न रुला सके , 

रोजी, रोटी, भूख !

-4--

स्वर्ण महल में बैठ कर , 

बस कोरे उपदेश

इस नौटंकी से  कभी , 

दूर न हों जन  क्लेश 

-5-

पद बिन हो सेवा नहीं ,

 रिश्वत  बिन न विकास

सेवक तो स्वामी बने ,

 लोग दास के दास

-6-

भाषण में जब की शुरू , 

दीन दुखी की बात

अभिनय किया कमाल का,

सिसक उठे जज़्बात !

-7-

जिस नेता  के  पक्ष में, 

लड़े  मित्र  से  रात,

वह जा मिला विपक्ष में, 

अभी भोर की  बात

-8-

भूत प्रेत इस जगत में , 

या नेता मासूम

केवल मन के वहम हैं , 

तथ्य रहे मालूम

-9-

नेता अपने देश के , 

हीरे हैं बेजोड़

बिकने पर जो आ गये, 

कीमत कई करोड़

-10-

बाजीगर सत्ता करे , 

कैसे कैसे खेल

बिन नदी के बाँध बनें ,

सच पर कसे नकेल

-11-

फूट डालने के विषय , 

सत्ता करे तलाश

आम गरज़  के प्रश्न  तो ,

दे न फटकने पास

-12-

महल के परकोटे  से,  

सूखी रोटी फेंक

फिर मुनादी करवा दे , 

राजा कितना नेक


कुछ व्यंग्यात्मक दोहे

 -1-

सत्य किसी ने यह कहा,   नहीं झूठ के पैर

इस कारण ना कर सकें , नेता पैदल  सैर !

-2-

होली में कैसे खिले, उन शक्लों पर रंग

जिन पर पहले ही चढ़ी , झूठ कपट की जंग !

-3-

महँगाई को क्या पता?,न्यूटन का सिद्धांत,

नीचे  आती  हो  कभी,याद  नहीं  दृष्टान्त,

-4-

तूती बोले झूठ की, यही सनातन सत्य,

इसी भरोसे चल रहे, दरबारों के कृत्य !

-5-

चुप  देखे   बूढ़ी  धरा, मानव की करतूत,

जन्मदायिनी को किया, तिरस्कृत, शिलीभूत !

-6-

"विधि"  पर रखिए आस्था, हो न यह जमींदोज

लोकतंत्र को दें नहीं , बुलडोजर की डोज

-7-

खेतों में उगते कभी , फसलें गेहूं धान

उर्वर माटी की बढ़ी , अब उग रहे मकान

-8-

सभा ,रैलियाँ रोड़ शो ,इन पर जो धन स्वाह

कोटि वंचित कर सकते ,जीवन भर निर्वाह

-9-

मेल मिलाप बंद हुआ, सुस्त पड़ गए पैर,

व्हाट्स एप पर बैठकर, शब्द करें बस सैर!

-10-

तनिक नहीं संवेदना , हृदयहीन है तंत्र

भूखी चीख पुकार को , संज्ञा दें षड़यंत्र

-11-

वंचित ,त्रस्त, दीन, दुखी, दिव्यांगी मजबूर 

स्व हिताय की राजनीति, कितनी इन पर क्रूर !

-12-

आँसू ,दर्द, बिवाइयाँ ,जनता की तकदीर

लूट , झूठ, चालाकियाँ , सत्ता की तसवीर

-13-

पद बिन सेवा हो नहीं, बिन रिश्वत न विकास

सेवक स्वामी बन गए , लोग दास के दास !

-14-

दौरा कर नेता हुए, गर्मी से बेहाल

अगन बरसती गगन से , उस पर मोटी खाल !

-15-

कबिरा देखे पार से, ढोंगी सब संसार,

इन पर होगी बेअसर, दोहों की अब मार !!

-16-

पैगासस सी चाँदनी , खुली खिड़्कियाँ देख

कक्ष कक्ष घुसकर करे, निजता मटिया मेट

-17-

राजनीति के मसखरे , बदलें पल पल रंग

धन, पद , कद जो दे सके, चले उसी के संग !

-18-

ठगी, गुण्डई, व्यभिचार , डाके, भ्रष्टाचार

अखबार के पृष्ठ चार , खबरें बढी़ हजार !!

