गंगा माँ-चंद दोहे--ओंम प्रकाश नौटियाल
गंगा माँ करती रही , हृदय प्राण संत्राण
ताप मुक्ति कष्ट निवृति, वर्णित वेद पुराण
शुचिता सारी चढ रही, लोभ , मोल की भेंट
शोषक के बस स्वार्थ से, पोषक मटियामेट
संसाधन हैं कम नहीं , चाहत पर अवरुद्ध
वर्षो से हम माँ तुझे ,कर न सके पर शुद्ध
धन व्यय तक सीमित है , गंगा का अभियान
अब तक ना गोचर हुई, क्षणिक तनिक भी जान
संस्कृति के पर्याय हैं , नदी नार औ’ नीर
इनको पहुँचे पीर तो, बात बहुत गंभीर
गंगा से इतिहास है , गंगा से भूगोल
जीवन के हर मूल्य का, इसके जल से तोल
जीव तत्व की बूंद में , माँ तेरा है जोड़
लज्जित हमने कर दिया, गाद कीच की छोड
माँ के तेज प्रताप का, वर्णित है गुणगान
तारण सगर पुत्रों का, कष्ट निवृति निर्वाण
-ओंम प्रकाश नौटियाल, बड़ौदा , मोबा.9427345810
गंगा माँ करती रही , हृदय प्राण संत्राण
ताप मुक्ति कष्ट निवृति, वर्णित वेद पुराण
शुचिता सारी चढ रही, लोभ , मोल की भेंट
शोषक के बस स्वार्थ से, पोषक मटियामेट
संसाधन हैं कम नहीं , चाहत पर अवरुद्ध
वर्षो से हम माँ तुझे ,कर न सके पर शुद्ध
धन व्यय तक सीमित है , गंगा का अभियान
अब तक ना गोचर हुई, क्षणिक तनिक भी जान
संस्कृति के पर्याय हैं , नदी नार औ’ नीर
इनको पहुँचे पीर तो, बात बहुत गंभीर
गंगा से इतिहास है , गंगा से भूगोल
जीवन के हर मूल्य का, इसके जल से तोल
जीव तत्व की बूंद में , माँ तेरा है जोड़
लज्जित हमने कर दिया, गाद कीच की छोड
माँ के तेज प्रताप का, वर्णित है गुणगान
तारण सगर पुत्रों का, कष्ट निवृति निर्वाण
-ओंम प्रकाश नौटियाल, बड़ौदा , मोबा.9427345810
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