आशीर्वाद -ओंम प्रकाश नौटियाल
(अखिल भारतीय डा. कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता के लिये 6/11/2017 को sahityasamarth@gmail.com को प्रेषित )
पंडित त्रिभुवन जुयाल का एक ही पुत्र था-विनोद । पंड़ित जी अध्यापक रहे , अब सेवा निवृत हैं । उनका पुत्र विनोद हैदराबाद की एक आई टी कम्पनी में कार्यरत है । पंडित जी पहाडों से उतर कर यहां कैसे आ बसे , इस विषय में वह बताते हैं कि उनके पिता देहरादून में सर्वे आफ इन्डिया में थे और बाद में स्थानन्तरित होकर हैदराबाद पहुंच गए ।पंड़ित जी को साँस की पुरानी बीमारी थी पर हैदराबाद की जलवायु उनके लिए बेहद माकूल रही और वह यहाँ इस बीमारी से काफी हद तक निजात पा गए। शुरू शुरू में परेशान शाकाहारी पंड़ित जी ने हैदराबादी मछली वाला इलाज भी किया और समय के साथ काबू में आती बीमारी से उन्हें यह विश्वास हो गया की सब मछली की करामात है । पर एक बार उन्हें जब लम्बे समय के लिए सर्दियों में देहरा दून जाना पड़ा तब उनको वहाँ इस बीमारी ने फिर गिरफ्त में ले लिया । हैदराबाद आकर वह कुछ दिनों मे काफी हद तक ठीक हो गए । उसके बाद भारी मन से उन्होंने देहरादून परिवार जनॊं के साथ बसने का विचार त्याग कर साथियों के सुझाव पर वहीं बंजारा हिल्स के पास कुछ जमीन लेकर तीन चार साल में छोटा दो मंजिला मकान बना लिया । तब तक वह सेवा निवृत भी हो चुके थे । आज तो यह जगह हैदराबाद के पोश इलाकों मे से है ।विनोद की शादी भी उन्होंने यहीं से की पर बहू उनकी अपनी बिरादरी की थी -उत्तरकाशी से ।विनोदकी एक ही संतान थी -यामिनी ।
समय धीरे धीरे बीतता गया । विनोद तो पढ़ने मे औसत ही रहा था पर यामिनी बड़ी कुशाग्र थी ।सीबीऐसई से 12 वीं करने के बाद उसका जेईई आईआईटी में 552वाँ रैंक आया और उसे चेन्नई आईआईटी में दाखिला मिल गया। पंडित जी के पिता जी तो खैर कभी के स्वर्ग वासी हो चुके थे वह स्वयं भी बुढ़ापे में प्रवेश कर चुके थे ।यामिनी से उन्हें बेहद प्यार था । एक वही थी जिसे दादा जी के पास बैठकर उनसे उनके बचपन और जवानी के किस्सों को सुनने मे मजा आता था । अपनी भी हर बात वह दादा जी को सुनाती थी । अब उसके चेन्नई चले जाने से उनकी जिंदगी उदास सी हो गई थी हाँ यामिनी शनिवार के दिन नियम से फोन पर दादा जी से लम्बी बात करती थी । दादा जी को भी शनिवार रात्रि साढ़े नौ बजे का इंतजार रहता था ।विनोद तॊ वैसे ही कम बोलते थे फिर उनकॆ पास समय का भी अभाव रहता था। यामिनी की माँ तो घर कार्य में व्यस्त रह्ती थी वैसे वह भी बोलने मे कंजूस थी । पर नेक हॄदय और सच्ची महिला थी ।
दादा जी को आज यामिनी की फिर बहुत याद आ रही थी । कल ही तो उसने लम्बी बात की थी । जब वह यहाँ होती थी तो अकसर जिद करती थी ,’दादा जी करीम चाचा वाला किस्सा सुनाओ न? ’ दादा जी न जाने कितनी बर वह किस्सा सुना सुना कर थक चुके थे पर यामिनी की जिद वह टाल नहीं सकते थे उसे न जाने इसमें क्या मजा आता था } अकसर सुनती थी और उसकी कोई सहेली आ जाए तो उसे भी सुनवाती थी } दादा जी कुछ शर्माकर हल्की सी मुस्कराहट के साथ शुरु हो जाते थे ।
" करींम मेरा हम उम्र ही रहा होगा ।आज तो इस दुनियाँ मे नहीं है ’ इतना कहकर दादा जी की आँखे नम हो गई । ’खैर जहाँ भी हो खुश रहे,उस वक्त हम लोग टिहरी मे थे मैं सातवीं या आठवी में रहा हुंगा ।करीम ने स्कूल छोड़ दिया था। घर के करोबार में पिता की मदद करने लगा था ।अब करोबार भी क्या था ? गली गली रूई पिनने और रजाई भरने की फेरी लगाते थे । गाँव में उसके दोस्त कम थे पर मुझे वह बड़ा अच्छा लगता था } जिंदा दिल इंसान था ।उसे भी मेरा साथ पसंद था और कभी फुरसत के वक्त मेरे पास आ जाता था उसका कमाल अंग्रेजी बोलने में था ।‘उसे अंग्रेजी का A भी नहीं आता था ,पर धारा प्रवाह उट पटाँग अंग्रेजी ऐसे लहजे में बोलता था कि एक बार को तो अंग्रेज भी चकरा जाएं और उसमें कुछ अर्थ ढूंढ़ने की नाकाम कोशिश करने लगें । दादा जी जब उसकी नकल करते थे तो अंदाज हो जाता था कि मूल स्वरूप यानि करीम चाचा वाला कै्सा रहा होगा । यामिनी जाने क्यों सुनकर लोट पोट हो जाती थी। दादा जी सुना सुना कर उब जाते थे पर यामिनी की जिद के सामन विवश हो जाते थे। एक आध बार उन्होंने यामिनी को प्यार से समझाया भी," बॆटा तुम्हे इस किस्से में मजा आता होगा पर औरों को क्यों बोर करती हो ?" पर यामिनी कहाँ मानने वाली थी।दादा जी ने एक सुझाव भी दिया, "बेटा तू अपने मोबाइल पर इसका विडियो बना ले , फिर जब चाहे सुनती रह और सुनाती रह ।"
दादा जी के सुझाव पर कुछ विशेष उत्साहित न होकर यामिनी ने विडियो तो बना लिया, पर देखने के बाद बोली ," दादा जी आप कैमरे के आगे कुछ नरवस हो गए, उतना मजा नहीं आया। अब आप जब सामने होगे तब तो मैं आप से ही सुनुगी, हाँ आपकी अनुपस्थिति में इसका उपयोग अर लिया करूंगी ।दादा जी समझ गए कि पीछा छुडाना मुश्किल है ।अतः चुप हो गए ।
विनोद कुछ गंभीर किस्म का बापनुमा आदमी था ,जो अपनी मान्यता अनुसार छॊटों को ज्यादा मुँह नहीं लगाता था ।यामिनी की दादी थी नहीं ,माँ अकसर गृहकार्यों मे व्यस्त रहती थी अधिक पढ़ी लिखी नहीं थी ।यामिनी की माँ से तो बस काम की ही बातें होती थी ।गप मारना माँ के स्वभाव में नहीं था। यामिनी को यह गुण शायद दादा जी से विरासत में मिला । खूब छनती थी जब दोनों मिलते थे घन्टों बातों का सिलसिला चलता था । हैदराबाद मे यामिनी की एक दो प्रिय सहेली थी । पढ़ती तो वह भी हैदराबाद के बाहर ही थी पर छुट्टिया अकसर साथ हो जाती थी । किसी सहेली के होने पर दादा जी से गप का समय कुछ घट जाता था जो उन्हें कतई नहीं भाता था ।
इस बार छठे सैमेस्टर की समाप्ति पर यामिनी जब हैदराबाद आई तो कुछ बदली बदली सी थी । दादा जी के सामने भी कुच असहज सी पेश आ रही थी मानो किसी तनाव में हो ।दादा जी को लगा कि सब कुछ शायद सामान्य नही है , उसने अब तक करीम चाचा वाला प्रसंग सुनाने की फरमाईश भी नही की । दादा जी ने एक दिन उसे पास बैठ कर पूछ ही लिया,"यामिनी बेटा , मुझे लग रहा है तुम कुछ तनाव में हो। शायद कुछ कहना चाहती हॊ पर कह नही पा रही हो । कोई बात है तो निःसंकोच बोल दो ।"सुनते ही यामिनी को मानो जीवन दान मिल गया हो। कुछ संयत होकर बोली ।
"आप ठीक कह रहे हो दादा जी।सोचकर आई थी कि घर पहुंचते ही सबसे पहले आप को बता दूंगी । पर हिम्मत ही नहीं हुई। पापा को भनक लगेगी तो शायद मुझ्रे खा ही न जाएं ।"
"कोई लड़का पसंद कर लिया है क्या?" दादा जी ने पूछ लिया। यामिनी कुछ और नारमल होते हुए तपाक से बोली " दादाजी , आपकी इस बात से तो मुझे फ़िल्म ’जब वी मैट ’ के दादाजी का डायलाग याद आ गया जब वह कहते है कि ’हमारी उम्र में यह सब ताड़ने में देर नहीं लगती’ । आप ठीक कह रहे हैं ।"
" अरे , सचमुच ! यह तो गंभीर विषय है। तेरी जिंदगी का सवाल है। कौन लड़का है? कहाँ रहता है? तेरे कौलेज का ही है न ? क्या कर रहा है? फोटो है तेरे पास? सब कुछ बता न विस्तार से।"
"दादा जी सबकुछ बताऊंगी ,पर आप पापा को संभाल लेना प्लीज "
" अरे पहले मुझे तो कुछ पता चले"
"दादा जी, वह भी चैन्नई आई आई टी मे है । होशियार है उसका JEE में 252 वा रैंक था ।लम्बा है , स्मार्ट है पर बड़ा सिंपल । घर उसका त्रिवेन्द्रम में है, अब जो तिरुवनंतपुरम कहलाता है।
" त्रिवेन्द्रम में ?’ दा्दा जी चौंक पड़े । "यानि केरल से है? नाम क्या है ?
