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Thursday, June 23, 2016
Sunday, June 12, 2016
Friday, July 10, 2015
व्यापम
सोच रहे थे लोग जब , घपले रहे न शेष
ताल भोपाली पीटता, व्यापम करे प्रवेश,
व्यापम करे प्रवेश , हुआ तब धूम धडक्का
देख दैत्य का रूप , देश था हक्का बक्का,
नन्हों का आहार , बडों को न तनिक खरोंच
समझदार यह दैत्य , धन्य है राजसी सोच !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
ताल भोपाली पीटता, व्यापम करे प्रवेश,
व्यापम करे प्रवेश , हुआ तब धूम धडक्का
देख दैत्य का रूप , देश था हक्का बक्का,
नन्हों का आहार , बडों को न तनिक खरोंच
समझदार यह दैत्य , धन्य है राजसी सोच !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Friday, March 20, 2015
नकल के लिए कानून बने!!!
हाल ही में टी वी चैनल्स द्वारा विद्यार्थियों के परीक्षा में नकल किए जाने के विषय में प्रसारित एक विडीयो समाचार देख कर इस बात की खुशी हुई कि बदलते युग में अब नकल भी साधिकार बड़े सुचारू और व्यवस्थित ढंग से की जाने लगी है । इसमें न केवल आधुनिक तकनीक का खुलकर प्रयोग हो रहा है बल्कि अब इसमें समाज के सभी महत्वपूर्ण अंगो ( विद्यार्थी, शिक्षक , पुलिस , माता पिता , मित्र संबंधी आदि ) की सक्रीय भागेदारी भी है । सभी छात्रों को देश निर्माण में बराबर का अवसर देने के लिए समाज के सभी तबके के लोग आगे आ रहे हैं और विद्यार्थी जीवन के परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण पडाव को केवल अपरिपक्व उम्र के बच्चों के भरोसे न छोड़कर विद्यार्थीयों की परीक्षा में अपनी भूमिका गंभीरता से तय कर रहे हैं और निभा रहे हैं ।
हम सबका भी यह कर्तव्य हो जाता ह कि इस विषय में सभी कानूनी अड़चने दूर करने और आवश्यक संशोधन के लिए सरकार से माँग करें ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल (20/3/2015)
हम सबका भी यह कर्तव्य हो जाता ह कि इस विषय में सभी कानूनी अड़चने दूर करने और आवश्यक संशोधन के लिए सरकार से माँग करें ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल (20/3/2015)
Sunday, February 8, 2015
मोदी जी मेरे सपने में
-ओंम प्रकाश नौटियाल
आज सुबह के वक्त स्वप्न में प्रधान मंत्री मोदी जी से मुलाकात हो गई । मोदी जी ने भी मानों मुझे एकदम पहचान लिया और देखते ही बोले , "ओंम भाई केम छो ? वडोदरा मे सब कुछ ठीक है न? " मैंने अभिवादन के साथ उनसे बातचीत प्रारंभ की और एक प्रश्न , जो पिछले कई दिनों से मन को बेचैन कर रहा था , उनके सामने रख दिया । मैंने कहा , "प्रधान मंत्री जी यह अमरीकी राष्ट्रपति हमारे आंतरिक मामलों में क्यों दखलअंदाजी करते हैं ? भारत छोडने से पहले भी उन्होंने भारत को धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने की जुर्रत की थी , अब फिर एक बयान में उन्होंने भारत को इस मसले पर नसीहत दे डाली है । आपको नहीं लगता अमेरिका सारी हदें पार कर रहा है ?"
