Monday, October 24, 2016

चेतना

 चेतना
-ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा , मोबा. 9427345810
विरेन्द्र का घर मेरे घर से लगभग 1/2 कि.मीदूर था। उससे मेरी पहली मुलाकात मिल्क  बूथ पर  हुई थी और फिर अक्सर वहाँ मिलना होता रहता था। सुबह सुबह सभी हल्के फुल्के तरो ताजा मूड़ में होते हैं । शायद अहं उस वक्त जागा नहीं होता है। लोग दूध की गाडी आने से पहले ही बूथ पर जमा हो जाते हैं । देश की जटिल समस्याएं हल करते हैं रचनात्मक सुझाव उछालते हैं । विरेन्द्र से बातचीत में पता चला कि वह भी हमारे पास के गाँव का रहने वाला था और मेरी तरह ही नौकरी करने के लिए इस शहर में आया था। अब जब एक दूसरे के गाँव पास थे तो बातचीत बढ़ाने का मजबूत आधार मिल गया था। आस पास के गाँव वालों का इस तरह दूर किसी शहर में मिलना उन्हें बहुत जल्दी एक दूसरे के नजदीक ले आता है ।उनके पास राजनीति और महँगाई के अलावा भी बातचीत के लिए बहुत कुछ होता है गाँव का भूगोल, इतिहास ,लोग, किस्से आदि।यह सुबह की जान पहचान बहुत तेजी से एक दूसरे के घर आने जाने में और फिर गहरी मित्रता में बदल गई। मेरी और विरेन्द्र की शनिवार और इतवार की छुट्टी होती है ।
इन दोनों दिनों मे विरेन्द्र  शाम को लगभग 5 बजे मेरे घर आ जाता है । उसे पता है कि मैं इन दिनों नियम से आई पी एल के मैच देखता हूं इसलिए घर पर ही मिलता हूं ,घर पर ताला लगा होने का तो सवाल ही नहीं उठता है। फिर इस नियमबद्धता का एक कारण और भी है उसे कहानियाँ लिखने का बहुत शौक है जो आजकल किन्ही कारणों से चरम पर है । सप्ताह भर में वह जो भी नया लिखता है मुझे सुनाने को बेताब रहता है ।शनिवार को मेरी राय माँगता है और इतवार को कहानी में आवश्यक सुधार कर फिर हाजिर हो जाता है ।वह यही कोशिश करता है कि मुलाकात के दौरान उसके लिखे पर ही विश्लेषणात्मक चर्चा चलती रहे। कहानियाँ लिखने की उसकी गति भी 20-20 क्रिकेट मैच के स्कोरिंग रेट की तरह है । मुझे उसकी कहानियों में विशेष दिलचस्पी तो नहीं होती है पर उसका आना अच्छा  लगता है और इसीलिए इंतजार भी रहता है ।मैं उसका दिल रखने के लिए उसकी कहानियाँ सुनता भी हूं और अपनी राय भी देता हूं । कोशिश तो यही रहती है कि वह मेरी अरुचि भाँप न सके ।
कहानी सुनाने के उत्साह में वह चाय भी बनाकर ले आता है।
आज शनिवार को ठीक 5 बजे विरेन्द्र ने घन्टी दी। घुसते ही बोला ," आजकल छेड़खानी और बलात्कार की घटनाएं बहुत अधिक बढ़ गई है मोहन भाई, सरे आम होती हैं , कोई कुछ बोलता ही नहीं है । भरे बाजार में गुण्डे लड़कियों के साथ छेड़खानी करते हैं ,कोई कुछ नहीं कहता ।गुण्ड़ों के हौसले आसमान पर हैं ।" आज लगता है उसकी कहानी तैय्यार नहीं थी और वह किसी गंभीर चर्चा के लिए तैय्यार होकर आया था ।और मेरे घर आते हुए  उसे विषय भी राह में ही मिल गया था।