-19-

तिलियाँ यदि गीली हुई, माचिस है बेकार

आग लगाने का करे , काम सदा अखबार

-20-

जो कहते उनको कभी ,छू तक गया न दर्प

अहं भरा यह कथन ही ,  करता बेड़ा गर्क

-21-

रावण अति विद्वान था , इसका नहीं महत्व,

विद्वता दानवी बनी, शोचनीय यह तत्व !

-22-

प्रजा अगर चोरी करे, तनिक नहीं स्वीकार

प्रतियोगी इस क्षेत्र में,  नहीं चाहे  सरकार

-23-

गाँठ बाँध लें बात यह , किसका भी हो तख़्त

लौट कभी आता नहीं , कालाधन अरु वक्त

-24-

अहिंसा में कुछ जन का, ऐसा है विश्वास

इसकी रक्षा के लिए , मार बिछा दें लाश

-25-

सांसद,मंत्री अन्य सब ,हैं चुनाव में व्यस्त

देश उसी तरह चल रहा,सुस्त,पस्त पर मस्त 

-26-

हृदय नहीं सियासत का,न ही पेट में आँत,

खाने औ' दिखाने  के,अलग अलग हैं  दाँत

-27-

सच बोलता सहमा सा, झूठ दबंग बुलंद

विनाश की है द्यूत गति, रचना की अति मंद

-27-

सत्य रहा अविचल खड़ा , झूठ कर रहा सैर,

सच का क्या वजूद भला , ढपली , बीन बगैर 

-29-

जयंती पर  कुछ पल ही, जिंदा हुआ कबीर

साखी ,सबद गा कर फिर, चलता बना फ़कीर 

-30-

जल संकट के विषय में,हर सत्ता गंभीर,

कभी न देगी सूखने,इन नयनों का नीर 

-31-

राजनीति के वृक्ष पर , रही न उतनी शाख

हर उल्लू को दे सके , एक सुखद आवास 

-32-

वाणी से विष शर चलें, लुप्त हुआ सद्‍भाव

जहर उगलता खेल है, जिसका नाम चुनाव

-33-

बंदर की संतान हम , इसमें क्या संदेह

उछल कूद अभिनय कला, उस पर नंगी देह

-34-

काँवड़ियों की सड़क पर, बढ़े भीड़ प्रतिवर्ष

बेकारी अब छू रही  , नित्य नए उत्कर्ष 

-35-

सत्ता भटके राह से, कलम रहे पर मौन

ऐसे चमचों को भला , लेखक कहेगा  कौन ?

-36-
जिस नेता  के  पक्ष में, लड़े  मित्र  से  रात,
वह जा मिला विपक्ष में, अभी भोर की  बात
-37-
स्वर्ण महल में बैठ कर , जनता को उपदेश
नौटंकी से तो भला , दूर न होते क्लेश 
-38-
स्वप्न मरूथल से हुए ,गये  अश्रु भी सूख
मुँह बाए फिर भी खड़े , रोजी, रोटी, भूख !
-39-
नेता सब इक डाल के, बातों के उस्ताद 
प्रवचन देने में करें ,समय पूर्ण बरबाद 
-40-
ताने चाहे मारिए , करते रहिए तंज
चाल सदा टेढ़ी चले, सत्ता की शतरंज
-41-
न्याय भला कैसे मिले , विदुर ,भीष्म जब मौन
दुःशासन पर रोक अब ,  लगा सकेगा कौन ?
-42-
दीन दुखी का तो यही ,हाल मृत्यु पर्यंत
बड़ी विपद आकर करे , छोटे दुख का अंत
-43-
रिश्ते दुःशासन हुए , मर्यादा का अंत
आस्था का धंधा करें, पीर , मौलवी संत
-44-
दल बदलें, कुर्सी मिले , यह नेतन की जात
जन सेवा के नाम पर ,  वादों की बरसात !
-45-
जनता जा किससे कहे ,भूख प्यास का दर्द
अनुभूति पर चढ़ी हुई,  राजनीति की गर्द
-46-
पखवाडा फ़िर आ रहा , हिन्दी हुई उदास
शेष वर्ष तो यह मुझे , दें न बैठने पास
-47-
सीधी और स्पष्ट लगी, नेता जी की राय
सेवा करने के लिए,  कुर्सी मात्र  उपाय
-48-
आँखें   रहे   तरेरते,   जब थे सत्तासीन,
पग में बिछे चुनाव में, बन कर के कालीन !
-49-
पृथ्वी का रौंदा प्रथम, हरा भरा संसार
एक दिन का पर्व मना, जता रहे उपकार 
-50-
भाषण में जब की शुरू , दीन दुखी की बात
अभिनय किया कमाल का,सिसक उठे जज़्बात !
-51-
झाँसे , वादे, गालियाँ , झूठों की तकरीर
आँसू , दर्द बिवाइयाँ , जनता की तकदीर
-52-
रोता है पर्यावरण, वह दिन करके याद,
छक कर जब लेता रहा, हरियाली का स्वाद !!
-53-
नगर गाँव अतिवृष्टि ने ,खूब रचा षड़यंत्र
पानी में कंधों तलक , डूब  गया जनतंत्र !
-54-
वाहन कुल कितने जले , कितनी जली दुकान
बंद रहा कितना सफल ,इस संख्या से जान
-55-
हर नगर में मुख्य मार्ग , है गाँधी के नाम 
चलना उनकी राह पर , सरल हो गया काम
-56-
मँहगाई ने नहीं पढ़ा ,  गुरूत्व का सिद्धांत
नियम तोड़ने का मिला, पहला यह द्दष्टांत 
-57-
सब दल चिंतित हो रहे, आये पास चुनाव
देखें अब के लग सके, वादों का क्या भाव
-58-
घपले उजागर करिए , कीजे सतत कटाक्ष
साक्ष्य वही सच्चे जिन्हे , सत्ता माने साक्ष्य
-59-
रो रो बोला झूठ ने, सच सच अपना हाल
सत्य अगर कह दूँ कभी , तय है मृत्यु अकाल
-60-
गाँव नगर अतिवृष्टि ने, रचा खूब षडयंत्र 
पानी में कंधों तलक ,डूब गया जनतंत्र