"उसका नाम है मोहन थौमस ।" यामिनी ने थौमस पर कुछ जोर डालकर बताया जिससे बात पहले ही साफ हो जाए।
"यह तो क्रिश्चियन नाम है। मैं इसमें अपनी क्या राय दूंगा ? विनोद तो भडक जाएगा। "
" दादा जी...ई...ई...ई प्लीईईज ।ऐसा मत कहिए। सब कुछ आपके हाथ में है । आप ही पापा को समझा सकते हैं "
" मैं तो खुद कुछ नहीं समझा तो उसे कैसे समझाउंगा। नहीं , नहीं , इस काम के लिए तो तू मुझे बख्श ही दे ।"
"दादा जी अगर मैं उसे आप से मिलवा दूं तब तो आप अपनी राय देंगे न? या फिर धर्म, जात पात ही हावी रहेगी आपके उपर ।"
"इतना ही कह सकता हूं कि अगर मैं उससे मिलता हूं तो उसके बारे में मैं अपनी राय मैं केवल उसके गुणों के आधार पर बनाऊंगा। पर तुम कब और कैसे मिलवा सकोगी उससे?"
"परसों मिलवा सकती हूं दादा जी । वह भी छुट्टियों में त्रिवेन्द्रम में है । एक दिन उसे तैयारी में लगेगा । परसॊं शाम तक आ्पसे मिलने आ जाएगा ।वह अपने माँ बाप का इकलौता लड़का है । उसके पापा का बिजनैस है काजू एक्सपोर्ट करते हैं, चाहते हैं वह अब बिजनैस देखे । उसकी शादी भी जल्दी करना चाहते हैं उसके पीछे पडे है। बडॆ दबाव में है ।इसीलिए वह भी पहले हमारे परिवार का रुख देखकर यहाँ की स्वीकॄति चाहता है जिससे सबकुछ पटरी पर आ जाए और वह तनावमुक्त हो सके। मुझे यकीन है वह परसों जरूर आ पाएगा। बाकी तो मुझे कुछ नही कहना है आप परखियेगा"
"ठीक है ठीक है ।" दादा जी ने कहा " "लगता है तुमने ही पटकथा लिखी है, विनोद और अपनी माँ को क्या बताओगी कि कौन आया है?"
"आप उसकी चिंता न करें दादा जी, वह सब तो मैं संभाल लूंगी।आपको तो बस उसे शत प्रतिशत अंक देकर पास करना है।" यामिनी हंसकर बोली।
दादा जी बोले, " बेटा , सिफारिश इसमें बिल्कुल नहीं चलेगी । फकत योग्यता के आधार पर फैसला होगा।"
"मुझे आपकी पारखी नज़र पर भरोसा है ,दादा जी।पापा अम्मा को तो कह दूंगी मेरी सहेली का भाई आ रहा है। सहेली ने कुछ नोट्स भिजवाए हैं ।एक आध घंटा बैठकर अपने दोस्त के यहाँ चला जाएगा।" यामिनी बोलते हुए कुछ उत्साहित सी लगी।
" ठीक है तुम उससे बात करके सब तय करो।" दादा जी ने कहा ।
यामिनी को लगा कि उसने पहला कदम तो सही ले लिया है।कुछ रिलैक्स होकर वह सीधे अपने कमरे में आई और मोहन को फोन करने लगी ।
" येस यामिनी , हाउ आर यू ? " उधर से मोहन की आवाज आई।
"ठीक ही हूं " यामिनी ने उत्तर दिया।
"’ही’ मीन्स ?"मोहन ने सवाल किया।
" अब मुझे तो तुमने इतना मुश्किल काम सौंप दिया और खुद छुट्टियों का मजा ले रहे हो । अच्छा सुनो ,मैंने दादा जी को तुम्हारे बारे में बता दिया है। क्या तुम कल आ सकते हो दादा जी से मिलने, वह तुमसे मिलना चाहते हैं ।"‘
" कल तो नहीं , परसों शाम को तुम्हारे घर पहुंच सकता हूं । तुम घर का पूरा पता , लैन्ड मार्क्स के साथ व्हाट्स एप कर देना। ठीक है न ?" मोहन ने कहा।
यामिनी के मन की बात हो गई थी । वह तो परसों का ही चाह रही थी । "ठीक है । पता वगैरह तो मैं सब विस्तार से बता ही दूंगी ।पर एक बात सुनो , दादा जी के अतिरिक्त अभी तुम्हारी असलियत अन्य किसी को पता नहीं चलनी चाहिए। मै पापा,अम्मा से कह दूंगी कि सहेली का भाई आ रहा है । उसने कुछ नोट्स भिजवाए हैं । ठीक न?"
"अब वह सब तुम जानो। मुझे तो बस ओर्डर मानना है " मोहन की आवाज आई ।
" तो परसों शाम पक्का 06.30 बजे, दादा जी को इमप्रैस करने की तैय्यारी करके आना ।" यामिनी ने चकते हुए हिदायत दी
" अरे ,जब तुम्हे कर दिया । तो बुढऊ सारी ,सारी, दादा जी क्या चीज हैं ।" मोहन ने चुटकी ली ।
"अच्छा ज्यादा उड़ो मत , व्हाट्स एप पर अपना प्रोग्राम और मूवमैन्ट्स बताते रहना । बाय "
और फिर यामिनी उछलती हुई दादा जी के कमरे की तरफ भागी ।
"दादा जी मोहन परसों शाम आ रहा है । अब इतनी दूर से आ रहा है आप खयाल रखना ।" यामिनी ने दादा जी से अनुनय के लहजे मे कहा ।
" मुझे अपना काम पता है बेटा, तुम बाकी चीजें संभालो ।" दादा जी बोले ।
आज बुधवार है । मोहन को आना है ।आज ड्राईग रुम की साफ सफाई यामिनी कामवाली बाई से अपनी देख रेख में करवा रही है } पर सावधान भी है कि उसका यह उत्साह माँ न पढ ले । विनोद तो खैर आफिस जा चुका है ।
अम्मा ने अभी आकर उसे बताया कि तेरे पापा को शाम को खँडूरी जी के लड़के की शादी में जाना है ।
यामिनी को लगा कि सब कुछ अपने आप ही ठीक हो रहा है । दिन शुभ है ।
" अम्मा खन्डूरी अंकल आन्टी हम लोगों को कितना मानते हैं पिछले साल दादा जी की बीमारी के दौरान अंकल ने कितने चक्कर लगाए थे और दौड़ भाग की थी ।पापा अकेले क्यॊं जा रहे हैं ? आप को भी जाना चाहिए ।"
" अरे मैं जाकर क्या करूंगी । घर का काम बिखर जाता है सारा । फिर शाम को तेरी सहेली का भाई भी आ रहा है ।"
"अरे वह कौन सा अफलातून है । मै चाय बनाकर पिला दूंगी । थोड़ी देर ही तो बैठेगा । अम्मा आप अवश्य जाइए ।आप किसी रिश्ते को अहमियत क्यों नहीं देती ।इतने अच्छे लोग हैं ,बिरादरी के हैं । हमारा कितना खयाल रखते हैं । आप को बस जाना ही है ।" यामिनी बोली । बिरादरी वाली बात कहकर वह खुद ही सकुचा गई ।
" अरे बेटी, रिश्तों को खूब अहमियत दूंगी । जरा हो तो जाए तेरा रिश्ता ।" अम्मा ने कहा।
यामिनी सुनकर कुछ सिहर सी गई । कहीं अम्मा को कुच भनक तो नहीं लग गई ।
फिर सहज होकर अधिकार के स्वर में बोली," और अम्मा , वह हरी वाली साडी पहनना।"
"ठीक है देखती हूं अब तो तूने मेरा श्रॄंगार भी कर दिया है ।"
यामिनी अपनी योजना पर मन ही मन बहुत खुश थी । अपने कमरे में जाकर तुरंत मोहन से संपर्क किया और कहा, " मोहन तुम मेरा संदेश मिलने पर ही आना । शाम के सात बजे के आसपास।"
"ठीक है ,मुझे भी यही टाइम सूट करता है।" वह बोला ।
शाम को जब यामिनी के अम्मा पापा तैय्यार हो गए तो उसने मोह्न को आने का संदेश दिया। मोहन पहले ही हैदराबाद के होटल पहुंच गया था और तरोताजा होकर यामिनी के संदेश की प्रतीक्षा कर रहा था।
इधर यामिनी के अम्मा पाप शादी के लिए घर से निकले और उधर घर के बाहर मोहन की टैक्सी आकर रूकी ।घर में दादा जी और यामिनी के अतिरिक्त अब कोई नहीं था ।यामिनी ने उसे ड्राइंग रुम मे बैठाया और हाल चाल जानने के बाद दादा जी को उसके आने की सूचना दी ।
दादा जी धीरे धीरे ड्राईंग रूम में आए और मोहन को देखते ही क्षण भर को हर्षमिश्रित आश्चर्य के साथ ठिठक से गए । उन्होंने अपने मन में मलयाली लड़के की जो छवि संजोई थी उससे हटकर उनके सामने एक गोरा छरहरे बदन का सुन्दर लड़का था, जो उन्हें देखते ही खड़ा हो गया और उनके चरणों मे झुक गया ।उसकी हाईट भी छः फ़ीट से शायद एक आध इंच ही कम होगी ।
दादा जी ने मोहन से मुखातिब होकर कहा ,’उम्मीद है तुम आराम से यहाँ पहुंच गए हो , घर ढूंढ़ने में कोई परेशानी तो नहीं हुई न ?"
