Monday, May 9, 2016
Saturday, May 7, 2016
मेरे कुछ और दोहे
04.05.2016(FB)
नित्य सुने जनतंत्र में,ऐसे काण्ड अनेक ,
सत्य बैठकर सामने ,रोता घुटने टेक !!
03.05.2016(FB)
जिन कानन गूँजी कभी ,देवों की आवाज ,
देवभूमि के वन वही ,धू धू जलते आज !!
29.04.2016(FB)
पीपल छोड़ा गाँव का ,फिरे भटकते 'ओम ',
दाना पानी ढूंढते ,ज्यों खग नापें व्योम !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
नित्य सुने जनतंत्र में,ऐसे काण्ड अनेक ,
सत्य बैठकर सामने ,रोता घुटने टेक !!
03.05.2016(FB)
जिन कानन गूँजी कभी ,देवों की आवाज ,
देवभूमि के वन वही ,धू धू जलते आज !!
29.04.2016(FB)
पीपल छोड़ा गाँव का ,फिरे भटकते 'ओम ',
दाना पानी ढूंढते ,ज्यों खग नापें व्योम !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Thursday, April 21, 2016
"पृथ्वी दिवस "
"पृथ्वी दिवस " की हार्दिक शुभकामनाएं !!
-
पृथ्वी का छीन पहले, हरा भरा संसार
दिन इक नाम कर उसके, करते अब उपकार !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
-
पृथ्वी का छीन पहले, हरा भरा संसार
दिन इक नाम कर उसके, करते अब उपकार !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
दून में हूं आजकल
(21 अप्रैल 2016) -ओंम प्रकाश नौटियाल
वर्षों से बन रहे इन
उड़न पुलों के पास हूं
मैं दून में हूं आजकल
थोड़ा सा उदास हूं
उपवनों की वह सुगंध
अब लुप्त हो गई है
साँसों में धूल भरती
इस हवा से हताश हूं !थोड़ा सा उदास हूं !!!
वर्षों से बन रहे इन
उड़न पुलों के पास हूं
मैं दून में हूं आजकल
थोड़ा सा उदास हूं
उपवनों की वह सुगंध
अब लुप्त हो गई है
साँसों में धूल भरती
इस हवा से हताश हूं !थोड़ा सा उदास हूं !!!
Wednesday, April 13, 2016
Sunday, April 10, 2016
Wednesday, April 6, 2016
Sunday, April 3, 2016
Friday, April 1, 2016
Tuesday, March 29, 2016
Sunday, March 27, 2016
Thursday, March 24, 2016
Wednesday, March 23, 2016
Monday, March 21, 2016
Saturday, March 19, 2016
Thursday, March 17, 2016
Wednesday, March 16, 2016
Tuesday, March 15, 2016
Sunday, March 13, 2016
Saturday, March 12, 2016
Thursday, March 10, 2016
Tuesday, March 8, 2016
"महिला दिवस " पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं !!!
सब दिन अर्पित आपको ,बहन , स्त्री और मात
जिनसे यह संसार है , ममता, प्रेम , प्रपात!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
जिनसे यह संसार है , ममता, प्रेम , प्रपात!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Sunday, February 28, 2016
Thursday, February 25, 2016
Tuesday, February 23, 2016
Sunday, February 21, 2016
Monday, February 15, 2016
Wednesday, February 10, 2016
Sunday, February 7, 2016
Wednesday, February 3, 2016
Thursday, January 28, 2016
Monday, January 25, 2016
Thursday, January 21, 2016
Wednesday, January 13, 2016
Saturday, January 9, 2016
Wednesday, January 6, 2016
Tuesday, December 29, 2015
Monday, December 28, 2015
Saturday, December 26, 2015
Friday, December 25, 2015
Wednesday, December 23, 2015
Monday, December 21, 2015
Thursday, December 10, 2015
Wednesday, December 2, 2015
Tuesday, November 24, 2015
दशा देश की
पलायन चाहते हो
रखते हो विश्व के किसी भी कोने में
बस सकने की सामर्थ्य,
कहाँ से पाई
किसने दी तुम्हे यह अदम्य शक्ति ?
असीमित पूंजी ?
और आजादी -
छिछलापन यूं सरेआम
छलकाने की ?
