Wednesday, November 20, 2013
Monday, November 18, 2013
विश्व शौचालय दिवस (19 नवम्बर )
आज19नवम्बर को विश्व शौचालय दिवस है । प्राप्त आँकडों के अनुसार हमारे देश में अब भी ५५% से अधिक लोग खुले में शौच जाते हैं , हमारे देशवासियों को कम से कम शौचालय के मामले में पारदर्शिता बिल्कुल नहीं चाहिए ।
मूलभूत सुविधा नहीं, अधिक जनों को प्राप्त,शौच खुले में जा रहे, कितने दुःख की बात !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मूलभूत सुविधा नहीं, अधिक जनों को प्राप्त,शौच खुले में जा रहे, कितने दुःख की बात !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Saturday, November 16, 2013
Thursday, November 14, 2013
Tuesday, November 12, 2013
Sunday, November 10, 2013
Thursday, November 7, 2013
Monday, November 4, 2013
Saturday, November 2, 2013
Thursday, October 31, 2013
Monday, October 28, 2013
Saturday, October 26, 2013
Thursday, October 24, 2013
Monday, October 21, 2013
Thursday, October 17, 2013
रचना
-ओंम प्रकाश नौटियाल
उन आँखो मे कहाँ नूर कि जिनमे हया न हो ,
किस बात का गुरूर हो जब दिल में दया न हो,
छंद ,शिल्प से अलंकृत उस रचना में क्या पढें
जिसमें भाव, अनुभव, विचार कुछ भी नया न हो!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
उन आँखो मे कहाँ नूर कि जिनमे हया न हो ,
किस बात का गुरूर हो जब दिल में दया न हो,
छंद ,शिल्प से अलंकृत उस रचना में क्या पढें
जिसमें भाव, अनुभव, विचार कुछ भी नया न हो!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Monday, October 14, 2013
Friday, October 11, 2013
Friday, October 4, 2013
नीरव
-ओंम प्रकाश नौटियाल
शब्द नीरव , गीत नीरव, निशा नीरव , व्योम नीरव,
पवन नीरव , अगन नीरव , हवन नीरव, होम नीरव,
प्रीत नीरव , अतीत नीरव, प्रभा और प्रलोभ नीरव,
निष्पंद नीरव , गंध नीरव, नीरवता में "ओंम" नीरव !
शब्द नीरव , गीत नीरव, निशा नीरव , व्योम नीरव,
पवन नीरव , अगन नीरव , हवन नीरव, होम नीरव,
प्रीत नीरव , अतीत नीरव, प्रभा और प्रलोभ नीरव,
निष्पंद नीरव , गंध नीरव, नीरवता में "ओंम" नीरव !
Tuesday, October 1, 2013
Monday, September 30, 2013
Friday, September 27, 2013
Thursday, September 26, 2013
Tuesday, September 24, 2013
Monday, September 23, 2013
Thursday, September 19, 2013
पुस्तक "पावन धार गंगा है" (कविता संग्रह ) को घर बैठे प्राप्त करें !
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Branch code 02676 :IFS Code SBIN0002676 )
शुभकामनाओं सहित
आपका अपना
ओंम प्रकाश नौटियाल
301 , मारुति
फ़्लैट्स,गायकवाड़ कम्पाउन्ड, ओ ऐन
जी सी के सामने ,मकरपुरा रोड
Monday, September 16, 2013
Thursday, September 5, 2013
Wednesday, September 4, 2013
Saturday, August 24, 2013
Friday, August 23, 2013
हे कृष्ण प्यारे ! -ओंम प्रकाश नौटियाल
निरंकुश घूमते कंस , जरासंध इस जमाने में,
व्यस्त दुष्ट, दुराचारी , पाप की नगरी बसाने में,
कृष्णा प्यारे, करो मर्दन, इन पापियो, कालियों का
आनन्द आये तब मुरली मधुर सुनने सुनाने में !