"जी नही दादा जी ,यामिनी ने ठीक से गाइड़ कर दिया था।"
"वह तो मुझे पता था। खैर, अब हम बिना तकल्लुफ किए और समय को बरबाद न करते हुए सीधे काम की बात पर आ जाते हैं । मुझे पता चला है कि तुम लोग एक दूसरे को पसंद करते हो। पहले तो मै तुमसे यह जानना चाहता हूं कि तुमने यामिनी में ऐसा क्या देखा?"
मोहन ने दादा जी के इस प्रश्न पर चेहरे पर बिना कोई विशेष भाव लाए हुए संयत स्वर में उत्तर दिया," दादा जी मुझे उसका सबसे मीठे स्वर में बात करना और मित्रवत स्वभाव बहुत पसंद आया , दूसरे दुखियों और बेसहारों की समस्याओं के प्रति वह बेहद संवेदनशील है । जिसकी मैं सराहना करता हूं और पक्षधर भी हूं ।और हाँ सबसे बड़ी बात जिसने मुझे उसके इन गुणों को जानने और परखने की जरूरत महसूस करवाई वह है उसके व्यक्तित्व का आकर्षण । आपसे क्षमा चाहता हूं पर मेरे खयाल से इन सभी बातों ने मुझे बहुत प्रभावित किया है ।"
" तुम्हारी हिंदी इतनी अच्छी कैसे है? खैर यह तो मैं तुमसे बाद में पूछूंगा । पहले यह बताओ कि कल्चर में अंतर होने के कारण क्या तुम सोचते हो कि यामिनी का पूरे परिवार में एड्जटमैन्ट संभव है ? इस बात पर तुमने विचार किया है कभी ?" दादा जी ने पूछा।
" दादा जी इन सब विषयों पर मैंने बहुत गहराई से विचार किया है । हमारा काजू एक्स्पोर्ट का बिजनैस है ।पिताजी इस सिलसिले में बहुत से लोगों के संपर्क में आते हैं । इसलिए वह बिल्कुल खुले है इस मामले में ।और उन्होने शादी के बारे में भी पसंद वगैरह का काम मुझ पर छोड़ दिया है।
"मेरी दोनों बुआओं कि शादी भी उत्तर भारतीयों में हुई है जो दिल्ली में पढाई के दौरान उनकॆ संपर्क में आई ।मैं बचपन में बड़ी बुआ के पास दो साल दिल्ली रहकर पढ़ा भी हूं । अकसर छुट्टियों में लम्बे समय के लिए दिल्ली जाना होता रहा है । मेरी अच्छी हिंदी में दिल्ली, बुआ, फूफा,और उनके परिवार जनों का बड़ा हाथ है ।बुआओं ने वहाँ बडी अच्छी तरह एड्जस्ट किया हुआ है ।पिताजी हमेशा कहते हैं अगर इंसान का स्वभाव अच्छा है संवेदनशील है तो उसके लिए कहीं भी एडजस्ट कर पाना कोई मुश्किल नही है । मैं इकलौता लड़का हूं , शादी करने का दबाव है । इसीलिए मैंने इस बारे में सभी पहलुओं से सोचने का प्रयास किया है ।आप लोगों की सहमति आवश्यक है जिससे मैं घर में अपनी पसंद बता सकूं ।" मोहन ने विस्तार से अपनी बात रखने की कोशिश की ।
दादा जी ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे एक एक शब्द तोल रहे थे।’ और हाँ, एक बात बताओ बेटा , शादी के बारे में तुम्हारे परिवार के क्या विचार है ? कब, कहाँ और कै्सी शादी चाहते हैं?"
"दादा जी , अभी तो मैंने उन्हे अपनी पसंद बताई नहीं थी । वह लोग रोज ही एक दो प्रस्तावों पर मेरी राय माँग लेते हैं ।कितु मैं यह कह सकता हूं कि पसंद बताते ही वह तुरंत शादी करना चाहेंगे । मैं शादी को एक साल और यानि फाइनल वर्ष तक टालने का प्रयास कर सकता हूं । पता नहीं वह लोग मानेंगे कि नहीं?"
"अरे यामिनी चाय वगैरह तो ले आओ"
"जी दादा जी" कहकर यामिनी उठ्कर चली गई।
"हाँ मोहन तुम अपनी बात पूरी कर लो ।" दादाजी बोले।
"जी दादा जी ,जैसा कि आप जानते ही होंगे शादी वहीं पर हमारे पारिवारिक चर्च में होगी ।उसके बाद आप भी अपनी रीति के अनुसार वहाँ अथवा यहाँ शादी की रस्म कर सकते हैं ।"
" अरे बेटा , हम शायद बहुत आगे बढ़ गए हैं , अभी तो मुझे इसके अम्मा, पापा से बात करनी होगी।"
"ठीक है दादा जी, मुझे भरोसा है आप सबकुछ सुलझा लेंगे।"
कुछ देर में यामिनी चाय लेकर आ गई । चाय के साथ घर परिवार और पढ़ाई अदि के विषय में बातें चलती रही ।
चाय पीकर मोहन ने जाने की इजाजत ली ।"
" ठीक है मैं तुम्हे और नहीं रोकूंगा। इसके अम्मा पापा भी आने वाले होंगे । उनसे तो तुम्हे तभी मिलवाएंगे जब मैं उन्हे सब बातें पहले बता दूंगा।"
’अच्छा दादा जी ,आशा है आप मुझे A+ ग्रेड देंगे और आगे के लिए भी यह केस अपने हाथों में ले लेंगे।"
दादा जी उसकी बात पर मुस्कराए और यामिनी से बोले,"जा बेटी, बाहर तक छोड़ दे ।"
यामिनी और मोहन बाहर टैक्सी की तरफ जा ही रहे थे कि पापा और अम्मा आ गए सामने से।"
" अरे आप लोग तो बड़ी जल्दी आ गए। और हाँ यह मेरी सहेली का भाई है।" फिर मोहन से बोली "मेरे अम्मा पापा हैं ।"
अम्मा बोली ,"जा रहे हो क्या ? "
"जी हाँ अब चलता हूं । देर हो रही है ।"
यामिनी मन ही मन खुश थी कि चलो अम्मा पापा ने भी देख लिया ।
मोहन को विदा कर यामिनी सीधे दादा जी के कमरे में गई और दादा जी के कान में फुसफुसाई ,"दादा जी अपनी राय बताइये न ।"
"सच कहूं , मैंने जैसा सोचा था उससे कई गुना अच्छा लगा । 100 में से 200 अंक तो बनते हैं, भला लडका है, सुन्दर और समझदार है ,बिल्कुल तुम्हारी जोड़ी का है।"
"ओह दादा जी आप कितने अच्छे हैं ।"
" पर अब विनोद को संभालने की चिंता है ।" दादा जी बोले।
" वह तो आप कर ही लोगे दादा जी , बाप हो आप पापा के, पर आप आज बात मत करना ,दो तीन दिन बाद करना ।" यामिनी ने सुझाया।
" इतनी जल्दी भला क्यों करूंगा ? " दादा जी बोले।
दादा जी की आशा के विपरीत विनोद को मनाने में कोई विशेष दिक्कत नहीं हुई थी । दादा जी ने विनोद से कहा था," लड़का मैंने देखा है, उससे बातचीत की है। सुन्दर,सौम्य , सुशील है ।पढ़ने में भी हमारी यामिनी से कम होशियार नहीं है। अकेला लडका है पिता का जमा जमाया बिजनैस है । फिर सबसे अच्छी बात यह है कि वह विदेश बसने में बिल्कुल इच्छुक नहीं है ।अंततः उसे पिता का बिजनैस ही संभालना है। मेरे खयाल से जाति धर्म की बात अगर भूल जाएं तो इससे अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा ।तुम अच्छी तरह विचार कर लो। और हाँ एक बात और,खुशी खुशी आशीर्वाद दोगे तो अच्छा है , वरन अगर ब्च्चों ने शादी की सोच ही ली है तो व्यर्थ की नाराजगी और ऐंठ से कोई लाभ नहीं है । बच्चे बहुत समझदार हैं , भला बुरा समझते हैं ।"
दादा जी की बातों पर विनोद ने संजीदगी से गौर किया । उसे अपनी बेटी के चयन और पिताजी की सूक्ष्म द्दष्टि पर पूरा भरोसा था अतः उसने अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दी ।यामिनी की अम्मा को क्रिश्चियन वाली बात थोड़ी अखरी थी पर अंततः उसे भी ससुर, पति और बेटी के साथ चलने में ही भलाई दिखाई दी ।मोहन के परिवार के साथ बातचीत के बाद तय हुआ कि फाइनल सैशन की समाप्ति के बाद 21 जून को यानि लगभग 4 महीने के बाद त्रिवेन्द्रम के चर्च में पहले शादी होगी फिर 23 जून को वहीं किसी वैडिंग पौइन्ट पर पर हिंदू रीति के अनुसार शादी की सभी रस्में होंगी , वहाँ तो गिनती के आदमी ही जा पाएंगे , अतः हैदराबाद में 25 जून को रिसैप्शन दिया जाएगा ।
