Saturday, July 30, 2011

बहुत याद आती है !!!

--ओंम प्रकाश नौटियाल

धानी धान के खेतों से
महकती महक चावल की,
शिव श्रावण पूजने जाती
झनक कन्या की पायल की,
गौरैय्या के चींचींयाने की
बहुत याद आती है,
सहन में सूखते दानों की
जो दावत उडाती थीं।

अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।


हवा बारिश के मौसम में
घर से निकल जाना,
बगीचों से गुजर जाना
आम ’टपके’ के भर लाना,
गालियों की वो बौछार
अकसर याद आती है
फलों की चोरी पर जो
कहीं से दनदनाती थी ।

अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।


लगता मुट्ठी में बंद सा
वक्त फिसला पर रेत सा
यादों की धुंधली बदलियाँ
साया लगती प्रेत सा
अकसर उस पैमाने की
बहुत याद आती है ,
साकी की मानिंद जो
तुम आँखों से पिलाती थी

अकसर उस जमाने की
बहुत याद आती है
खुली आँखों के सपनों में
मुझे बचपन घुमाती है ।

(मेरी नव प्रकाशित पुस्तक "साँस साँस जीवन " से
Mob: 9427345810)

Tuesday, July 26, 2011

आई गई बात

-ओंम प्रकाश नौटियाल


जीवन प्रभात था,
ममतामय हाथ था,
थाप हुई आई गई ।

मैंने तुम्हें प्यार किया,
तुमने दुत्कार दिया,
बात हुई आई गई।

उनके व्यंग वाणों से,
जहरीले तानों से,
आन हुई आई गई ।

उपेक्षा की कसक से,
उम्र भर की सिसक से,
जान हुई आई गई ।

पीडा की तडपन से,
चीख और क्रंदन से,
रात हुई आई गई ।

मिलन की चाह थी,
बंद पडी राह थी,
आस हुई आई गई ।

स्वार्थ भरे नातों से,
मीठी मीठी बातों से,
आह हुई आई गई ।

मुश्किलें सयानी हुई,
जिन्दगी तब फानी हुई,
दुनियाँ हुई आई गई ।

उम्र की ढलान थी,
जर्जर सी जान थी,
साँस हुई आई गई

(मेरी पुस्तक " साँस साँस जीवन" से
ompnautiyal@yahoo.com
Mob : 09427345810 )

Sunday, July 17, 2011

यहाँ सब बिकता है

ओंम प्रकाश नौटियाल



दो जून रोटी के लिए
जिल्लत के थपेडे हैं,
ईमान की हर राह में
रोडे ही रोडे हैं।

सांस लेने की खातिर
यहाँ कितने झमेले हैं,
कुछ भीड़ में खोये से हैं
कुछ अपनों मे अकेले हैं।

बाजार है दुनियाँ
लगे मेले ही मेले हैं,
कुछ को झेलती दुनियाँ
कुछ दुनियाँ को झेले हैं,
कहीं अभाव बिकता है,
कही दुर्भाव बिकता है,
कही अद्दश्य शक्ति सा
प्रभाव बिकता है,
भाव अपना तय कर
कोई हर भाव बिकता है ।

किसी का गीत बिकता है
किसी का साज बिकता है,
बडे यत्न से छुपाया
किसी का राज बिकता है।

किसी के वक्त पर ग्राहक
कोई कुछ लेट बिकता है,
कही सब शुद्ध नकली है
कहीं सब ठेठ बिकता है,
कहीं शिक्षा बिकाऊ है
कहीं पर योग बिकता है,
औषधि बेचने को
पहले कहीं पर रोग बिकता है।

कुछ परोक्ष बिकता है
कुछ प्रत्यक्ष बिकता है,
कहीं साधन बिके पहले
कहीं लक्ष्य बिकता है,
बाजार है दुनियाँ
लगे मेले ही मेले हैं,
कुछ को झेलती दुनियाँ
कुछ दुनियाँ को झेले हैं।

(मेरी नव प्रकाशित पुस्तक " साँस साँस जीवन से"
संपर्क :ompnautiyal@yahoo.com
Mob : 09427345810

Thursday, July 7, 2011

जाखू में प्रभु हनुमान

- ओंम प्रकाश नौटियाल


जाखू में प्रभु हनुमान - ओंम प्रकाश नौटियाल

संजीवनी लेने जाते वक्त, था किया जहाँ विश्राम
जाखू पहाडी शिमला पर हैं विराजमान हनुमान,

वानर सेना यहाँ घूमती निरापद ,निर्भय, स्वछंद,
कलियुग के इंसां में आती उन्हें रावण जैसी गंध,

उनकी बाधा कर पार जो भी पहुंच गया प्रभु द्वार,
पवन पुत्र हनुमान की पायी आशीष, कृपा अपार।

Wednesday, July 6, 2011

खेल प्रबंधन

-ओंम प्रकाश नौटियाल


खेल प्रबंधन मे आवश्यक जरा दूर की सोच,
खिलाडियों के लिये करो, नियुक्त विदेशी कोच,

डोप टैस्ट में जब कभी पकडे जायें खिलाडी
कोच करें बर्खास्त, चलती रहे तुम्हारी गाडी,

कोच, खिलाडी पकड कर , मढ दे सारा दोष
खुद सदा की तरह रहें पाक साफ निर्दोष,

विदेश यात्रा,मस्ती मौज,रहे जारी लूट खसोट
खेल खिलाने में मजा, गर बैठे सही से गोट,

ड्रग्स खिला पदक जिता, करवा लो अभिनंदन,
’ओंम’ न्यारा प्यारा पेशा है खेलों का प्रबंधन।

Sunday, July 3, 2011

पूजने आये मुझे वो

ओंम प्रकाश नौटियाल


सुध कहाँ मुझको रही, बेसुध होने के बाद,
पूजने आये मुझे वो, मेरे बुत होने के बाद।

काबिल-ए-तारीफ़ है साकी की दरिया दिली,
पैमाने भर लाती रही, मेरे धुत होने के बाद।

फ़क रंग हो गया, देख उनकी वो रंगीनियाँ,
रुत तडपती है सदा ही बेरुत होने के बाद ।

रकीब की बातों में मजा उनको आने लगा,
साँसे मेरी थम गई ऐसा रुख़ होने के बाद।

रास्ता कटता ही है कष्टों की जब लत सी हो
गम गुलाम होते हैं, इतने दुख़ होने के बाद।

चोर या चितचोर हो अंधेरों से उसका वास्ता,
प्रेम प्रीतम का पनपता,धुंध कुछ होने के बाद।