-ओंम प्रकाश नौटियाल -
व्यस्त दुष्ट, दुराचारी , पाप की नगरी बसाने में,
कृष्णा प्यारे, करो मर्दन, इन पापियो, कालियों का
आनन्द आये तब मुरली मधुर सुनने सुनाने में !
-ओंम प्रकाश नौटियाल -
Friday, August 16, 2013
Thursday, August 15, 2013
Monday, August 12, 2013
Thursday, August 8, 2013
Tuesday, August 6, 2013
Monday, August 5, 2013
Saturday, August 3, 2013
Monday, July 29, 2013
Friday, July 26, 2013
Wednesday, July 24, 2013
Tuesday, July 23, 2013
Saturday, July 20, 2013
पृथ्वी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
हो मँहगी पृथ्वी भले , रहने का पर लुफ्त
सूर्य परिक्रमा हर वर्ष, मिल जाती है मुफ्त !!
हो मँहगी पृथ्वी भले , रहने का पर लुफ्त
सूर्य परिक्रमा हर वर्ष, मिल जाती है मुफ्त !!
Thursday, July 18, 2013
व्योम में -एक मुक्तक
-ओंम प्रकाश नौटियाल
कितनी शमा हुई रोशन,तम यह कम नहीं होता,
नकली रोशनी से आस का अब भ्रम नहीं होता ,
’ओंम’ व्योम में तो पंछी सुखी स्वछ्न्द उडते हैं
क्योंकि नेता , मजहब का वहाँ परचम नहीं होता !
कितनी शमा हुई रोशन,तम यह कम नहीं होता,
नकली रोशनी से आस का अब भ्रम नहीं होता ,
’ओंम’ व्योम में तो पंछी सुखी स्वछ्न्द उडते हैं
क्योंकि नेता , मजहब का वहाँ परचम नहीं होता !
Friday, July 12, 2013
"उत्तराखण्ड जल प्रलय --कितनी प्राकृतिक ,कितनी मानवीय "
**उत्तराखण्ड जल प्रलय --कितनी प्राकृतिक , कितनी मानवीय
-ओंम प्रकाश नौटियाल
"है आँख में पानी तो फिर चेहरा नूरानी है
पानी से ही धरती पर जीवंत, जिन्दगानी
है
जीते जी मरण मानिये, ढला
जो आँख का पानी,
पानी के उफान की और भी त्रासद
कहानी है !" -ओंम
इस
वर्ष जून माह में देव भूमि उत्तराखण्ड अभूतपूर्व आपदा की शिकार हुई । कई हजार लोग
पलक झपकते ही मृत्यु के निवाले बन गये। उत्तराखण्ड राज्य के गाँव के गाँव अलकनंदा , भागीरथी और मंदाकिनी नदियों के उफ़नते प्रकोप से उत्पन्न अनियंत्रित बहाव
में साफ हो गय्रे । क्रोधित नदियाँ अपने किनारों पर कुकुरमुत्ते जैसे उगे आवास, होटल , रेस्तरां , धर्मशालायें बहा ले गई । छोटे बडे सैकडों पुल और
पुलिया या तो पूर्णतः नष्ट हो गये या क्षतिग्रस्त
हो गये । नतीजतन बचे हुए गाँवो का शेष भूमि से संपर्क टूट गया । इनमें फंसे
हजारों लोग पगलाई नदियॊ , स्खलित होती पहाडियों
और टूटते किनारों के बीच मृत्यु के भयावह इंतजार में कंपकंपाते रहे । प्राप्त
आँकडों के अनुसार , जो अंतिम नहीं हैं , लगभग 1300 सडकें और 145 पुल नष्ट हुए , 400 गाँव बह गये । पर्य़टन उद्योग की हानि ही 12000 करोड की आँकी जा रही है । कितने लोग मत्यु के ग्रास बन गये इसका अनुमान इसलिये
