Monday, October 24, 2016

कुछ लघु कथाएं !

लघु कथा-1
      36 दिन बाद उसे होश गया !- ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा,मोबा.9427345810

मित्रॊं ! अब वह कौमा से बाहर है ,फ़िलहाल चिन्ता की कोई बात नहीं है
36 दिन तक लगातार कौमा में रहने के बाद कल साँय 5 बजे उसने बात की ।भगवान का लाख लाख शुक्र है
घर में इतने लम्बे अर्से के बाद फिर से खुशियाँ लौट आई ।चार वर्ष की अल्पायु में उसे अनेकों बार बेहोशी के लम्बे दौरे पड.चुके हैं , विशेषज्ञों की हर बार बस एक ही राय होती है।मौसमी बिमारी है ठीक हो जाएगी,आजकल तो बहुत से बिमार हैं सचमुच बिमारी मौसमी है ,तभी तो हर मौसम में हो जाती है । पर यह बिमारी मच्छरों की देन नहीं है इसमें चिकन गुनिया , डेंगू , मलेरिया के कोई लक्षण नहीं है इसमॆं तो बस बोलती बिल्कुल बंद हो जाती है।

जिस अस्पताल से उसका जन्म हुआ था वहाँ के लगभग सभी डाक्टरॊं से मैने रोज ही उसकी दशा के बारे में बात की , घर पर देखनें तो कोई नही आया , हाँ , एक दो दिन में ठीक हो जाने की जबानी तसल्ली अवश्य मिलती रही मुझे उनकी संवेदनहीनता पर कई बार क्रोध भी आता था, पर उनका पाला तो रोज ऐसे कितने ही दुखी जनों से पडता था दास्त्तां--गम सुनने का उन्हे बहुत अभ्यास था

पर मेरी परेशानी हर गुजरते दिन के साथ बढती जा रही थी । तीस दिन गुजरने के बाद तो चिन्ता घोर निराशा में बदलने लगी यह नन्हा क्या कभी फिर से होश में पाएगा ? सभी लोगों की आवाज में बोलने में सक्षम, क्या यह फिर चहचहाएगा, किलकारियाँ मारेगा ? मित्रॊं और रिश्तेदारों के साँत्वना स्वर भी अब चुभने लगे थे।सबसे ज्यादा तकलीफ तो तब होती थी जब गुजरात से बाहर रहने वाले मित्र रिश्तेदार मोबाइल पर फोन कर कुछ इस तरह की बातें कह्ते थे , " अरे क्या हुआ , ऐसी बिमारी तो हमारे यहाँ भी होती रहती है, एक दो दिन में इलाज़ हो जाता है गुजरात तो इतना विकसित प्रदेश है ,वहाँ सब सुविधाएं उपलब्ध हैं ।फिर वहाँ इस साधारण बिमारी को इतना गंभीर रुप क्यॊं लेने दिया गया ? तीन चार महीने पहले भी वह इसी तरह लम्बी बेहोशी में चला गया था "
इन बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था बस दर्द और बढ़ जाता था सबकुछ सुनना पड रहा था

तीन दिन पहले ही मैंने अंतिम प्रयास के रुप में अस्पताल के प्रमुख डाक्टर ,जो अहमदाबाद के बडे अस्पताल में बैठते हैं, उन्हें -मेल द्वारा विस्तार से बिमारी के इतिहास सभी लक्षणों से अवगत कराया अब उन्होने वडोदरा में अपने मातहत डाक्टरों को क्या सलाह दी यह तो मैं नहीं जानता , पर कल साँय पाँच बजे उसके अचानक बोल उठने से घर भर आश्चर्य मिश्रित खुशी में झूम उठा

36 दिन बाद आखिरकार मेरे  लैन्ड लाइन फोन को नई जिन्दगी मिली सब परम पिता परमात्मा की कृपा है , आप जैसे मित्रों की शुभकामनाओं का फल है। दुआ किजिए कि मेरे चहेते को फिर कभी यह बिमारी ना लगे और वह हमेशा खट्टी मीठी बातों से घर में रौनक बनाए रक्खे
आपका अपना