मोदी जी ने तुरंत हँसकर उत्तर दिया , " अरे नहीं ओंम भाई , मेरा और बराक का मजाक तो चलता रहता है , अब तुमसे क्या छुपाना , उस दिन भारत में चाय पर हुई आपसी बातचीत में मैंने भी उन्हें छेड़ दिया था कि अमेरिका में काले लोगों पर ज्यादती होने के समाचार क्यों आते रहते हैं ?" मजाक की बात थी , बराक ने भी मजाक में जवाब दिया -अरे मैं भी तो काला हूं कभी कभी मुझ पर भी होती है तुम्हारी भाभी की तरफ़ से । हा हा हा - तो हमारा ऐसा हंसी मजाक बिल्कुल नई बात नहीं है । कई दिन हो गए हैं उन्हें भारत से गए हुए । मुझसे फिर मसख्ररी करने का मन हुआ होगा , तो यह मजाक शुरु कर दिया । अब बराक की बातें क्या बताऊं , बडा ही मजाकिया स्वभाव पाया है ।" और तभी पत्नी की "चाय लीजिए " की आवाज के साथ आँख खुल गई ।
यह चाय भी अजीब चीज है किसी के तो प्रधान मंत्री बनने के सपने तक पूरे कर देती है और किसी के प्रधान मंत्री से हो रही बातचीत तक के सपने तोड़ देती है ।
ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा , मोबा.9427345810
आज सुबह के वक्त स्वप्न में प्रधान मंत्री मोदी जी से मुलाकात हो गई । मोदी जी ने भी मानों मुझे एकदम पहचान लिया और देखते ही बोले , "ओंम भाई केम छो ? वडोदरा मे सब कुछ ठीक है न? " मैंने अभिवादन के साथ उनसे बातचीत प्रारंभ की और एक प्रश्न , जो पिछले कई दिनों से मन को बेचैन कर रहा था , उनके सामने रख दिया । मैंने कहा , "प्रधान मंत्री जी यह अमरीकी राष्ट्रपति हमारे आंतरिक मामलों में क्यों दखलअंदाजी करते हैं ? भारत छोडने से पहले भी उन्होंने भारत को धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने की जुर्रत की थी , अब फिर एक बयान में उन्होंने भारत को इस मसले पर नसीहत दे डाली है । आपको नहीं लगता अमेरिका सारी हदें पार कर रहा है ?"
मोदी जी ने तुरंत हँसकर उत्तर दिया , " अरे नहीं ओंम भाई , मेरा और बराक का मजाक तो चलता रहता है , अब तुमसे क्या छुपाना , उस दिन भारत में चाय पर हुई आपसी बातचीत में मैंने भी उन्हें छेड़ दिया था कि अमेरिका में काले लोगों पर ज्यादती होने के समाचार क्यों आते रहते हैं ?" मजाक की बात थी , बराक ने भी मजाक में जवाब दिया -अरे मैं भी तो काला हूं कभी कभी मुझ पर भी होती है तुम्हारी भाभी की तरफ़ से । हा हा हा - तो हमारा ऐसा हंसी मजाक बिल्कुल नई बात नहीं है । कई दिन हो गए हैं उन्हें भारत से गए हुए । मुझसे फिर मसख्ररी करने का मन हुआ होगा , तो यह मजाक शुरु कर दिया । अब बराक की बातें क्या बताऊं , बडा ही मजाकिया स्वभाव पाया है ।" और तभी पत्नी की "चाय लीजिए " की आवाज के साथ आँख खुल गई ।
यह चाय भी अजीब चीज है किसी के तो प्रधान मंत्री बनने के सपने तक पूरे कर देती है और किसी के प्रधान मंत्री से हो रही बातचीत तक के सपने तोड़ देती है ।
ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा , मोबा.9427345810
Friday, May 2, 2014
Wednesday, March 26, 2014
Friday, January 6, 2012
इस बार नये साल तू
-ओंम प्रकाश नौटियाल
गत वर्ष कर सका नहीं
उसको न और टाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
मंहगाई, मंहगाई सी बढी
बढ़ कर जवान हो गई,
कैसे इसे कर दें विदा
साँसत में जान हो गई,
कुछ दिन और रह ली तो
सबकुछ हज़म कर जायेगी,
जनता बेचारी भूख से
त्रस्त हो मर जायेगी,
कैसे भी हो घर से इसे
कहीं दूर आ निकाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
जनसंख्या वृद्धि की देश में
फ़ारमूला एक सी रफ़्तार है,
इस उपलब्धि पर हो रही
जनता की जयजयकार है ,
पर तू भी तो कर ले कुछ
यूं कब से पडा निढाल है ,
अकर्मण्यता पर तेरी मचा
है किस कदर बवाल है ,
वर्षों में पैदा न कर सका
एक सशक्त लोकपाल तू,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
गाँधी के उसूलों का कर
कुछ तो यार खयाल तू ,
चपत लगे जनता की तो
कर आगे दूजा गाल तू ,
जनता बेचारी क्या करे
अस्तित्व का सवाल है ,