धीरे धीरे एक वर्ष का समय व्यतीत हो गया यामिनी के फाइनल सैशन की समाप्ति अब चंद सप्ताह के फासले पर थी। उसके बाद जून मे त्रिवेन्द्रम में यामिनी की शादी थी ।
दादा जी लगभग 86 वर्ष के हो गए थे, पहले से काफी कमजोर हो गए थे।
यामिनी फाइनल परीक्षा देकर आ चुकी थी । शादी की खरीदारी शुरू हो गई थी। समय बीतता जा रहा था ।अंततः जून भी आ गया । 20 जून को यामिनी , दादा जी उसके अम्मा पापा, दोनों बुवाएं व उनका परिवार साथ में विनोद के दो घनिष्ठ मित्रों का काफिला त्रिवेन्द्रम पहुंच गया ।
मोहन के माता पिता ने शहर के एक प्रतिष्ठित पाँच सि्तारा होटल में उनके ठहरने का प्रबंध किया था और उन्हे स्पष्ट कर दिया था कि वह लोग उनके मेहमान है अतः यहाँ के प्रवास के खर्च के बारे मे उन्हे सोचना भी नही है न मन मे किसी प्रकार का बोझ रखना है ।बड़ी विचित्र सी स्थिति मे थे वह लोग , बारातियों जैसी आवभगत हो रही थी ।21 जून को सुबह 10 बजे उन्हे पास के ऐन्ड्रुज चर्च में ले जाया गया और क्रिश्चियन विधि से पादरी ने शादी संपन्न करवाई । 22 जून को मोह्न के माता पिता ने उन सबको तथा अपने सभी रिश्तेदारों को रिसैप्शन पर बुलाया था ।
23 जून को पास ही के एक वैडींग पाईन्ट पोइन्ट पर हिंदू पद्धति से शादी संपन्न हुई जिसमें मोहन की ओर से उनके सभी रिश्तेदारों ने यमिनी
के पिताजी के विशेष अनुरोध पर भाग लिया ।वैसे वह सभी इ्सके लिए बहुत उत्सुक और उत्साहित लग रहे थे । दादा जी इसके बाद अवश्य थके थके और निढाल से लग रहे थे ।खाँसी भी थी।
24जून को मोहन समेत सभी हैदराबाद लौट आए ।25को वहाँ रिसैप्शन है । मोहन के माता पिता तो विशेष अतिथि थे ही ।किंतु उन्होने 25 जून को ही शाम को हैदराबाद आने का कार्यक्रम बनाया था।
दादा जी और टीम को हैदराबाद पहुंचते हुए शाम के लगभग 4 बज गए थे ।
घर आते ही दादा जी को सीने मे बहुत जोर से दर्द उठा। बिना वक्त खोए विनोद उन्हे पास के संजीवनी अस्पताल मे ले गया । डाक्टर्स ने आई सी यू में तुरंत भरती कर लिया और जाँच शुरु हो गई ।डाक्टर ने उन्हें बताया," दिल का दौरा पडा है । इलाज शुरु कर दिया है इंजैक्शन दिया है ।48घन्टे के बाद ही हालत के बारे मे कुछ निर्णायक कहा जा सकता है ।"
उधर घर में यामिनी के आँसू थम नहीं रहे थे ।उसे लग रहा था जैसे उसने अपनी खुशी के लिए, अपना जीवन संवारने के लिए दादा जी के जीवन को संकट मे डाल दिया हो ।अगले दिन यामिनी ने जिद की कि वह अस्पताल से दादा जी को रिसैप्शन में लेकर आएगी ,उनका आशीर्वाद लेना है ।
शाम 6 बजे यामिनी अस्पताल पहुंची ।विनोद और मोहन भी साथ थे ।माँ और बुआ जी पहले सॆ ही अस्पताल के लाउन्ज में बैठे हुए थे ।विशेष प्रार्थना पर उसे कुछ देर के लिए ICCU में जाने की अनुमति मिली, वहाँ बोलने की मनाही थी। दादा जी के मुंह नाक पर नलियाँ लगी थी , उसे लगा कि वह वैन्टीलेटर पर हैं ।यामिनी ने जैसे ही उनके हाथ का स्पर्श किया ऐसा लगा मानो उन्होंने उसे पहचान लिया । एक हल्की सी चमक उनकी आँखो मे दिखाई दी , हाथ उठाने का उपक्रम किया , मानो यामिनी को आशीर्वाद देना चाह रहे हों और अगले ही क्षण निढाल हो गए ।नर्स ने फौरन डाक्टर को बुलाया , उसने जाँच के बाद उन्हे मॄत घोषित कर दिया ।उधर विनोद के पास फोन पर फोन आरहे थे । सभी दादा जी जी का हाल और उनके अस्पताल से रिसैपशन में आने का समय जानना चाहते थे ।विनोद अत्यंत दुविधा और असमंजस की स्थिति मे था । तभी मोहन ने विनोद के पास आकर धीमे से कुछ कहने की चेष्टा की ," पापा मैं जानता हूं,आप के लिए और हम सब के लिए यह बहुत कठिन वक्त है , आप कृपया मुझे गलत न समझें, मैं आपसे यह अर्ज करना चाहता हूं कि दादा जी भी यह कभी नही चाहते कि उनके कारण उनकी बेटी इतने लोगों के आशीष से वंचित हो जाए और सब भूखे घर जाएं । मेर विचार है कि हम बाडी को मौर्चरी मे रखवा देते हैं और अभी यह बात हम लोगों के अतिरिक्त और लोगों तक नहीं पहुंचनी चाहिए । आप अ्म्मा जी और बुआ जी को भी समझा दीजिए कि खुद पर काबू रख्खें । दादा जी ने इस कार्य को इस मुकाम तक पहुंचाया है उनका पूरा आशीर्वाद तभी मिलेगा जब रिसैप्शन की रस्म भी संपन्न हो जाए। तभी उनकी आत्मा को शान्ति मिलेगी । आप या मै यहां रुक कर बाडी मौर्चरी मॆं रखवा कर आते हैं } शे्ष लोग तुरंत रिसैप्श्न के लिए रवाना हो जाएं । सभी प्रतीक्षारत हैं । अगर देर होगी तो कुछ लोग यहाँ आ सकते हैं ।"
" कहते तो ठीक ही हो बेटा । मैं यहाँ का काम करके आता हूं ।तुम इन सबको ले जाओ । यामिनी को भी संभालना होगा ।तो आप लोग चलो अब ।"
अम्मा , बुआ, यामिनी मोहन शीघ्र ही रिसैपश्न स्थल के लिए रवाना हो गए । रास्ते भर मोहन उनको संयमित रहने के लिए कहता रहा ।" सभी समझदार थे तथा मौके की गंभीरता समझते थे।" सबके चेहरे पर मायूसी के भाव थे । वह रिसैप्शन स्थल पहुंच गए ।वहाँ मोहन के माता पिता बुआएं आदि सभी त्रिवेन्द्रम से पहुंच चुके थे तथा वहीं रेसैप्शन पर घर के लोगों की तरह मेहमानों की आवभगत कर रहे थे। यामिनी ने उनके पैर छुए दादा जी के बारे में बात हुई और फ़िर मायूस सा चेहरा लिए यामिनी और मोहन अपने लिए लगी कुर्सियों पर विराज गए ।लोग शगुन और आशीर्वाद देने के लिए आने शुरू हो गए । विनोद ने अपने निमंत्रण पत्र में उपहार और लिफाफे न लाने का अनुरोध किया था जिस पर कायम रहते हुए यामिनी ने किसी तरह का कोई तोहफा क्षमा याचना के साथ स्वीकार नहीं किया ।लगभग रात्रि 11.30 बजे तक सब लोग घर लौट आए ।
सुबह 7 बजे विनोद और यामिनि के फूफा जी दादा जी का शव लेकर घर आ गए । मोहन के माता पिता भी होटल से घर पहुंच गए थे ,मोहन ने शायद उन्हें सब बता दिया था।अब यह बात सबको पता चल ही चुकी थी । घीरे धीरे लोग आने शुरु हो गए । 10 बजे दादाजी की शव यात्रा चेतना मोक्षधाम के लिए रवाना हुई ।
यामिनी में ही उनके प्राण बसते थे ।
यामिनी के ससुराल जाने से पूर्व ही दादा जी विदा ले चुके थे ।
(अखिल भारतीय डा. कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता के लिये 6/11/2017 को sahityasamarth@gmail.com को प्रेषित )