Thursday, March 21, 2024

Thursday, February 15, 2024

Sunday, February 4, 2024

राम भरोसे

 राम भरोसे

 

मेधावी लोग

पंक्तियों के मध्य पढ़ लेते हैं

अनलिखा,

वह भी सुन लेते हैं जो है

अनकहा,

स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं

मष्तिष्क में दिन रात 

तनाव भरते हैं

दूसरी ओर आमलोग

अभाव से ग्रस्त

भले हों त्रस्त

सत्ता सिखाती है कि

न कुछ सोचें

न किसी को कोसें

रहें "राम भरोसे"

भजन पूजन में व्यस्त

और बस मस्त !!

-ओम प्रकाश नौटियाल

(पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित )


Wednesday, January 31, 2024

उलट पलट


 

कौंध रही है दामिनी

 यह अंबुधर निवासिनी

कौंध रही  है दामिनी 


पंछी को आस बसेरे की

चिंता है कच्चे डेरे की

अंबुद छाए भूरे काले

अनहोनी को कैसे टालें

बहुत डराती  यामिनी

कौंध रही  है दामिनी 


गरजें बदरा सहमे जियरा

पिया पिया गा रहा पपिहरा

जामुन टपकें हैं टप टप टप

बाहर है बारिश छप छप छप

क्रोधित सी ज्यों भामिनी

कौंध रही  है दामिनी 


दादुर बोल रहे टर टर टर

गौरेया फुदके फर फर फर

इधर उधर उगे कुकुर मुत्ते

अमरूद और खीरे, भुट्टे

शोर करे मंदाकिनी

कौंध रही  है दामिनी 

-ओम प्रकाश नौटियाल

31/01/2024


सरस्वती वंदना

 आई हूं प्रातः  मात द्वार

लेकर मन में श्रद्धा अपार

माँ शारदा पूजन स्तुति थाल

सुरभित सुन्दर ले पुष्प माल

--1-

लालिमा भोर नभ है ठहरी

गूंजे भजनों की स्वर लहरी

पाखंडियों से डरी सहमी

माँ तुम रक्षक  तुम जग प्रहरी

ज्ञानदात्री करो तम निढ़ाल

अर्पित यह अनुपम पुष्प माल

-2-

धूप चंदन मकरंद सुगंध

धुएं का हल्का श्याम रंग

देवी सानिध्य भोर बेला

अंतस पावन उमंग तरंग

तिलक सोहे ज्ञानदा भाल

शोभित यह न्यारी पुष्प माल

-3-

हृदय में न तनिक रहे संशय

सरस्वती पूजन  इक उत्सव

जीवन का श्रम श्वासों की लय

जब मात शरण  तो कैसा भय

हो प्रदीप्त ज्ञान कृपा मशाल

सुरभित सुन्दर यह पुष्प माल

- ओम प्रकाश नौटियाल

31/01/2024