जीरो से तू हीरो हुआ
उसका तो बदतर हाल है ,
जन सेवा की है ली शपथ
तो छोड टेढी चाल रे ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
सेवक से तू स्वामी बना
बदली सी तेरी चाल है ,
जनता के पास मुश्किलें
अभाव है अकाल है ,
रोटी के इंतजार में
टूटा सा बस एक थाल है ,
उपर से आ गया है
भरा पूरा नया साल है ,
सेवक का दर्जा अपना
दिल से कर बहाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
-सर्वाधिकार सुरक्षित
गत वर्ष कर सका नहीं
उसको न और टाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
मंहगाई, मंहगाई सी बढी
बढ़ कर जवान हो गई,
कैसे इसे कर दें विदा
साँसत में जान हो गई,
कुछ दिन और रह ली तो
सबकुछ हज़म कर जायेगी,
जनता बेचारी भूख से
त्रस्त हो मर जायेगी,
कैसे भी हो घर से इसे
कहीं दूर आ निकाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
जनसंख्या वृद्धि की देश में
फ़ारमूला एक सी रफ़्तार है,
इस उपलब्धि पर हो रही
जनता की जयजयकार है ,
पर तू भी तो कर ले कुछ
यूं कब से पडा निढाल है ,
अकर्मण्यता पर तेरी मचा
है किस कदर बवाल है ,
वर्षों में पैदा न कर सका
एक सशक्त लोकपाल तू,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
गाँधी के उसूलों का कर
कुछ तो यार खयाल तू ,
चपत लगे जनता की तो
कर आगे दूजा गाल तू ,
जनता बेचारी क्या करे
अस्तित्व का सवाल है ,
जीरो से तू हीरो हुआ
उसका तो बदतर हाल है ,
जन सेवा की है ली शपथ
तो छोड टेढी चाल रे ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
सेवक से तू स्वामी बना
बदली सी तेरी चाल है ,
जनता के पास मुश्किलें
अभाव है अकाल है ,
रोटी के इंतजार में
टूटा सा बस एक थाल है ,
उपर से आ गया है
भरा पूरा नया साल है ,
सेवक का दर्जा अपना
दिल से कर बहाल तू ,
कुछ तो कर ले रे नया
इस बार नये साल तू !
-सर्वाधिकार सुरक्षित
Friday, December 23, 2011
जब तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा
-ओंम प्रकाश नौटियाल
*
झूठ बोलकर भी तुम्हारा मन नहीं पछ्तायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
कूड़े के ढेर से किसी नवजात का सुन क्रंदन,
माँ का स्पर्श ढूंढता हर क्षण क्षीण होता रुदन
हृदय व्यथित तुम्हारा किंचित नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
नीरवता भंग करती, अबला की चित्कार सुन,
माँ बहन का राह में खुले आम तिरस्कार सुन ,
कंपित जरा भी मन मष्तिष्क नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
सामने प्रशस्ति राग और पीछे निंदा की कटार,
कथनी करनी के मध्य चौडी गहरी एक दरार
रिश्ते निभाने का निराला ढ़ंग यह बन जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
मुश्किल में फ़ंसे हुए प्रिय मित्र की दरकार भाँप,
निज स्वार्थ ,अनिच्छा को नकली बहानों से ढाँप ,
विवशता का राग तब अलापना तुम्हें आ जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
*
झूठ बोलकर भी तुम्हारा मन नहीं पछ्तायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
कूड़े के ढेर से किसी नवजात का सुन क्रंदन,
माँ का स्पर्श ढूंढता हर क्षण क्षीण होता रुदन
हृदय व्यथित तुम्हारा किंचित नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
नीरवता भंग करती, अबला की चित्कार सुन,
माँ बहन का राह में खुले आम तिरस्कार सुन ,
कंपित जरा भी मन मष्तिष्क नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
सामने प्रशस्ति राग और पीछे निंदा की कटार,
कथनी करनी के मध्य चौडी गहरी एक दरार
रिश्ते निभाने का निराला ढ़ंग यह बन जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
मुश्किल में फ़ंसे हुए प्रिय मित्र की दरकार भाँप,
निज स्वार्थ ,अनिच्छा को नकली बहानों से ढाँप ,
विवशता का राग तब अलापना तुम्हें आ जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
Tuesday, November 1, 2011
Saturday, September 3, 2011
पुत्र प्रधान मंत्री कैसे बने?