कठिन है कि हजारों शव मलबे के नीचे दबे हैं , पानी में बह गये हैं - कुछ शव तो इलाहाबाद में गंगा से क्षत विक्षत हाल में निकाले गये हैं । हाँ
लापता लोगों और प्राप्त शवों के आधार पर यह अनुमान लगाने में कोई कठिनाई नहीं है
कि इस भयंकर हिमालयन सुनामी में संसार को
त्यागने वालों की संख्या कई हजारों में होगी ।इस भीषण जल प्रलय के दौरान जहाँ एक
ओर सेना , आईटीबीएफ और एनडीआरएफ के जवान और
अफसर अपनी जाँन की परवाह किये बगैर बडे अनुशासित और संयमित ढंग से फंसे हुए लोगों
को बचाने में कार्यरत रहे वहीं दूसरी ओर विभिन्न दलों के हमारे राजनेता बचाव और
राहत कार्य का श्रेय लूटने के उद्देश्य से बयानबाजी करते नजर आये । इस प्रक्रिया
में वह एक दूसरे पर न केवल आरोप प्रत्यारोप लगाने लगे बल्कि कभी कभी
तो टकराव यहाँ तक बढ गया कि देहरादून के जौली ग्राँट हवाई अड्डे पर श्रेय के दावे
करते हुए दो दलों के नेता शारीरिक भिडंत में उलझ गये । इस त्रासदी ने
अमानवीय और स्वार्थी चेहरों के भौंडे स्वरूप को भी देश के सामने उजागर कर दिया
।ऐसे तत्व मीडिया और अपने प्रतिद्वन्दियों को यह नसीहत भी देते नजर आये की यह समय
राजनीति करने का नहीं है जिसका सीधा अर्थ है कि आप इस बडे पैमाने पर हुई जान माल
की हानि पर उनसे प्रश्न करके उन्हें लज्जित मत कीजिये बस बचाव के उनके दावों पर
आँख बन्द कर विश्वास कीजिये और उनकी तारीफों के पुल बाँधिये ।
इस
देश का दुर्भाग्य है कि जब भी कोई ऐसा बडा काँड घटित होता है तो उसके लिये
जिम्मेदार लोग दंडित होने के बजाय उस के
प्रबंधन कार्यों के लिये स्वयं को पुरस्कृत करने का प्रबंध कर लेते हैं किसी को इस
बात के लिये कभी दंडित नहीं किया जाता कि आखिर कौन से मानवीय कारण थे जिन्होंने उस
हादसे की तीव्रता इतनी भयंकर कर दी । हालाकि
उत्तराखण्ड त्रासदी ने सरकारी आपदा प्रबंधन तंत्र की भी पोल खोल कर रख दी
है।
इस
बात में तनिक भी संदेह नहीं कि उत्तराखण्ड में जिस व्यापकता और भयावहता के साथ
तबाही का तांडव हुआ उसके लिये प्रकृति नहीं बल्कि मनुष्य जिम्मेदार है ।लगभग समूचे
उत्तराखण्ड को मनुष्य के लालच , स्वार्थ और संकुचित
द्दष्टिकोण ने मानों बारूद के एक ऐसे ढेर पर बैठा दिया है जो जरा सी अतिवृष्टि
जैसा प्राकृतिक ट्रिगर मिलते ही भयंकर रूप से फट पडता है ।
एक
सत्य यह भी है कि पहाडी इलाकों में भी शहरीकरण को रोका नहीं जा सकता है।
पहाडों का अपना आकर्षण है अतः बहां पर्यटक, तीर्थयात्री और श्रद्धालु अवश्य जायेंगे ।
स्विट्जरलैंड जैसे देशों में भी पहाडों पर नगर बसे हैं किंतु पर्यावरण को हानि
पहुंचाकर नहीं । विकास और पर्यावरण में संतुलन अति आवश्यक है । किंतु अत्यंत दुख
का विषय है कि उत्तराखण्ड में अनेकों वर्षों में विकास के नाम पर पर्यावरण का