पंडित त्रिभुवन जुयाल का एक ही पुत्र था-विनोद । पंड़ित जी अध्यापक रहे , अब सेवा निवृत हैं । उनका पुत्र विनोद हैदराबाद की एक आई टी कम्पनी में कार्यरत है । पंडित जी पहाडों से उतर कर यहां कैसे आ बसे , इस विषय में वह बताते हैं कि उनके पिता देहरादून में सर्वे आफ इन्डिया में थे और बाद में स्थानन्तरित होकर हैदराबाद पहुंच गए ।पंड़ित जी को साँस की पुरानी बीमारी थी पर हैदराबाद की जलवायु उनके लिए बेहद माकूल रही और वह यहाँ इस बीमारी से काफी हद तक निजात पा गए। शुरू शुरू में परेशान शाकाहारी पंड़ित जी ने हैदराबादी मछली वाला इलाज भी किया और समय के साथ काबू में आती बीमारी से उन्हें यह विश्वास हो गया की सब मछली की करामात है । पर एक बार उन्हें जब लम्बे समय के लिए सर्दियों में देहरा दून जाना पड़ा तब उनको वहाँ इस बीमारी ने फिर गिरफ्त में ले लिया । हैदराबाद आकर वह कुछ दिनों मे काफी हद तक ठीक हो गए । उसके बाद भारी मन से उन्होंने देहरादून परिवार जनॊं के साथ बसने का विचार त्याग कर साथियों के सुझाव पर वहीं बंजारा हिल्स के पास कुछ जमीन लेकर तीन चार साल में छोटा दो मंजिला मकान बना लिया । तब तक वह सेवा निवृत भी हो चुके थे । आज तो यह जगह हैदराबाद के पोश इलाकों मे से है ।विनोद की शादी भी उन्होंने यहीं से की पर बहू उनकी अपनी बिरादरी की थी -उत्तरकाशी से ।विनोदकी एक ही संतान थी -यामिनी ।
समय धीरे धीरे बीतता गया । विनोद तो पढ़ने मे औसत ही रहा था पर यामिनी बड़ी कुशाग्र थी ।सीबीऐसई से 12 वीं करने के बाद उसका जेईई आईआईटी में 552वाँ रैंक आया और उसे चेन्नई आईआईटी में दाखिला मिल गया। पंडित जी के पिता जी तो खैर कभी के स्वर्ग वासी हो चुके थे वह स्वयं भी बुढ़ापे में प्रवेश कर चुके थे ।यामिनी से उन्हें बेहद प्यार था । एक वही थी जिसे दादा जी के पास बैठकर उनसे उनके बचपन और जवानी के किस्सों को सुनने मे मजा आता था । अपनी भी हर बात वह दादा जी को सुनाती थी । अब उसके चेन्नई चले जाने से उनकी जिंदगी उदास सी हो गई थी हाँ यामिनी शनिवार के दिन नियम से फोन पर दादा जी से लम्बी बात करती थी । दादा जी को भी शनिवार रात्रि साढ़े नौ बजे का इंतजार रहता था ।विनोद तॊ वैसे ही कम बोलते थे फिर उनकॆ पास समय का भी अभाव रहता था। यामिनी की माँ तो घर कार्य में व्यस्त रह्ती थी वैसे वह भी बोलने मे कंजूस थी । पर नेक हॄदय और सच्ची महिला थी ।
दादा जी को आज यामिनी की फिर बहुत याद आ रही थी । कल ही तो उसने लम्बी बात की थी । जब वह यहाँ होती थी तो अकसर जिद करती थी ,’दादा जी करीम चाचा वाला किस्सा सुनाओ न? ’ दादा जी न जाने कितनी बर वह किस्सा सुना सुना कर थक चुके थे पर यामिनी की जिद वह टाल नहीं सकते थे उसे न जाने इसमें क्या मजा आता था } अकसर सुनती थी और उसकी कोई सहेली आ जाए तो उसे भी सुनवाती थी } दादा जी कुछ शर्माकर हल्की सी मुस्कराहट के साथ शुरु हो जाते थे ।
" करींम मेरा हम उम्र ही रहा होगा ।आज तो इस दुनियाँ मे नहीं है ’ इतना कहकर दादा जी की आँखे नम हो गई । ’खैर जहाँ भी हो खुश रहे,उस वक्त हम लोग टिहरी मे थे मैं सातवीं या आठवी में रहा हुंगा ।करीम ने स्कूल छोड़ दिया था। घर के करोबार में पिता की मदद करने लगा था ।अब करोबार भी क्या था ? गली गली रूई पिनने और रजाई भरने की फेरी लगाते थे । गाँव में उसके दोस्त कम थे पर मुझे वह बड़ा अच्छा लगता था } जिंदा दिल इंसान था ।उसे भी मेरा साथ पसंद था और कभी फुरसत के वक्त मेरे पास आ जाता था उसका कमाल अंग्रेजी बोलने में था ।‘उसे अंग्रेजी का A भी नहीं आता था ,पर धारा प्रवाह उट पटाँग अंग्रेजी ऐसे लहजे में बोलता था कि एक बार को तो अंग्रेज भी चकरा जाएं और उसमें कुछ अर्थ ढूंढ़ने की नाकाम कोशिश करने लगें । दादा जी जब उसकी नकल करते थे तो अंदाज हो जाता था कि मूल स्वरूप यानि करीम चाचा वाला कै्सा रहा होगा । यामिनी जाने क्यों सुनकर लोट पोट हो जाती थी। दादा जी सुना सुना कर उब जाते थे पर यामिनी की जिद के सामन विवश हो जाते थे। एक आध बार उन्होंने यामिनी को प्यार से समझाया भी," बॆटा तुम्हे इस किस्से में मजा आता होगा पर औरों को क्यों बोर करती हो ?" पर यामिनी कहाँ मानने वाली थी।दादा जी ने एक सुझाव भी दिया, "बेटा तू अपने मोबाइल पर इसका विडियो बना ले , फिर जब चाहे सुनती रह और सुनाती रह ।"
दादा जी के सुझाव पर कुछ विशेष उत्साहित न होकर यामिनी ने विडियो तो बना लिया, पर देखने के बाद बोली ," दादा जी आप कैमरे के आगे कुछ नरवस हो गए, उतना मजा नहीं आया। अब आप जब सामने होगे तब तो मैं आप से ही सुनुगी, हाँ आपकी अनुपस्थिति में इसका उपयोग अर लिया करूंगी ।दादा जी समझ गए कि पीछा छुडाना मुश्किल है ।अतः चुप हो गए ।
विनोद कुछ गंभीर किस्म का बापनुमा आदमी था ,जो अपनी मान्यता अनुसार छॊटों को ज्यादा मुँह नहीं लगाता था ।यामिनी की दादी थी नहीं ,माँ अकसर गृहकार्यों मे व्यस्त रहती थी अधिक पढ़ी लिखी नहीं थी ।यामिनी की माँ से तो बस काम की ही बातें होती थी ।गप मारना माँ के स्वभाव में नहीं था। यामिनी को यह गुण शायद दादा जी से विरासत में मिला । खूब छनती थी जब दोनों मिलते थे घन्टों बातों का सिलसिला चलता था । हैदराबाद मे यामिनी की एक दो प्रिय सहेली थी । पढ़ती तो वह भी हैदराबाद के बाहर ही थी पर छुट्टिया अकसर साथ हो जाती थी । किसी सहेली के होने पर दादा जी से गप का समय कुछ घट जाता था जो उन्हें कतई नहीं भाता था ।
इस बार छठे सैमेस्टर की समाप्ति पर यामिनी जब हैदराबाद आई तो कुछ बदली बदली सी थी । दादा जी के सामने भी कुच असहज सी पेश आ रही थी मानो किसी तनाव में हो ।दादा जी को लगा कि सब कुछ शायद सामान्य नही है , उसने अब तक करीम चाचा वाला प्रसंग सुनाने की फरमाईश भी नही की । दादा जी ने एक दिन उसे पास बैठ कर पूछ ही लिया,"यामिनी बेटा , मुझे लग रहा है तुम कुछ तनाव में हो। शायद कुछ कहना चाहती हॊ पर कह नही पा रही हो । कोई बात है तो निःसंकोच बोल दो ।"सुनते ही यामिनी को मानो जीवन दान मिल गया हो। कुछ संयत होकर बोली ।
"आप ठीक कह रहे हो दादा जी।सोचकर आई थी कि घर पहुंचते ही सबसे पहले आप को बता दूंगी । पर हिम्मत ही नहीं हुई। पापा को भनक लगेगी तो शायद मुझ्रे खा ही न जाएं ।"
"कोई लड़का पसंद कर लिया है क्या?" दादा जी ने पूछ लिया। यामिनी कुछ और नारमल होते हुए तपाक से बोली " दादाजी , आपकी इस बात से तो मुझे फ़िल्म ’जब वी मैट ’ के दादाजी का डायलाग याद आ गया जब वह कहते है कि ’हमारी उम्र में यह सब ताड़ने में देर नहीं लगती’ । आप ठीक कह रहे हैं ।"
" अरे , सचमुच ! यह तो गंभीर विषय है। तेरी जिंदगी का सवाल है। कौन लड़का है? कहाँ रहता है? तेरे कौलेज का ही है न ? क्या कर रहा है? फोटो है तेरे पास? सब कुछ बता न विस्तार से।"
"दादा जी सबकुछ बताऊंगी ,पर आप पापा को संभाल लेना प्लीज "
" अरे पहले मुझे तो कुछ पता चले"
"दादा जी, वह भी चैन्नई आई आई टी मे है । होशियार है उसका JEE में 252 वा रैंक था ।लम्बा है , स्मार्ट है पर बड़ा सिंपल । घर उसका त्रिवेन्द्रम में है, अब जो तिरुवनंतपुरम कहलाता है।
" त्रिवेन्द्रम में ?’ दा्दा जी चौंक पड़े । "यानि केरल से है? नाम क्या है ?