-ओंम प्रकाश नौटियाल
पुत्र बनाना चाहते मंत्री यदि ’प्रधान’
लें अभी से आप ये बातें जरा जान,
बुरी लतों से आप अपना पुत्र बचायें
देखें कहीं उसे कि मुस्काना ना आये,
इस बात का भी हो पूरा पूरा ध्यान
यदाकदा बामुश्किल खोले वह जुबान,
सारे हों तिकड़मी उसके अपने मित्र
दागियों के बीच में चमके और चरित्र,
जीवन में अपनाये गर अहम ये सूत्र
तय है प्रधान मंत्री होगा आपका पुत्र,
पुत्र बनाना चाहते मंत्री यदि ’प्रधान’
लें अभी से आप ये बातें जरा जान,
बुरी लतों से आप अपना पुत्र बचायें
देखें कहीं उसे कि मुस्काना ना आये,
इस बात का भी हो पूरा पूरा ध्यान
यदाकदा बामुश्किल खोले वह जुबान,
सारे हों तिकड़मी उसके अपने मित्र
दागियों के बीच में चमके और चरित्र,
जीवन में अपनाये गर अहम ये सूत्र
तय है प्रधान मंत्री होगा आपका पुत्र,
Wednesday, July 6, 2011
खेल प्रबंधन
-ओंम प्रकाश नौटियाल
खेल प्रबंधन मे आवश्यक जरा दूर की सोच,
खिलाडियों के लिये करो, नियुक्त विदेशी कोच,
डोप टैस्ट में जब कभी पकडे जायें खिलाडी
कोच करें बर्खास्त, चलती रहे तुम्हारी गाडी,
कोच, खिलाडी पकड कर , मढ दे सारा दोष
खुद सदा की तरह रहें पाक साफ निर्दोष,
विदेश यात्रा,मस्ती मौज,रहे जारी लूट खसोट
खेल खिलाने में मजा, गर बैठे सही से गोट,
ड्रग्स खिला पदक जिता, करवा लो अभिनंदन,
’ओंम’ न्यारा प्यारा पेशा है खेलों का प्रबंधन।
खेल प्रबंधन मे आवश्यक जरा दूर की सोच,
खिलाडियों के लिये करो, नियुक्त विदेशी कोच,
डोप टैस्ट में जब कभी पकडे जायें खिलाडी
कोच करें बर्खास्त, चलती रहे तुम्हारी गाडी,
कोच, खिलाडी पकड कर , मढ दे सारा दोष
खुद सदा की तरह रहें पाक साफ निर्दोष,
विदेश यात्रा,मस्ती मौज,रहे जारी लूट खसोट
खेल खिलाने में मजा, गर बैठे सही से गोट,
ड्रग्स खिला पदक जिता, करवा लो अभिनंदन,
’ओंम’ न्यारा प्यारा पेशा है खेलों का प्रबंधन।
Sunday, June 26, 2011
लडके
--ओंम प्रकाश नौटियाल
जिन लड़कों के बींधे नाक, पडे बून्दे हैं कानों मे
शादी के लिये उनकी है आज गिनती सयानों मे,
दर्द सहने का उनको अभी से खासा तजुरबा है
फिर अनुभव भी है जाने का गहनों की दुकानों में।
जिन लड़कों के बींधे नाक, पडे बून्दे हैं कानों मे