मैंने उसे जरा छेड़ने की नियत  से कहा ," यार जब तुम जैसे सिद्धांतवादी, संवेदन शील युवा आँखें बंद करके निकल जाते हैं तो और कौन बचाएगा उन्हें । तुम लेखक हो, पर अपनी कलम से आगे नहीं जा पाते हो। सब डरते हैं विरेन्द्र । "
उसने दुखी मन से कहा, "मोहन , शायद तुम ठीक कहते हो । और यही कुछ न कर पाने की खीझ और भड़ास मैं लिख कर निकाल लेता हूं ,जिसमें मेरा हीरो सब बुराइयों के खिलाफ़ अदम्य साहस से लड़ता है और विजयी होता है ।"
मैंने उसकी उदासी और चेहरे पर आए नैराश्य के भाव को पढकर उसे कुछ तसल्ली देने की गरज से कहा," अरे विरेन्द्र,क्या करें जमाना ही इतना खराब  आ गया है कि हर आदमी किसी भी पचड़े में पड़ते हुए डरता है।पता नही किस के पास क्या हथियार हो , अब  छुरे चाकू का जमाना तो चला गया हैं । गुण्ड़े पिस्तौल या कट्टे रखते हैं अपने पास । और जरा सी बात में चला देते हैं ।आए दिन अखबार में ऐसी ही खबरें आती रहती हैं ।पुलिस का इनको अलग से सहारा है ,फिर किस गुण्ड़े के सिर पर किस नेता का हाथ है यह भी पता नहीं होता। इन्ही सब बातों के डर ने आम आदमी को इतना  कायर बना दिया है कि किसी भी बुराई के खिलाफ सड़क पर आकर आवाज उठाने से वह कतराता है और घुट कर रह जाता है ।अपनी भड़ास वह फिल्मे देखकर निकाल लेता है जिनमें हीरो भ्रष्ट पुलिस अफसर और नेताओ से टक्कर लेता है और उन्हें सजा दिलवाता है। तुम्हारी कहानियाँ भी फिल्मी सी होती हैं जिनमे सर्व शक्तिमान हीरो अकेला ही सबको ठिकाने लगा देता है ।क्या करें बडा मुश्किल वक्त है। और फिर हमारे लिए तो यह शहर बिल्कुल अजनबी है ।हम तो यहाँ किसी को जानते ही नही ,अकेले पडे हैं। हमारे पीछे भी माँ बाप हैं , छोटे भाईबहन है। क्या करे। आँखें बंद रखनी ही पडती हैं।"
विरेन्द्र को जैसे मेरी बातों से विशेष तसल्ली नहीं हुई । उसके चेहरे से लग रहा था कि उसे कुछ भीतर ही भीतर कचोट रहा है । धीमे स्वर में बोला," लेकिन मोहन भाई , सैकड़ों की भीड़ में क्या आठ दस लोग भी ऐसे नहीं जो माँ , बेटी   बहन की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह न करें । आखिर हमारे वीर जवान भी तो हम लोगों की रक्षा के लिए रात दिन मोर्चे पर दुश्मन की गोलियों की परवाह किए बगैर डटे रहते हैं । सैकड़ों , हजारों की भीड़ एक दो गुण्डों के सामने अपनी जान अपने परिवार की दुहाई देकर कैसी कायरता से हथियार डाल देती है ।सचमुच बहुत शर्मनाक है। समाज तेजी से पतन की ओर जा रहा है  ।"
उसे इस तरह भावना में बहते देख मुझे हल्का सा तैश आ गया ।," अरे विरेन्द्र , यह सब कहना आसान है पर वास्तविकता इससे कोसो दूर है ।कानून और शांति स्थापित करना पुलिस का काम है । फिर तुम क्यों नहीं अपनी कहानियों के माध्यम से इस बारे में जन चेतना पहुँचाते हो। अगर सचमुच कुछ करना है तो अपनें कर्म के द्वारा लोगों के सामने उदाहरण पेश करने की हिम्मत करो ।"
