-ओंम प्रकाश नौटियाल
तेरे पाप के वजन से गई चरमरा धरा,
वृक्ष ही नहीं रहे था कभी जहाँ हरा भरा,
पर्वतों पर तो स्वार्थ का ऐसा हुआ हमला
अतिवृष्टि नहीं सह पाते ढहते हैं भरभरा !!!
तेरे पाप के वजन से गई चरमरा धरा,
वृक्ष ही नहीं रहे था कभी जहाँ हरा भरा,
पर्वतों पर तो स्वार्थ का ऐसा हुआ हमला
अतिवृष्टि नहीं सह पाते ढहते हैं भरभरा !!!
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