शादी के लिये उनकी है आज गिनती सयानों मे,
दर्द सहने का उनको अभी से खासा तजुरबा है
फिर अनुभव भी है जाने का गहनों की दुकानों में।
Saturday, June 11, 2011
कलियुग मे ’मोहन’
-ओंम प्रकाश नौटियाल
उठाते थे निज उंगली पर कभी पर्वत समूचा जो,
वह ’मन’ ’मोहन’ भी कितने लाचार से लगते ।
नचाते थे कभी वंशी की धुन पर गोपियाँ सारी,
उनको बेसुरे कुछ लोग, अपने अनाचार से ठगते।
मनचलों की मनमानी, मनहूस मन्सूबों के किस्से ,
मन मन ही ’मोहन’ को किसी तलवार से चुभते।
सभी सृष्टि है ’मोहन’ की तभी मजबूरी है सहना,
यह मनसबदार सारे पर बडे मक्कार से लगते ।
फ़सल जो पैदा की जनता के उपभोग की खातिर ,
उसे चरने में कोई शर्म ये उनके साथी नहीं करते।
’ओंम’ इस घोर कलियुग में ’मोहन’ भी विवश हैं,
राजा हो या दिग्विजयी , नहीं फ़टकार से डरते।
उठाते थे निज उंगली पर कभी पर्वत समूचा जो,
वह ’मन’ ’मोहन’ भी कितने लाचार से लगते ।
नचाते थे कभी वंशी की धुन पर गोपियाँ सारी,
उनको बेसुरे कुछ लोग, अपने अनाचार से ठगते।
मनचलों की मनमानी, मनहूस मन्सूबों के किस्से ,
मन मन ही ’मोहन’ को किसी तलवार से चुभते।
सभी सृष्टि है ’मोहन’ की तभी मजबूरी है सहना,
यह मनसबदार सारे पर बडे मक्कार से लगते ।
फ़सल जो पैदा की जनता के उपभोग की खातिर ,
उसे चरने में कोई शर्म ये उनके साथी नहीं करते।
’ओंम’ इस घोर कलियुग में ’मोहन’ भी विवश हैं,
राजा हो या दिग्विजयी , नहीं फ़टकार से डरते।
Monday, May 2, 2011
ए आइ ई ई ई का प्रश्नपत्र लीक ’
(०१.०५.२०११ को)
-ओंम प्रकाश नौटियाल
’विक्की बाबू ’ होगा नाज
तुमको अपनी लीक पर ,
आये पर कभी भारत तो,
नहीं जाओगे जीत कर ।
हम वो राज कर दें फ़ाश
लाख पर्दों में हों जो कैद ,
धंधे में पैसा बन सके तो
नहीं हमसा कोई मुस्तैद ।
परीक्षा पत्र लीक करने में
कोई कहाँ अपने समान है?
अनेकों बार इस हुनर का
दे चुके हम इम्तहान है।
-ओंम प्रकाश नौटियाल
’विक्की बाबू ’ होगा नाज
तुमको अपनी लीक पर ,
आये पर कभी भारत तो,
नहीं जाओगे जीत कर ।
हम वो राज कर दें फ़ाश
लाख पर्दों में हों जो कैद ,
धंधे में पैसा बन सके तो
नहीं हमसा कोई मुस्तैद ।
परीक्षा पत्र लीक करने में
कोई कहाँ अपने समान है?