ओंम प्रकाश नौटियाल,बडौदा , मोबा.9427345810




लघु कथा-2
एक और गौतम बुद्ध-ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा , मोबा. 9427345810

2 अप्रैल 2015 के दिन जीवन सहसा प्रकाश से आलोकित हो गया । यह सत्य घटना थी । पहली अप्रैल  गुजर चुकी थी अतः किसी मजाक की कोई गुंजाईश नहीं थी । मैंने आसपास देखा , उपर देखा कि कहीं मैं वट वृक्ष के नीचे तो नहीं हूं क्यों कि आज से 500 . पू. वटवृक्ष के नीचे ही राजकुमार गौतम को वैशाख (अप्रैल-मई) पूर्णिमा के दिन ज्ञान का प्रकाश मिला था । वडोदरा का तो नाम ही यहाँ वड़ वृक्षों के बाहुल्य के  कारण वडोदरा पडा है फिर महीना भी अप्रैल का था मुझे भ्रम सा होने लगा कि शायद इस संसार में व्याप्त अतीव हिंसा , घृणा और अशान्ति को  दूर कर पुनः शान्ति स्थापित करने  के लिए महात्मा बुद्ध ने मेरे रूप में पुनर्जन्म लिया हो , इस भ्रम का एक कारण और भी था , मेरे जीवन में  तम धीरे धीरे घर कर रहा था , जीवन धुंधला सा गया था मुझे भी प्रकाश की तलाश थी और इसी खोज में मैं यहाँ आया था । ज्ञान चक्षुओं पर जमी हुई समय की गर्द को साफ कर मैं जीवन आलोकित करना चाहता था , यह तपस्या की घडी थी । और तभी मैंने पाया कि मेरे चक्षु अतीव प्रकाश पुंज में नहाए हुए से हर साँसारिक वस्तु को स्पष्ट देख रहे हैं , किंतु मैं वट वृक्ष के नीचे तो कतई नहीं था ।
तभी एक आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई । परिचित सी आवाज थी , " मिस्टर नौटियाल, यौर कैटरेक्ट सर्जरी इन बोथ आईज इज़ डन सक्सेसफुली , य़ू कैन नाव सी एवरीथिंग ( अर्थात नौटियाल जी , आपकी दोनो आँखों का  मोतियाबिंद का औपरेशन सफलतापूर्वक हो गया है, अब आप सब कुछ स्पष्ट देख सकते हैं ) " डाक्टर की बात सुनकर बुद्ध होने के मेरे सभी भ्रम धराशायी हो गए । मुझे चक्षु खुलने की खुशी तो हुई किंतु साथ ही इस बात का दुख भी हुआ कि संसार आज के इस विषाद भरे माहौल में एक और बुद्ध पाने से वंचित रह गया ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा , मोबा. 9427345810






लघु कथा-3

डायग्नोसिस - -ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा , मोबा. 9427345810