"उसका नाम है मोहन थौमस ।" यामिनी ने थौमस पर कुछ जोर डालकर बताया जिससे बात पहले ही साफ हो जाए।
"यह तो क्रिश्चियन नाम है। मैं इसमें अपनी क्या राय दूंगा ? विनोद तो भडक जाएगा। "
" दादा जी...ई...ई...ई प्लीईईज ।ऐसा मत कहिए। सब कुछ आपके हाथ में है । आप ही पापा को समझा सकते हैं "
" मैं तो खुद कुछ नहीं समझा तो उसे कैसे समझाउंगा। नहीं , नहीं , इस काम के लिए तो तू मुझे बख्श ही दे ।"
"दादा जी अगर मैं उसे आप से मिलवा दूं तब तो आप अपनी राय देंगे न? या फिर धर्म, जात पात ही हावी रहेगी आपके उपर ।"
"इतना ही कह सकता हूं कि अगर मैं उससे मिलता हूं तो उसके बारे में मैं अपनी राय मैं केवल उसके गुणों के आधार पर बनाऊंगा। पर तुम कब और कैसे मिलवा सकोगी उससे?"
"परसों मिलवा सकती हूं दादा जी । वह भी छुट्टियों में त्रिवेन्द्रम में है । एक दिन उसे तैयारी में लगेगा । परसॊं शाम तक आ्पसे मिलने आ जाएगा ।वह अपने माँ बाप का इकलौता लड़का है । उसके पापा का बिजनैस है काजू एक्सपोर्ट करते हैं, चाहते हैं वह अब बिजनैस देखे । उसकी शादी भी जल्दी करना चाहते हैं उसके पीछे पडे है। बडॆ दबाव में है ।इसीलिए वह भी पहले हमारे परिवार का रुख देखकर यहाँ की स्वीकॄति चाहता है जिससे सबकुछ पटरी पर आ जाए और वह तनावमुक्त हो सके। मुझे यकीन है वह परसों जरूर आ पाएगा। बाकी तो मुझे कुछ नही कहना है आप परखियेगा"
"ठीक है ठीक है ।" दादा जी ने कहा " "लगता है तुमने ही पटकथा लिखी है, विनोद और अपनी माँ को क्या बताओगी कि कौन आया है?"
"आप उसकी चिंता न करें दादा जी, वह सब तो मैं संभाल लूंगी।आपको तो बस उसे शत प्रतिशत अंक देकर पास करना है।" यामिनी हंसकर बोली।
दादा जी बोले, " बेटा , सिफारिश इसमें बिल्कुल नहीं चलेगी । फकत योग्यता के आधार पर फैसला होगा।"
"मुझे आपकी पारखी नज़र पर भरोसा है ,दादा जी।पापा अम्मा को तो कह दूंगी मेरी सहेली का भाई आ रहा है। सहेली ने कुछ नोट्स भिजवाए हैं ।एक आध घंटा बैठकर अपने दोस्त के यहाँ चला जाएगा।" यामिनी बोलते हुए कुछ उत्साहित सी लगी।
" ठीक है तुम उससे बात करके सब तय करो।" दादा जी ने कहा ।
यामिनी को लगा कि उसने पहला कदम तो सही ले लिया है।कुछ रिलैक्स होकर वह सीधे अपने कमरे में आई और मोहन को फोन करने लगी ।
" येस यामिनी , हाउ आर यू ? " उधर से मोहन की आवाज आई।
"ठीक ही हूं " यामिनी ने उत्तर दिया।
"’ही’ मीन्स ?"मोहन ने सवाल किया।
" अब मुझे तो तुमने इतना मुश्किल काम सौंप दिया और खुद छुट्टियों का मजा ले रहे हो । अच्छा सुनो ,मैंने दादा जी को तुम्हारे बारे में बता दिया है। क्या तुम कल आ सकते हो दादा जी से मिलने, वह तुमसे मिलना चाहते हैं ।"‘
" कल तो नहीं , परसों शाम को तुम्हारे घर पहुंच सकता हूं । तुम घर का पूरा पता , लैन्ड मार्क्स के साथ व्हाट्स एप कर देना। ठीक है न ?" मोहन ने कहा।
यामिनी के मन की बात हो गई थी । वह तो परसों का ही चाह रही थी । "ठीक है । पता वगैरह तो मैं सब विस्तार से बता ही दूंगी ।पर एक बात सुनो , दादा जी के अतिरिक्त अभी तुम्हारी असलियत अन्य किसी को पता नहीं चलनी चाहिए। मै पापा,अम्मा से कह दूंगी कि सहेली का भाई आ रहा है । उसने कुछ नोट्स भिजवाए हैं । ठीक न?"
"अब वह सब तुम जानो। मुझे तो बस ओर्डर मानना है " मोहन की आवाज आई ।
" तो परसों शाम पक्का 06.30 बजे, दादा जी को इमप्रैस करने की तैय्यारी करके आना ।" यामिनी ने चकते हुए हिदायत दी
" अरे ,जब तुम्हे कर दिया । तो बुढऊ सारी ,सारी, दादा जी क्या चीज हैं ।" मोहन ने चुटकी ली ।
"अच्छा ज्यादा उड़ो मत , व्हाट्स एप पर अपना प्रोग्राम और मूवमैन्ट्स बताते रहना । बाय "
और फिर यामिनी उछलती हुई दादा जी के कमरे की तरफ भागी ।
"दादा जी मोहन परसों शाम आ रहा है । अब इतनी दूर से आ रहा है आप खयाल रखना ।" यामिनी ने दादा जी से अनुनय के लहजे मे कहा ।
" मुझे अपना काम पता है बेटा, तुम बाकी चीजें संभालो ।" दादा जी बोले ।
आज बुधवार है । मोहन को आना है ।आज ड्राईग रुम की साफ सफाई यामिनी कामवाली बाई से अपनी देख रेख में करवा रही है } पर सावधान भी है कि उसका यह उत्साह माँ न पढ ले । विनोद तो खैर आफिस जा चुका है ।
अम्मा ने अभी आकर उसे बताया कि तेरे पापा को शाम को खँडूरी जी के लड़के की शादी में जाना है ।
यामिनी को लगा कि सब कुछ अपने आप ही ठीक हो रहा है । दिन शुभ है ।
" अम्मा खन्डूरी अंकल आन्टी हम लोगों को कितना मानते हैं पिछले साल दादा जी की बीमारी के दौरान अंकल ने कितने चक्कर लगाए थे और दौड़ भाग की थी ।पापा अकेले क्यॊं जा रहे हैं ? आप को भी जाना चाहिए ।"
" अरे मैं जाकर क्या करूंगी । घर का काम बिखर जाता है सारा । फिर शाम को तेरी सहेली का भाई भी आ रहा है ।"
"अरे वह कौन सा अफलातून है । मै चाय बनाकर पिला दूंगी । थोड़ी देर ही तो बैठेगा । अम्मा आप अवश्य जाइए ।आप किसी रिश्ते को अहमियत क्यों नहीं देती ।इतने अच्छे लोग हैं ,बिरादरी के हैं । हमारा कितना खयाल रखते हैं । आप को बस जाना ही है ।" यामिनी बोली । बिरादरी वाली बात कहकर वह खुद ही सकुचा गई ।
" अरे बेटी, रिश्तों को खूब अहमियत दूंगी । जरा हो तो जाए तेरा रिश्ता ।" अम्मा ने कहा।
यामिनी सुनकर कुछ सिहर सी गई । कहीं अम्मा को कुच भनक तो नहीं लग गई ।
फिर सहज होकर अधिकार के स्वर में बोली," और अम्मा , वह हरी वाली साडी पहनना।"
"ठीक है देखती हूं अब तो तूने मेरा श्रॄंगार भी कर दिया है ।"
यामिनी अपनी योजना पर मन ही मन बहुत खुश थी । अपने कमरे में जाकर तुरंत मोहन से संपर्क किया और कहा, " मोहन तुम मेरा संदेश मिलने पर ही आना । शाम के सात बजे के आसपास।"
"ठीक है ,मुझे भी यही टाइम सूट करता है।" वह बोला ।
शाम को जब यामिनी के अम्मा पापा तैय्यार हो गए तो उसने मोह्न को आने का संदेश दिया। मोहन पहले ही हैदराबाद के होटल पहुंच गया था और तरोताजा होकर यामिनी के संदेश की प्रतीक्षा कर रहा था।
इधर यामिनी के अम्मा पाप शादी के लिए घर से निकले और उधर घर के बाहर मोहन की टैक्सी आकर रूकी ।घर में दादा जी और यामिनी के अतिरिक्त अब कोई नहीं था ।यामिनी ने उसे ड्राइंग रुम मे बैठाया और हाल चाल जानने के बाद दादा जी को उसके आने की सूचना दी ।
दादा जी धीरे धीरे ड्राईंग रूम में आए और मोहन को देखते ही क्षण भर को हर्षमिश्रित आश्चर्य के साथ ठिठक से गए । उन्होंने अपने मन में मलयाली लड़के की जो छवि संजोई थी उससे हटकर उनके सामने एक गोरा छरहरे बदन का सुन्दर लड़का था, जो उन्हें देखते ही खड़ा हो गया और उनके चरणों मे झुक गया ।उसकी हाईट भी छः फ़ीट से शायद एक आध इंच ही कम होगी ।
दादा जी ने मोहन से मुखातिब होकर कहा ,’उम्मीद है तुम आराम से यहाँ पहुंच गए हो , घर ढूंढ़ने में कोई परेशानी तो नहीं हुई न ?"