अनेकों बार इस हुनर का
दे चुके हम इम्तहान है।
Monday, April 25, 2011
देश की हालत में अब सुधार है
- ओंम प्रकाश नौटियाल
अभी अभी मिला एक
अपुष्ट समाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
भूखों को कहीं कहीं
अब रोटी हुई नसीब,
गरीबी नही बढी उनकी
जो पहले भी थे गरीब,
कुछ भ्रष्टों को सता रहा
अब स्वयं भ्रष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
पहले लगाते थे कुछ
शिष्ट सभ्य एक ’जी’ ,
अब दो ’जी’ , तीन ’जी’
पर भी लुटाने को हैं राजी,
काली कमाई की खातिर
बढा ’जी’ शिष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
अभी अभी मिला एक
अपुष्ट समाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
भूखों को कहीं कहीं
अब रोटी हुई नसीब,
गरीबी नही बढी उनकी
जो पहले भी थे गरीब,
कुछ भ्रष्टों को सता रहा
अब स्वयं भ्रष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
पहले लगाते थे कुछ
शिष्ट सभ्य एक ’जी’ ,
अब दो ’जी’ , तीन ’जी’
पर भी लुटाने को हैं राजी,
काली कमाई की खातिर
बढा ’जी’ शिष्टाचार है,
देश की हालत में अब
कुछ कुछ सुधार है ।
Wednesday, April 6, 2011
भ्रष्टाचार की दीमक का विष
-ओंम प्रकाश नौटियाल
सर्व विदीत सत्य है
भ्रष्टाचार की दीमक
है नोट की हर गड्डी पर लगी
चिंतित हैं सभी,
देश की पूंजी बचाने को
भ्रष्टाचार की दींमक
के लिये विष बनाने को !
मुद्दा केवल इतना है
कौन बनाये यह विष,
सता पक्ष का कहना है
जनता करे स्वीकार,
उसके पास नही है
विष बनाने का
संवैधानिक अधिकार,
मान लिया हम उसे दे भी दें
इस विष का लाइसैन्स
पर भोली जनता ने विष की जगह
असली विष बना दिया तो?
जनता तो भूख में
खुदकशी तक कर लेती है
फ़िर कैसे सुनिश्चित होगा
इस विष को स्वयं नही पियेगी
मरती मरती और नहीं मरेगी ?
आखिर हमें भी लोगों की चिंता है
हम नही चाहते,
भूखी प्यासी जनता
स्वयं ही विष देखकर ललचाये,
और संविधान बदनाम हो जाये !!
बडे मुद्दे हैं इसके साथ जुडे,
चाहे कोई खुश हो या कुढे,
हमें सबपर गौर करना है,
और फ़िर भ्रष्टाचार तो मर ही जायेगा
जब सबको मरना है !
जनता में तो संतोष की कमी है
आँखे बस भ्रष्टाचार पर जमीं हैं ,
हमें सारे पहलू गौर से देखेंगे,
तभी कोई पासा फ़ेकेंगें,
हम साठ साल से यही करते आये हैं,
कोई पागल हैं या सठियाये हैं ?
यह मुद्दा नहीं है
सांसदों के भत्ते या वेतन का,
कि क्षणों में मतैक्य हो जाये,
गंभीर मसला है
वर्षों तक सोचना होगा
बाल की खाल नोचना होगा ,
भ्रष्टाचार की दीमक के लिये
पर विष तो हमीं बनायेंगे ,
और अपने हाथों से पिलायंगे ,
दरमियाना विष बनाना होगा
जो विष होकर भी विष नही होगा।
जिन दीमको को इतने वर्षों में
पाला पोसा बडा किया,
उनको ऐसे ही नही मरने देंगे
विष देंगे भी और नही भी देगें,
विष हल्का हो
तो पीने में मजा भी है,
और दिखाने के लिये एक सजा भी है,
और फ़िर अनुभव भी है हमें
धीमे मीठे विष बनाने का,
सरकारी भंडारों में सडा
अनाज जनता को खिलाने का !
और फ़िर धन की रक्षा
अब भी तो होती है
स्विश जैसे ठंडे देशों में भी बैंक हैं
वहाँ दीमक कहाँ होती है
वहाँ भी भारतीय नोटों की
गड्डीयाँ होती हैं ।
पर भोली है जनता
जल्दबाजी चाहती है
अरे, वर्षों लगते हैं
तब युग बदलते है
कलयुग में क्यों
त्रेता द्वापर की
आस करते हैं !!!
सर्व विदीत सत्य है
भ्रष्टाचार की दीमक
है नोट की हर गड्डी पर लगी
चिंतित हैं सभी,
देश की पूंजी बचाने को
भ्रष्टाचार की दींमक
के लिये विष बनाने को !
