ओंम प्रकाश नौटियाल
"लाये जितने दिन थे तुम सभी हुए व्यतीत
कुछ जीवन के मीत थे और कुछ थे विपरीत,
वर्ष! तुम्हारा आज जब जीवन जायेगा बीत
मेरे अतीत में रहना, मेरे मित्र,मेरे मनमीत!!"
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मैं चुप रहा तो और गलतफ़हमियाँ बढी , वो भी सुना है उसने, जो मैने कहा नहीं । -----डा. बशीर बद्र
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