"जी नही दादा जी ,यामिनी ने ठीक से गाइड़ कर दिया था।"
"वह तो मुझे पता था। खैर, अब हम बिना तकल्लुफ किए और समय को बरबाद न करते हुए सीधे काम की बात पर आ जाते हैं । मुझे पता चला है कि तुम लोग एक दूसरे को पसंद करते हो। पहले तो मै तुमसे यह जानना चाहता हूं कि तुमने यामिनी में ऐसा क्या देखा?"
मोहन ने दादा जी के इस प्रश्न पर चेहरे पर बिना कोई विशेष भाव लाए हुए संयत स्वर में उत्तर दिया," दादा जी मुझे उसका सबसे मीठे स्वर में बात करना और मित्रवत स्वभाव बहुत पसंद आया , दूसरे दुखियों और बेसहारों की समस्याओं के प्रति वह बेहद संवेदनशील है । जिसकी मैं सराहना करता हूं और पक्षधर भी हूं ।और हाँ सबसे बड़ी बात जिसने मुझे उसके इन गुणों को जानने और परखने की जरूरत महसूस करवाई वह है उसके व्यक्तित्व का आकर्षण । आपसे क्षमा चाहता हूं पर मेरे खयाल से इन सभी बातों ने मुझे बहुत प्रभावित किया है ।"
" तुम्हारी हिंदी इतनी अच्छी कैसे है? खैर यह तो मैं तुमसे बाद में पूछूंगा । पहले यह बताओ कि कल्चर में अंतर होने के कारण क्या तुम सोचते हो कि यामिनी का पूरे परिवार में एड्जटमैन्ट संभव है ? इस बात पर तुमने विचार किया है कभी ?" दादा जी ने पूछा।
" दादा जी इन सब विषयों पर मैंने बहुत गहराई से विचार किया है । हमारा काजू एक्स्पोर्ट का बिजनैस है ।पिताजी इस सिलसिले में बहुत से लोगों के संपर्क में आते हैं । इसलिए वह बिल्कुल खुले है इस मामले में ।और उन्होने शादी के बारे में भी पसंद वगैरह का काम मुझ पर छोड़ दिया है।
"मेरी दोनों बुआओं कि शादी भी उत्तर भारतीयों में हुई है जो दिल्ली में पढाई के दौरान उनकॆ संपर्क में आई ।मैं बचपन में बड़ी बुआ के पास दो साल दिल्ली रहकर पढ़ा भी हूं । अकसर छुट्टियों में लम्बे समय के लिए दिल्ली जाना होता रहा है । मेरी अच्छी हिंदी में दिल्ली, बुआ, फूफा,और उनके परिवार जनों का बड़ा हाथ है ।बुआओं ने वहाँ बडी अच्छी तरह एड्जस्ट किया हुआ है ।पिताजी हमेशा कहते हैं अगर इंसान का स्वभाव अच्छा है संवेदनशील है तो उसके लिए कहीं भी एडजस्ट कर पाना कोई मुश्किल नही है । मैं इकलौता लड़का हूं , शादी करने का दबाव है । इसीलिए मैंने इस बारे में सभी पहलुओं से सोचने का प्रयास किया है ।आप लोगों की सहमति आवश्यक है जिससे मैं घर में अपनी पसंद बता सकूं ।" मोहन ने विस्तार से अपनी बात रखने की कोशिश की ।
दादा जी ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे एक एक शब्द तोल रहे थे।’ और हाँ, एक बात बताओ बेटा , शादी के बारे में तुम्हारे परिवार के क्या विचार है ? कब, कहाँ और कै्सी शादी चाहते हैं?"
"दादा जी , अभी तो मैंने उन्हे अपनी पसंद बताई नहीं थी । वह लोग रोज ही एक दो प्रस्तावों पर मेरी राय माँग लेते हैं ।कितु मैं यह कह सकता हूं कि पसंद बताते ही वह तुरंत शादी करना चाहेंगे । मैं शादी को एक साल और यानि फाइनल वर्ष तक टालने का प्रयास कर सकता हूं । पता नहीं वह लोग मानेंगे कि नहीं?"
"अरे यामिनी चाय वगैरह तो ले आओ"
"जी दादा जी" कहकर यामिनी उठ्कर चली गई।
"हाँ मोहन तुम अपनी बात पूरी कर लो ।" दादाजी बोले।
"जी दादा जी ,जैसा कि आप जानते ही होंगे शादी वहीं पर हमारे पारिवारिक चर्च में होगी ।उसके बाद आप भी अपनी रीति के अनुसार वहाँ अथवा यहाँ शादी की रस्म कर सकते हैं ।"
" अरे बेटा , हम शायद बहुत आगे बढ़ गए हैं , अभी तो मुझे इसके अम्मा, पापा से बात करनी होगी।"
"ठीक है दादा जी, मुझे भरोसा है आप सबकुछ सुलझा लेंगे।"
कुछ देर में यामिनी चाय लेकर आ गई । चाय के साथ घर परिवार और पढ़ाई अदि के विषय में बातें चलती रही ।
चाय पीकर मोहन ने जाने की इजाजत ली ।"
" ठीक है मैं तुम्हे और नहीं रोकूंगा। इसके अम्मा पापा भी आने वाले होंगे । उनसे तो तुम्हे तभी मिलवाएंगे जब मैं उन्हे सब बातें पहले बता दूंगा।"
’अच्छा दादा जी ,आशा है आप मुझे A+ ग्रेड देंगे और आगे के लिए भी यह केस अपने हाथों में ले लेंगे।"
दादा जी उसकी बात पर मुस्कराए और यामिनी से बोले,"जा बेटी, बाहर तक छोड़ दे ।"
यामिनी और मोहन बाहर टैक्सी की तरफ जा ही रहे थे कि पापा और अम्मा आ गए सामने से।"
" अरे आप लोग तो बड़ी जल्दी आ गए। और हाँ यह मेरी सहेली का भाई है।" फिर मोहन से बोली "मेरे अम्मा पापा हैं ।"
अम्मा बोली ,"जा रहे हो क्या ? "
"जी हाँ अब चलता हूं । देर हो रही है ।"
यामिनी मन ही मन खुश थी कि चलो अम्मा पापा ने भी देख लिया ।
मोहन को विदा कर यामिनी सीधे दादा जी के कमरे में गई और दादा जी के कान में फुसफुसाई ,"दादा जी अपनी राय बताइये न ।"
"सच कहूं , मैंने जैसा सोचा था उससे कई गुना अच्छा लगा । 100 में से 200 अंक तो बनते हैं, भला लडका है, सुन्दर और समझदार है ,बिल्कुल तुम्हारी जोड़ी का है।"
"ओह दादा जी आप कितने अच्छे हैं ।"
" पर अब विनोद को संभालने की चिंता है ।" दादा जी बोले।
" वह तो आप कर ही लोगे दादा जी , बाप हो आप पापा के, पर आप आज बात मत करना ,दो तीन दिन बाद करना ।" यामिनी ने सुझाया।
" इतनी जल्दी भला क्यों करूंगा ? " दादा जी बोले।
दादा जी की आशा के विपरीत विनोद को मनाने में कोई विशेष दिक्कत नहीं हुई थी । दादा जी ने विनोद से कहा था," लड़का मैंने देखा है, उससे बातचीत की है। सुन्दर,सौम्य , सुशील है ।पढ़ने में भी हमारी यामिनी से कम होशियार नहीं है। अकेला लडका है पिता का जमा जमाया बिजनैस है । फिर सबसे अच्छी बात यह है कि वह विदेश बसने में बिल्कुल इच्छुक नहीं है ।अंततः उसे पिता का बिजनैस ही संभालना है। मेरे खयाल से जाति धर्म की बात अगर भूल जाएं तो इससे अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा ।तुम अच्छी तरह विचार कर लो। और हाँ एक बात और,खुशी खुशी आशीर्वाद दोगे तो अच्छा है , वरन अगर ब्च्चों ने शादी की सोच ही ली है तो व्यर्थ की नाराजगी और ऐंठ से कोई लाभ नहीं है । बच्चे बहुत समझदार हैं , भला बुरा समझते हैं ।"
दादा जी की बातों पर विनोद ने संजीदगी से गौर किया । उसे अपनी बेटी के चयन और पिताजी की सूक्ष्म द्दष्टि पर पूरा भरोसा था अतः उसने अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दी ।यामिनी की अम्मा को क्रिश्चियन वाली बात थोड़ी अखरी थी पर अंततः उसे भी ससुर, पति और बेटी के साथ चलने में ही भलाई दिखाई दी ।मोहन के परिवार के साथ बातचीत के बाद तय हुआ कि फाइनल सैशन की समाप्ति के बाद 21 जून को यानि लगभग 4 महीने के बाद त्रिवेन्द्रम के चर्च में पहले शादी होगी फिर 23 जून को वहीं किसी वैडिंग पौइन्ट पर पर हिंदू रीति के अनुसार शादी की सभी रस्में होंगी , वहाँ तो गिनती के आदमी ही जा पाएंगे , अतः हैदराबाद में 25 जून को रिसैप्शन दिया जाएगा ।