मुद्दा केवल इतना है
कौन बनाये यह विष,
सता पक्ष का कहना है
जनता करे स्वीकार,
उसके पास नही है
विष बनाने का
संवैधानिक अधिकार,
मान लिया हम उसे दे भी दें
इस विष का लाइसैन्स
पर भोली जनता ने विष की जगह
असली विष बना दिया तो?
जनता तो भूख में
खुदकशी तक कर लेती है
फ़िर कैसे सुनिश्चित होगा
इस विष को स्वयं नही पियेगी
मरती मरती और नहीं मरेगी ?
आखिर हमें भी लोगों की चिंता है
हम नही चाहते,
भूखी प्यासी जनता
स्वयं ही विष देखकर ललचाये,
और संविधान बदनाम हो जाये !!
बडे मुद्दे हैं इसके साथ जुडे,
चाहे कोई खुश हो या कुढे,
हमें सबपर गौर करना है,
और फ़िर भ्रष्टाचार तो मर ही जायेगा
जब सबको मरना है !
जनता में तो संतोष की कमी है
आँखे बस भ्रष्टाचार पर जमीं हैं ,
हमें सारे पहलू गौर से देखेंगे,
तभी कोई पासा फ़ेकेंगें,
हम साठ साल से यही करते आये हैं,
कोई पागल हैं या सठियाये हैं ?
यह मुद्दा नहीं है
सांसदों के भत्ते या वेतन का,
कि क्षणों में मतैक्य हो जाये,
गंभीर मसला है
वर्षों तक सोचना होगा
बाल की खाल नोचना होगा ,
भ्रष्टाचार की दीमक के लिये
पर विष तो हमीं बनायेंगे ,
और अपने हाथों से पिलायंगे ,
दरमियाना विष बनाना होगा
जो विष होकर भी विष नही होगा।
जिन दीमको को इतने वर्षों में
पाला पोसा बडा किया,
उनको ऐसे ही नही मरने देंगे
विष देंगे भी और नही भी देगें,
विष हल्का हो
तो पीने में मजा भी है,
और दिखाने के लिये एक सजा भी है,
और फ़िर अनुभव भी है हमें
धीमे मीठे विष बनाने का,
सरकारी भंडारों में सडा
अनाज जनता को खिलाने का !
और फ़िर धन की रक्षा
अब भी तो होती है
स्विश जैसे ठंडे देशों में भी बैंक हैं
वहाँ दीमक कहाँ होती है
वहाँ भी भारतीय नोटों की
गड्डीयाँ होती हैं ।
पर भोली है जनता
जल्दबाजी चाहती है
अरे, वर्षों लगते हैं
तब युग बदलते है
कलयुग में क्यों
त्रेता द्वापर की
आस करते हैं !!!
Friday, April 1, 2011
फ़ेसबुक और जनसंख्या
-ओंम प्रकाश नौटियाल
नव जनगणना आँकडों ने दिया शुभ समाचार,
जन संख्या वृद्धि दर की है तेज घटी रफ़्तार ।
शोध कर जब कारण का इसके पता लगाया,
निष्कर्ष बडा ही रोचक यह तब सामने आया ।
भारतीय जोडों मे बढ़ा है फ़ेस बुक से लगाव,
इस के द्वारा बातें करते , हो जब मनमुटाव ।
दोनों की गोद में होता रात में, अपना लैपटौप,
ऐसे में क्या जरुरत खायें प्यार का लालीपाप ।
जो वर्षों से हुआ नहीं भले कितने किये उपाय,
देवी फ़ेस बुक की कृपा हो,सब संभव हो जाय !!
नव जनगणना आँकडों ने दिया शुभ समाचार,
जन संख्या वृद्धि दर की है तेज घटी रफ़्तार ।
शोध कर जब कारण का इसके पता लगाया,
निष्कर्ष बडा ही रोचक यह तब सामने आया ।
भारतीय जोडों मे बढ़ा है फ़ेस बुक से लगाव,
इस के द्वारा बातें करते , हो जब मनमुटाव ।
दोनों की गोद में होता रात में, अपना लैपटौप,
ऐसे में क्या जरुरत खायें प्यार का लालीपाप ।
जो वर्षों से हुआ नहीं भले कितने किये उपाय,
देवी फ़ेस बुक की कृपा हो,सब संभव हो जाय !!