निर्मम क्षरण हुआ है और यही कारण है कि यहाँ प्राकृतिक अतिवृष्टि , 2004 में देश में आयी सुनामी के बाद , भारत की सबसे बडी राष्ट्रीय आपदा में परिवर्तित हो गई
। आइये उत्तराखण्ड की इस महा त्रासदी में मानवीय योगदान पर एक द्दष्टिपात करें ।
मानवीय कारण:
1.प्राप्त आँकडों के अनुसार वर्ष 1970 के दौरान उत्तराखण्ड में लगभग 85 % जंगल थे जो
अनुमानतः वर्ष 2100 तक घटकर 52 % रह जायेंगें ।
वृक्षों का बेतहाशा कटान भूस्खलन
का एक खास कारण है ।
2.पन बिजली परियोजनाओं के अंतर्गत उत्तराखण्ड में लगभग 427 बाँध बनने हैं ।इनमें करी्ब 100 बाँधों पर कार्य चल
रहा था । एक बाँध के लिये 5 से 25 कि. मी. लम्बी सुरंगे , जिसका आकार इतना बडा होता है कि तीन
ट्रेन्स साथ साथ निकल सकती हैं , भारी मात्रा में
विस्फोटकों का प्रयोग करके बनायी जाती है । इसके अतिरिक्त बाँधों , सडको व अन्य निर्माण कार्यॊ में भी बेतहाशा बारूद
प्रयोग में लाया जाता है । प्राप्त सूचना के अनुसार इन विस्फोटों की तीव्रता
रिक्टर पैमाने पर 4 तीव्रता के भूकम्प के बराबर होती
है । इन सभी कार्यॊ में वृक्षों की भी बलि
चढाई जाती है । तेजी से बढती भूस्खलन की घटनाएं पर्यावरण पर असंतुलित प्रहार की
देन हैं ।
3.बडे पैमाने पर किये जा रहे अंधाधुंध विस्फोट पहाडों के भीतर बहती जलधाराओं में
रिसाव पैदा करते हैं जिससे उनके भीतर नमी कम हो जाने से वृक्षों और वनस्पतियों की प्राकृतिक पैदावार और बढत
प्रभावित होती है । इस तरह जलमात्रा की कमी हरियाली पर दुष्प्रभाव डालती है जो
मिट्टी की पकड , जल संरक्षण के लिये अत्यंत
हानिकारक है । ठेकेदार अकसर पैसे बचाने के लिये उन स्थानों पर भी विस्फोटक का
इस्तेमाल करते हैं जहाँ मशीन की कटाई से काम चलाया जा सकता है ।
4.नियंत्रक एवं महालेखाकार परीक्षक (सी ए जी ) ने भी अपनी आडिट रिपोर्ट में
उत्तराखण्ड की पनबिजली परियोजनाओं के बारे में इस टिप्पणी के साथ चेताया था कि यह
योजनायें भागीरथी और अलकनंदा नदियों के किनारों को भारी क्षति पहुंचा रही हैं
जिससे इस क्षेत्र में भयंकर बाढ और भीषण तबाही का खतरा है ।
5. उत्तराखण्ड में कई पर्यावरण विरोधी माफ़िया गिरोह प्रभावशाली लोगों के संरक्षण
में सक्रिय हैं जो वर्जित और सुरक्षित स्थानों से खनन , वृक्ष कटान तथा महत्वपूर्ण सरकारी भूमि के कब्जे को गैरकानूनी रूप से
व्यापारिक उद्देश्य से प्रयोग करने की प्रक्रियाओं में लिप्त हैं ।
6.उत्तराखण्ड में हिन्दुओं के चार धाम केदारनाथ , बद्रीनाथ, गंगोत्री ,यमनोत्री एवं हेमकुण्ड साहब जैसे
तीर्थ हैं । उत्तराखण्ड में कुल 32 तीर्थ है ,यह 18 छोटी बडी नदियों का उद्गम स्थल है, यहाँ कई किलोमीटर तक फैली विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी के अतिरिक्त अपना
अनोखा नैसर्गिक सौन्दर्य है जो श्रद्धालुओं , पर्यटको आदि को हर साल भारी संख्या में अपनी ओर खींचता है । एक अनुमान के