विरेन्द्र के चेहरे पर कुछ ऐसे सख्त  भाव आए कि एक क्षण को मैं भी असहज हो गया। फिर बडे संयत स्वर में वह बोला ,"मोहन भाई, तुम शायद ठीक कहते हो , हम लोगों के गाँवों मे तो अब भी लोग ऐसी किसी वारदात के समय निर्भिकता से एक्जुट होकर गुण्ड़ों पर टूट पड़ते हैं । यहाँ तो शायद संवेदनाओं और साहस का भी शहरीकरण हो गया है ।"
इसी बातचीत में आज काफी वक्त निकल गया । मैच भी अब अपने अंतिम चरण के रोचक दौर में पहुँच चुका था। मैंने विरेन्द्र से कहा, " आज तो बात चीत में काफी वक्त निकल गया। अब तुम्हारी कहानी अगले सप्ताह सुनेंगे और हाँ आज घर पर खाना न बना कर, खाने के लिए कहीं बाहर चलते हैं।" और फिर बाहर एक ढाबे में खाना खाने के बाद हम अपने अपने घरों की ओर चल पडे।
लो आज फिर शनिवार आ गया है। शाम के पाँच बजने वाले हैं । । शनिवार को दो मैच होते हैं पहला 20-20 शुरू हो चुका है। विरेन्द्र भी आने वाला होगा । विरेन्द्र का मुझे हर शनिवार को बड़ी बेताबी से इंतजार रहता है । इस बार तो वह भी आने को बेताब होगा पिछली बार कहानी जो नहीं सुना सका था ।चाय की तलब लगी है पर चाय तो उसके साथ ही होगी न । साढे पाँच बज गये हैं । विरेन्द्र अभी तक नही आया । इतनी देर तो अमूनन करता नहीं है ।मैच भी वर्षा के कारण बंद हो गया है ।किसी पिछले मैच को दिखाया जा रहा है । कहीं इसीलिए तो उसने आना स्थगित तो नहीं कर दिया कि मैच न होने से मैं कहीं बाहर निकल गया हूंगा ।पर मैच तो अभी बंद हुआ है। फिर विरेन्द्र के पास तो टी वी भी नहीं है और फिर वह तो पाँच बजे तक ही आ जाता है।उसे आ जाना चाहिए था। कहीं गाँव  तो नहीं चला गया चार बजे की ट्रेन से। पर अगर ऐसा होता तो मुझे बता कर जाता वह । मैंने उसे कह भी रक्खा था कि अगर गाँव जाना हो तो मेरा भी एक पैकेट ले जाना , मेरा भाई तुम्हारे गाँव आकर तुमसे ले लेगा ।
अब कुछ कुछ चिंता भी होने लगी थी। आजकल वायरल बुखार भी बहुत फैला है ।कहीं तबियत खराब न हो उसकी। अगर ऐसा हुआ तो डाक्टर को दिखाना होगा । अब और इंतजार करना मुश्किल था ।
 मैंने कपड़े बदले । कमरे पर ताला लगाकर मैं उसके घर की ओर चल पडा। चौकन्ना था कि वह कही इधर उधर किसी दुकान पर न खड़ा हो या फिर मेरे घर की तरफ ही न आ रहा हो।मिल्क बूथ अब काफी पीछे छूट गया था।कपड़ा बाजार शुरु हो गया था ।सामने ही बहुत सी भीड़ जमा थी । मेरे पाँव भी ठिठक गये। लोग धीरे धीरे आपस में बातें कर रहे थे। मैंने एक गमगीन मुद्रा मॆं खडी बुजुर्ग महिला से पूछा," क्या हुआ माताजी ?"
" अरे क्या होगा इस शहर में । दुष्टों ने एक लडके को गोली मार दी और भाग गए।" तभी भीड़ को चीरती हुई एम्बुलैन्स आई और घायल लडके को लेकर चली गई।" तभी सुबह मिल्क बूथ पर मिलने वाले शर्मा जी दिखाई दिए। मन पहले ही आशंकाओं से भारी हो रहा था । मैंने उनसे पूछा ,"क्या हादसा हो गया शर्मा जी?"