Sunday, March 27, 2011
आम आदमी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
बडा आम सा लगे बेचारा आम आदमी,
बेखबर ज्यों अंजाम से हो आम आदमी।
रोटी की चिंता में यहाँ वहाँ फिरे मारा,
बेदाम सा बिक जाता है आम आदमी।
बडे बडे लोग तो कितने नाम वाले हैं,
’अनाम’ सा घूमे बेचारा आम आदमी।
हर तरफ़ से उसको दुत्कार ही मिले,
’हाय राम’ सा है बेचारा आम आदमी।
काम की तलाश के बस काम में जुटा,
कहने को बेकाम सा है आम आदमी ।
चेहरों पर उनके काले धन की चमक है,
दोपहर में पर शाम सा है आम आदमी।
सारे फलों का यूं तो है ’आम’ बादशाह,
पर ’आम’ से मजाक सा है आम आदमी।
अखबारों मे उसकी चर्चा है कभी कभी,
पर कार्टून में काम का है आम आदमी।
’ओंम’ कुछ कहें वह किसी काम का नही,
चुनाव में पर शान सा है आम आदमी।
बडा आम सा लगे बेचारा आम आदमी,
बेखबर ज्यों अंजाम से हो आम आदमी।
रोटी की चिंता में यहाँ वहाँ फिरे मारा,
बेदाम सा बिक जाता है आम आदमी।
बडे बडे लोग तो कितने नाम वाले हैं,
’अनाम’ सा घूमे बेचारा आम आदमी।
हर तरफ़ से उसको दुत्कार ही मिले,
’हाय राम’ सा है बेचारा आम आदमी।
काम की तलाश के बस काम में जुटा,
कहने को बेकाम सा है आम आदमी ।
चेहरों पर उनके काले धन की चमक है,
दोपहर में पर शाम सा है आम आदमी।
सारे फलों का यूं तो है ’आम’ बादशाह,
पर ’आम’ से मजाक सा है आम आदमी।
अखबारों मे उसकी चर्चा है कभी कभी,
पर कार्टून में काम का है आम आदमी।
’ओंम’ कुछ कहें वह किसी काम का नही,
चुनाव में पर शान सा है आम आदमी।
Saturday, March 26, 2011
बाल सुलभ चिंता
ओंम प्रकाश नौटियाल
’मोहन’ बोले ’लालकृष्ण’ से, यह तथ्य करो स्वीकार,
पी एम पद पर नहीं, किसी का जन्म सिद्ध अधिकार।
सुनकर बात ’अविवाहित बालक’ मन मन में घबराया,
तीर ’लाल’ की आड ले,कहीं मुझ पर तो नहीं चलाया।
मैने ही जननी से कह इनको इस पद पर बिठलाया ,
बस में सीट सुरक्षित करने हेतु,ज्यों रुमाल रखवाया।
चली आई जो वंश रीत, अब मैं गद्दी लेने को तैय्यार,
क्यों बोले ’मोहन’ नहीं गद्दी पर जन्म सिद्ध अधिकार?
’मोहन’ बोले ’लालकृष्ण’ से, यह तथ्य करो स्वीकार,
पी एम पद पर नहीं, किसी का जन्म सिद्ध अधिकार।
सुनकर बात ’अविवाहित बालक’ मन मन में घबराया,
तीर ’लाल’ की आड ले,कहीं मुझ पर तो नहीं चलाया।
मैने ही जननी से कह इनको इस पद पर बिठलाया ,
बस में सीट सुरक्षित करने हेतु,ज्यों रुमाल रखवाया।
चली आई जो वंश रीत, अब मैं गद्दी लेने को तैय्यार,
क्यों बोले ’मोहन’ नहीं गद्दी पर जन्म सिद्ध अधिकार?
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