रामादीन त्तो इस बार भी
दीपावली पर
शहर से गाँव जाने का
किराया नहीं जुटा पाया
मा जुदाई न सह सकी
दीप ज्योत निहारती
माटी हो गई
असहिष्णु जो थी !!!!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Monday, November 23, 2015
वादों ने मारे है
कभी सावन के तरसे हैं, कभी भादों के मारे हैं
कभी भाषण ने भरमाए ,कभी वादों ने मारे है
हैं ’ओंम ’ रावण सरमाए हमारे भाग्य के देखो
पापियों के ही ढलकाए कीच , गादों के मारे हैं
-ओंम प्रकाश नौटियाल
कभी भाषण ने भरमाए ,कभी वादों ने मारे है
हैं ’ओंम ’ रावण सरमाए हमारे भाग्य के देखो
पापियों के ही ढलकाए कीच , गादों के मारे हैं
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Friday, November 20, 2015
मिले जो ऐसा बाप
-
कर्म हों पूर्व जन्म के , तभी मिले वह बाप
गद्दी सौंप पुत्रों को , राज सँभाले आप,
राज सँभाले आप , सिसकता रहे कानून
लोकतंत्र का नाम , हो और उसी का खून ,
कहें ’ओंम ’ कविराय , दी बेच बची सब शर्म
देश करें निर्माण , पर नींव अनैतिक कर्म !!!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
कर्म हों पूर्व जन्म के , तभी मिले वह बाप
गद्दी सौंप पुत्रों को , राज सँभाले आप,
राज सँभाले आप , सिसकता रहे कानून
लोकतंत्र का नाम , हो और उसी का खून ,
कहें ’ओंम ’ कविराय , दी बेच बची सब शर्म
देश करें निर्माण , पर नींव अनैतिक कर्म !!!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Wednesday, November 18, 2015
चले पाप की ओर
दया , प्रेम प्रधान धर्म, भूले हैं कुछ लोग
लेकर इसकी आड़ पर , करें घातक प्रयोग,
करें घातक प्रयोग , मूल में जिनकी सत्ता
अतिशय नर संहार , काँपता पत्ता पत्ता ,
कहें ’ओंम’ कविराय, छोडी प्रभु प्रदत्त हया
चले पाप की ओर, तज भाईचारा , दया !-ओंम प्रकाश नौटियाल
लेकर इसकी आड़ पर , करें घातक प्रयोग,
करें घातक प्रयोग , मूल में जिनकी सत्ता
अतिशय नर संहार , काँपता पत्ता पत्ता ,
कहें ’ओंम’ कविराय, छोडी प्रभु प्रदत्त हया
चले पाप की ओर, तज भाईचारा , दया !-ओंम प्रकाश नौटियाल
Tuesday, November 17, 2015
एक मुक्तक :अहं की तलवार
जब सर पर अहं की तलवार होगी ,
किस अरि की फिर भला दरकार होगी ?
प्राण ले लेगी हर चैतन्य शह के
’जिंदगी धिक्कार औ’ धिक्कार होगी ! -ओंम प्रकाश नौटियाल
किस अरि की फिर भला दरकार होगी ?
प्राण ले लेगी हर चैतन्य शह के
’जिंदगी धिक्कार औ’ धिक्कार होगी ! -ओंम प्रकाश नौटियाल
Saturday, November 14, 2015
क्रांति संचार की
क्रांति हुई संचार की , कुंद हो गए पैर ,
मित्र मिलन को पर्व में, शब्द करें बस सैर !-ओंम प्रकाश नौटियाल
मित्र मिलन को पर्व में, शब्द करें बस सैर !-ओंम प्रकाश नौटियाल
माटी का दिया
खुश हो माटी का दिया , करने लगा बखान
तम अमावसी रात का , पीकर बढता मान !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
तम अमावसी रात का , पीकर बढता मान !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Friday, November 13, 2015
अनवरत दीप जलें !
