ओंम प्रकाश नौटियाल
कक्षा सात विज्ञान परीक्षा में,यह पूछा गया सवाल,
पहाडों पर लम्बे समय तक क्यों नही गलती दाल?
क्या हैं कारण इसके बच्चों, विस्तार से समझाना,
आखिर क्यों इतना मुश्किल है, दाल वहाँ गलाना ?
अनुभव का जो उत्तर था, वह लगा एकदम सच्चा,
सीधे तथ्यों से परिपूर्ण,जिनसे वाकिफ़ बच्चा बच्चा,
लिखा,पहाडों पर स्त्रियाँ करती, बाहर के कई काम,
होती भोर व्यस्त हो जाती, भाग्य में नही आराम।
सुबह उठकर जंगल से वह, लकडियाँ बीनने जाती,
दूध दुहें, कण्डे पाथें, तब फिर चश्में से पानी लाती।
घास लाएं, कुट्टी भी काटें, पशुओं को चारा खिलाएं,
इतने अधिक हैं काम सुबह के, कहाँ तक गिनवाएं।
यह सब करने के बाद ही फुरसत कुछ मिल पाती,
चुल्हा ,सिगडी सुलगा कर तब उस पर दाल चढाती।
देर से दाल चढेगी जब,तो फ़िर देर से ही तो पकेगी
यही कारण है कि पहाडों पर,जल्दी दाल नहीं गलेगी।
मुझको बडे जंचे यह कारण सीधे, मासूम और नेक,
परीक्षक ने जाने क्या सोचा पर, अंक दिया न एक ।
पहाडों का जीवन ऐसा , शहरी सुविधाएं बनी मुहाल,
’ओंम’ इसीलिए वहाँ , सबकी नही गल पाती दाल ।
Sunday, December 12, 2010
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