Thursday, June 27, 2013

पर्वत और बादल -एक मुक्तक

-ओंम प्रकाश नौटियाल

मैत्री का दम भरते कभी थकते नहीं बादल,
पर्वत की पीर से मगर, तडपते नहीं बादल,  

मित्रों पे वार करना इस जमाने से सीखकर
फटते हैं पहाड़ पर ही,बरसते नहीं बादल !

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