धीरे धीरे एक वर्ष का समय व्यतीत हो गया यामिनी के फाइनल सैशन की समाप्ति अब चंद सप्ताह के फासले पर थी। उसके बाद जून मे त्रिवेन्द्रम में यामिनी की शादी थी ।
दादा जी लगभग 86 वर्ष के हो गए थे, पहले से काफी कमजोर हो गए थे।
यामिनी फाइनल परीक्षा देकर आ चुकी थी । शादी की खरीदारी शुरू हो गई थी। समय बीतता जा रहा था ।अंततः जून भी आ गया । 20 जून को यामिनी , दादा जी उसके अम्मा पापा, दोनों बुवाएं व उनका परिवार साथ में विनोद के दो घनिष्ठ मित्रों का काफिला त्रिवेन्द्रम पहुंच गया ।
मोहन के माता पिता ने शहर के एक प्रतिष्ठित पाँच सि्तारा होटल में उनके ठहरने का प्रबंध किया था और उन्हे स्पष्ट कर दिया था कि वह लोग उनके मेहमान है अतः यहाँ के प्रवास के खर्च के बारे मे उन्हे सोचना भी नही है न मन मे किसी प्रकार का बोझ रखना है ।बड़ी विचित्र सी स्थिति मे थे वह लोग , बारातियों जैसी आवभगत हो रही थी ।21 जून को सुबह 10 बजे उन्हे पास के ऐन्ड्रुज चर्च में ले जाया गया और क्रिश्चियन विधि से पादरी ने शादी संपन्न करवाई । 22 जून को मोह्न के माता पिता ने उन सबको तथा अपने सभी रिश्तेदारों को रिसैप्शन पर बुलाया था ।
23 जून को पास ही के एक वैडींग पाईन्ट पोइन्ट पर हिंदू पद्धति से शादी संपन्न हुई जिसमें मोहन की ओर से उनके सभी रिश्तेदारों ने यमिनी
के पिताजी के विशेष अनुरोध पर भाग लिया ।वैसे वह सभी इ्सके लिए बहुत उत्सुक और उत्साहित लग रहे थे । दादा जी इसके बाद अवश्य थके थके और निढाल से लग रहे थे ।खाँसी भी थी।
24जून को मोहन समेत सभी हैदराबाद लौट आए ।25को वहाँ रिसैप्शन है । मोहन के माता पिता तो विशेष अतिथि थे ही ।किंतु उन्होने 25 जून को ही शाम को हैदराबाद आने का कार्यक्रम बनाया था।
दादा जी और टीम को हैदराबाद पहुंचते हुए शाम के लगभग 4 बज गए थे ।
घर आते ही दादा जी को सीने मे बहुत जोर से दर्द उठा। बिना वक्त खोए विनोद उन्हे पास के संजीवनी अस्पताल मे ले गया । डाक्टर्स ने आई सी यू में तुरंत भरती कर लिया और जाँच शुरु हो गई ।डाक्टर ने उन्हें बताया," दिल का दौरा पडा है । इलाज शुरु कर दिया है इंजैक्शन दिया है ।48घन्टे के बाद ही हालत के बारे मे कुछ निर्णायक कहा जा सकता है ।"
उधर घर में यामिनी के आँसू थम नहीं रहे थे ।उसे लग रहा था जैसे उसने अपनी खुशी के लिए, अपना जीवन संवारने के लिए दादा जी के जीवन को संकट मे डाल दिया हो ।अगले दिन यामिनी ने जिद की कि वह अस्पताल से दादा जी को रिसैप्शन में लेकर आएगी ,उनका आशीर्वाद लेना है ।
शाम 6 बजे यामिनी अस्पताल पहुंची ।विनोद और मोहन भी साथ थे ।माँ और बुआ जी पहले सॆ ही अस्पताल के लाउन्ज में बैठे हुए थे ।विशेष प्रार्थना पर उसे कुछ देर के लिए ICCU में जाने की अनुमति मिली, वहाँ बोलने की मनाही थी। दादा जी के मुंह नाक पर नलियाँ लगी थी , उसे लगा कि वह वैन्टीलेटर पर हैं ।यामिनी ने जैसे ही उनके हाथ का स्पर्श किया ऐसा लगा मानो उन्होंने उसे पहचान लिया । एक हल्की सी चमक उनकी आँखो मे दिखाई दी , हाथ उठाने का उपक्रम किया , मानो यामिनी को आशीर्वाद देना चाह रहे हों और अगले ही क्षण निढाल हो गए ।नर्स ने फौरन डाक्टर को बुलाया , उसने जाँच के बाद उन्हे मॄत घोषित कर दिया ।उधर विनोद के पास फोन पर फोन आरहे थे । सभी दादा जी जी का हाल और उनके अस्पताल से रिसैपशन में आने का समय जानना चाहते थे ।विनोद अत्यंत दुविधा और असमंजस की स्थिति मे था । तभी मोहन ने विनोद के पास आकर धीमे से कुछ कहने की चेष्टा की ," पापा मैं जानता हूं,आप के लिए और हम सब के लिए यह बहुत कठिन वक्त है , आप कृपया मुझे गलत न समझें, मैं आपसे यह अर्ज करना चाहता हूं कि दादा जी भी यह कभी नही चाहते कि उनके कारण उनकी बेटी इतने लोगों के आशीष से वंचित हो जाए और सब भूखे घर जाएं । मेर विचार है कि हम बाडी को मौर्चरी मे रखवा देते हैं और अभी यह बात हम लोगों के अतिरिक्त और लोगों तक नहीं पहुंचनी चाहिए । आप अ्म्मा जी और बुआ जी को भी समझा दीजिए कि खुद पर काबू रख्खें । दादा जी ने इस कार्य को इस मुकाम तक पहुंचाया है उनका पूरा आशीर्वाद तभी मिलेगा जब रिसैप्शन की रस्म भी संपन्न हो जाए। तभी उनकी आत्मा को शान्ति मिलेगी । आप या मै यहां रुक कर बाडी मौर्चरी मॆं रखवा कर आते हैं } शे्ष लोग तुरंत रिसैप्श्न के लिए रवाना हो जाएं । सभी प्रतीक्षारत हैं । अगर देर होगी तो कुछ लोग यहाँ आ सकते हैं ।"
" कहते तो ठीक ही हो बेटा । मैं यहाँ का काम करके आता हूं ।तुम इन सबको ले जाओ । यामिनी को भी संभालना होगा ।तो आप लोग चलो अब ।"
अम्मा , बुआ, यामिनी मोहन शीघ्र ही रिसैपश्न स्थल के लिए रवाना हो गए । रास्ते भर मोहन उनको संयमित रहने के लिए कहता रहा ।" सभी समझदार थे तथा मौके की गंभीरता समझते थे।" सबके चेहरे पर मायूसी के भाव थे । वह रिसैप्शन स्थल पहुंच गए ।वहाँ मोहन के माता पिता बुआएं आदि सभी त्रिवेन्द्रम से पहुंच चुके थे तथा वहीं रेसैप्शन पर घर के लोगों की तरह मेहमानों की आवभगत कर रहे थे। यामिनी ने उनके पैर छुए दादा जी के बारे में बात हुई और फ़िर मायूस सा चेहरा लिए यामिनी और मोहन अपने लिए लगी कुर्सियों पर विराज गए ।लोग शगुन और आशीर्वाद देने के लिए आने शुरू हो गए । विनोद ने अपने निमंत्रण पत्र में उपहार और लिफाफे न लाने का अनुरोध किया था जिस पर कायम रहते हुए यामिनी ने किसी तरह का कोई तोहफा क्षमा याचना के साथ स्वीकार नहीं किया ।लगभग रात्रि 11.30 बजे तक सब लोग घर लौट आए ।
सुबह 7 बजे विनोद और यामिनि के फूफा जी दादा जी का शव लेकर घर आ गए । मोहन के माता पिता भी होटल से घर पहुंच गए थे ,मोहन ने शायद उन्हें सब बता दिया था।अब यह बात सबको पता चल ही चुकी थी । घीरे धीरे लोग आने शुरु हो गए । 10 बजे दादाजी की शव यात्रा चेतना मोक्षधाम के लिए रवाना हुई ।
यामिनी में ही उनके प्राण बसते थे ।
यामिनी के ससुराल जाने से पूर्व ही दादा जी विदा ले चुके थे ।
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