शर्मा जी यूं तो निहायत शरीफ आदमी थे । घर से बाहर उनको कभी किसी से उंचे स्वर में बहस करते या किसी से झगडते नहीं देखा । हाँ घर में पत्नी और बच्चों पर वह अकसर बात बात में झल्ला उठते थे । घर के सदस्यों को   छोटी मोटी बात में डाँटना उनकी आदत में शुमार था । हर छोटी बड़ी बात की चीर फाड़ कर उसमें से कुछ ऐसा मथ लेते थे जो कई बार आम व्यव्हारिक बातचीत के अर्थ से कोसों दूर रहता था यानि उन्हें कुछ दूर की कौडी लाने की आदत थी । पत्नी उनकी मीन मेख से झल्ला कर कहती ,"आपको तो वकील होना चाहिए था तब कम से कम घर में बात बात पर मुकदमे बाजी और वकालत के पैंतरे चलने की जरूरत तो नहीं होती सारे शौक अदालत में पूरे करके  घर आते।" बेटा ,जो एमबीए की पढाई कर रहा था, अकसर  चिढाने के अंदाज में कहता ,"पापा आप तो कोई पोलिटिकल पार्टी जौयन कर लो , तकरीर अच्छी करती हो, बहस खूब कर लेते हॊ पर घर में आपकी सुनने वाला कौन है सिवा अम्मा के ।"
पर अभी पिछले कुछ दिनों से शर्मा जी अपेक्षाकृत घर में भी बहुत शांत हो गए थे । कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते जब उन्होंने डाक्टर की सलाह पर ब्रेन एम आर आई करवाया तो डाक्टर ने ब्रेन में एकौस्टिक नर्व पर ट्य़ूमर बताया जिसले लिए न्य़ूरो सर्जरी की सलाह दी । शर्मा जी ने अपने को पूरी तरह सर्जरी के लिए तैय्यार कर लिया था क्योंकि न्यूरोफिजिशियन के अनुसार यह सर्जरी अब सुरक्षित थी और इस ट्य़ूमर को निकालना ही बेहतर था । हाँसर्जन को इस बात का पूरा खयाल रखना होता है कि ब्रेन की किसी नर्व को  क्षति नहीं पहुंचे क्योंकि सर्जरी के स्थान से कई महत्वपूर्ण नर्व गुजरती हैं और उनको किसी प्रकार की हानि अन्य गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है , इसलिए इस माइक्रोसर्जरी में सर्जन के अनुसार 6 -7 घन्टे तक लग जाते हैं । शर्मा जी को सर्जन पर पूरा भरोसा था इसलिए वह निश्चिंत नजर आते थे ,उन्होंने अंतर्जाल से भी इस विषय में बहुत जानकारी इकट्ठी की थी जिसके आधार पर सर्जन से प्रश्न कर अपने को पूरी तरह आश्वस्त कर लिया था और अब वह इससे निजात पाने को पूरी तरह तत्पर थे । हाँ उनके व्यवहार में घरवालॊं के प्रति वह तीखापन न होने से शायद पत्नी और बेटे को यह बदलाव कुछ अखर रहा हॊ । खैर, नियत दिन पर उनकी सर्जरी हुई । 11 बजे दिन में उन्हें औपरेशन थिएटर में ले जाया गया । तकनीक के विकास के साथ  आजकल एनैस्थिसिया भी सर्जरी के समयानुसार माकूल वक्त के लिए ही दिया जाता है और मरीज को सर्जरी के बाद जल्दी होश भी आ जाता है। लगभग 630 बजे साँय उन्हें होश आने पर सर्जन ने बाहर प्रतीक्षारत शर्माजी की पत्नी , बेटे  से  कहा कि होश आ गया है आप लोग मिल सकते हैं ।
शर्मा जी का पुत्र सबसे पहले लपक कर अंदर गया और पूछने लगा, "पापा कैसे हो? औपरेशन जल्दी हो गया न?" शर्माजी ने उससे वक्त पूछा । उसके साढे छ्ः बताने पर शर्मा जी झल्ला कर उसे डाँटते हुए बोले , ,"मैं 11 बजे यहाँ आया था , सात घण्टे से ज्यादा हो गए हैं । तुझे यह जल्दी लग रहा है?" डाँट खाकर बेटा इंतहा खुशी के साथ तेजी से बाहर अपनी अम्मा को बताने के लिए निकलने लगा , जो द्वार से अभी अंदर  घुस ही रही थी । अम्मा को देखते ही खुशी से बोला ," अम्मा , पापा बिल्कुल ठीक हो गए , पहले की तरह डाँटना शुरू कर दिया है ।"
शर्मा जी ने भी उसकी बात सुन ली , और उसके इस डायग्नोसिस से उनके चेहरे पर भी एक हल्की मुस्कान तैर गई।
  -ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा , मोबा. 9427345810