"अरे मोहन जी , आपको नहीं पता । अरे अपना विरेन्द्र है न? आपका तो बड़ा मित्र है ।उसने एक गुण्डे को किसी लड़की का हाथ पकड कर अश्लील बातें कहते सुन लिया। उसका तो खून खौल गया जैसे। उसने उस गुण्ड़े के एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। तभी उस गुण्ड़े  के साथी दूसरे गुण्ड़े ने सामने से मोहन की छाती में दो गोलियाँ दाग दी । वह वहीं गिर पड़ा। लोग तो कह रहे थे कि बचना मुश्किल ही लगता है । सब उपर वाले के हाथ में है। हम तो दुआ ही कर सकते हैं । आप हौसला रक्खो। एम्बुलैन्स वैसे जल्दी आ गई।"
 एम्बुलैन्स सीटी अस्पताल की थी । मैंने तुरंत औटो किया और उसे सीटी अस्पताल चलने को कहा । मैं मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि ईश्वर विरेन्द्र को बचा लो। मुझे लग रहा था कि अगर उसे कुछ हो गया तो शायद उसका अपराधी मैं ही हूंगा। मुझे याद आ रहा था । मैंने ही उसे कहा था "...जब तुम जैसे सिद्धांतवादी, संवेदन शील युवा आँखें बंद करके निकल जाते हैं तो और कौन बचाएगा उन्हें ......अगर सचमुच कुछ करना है तो अपनें कर्म के द्वारा लोगों के सामने उदाहरण पेश करने की हिम्मत करो..........." विरेन्द्र बहुत भावुक है । किसी का दर्द देख नहीं सकता। उस दिन जब वह उस गुण्ड़ई की वारदात के बारे में बता रहा था । तो उसके चेहरे पर  स्वयं के लचर और असहाय  होने की विवशता थी। उसे लग रहा था मानों उस घटना के लिए वही जिम्मेदार है। फिर मैंने भी उसकी चेतना पर तीखा प्रहार कर दिया था। हे भगवान उसे बचा लो , नहीं तो गुण्ड़ों से रक्षा के लिए कौन उतरेगा ।
मैं अस्पताल पहुँचा । पता चला कि उसकी एमर्जेन्सी सर्जरी की तैय्यारी हो रही थी ।हालत अत्यंत नाजुक बताई गई । मैंने स्टाफ को बताया कि वह मेरे गाँव का है और रिश्ते का भाई है।  इस संबंध में किसी भी जरुरत के लिए वह मुझसे संपर्क कर सकते हैं । लगभग दो घन्टे तक  सर्जरी चली। आपरेशन थिएटर से उसे आईसीय़ू में शिफ्ट कर दिया गया । डाक्टर साहब ने बताया कि 24 घन्टो का समय ठीक से निकल जाए तो सब ठीक होने की उम्मीद है। औपरेशन तो ठीक हो गया है ।सौभाग्य से  दोनों गोलियाँ दिल को बचा कर निकली थी । चौबीस घन्टे बाद डाक्टर ने विरेन्द्र को खतरे से बाहर घोषित कर दिया । अगले दिन ही वह वार्ड में ले आया गया। जब मैं वार्ड में उससे मिलने पहुँचा तो उसने हल्की मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया ।और बोला, " मोहन भाई यह तुमने अच्छा किया कि घर में खबर नहीं भिजवाई । पिताजी बीमार हैं वह कैसे आते और बिन आए वह रह भी न पाते।"
"हाँ विरेन्द्र , मैंने भी यही सोचा। पर यह बहुत बड़ा अपराध किया मैंने । खैर तुम ठीक हो तो अब सबकुछ ठीक है।" वह फिर मुस्करा दिया और साथ ही एक आँसू तकिये को भीगा गया। मुझे खुशी हुई कि वह अब पूरी तरह होश में था।
और मुझे लगा कि विरेन्द्र की चेतना के  साथ अब सारा समाज चैतन्य हो गया है।

 ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा , मोबा. 9427345810

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