अनुसार राज्य की आबादी के दुगुने यानि करीब 2.8 करोड पर्यतक यहा प्रतिवर्ष आते हैं । राज्य की 25 % अर्थव्यवस्था पर्यटन , ट्रेड ,और
हौस्पिटैलिटी पर निर्भर करती है । इसका सीधा असर यह हुआ है कि होटल्स ,दुकाने, यात्री निवास, धर्मशालायें ,मकान ,रेस्तरां आदि बिना
परमिट के कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं । प्रकाशित समाचारों के अनुसार उत्तराखण्ड
सरकार ने जो वनविभाग के आँकडे साझा किये हैं उनमें बताया गया है कि वर्ष 2000 में लगभग 10000 एकड वनभूमि गैरकानूनी कब्जे में थी । वर्ष 2001 से 2010 के दशक में
उत्तराखण्ड में सक्रिय माफिया ने इस वनभूमि में से 3900 एकड भूंमि को व्यापारिक उद्देश्य के लिये
वृक्ष विहीन कर बिल्कुल नंगा कर दिया ।
7. वर्ष सन 2010 में राज्य सरकार ने उत्तराखण्ड के
233 गाँवो को खतरे की द्दष्टि से
अत्यंत संवेदनशील घोषित किया था किंतु इन गाँवों में से एक का भी विस्थापन सरकार
ने सुरक्षित स्थानों पर नहीं करवाया और खतरनाक मुहानों पर बसे गाँवों की संख्या
बढकर 450 हो गई । यह आँकडा पर्यावरण के साथ
असंतुलित छेडछाड के कारण तेजी से फैल रहे
खतरे और उसी अनुपात में बढ रही सरकार की अकर्मण्यता और शिथिलता दोनों की ओर संकेत
करता है ।
8. अंधाधुंध सरकारी , गैरसरकारी , जायज , नाजायज निर्माण कार्यों से जनित मलबे के ढेर हटाने की कोई योजना नहीं है ।
नदियों की गाद भी बढाव की तरफ़ है । नतीजतन नदियाँ को
कई अप्राकृतिक ऐसे घुमाव लेने के लिये बाध्य हो जाती है ,जिससे हानि का अंदेशा और भी कई गुना बढ जाता है ।
देहरादून
में प्रवास कर रहे विख्यात पर्यावरण आंदोलनकारी श्री सुन्दर लाल बहुगुणा जी के
अनुसार यदि प्रकृति के साथ जोर जबर्दस्ती बंद नहीं हुई तो यह खतरा भविष्य में भी
रुकने वाला नहीं है । प्रसिद्ध साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार माननीय मृणाल पाण्डे
जी
कहती हैं "राग,विराग,त्याग और मोक्ष यह सब
हिमालय देख चुका है और जब मानव जाति से बेवकूफ़ी की इंतहा होती है तो वह एक कठोर
आघात कर चेतावनी देता है । जून मास की विभीषिका एक ऐसी ही चेतावनी है ।"
इस
भयंकर त्रासदी ने उत्तराखण्ड को कई वर्ष पीछे धकेल दिया है और लोगों की जिन्दगी , अर्थव्यवस्था और उद्योग धंधों को तेजी से पटरी पर
लाने के लिये बहुत बडे स्तर पर ईमानदार प्रयास करने की आवश्यकता है जिसमें उत्तराखण्ड के लोगों की भागीदारी नितांत अपरिहार्य है ,आवश्यकता इस बात की है कि पर्यावरण का संरक्षण विवेकपूर्ण तरीकों से किया जाये
। हमें विकास विनाश की कीमत पर नहीं चाहिये ।पर्यावरण के साथ तालमेल और संतुलन
अत्यंत आवश्यक है । वरिष्ठ राजनीतिक विशेषज्ञ डा. पुष्पेश पंत ने अपने लेख में कहा