दीप दीप्त रहें और अनवरत जलते रहें ,
बातियों में स्वाह अज्ञान तम बहते रहें ,
’ओंम ’ रोम रोम बसी निर्मल स्निग्ध ज्योत हो ,
निर्बाध उजियार में हम सदा फलते रहें !!! \
-ओंम प्रकाश नौटियाल
बातियों में स्वाह अज्ञान तम बहते रहें ,
’ओंम ’ रोम रोम बसी निर्मल स्निग्ध ज्योत हो ,
निर्बाध उजियार में हम सदा फलते रहें !!! \
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Tuesday, November 10, 2015
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।
तिमिर दंभ का छाया ,जो अपने दिमागों में ,
समूल नष्ट हो सब, यही विनती चिरागों से , उजियारा हो स्थायी , ’ओंम’ मेरे भारत में
रहें मन सदा झंकृत , पावन दीप रागों से !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
समूल नष्ट हो सब, यही विनती चिरागों से , उजियारा हो स्थायी , ’ओंम’ मेरे भारत में
रहें मन सदा झंकृत , पावन दीप रागों से !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Thursday, October 8, 2015
अनपढ़ ज्ञानी
कहानी- ऒंम प्रकाश नौटियाल
[यह कहानी "अनपढ़ ज्ञानी’ तथा अर्चना नौटिय़ाल जी की कहानी "जाखू वाली माया " त्रैमासिक पत्रिका साहित्य सरोज में प्रकाशनार्थ २२.४.१५ को भेजी थी । "जाखू वाली माया" अर्चना जी ने अलग से मेल की थी ।प्रत्युत्तर में अखण्ड गहमरी जी का निम्न संदेश २ जून २०१५ को प्राप्त हुआ
"प्रणाम इंस अंक में आन्टी जी की रचना प्रकाशित हो गई है पुस्तक 6 जून से उपलब्ध होगी गुरूवर।
आपकी रचना को अगस्त-सितम्बर के लिए रोक लिया गया "
बाद में अगस्त सितम्बर किन्ही कारणों से प्रकाशित नहीं हुआ ।
अर्चना की कहानी वाला अंक जुलाई में यहाँ प्राप्त हो गया था ।]
[यह कहानी "अनपढ़ ज्ञानी’ तथा अर्चना नौटिय़ाल जी की कहानी "जाखू वाली माया " त्रैमासिक पत्रिका साहित्य सरोज में प्रकाशनार्थ २२.४.१५ को भेजी थी । "जाखू वाली माया" अर्चना जी ने अलग से मेल की थी ।प्रत्युत्तर में अखण्ड गहमरी जी का निम्न संदेश २ जून २०१५ को प्राप्त हुआ
"प्रणाम इंस अंक में आन्टी जी की रचना प्रकाशित हो गई है पुस्तक 6 जून से उपलब्ध होगी गुरूवर।
आपकी रचना को अगस्त-सितम्बर के लिए रोक लिया गया "
बाद में अगस्त सितम्बर किन्ही कारणों से प्रकाशित नहीं हुआ ।
अर्चना की कहानी वाला अंक जुलाई में यहाँ प्राप्त हो गया था ।]
अनपढ ज्ञानी ( एक लघु कथा ) -ओंम प्रकाश नौटियाल
(बडौदा, गुजरात , मोबा. 9427345810)
माँगे लाल पिछले बीस साल से गाँव प्रधान थे । प्रधानी में भी अब बडा पैसा हो गया है सो उन्होंने भी खूब बटोरा । दबंगी से कई जमीनों पर भी कब्जा किया यानि अब वह अच्छी खासी हैसियत के मालिक, इज्जतदार आदमी बन गये थे । रमेश नाम का एक ही लडका
था उसे पढाने की उन्होंने जरूरत नहीं समझी । किसलिए समय बरबाद करवाना है , खेलेगा, कूदेगा , साथ रहेगा तो कई तरह के हथकण्डे और हुनर सीखेगा जो असल जिंदगी में काम आएंगे आखिर इतनी जमीन जायदाद , बाग , बगीचे उसे ही तो देखने हैं ।
पच्चीस साल का होने पर उन्होंने उसकी शादी दस बारह कि. मी. दूर के एक गाँव में तय कर दी ।
सुन्दर , ग्रेजुएट कन्या थी । कन्या वाले पैसों की हैसीयत में मागेंलाल के सामने नहीं ठहरते थे किंतु शादी इतने बडे घर में होने पर वह
बहुत खुश थे फिर उन्हें बताया गया था कि लडका भी बी ए है ।
शादी इसी महीने की सत्ताइस तारीख को थी यानि दो सप्ताह से भी कम का समय रह गया था ।
आज सुबह माँगे लाल जब गाँव का चक्कर लगा कर आए तो कुछ परेशान लग रहे थे , दरअसल बिरजू ठेकेदार ने उन्हें एक खबर सुनाई थी कि कानपुर के एक गाँव में एक लडकी ने बारात लौटा दी और शादी करने से मना कर दिया क्यों कि उसे पता लगा कि लडका निपट अनपढ है । यह बात उससे छुपाई गई थी पर बारात आने के बाद किसी सूत्र से यह बात लडकी के कानों तक पहुंच गई , उसने यह बात अपनी बहनो और सहेलियों से साझा की । लडकियों ने फेरों से ठीक पहले मंडप में बैठे दुल्हे से पूछ लिया कि बताइए पंद्रह और छः का योग क्या होता है। दुल्हे ने तत्परता से उत्तर दिया कि सत्रह । फिर क्या था लडकी ने फेरे लेने से मना कर दिया । दुल्हे के पिता और बरातियों की मान मनुहार के बाद भी लडकी टस से मस नहीं हुई , लिहाजा बारात बैरंग लौट गई ।