लघु कथा-4


पुनर्मिलन -ओंम प्रकाश नौटियाल, बड़ौदा, मोबा.9427345810
विनोद और प्रिया ने लगभग चार वर्षों के प्रेम संबंध के बाद  अंततः शादी कर ली ।चार साल कैसे बीत गए उन्हें पता ही नही चला । पर शादी के कुछ दिन बाद ही उन्हें आभास होने लगा कि जिंदगी में चमकते हुए रंगो के अतिरिक्त स्याह रंग भी है। दोनों में छॊटी छोटी बातों का टकराव उग्र रूप धारण करते हुए छः माह बाद उन्हें संबंध विच्छेद के कगार पर ले आया और दोनों उसी शहर में अलग अलग रहने लगे ।दादी कहा करती थी कि प्रेम विवाह में सब कुछ अच्छा तो शादी के पहले हो जाता है , शादी के बाद तो केवल लडना झगडना शेष रह जाता है ।जीवन के एकाकीपन को दूर करने के लिए फेसबुक बडा सहारा है । विनोद ने महेश नाम से एक फेक ईमेल आई डी बनाया और लड्कियों  को मित्रता आग्रह भेजना शुरू कर दिया । उधर प्रिया ने भी एकाकी पन और नौकरी की थकान दूर करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया और फेसबुक पर निशा नाम से बिना चित्र के अपना फेसबुक प्रोफाइल बना लिया ।
दोनों की मित्र सूचि बढने लगी । कालान्तर में महेश की एक महिला मित्र से और निशा की एक पुरुष मित्र से घनिष्ठता बढने लगी । देर रात तक चैटिन्ग चलती । महेश ने महिला मित्र से तसवीर भेजने को कहा  तो उसने बदनामी की दुहाई देकर साफ इंकार कर दिया ।लम्बी चैटिंग पर बहुत मान मनुहार के बाद महेश की महिला मित्र रविवार को दिन में 11 बजे महेश यानि विनोद से शहर के उमंग रेस्तरां में मिलने को राजी हो गई । विनोद ठीक पाँच मिनट पहले रेस्तरां में पहुंच कर प्रतीक्षा करने लगा उसकी निगाहें प्रवेश द्वार की ओर लगी थी । ग्यारह बजे के लगभग वह एकदम  कुछ असहज हो गया जब उसने प्रिया को रेस्तरां में प्रवेश करते देखा । प्रिया ने भी उस पर एक नजर डाली और एक अन्य टेबल पर उसकी तरफ़ पीठ करके बैठ गई ।
निशा अभी तक नहीं आई थी। लगभग बीस मिनट की प्रतीक्षा के बाद उसने एक काफी मंगवाई और पीने लगा । प्रिया अभी तक बैठी थी । अचानक विनोद के दिमाग में कुछ कौंधा और वह ऊठकर प्रिया की टेबल पर साथ वाली कुर्सी पर बैठ गया । प्रिया को जैसे उसका वहाँ बैठना कतई अच्छा नहीं लगा और वह जाने के लिए उठ खडी हुई ।तभी विनोद के एक प्रश्न ने उसे चौंका दिया , "प्रिया तुम निशा हो न ? " वह भीतर तक काँप सी गई पर दूसरे ही क्षण कुछ चिड्चिडे और क्रोध भरे स्वर में बोली , " तुम महेश हो ?"
विनोद ने हामी में अनिच्छा से सिर हिला दिया । " हम दोनों जीवन भर कभी नहीं मिल सकते । मुझे पहले भी तुम पर शक होता था जो आज यकीन में बदल गया । हरजाई ।" यह कहकर प्रिया गुस्से से तेजी से बाहर निकल गई । और विनोद काफी के पैसे देते हुए सोच रहा था , " मैंने ऐसा क्या अलग किया जो प्रिया ने नहीं किया । फिर केवल मैं ही कैसे हरजाई हो गया ?"यह सोचता हुआ विनोद भी धीरे धीरे बाहर की ओर बढ़ने लगा ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल, बड़ौदा, मोबा.9427345810

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