है : "इस भयावह त्रासदी ने उत्तराखण्ड को खुदगर्ज, कुनबापरस्त ,दरबारी राजनेताओं से निजात पाने , मैदानी भ्रष्टाचार से अपना पिंड छुडाने और उस सपने को
पुनर्जीवित करने का अवसर दिया है जो इस राज्य की स्थापना के वक्त देखा गया था
।"
अंत में इस भयंकर
त्रासदी में अपनी जान से हाथ धोने वाले सभी लोगों के प्रति सादर श्रद्धाजंलि
अर्पित करते हुए हम क्षमा याचना करते हैं कि हमारे स्वार्थ और लालच ने इस त्रासदी
को इतना भयंकर होने दिया। उन सभी वीर सैनिकों के हम कृतज्ञ हैं जिन्होनें जान पर खेलकर बेहद कठिन
परिस्थितियों में अगम्य साहस का परिचय
देते हुए बचाव कार्य को अंजाम दिया। दुर्भाग्य से हमारे कुछ जवान इस प्रक्रिया में शहीद भी हुए , उनके शौर्य और साहस के आगे हम सभी नतमस्तक हैं ।
जय उत्तराखण्ड !! जय भारत !!
उफनती हो कभी उदण्ड, जन पर वार गंगा है
प्रकृति से लडोगे जो, तो हाहाकार गंगा है !
ये कैसा आज असमंजस, बडी लाचार गंगा है,
धोये पाप किस किस के, फ़ंसी मंझधार गंगा है !! -ओंम
12.07.2013 -ओंम प्रकाश नौटियाल (
(**यह लेख इस त्रासदी में लेखक के देहरा दून,ऋषिकेश में प्रवास के दौरान अपने संबंधियों, पीडितों ,उनके मित्रों, परिजनों से बातचीत, मीडिया समाचार, और अंतर्जाल पर उपलब्ध जानकारी आदि और उत्तराखण्ड के विषय में मेरे निजी अनुभव पर आधारित है )
Thursday, July 11, 2013
धरा
-ओंम प्रकाश नौटियाल
तेरे पाप के वजन से गई चरमरा धरा,
वृक्ष ही नहीं रहे था कभी जहाँ हरा भरा,
पर्वतों पर तो स्वार्थ का ऐसा हुआ हमला
अतिवृष्टि नहीं सह पाते ढहते हैं भरभरा !!!
तेरे पाप के वजन से गई चरमरा धरा,
वृक्ष ही नहीं रहे था कभी जहाँ हरा भरा,
पर्वतों पर तो स्वार्थ का ऐसा हुआ हमला
अतिवृष्टि नहीं सह पाते ढहते हैं भरभरा !!!
Thursday, July 4, 2013
पानी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
है आँख में पानी तो फिर चेहरा नूरानी है
पानी से ही धरती पर जीवंत जिन्दगानी है
ढला आँख का पानी, तो मानिये जीते जी मरण
पानी के उफान की भी बडी त्रासद कहानी है
है आँख में पानी तो फिर चेहरा नूरानी है
पानी से ही धरती पर जीवंत जिन्दगानी है
ढला आँख का पानी, तो मानिये जीते जी मरण
पानी के उफान की भी बडी त्रासद कहानी है
Thursday, June 27, 2013
पर्वत और बादल -एक मुक्तक
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मैत्री का दम भरते कभी थकते नहीं बादल,
पर्वत की पीर से मगर, तडपते नहीं बादल,
मित्रों पे वार करना इस जमाने से सीखकर
फटते हैं पहाड़ पर ही,बरसते नहीं बादल ! मैत्री का दम भरते कभी थकते नहीं बादल,
पर्वत की पीर से मगर, तडपते नहीं बादल,
मित्रों पे वार करना इस जमाने से सीखकर
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