माँगे लाल को एक तो यह डर सता रहा था कि कहीं बिरजू ने यह खबर जानबूझ कर उसे डराने या ब्लैक मेल करने के उद्देश्य से तो नहीं सुनाई । वह वैसे भी उनसे ईर्ष्या करता था प्रधानपद के पिछले दो चुनाव से वह माँगेलाल से हार रहा था ।
कहीं अब यह जाकर लडकी वालों के कान तो नहीं भर देगा । लडके से बात करना फिजूल था कहीं घबराकर शादी से ही मना न कर दे । इसी पशोपेश में उन्होंने ’ देखा जाएगा’ की नीति अपनाते हुए सब कुछ भाग्य पर छोड़ दिया ।
दिन गुजरते गए और विवाह तिथि भी आ गई । बारात नियत समय पर पहुंच गई । कई पारम्परिक रस्में निबाहने के बाद फेरों का वक्त आ गया और दुल्हा ,बाराती मुहुर्त के समय रात 11 बजे मण्डप में पहुंच गए । अब तक कुछ नहीं हुआ , माँगे लाल कुछ निश्चिंत दिखाई दिए , बस थोडा समय और ऐसे ही बीत जाए , फेरे पड़ जाएं , फिर सब ठीक हो जाएगा ।
किंतु माँगे लाल की बदकिस्मती से लडके के अनपढ होने की बात फेरों से ठीक पहले लडकी तक पहुंच चुकी थी । बिरजू शायद पूरी बिरादरी के सामने उन्हें नीचा दिखाने की सोच चुका था । लडकी इस खबर से अत्यंत व्यथित हो गई और उसने भी इस बात की तसल्ली के लिए कानपुर वाले गाँव का तरीका ,जिसे सभी अखबारों ने तब बड़ी प्रमुखता से छापा था, अपनाने के लिए अपनी छोटी बहन और तीन सहेलियों को फेरों से ठीक पहले यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंप दी । चारों लडकियाँ मंडप में पहुंची और सीधे दुल्हे को संबोधित कर बोली , " दुल्हे राजा पहले यह बताइए कि ग्यारह और आठ मिलकर कितने होते हैं ।" दुल्हे मिंयाँ इस अचानक हुए हमले से थोडे असंयत हुए फिर यह सोचकर कि सालिय़ाँ मजाक कर रही हैं, बोले , " वाह जी , बडा मजेदार मजाक है । " लडकियाँ कुछ तेज स्वर में बोली , " दुल्हे राजा, हम एक दम गंभीर है , अगर फेरे डालने हैं तो आपको इसका सही जवाब तुरंत देना होगा ।" दुल्हे मिय़ाँ भीतर तक हिल गये । यह क्या मुसीबत आ गई है । रमेश के दिमाग में तीन संभावित उत्तर कौंध रहे थे किंतु वह गलत बोलने का जोखिम नहीं उठाना चाहता था । उसने अपने को मजबूत किया और चेहरे पर भयंकर क्रोध का आवरण ओढ कर आवेश के साथ एक कुशल अभिनेता की तरह अपने संवाद कुछ यूं बोले , " यह कैसा मजाक है ? मुझे क्या मूर्ख समझा है ? पहली कक्षा का सवाल मुझसे पूछ कर आपलोगों ने मेरा भरे मंडप में घोर अपमान किया है और मेरी शिक्षा का मजाक बनाया है , मुझे भी ऐसे घर से नाता नहीं जोडना है जहाँ ऐसे छिछोरे लोग हों ।" यह कहते ही वह उठ खडा हुआ और द्वार की ओर मुडने लगा । तभी लडकी के पिता लडके के पैरों में गिर पडे ," नही , नहीं बेटा , यह बच्चियाँ है , इन्हे समझ नहीं है मैं क्षमा माँगता हूं । मुहूर्त का समय हो रहा है , देर मत करो।" और फिर दुल्हे और बारातियों की मनुहार के साथ शादी संपन्न हुई ।
बारात विदाई के समय माँगे लाल ने रमेश के कान में कहा , " वाह बेटा , तू तो मेरा भी बाप हो गया है, मान गया तुझे । मैं तो पहले ही जानता था कि जिंदगी में किताबी ज्ञान से ज्यादा जरुरी है कूटनीति सीखना । यही हर मुसीबत की खेवन हार है । शाबास जीते रहो , तेरे अंदर खानदानी नेतागिरि कूट कूट कर भरी है , तू बहुत तरक्की करेगा । आज तूने मेरी सभी शंकाएं निर्मूल साबित कर दी "
उधर लडकी वाले मन ही मन लडकी के भाग्य़ पर प्रसन्न हो रहे थे किंतु बिटिया की बिदाई पर सबका मन भारी भी हो रहा था । बैन्ड़ वाले बजा रहे थे
"बाबुल की दुआएं लेती जा ........"
-ओंम प्रकाश नौटियाल
(बडौदा, गुजरात , मोबा. 9427345810)
कहानी
Sunday, October 4, 2015
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