Monday, October 24, 2016

लघु कथाएं

दो लघु कथाएं
 1.गलत फ़हमी -ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा ,मोबा.9427345810
(लघु कथा)
गुप्ता जी को सेवा निवृत हुए तीन महीने हो गए थे लेकिन नियम से दफ़्तर जाने का उनका सिलसिला आज तक नहीं छूटा। दफ़्तर की फाइलों में उनकी जान बसती थी। सेवा काल के दौरान उन्होंने शायद ही कभी छुट्टी ली हो । पत्नी अकेले ही सारी सामाजिक , बच्चों के स्कूल संबंधी और बाहर की ,जिम्मेदारियाँ  निभाती रही । उनकी  छवि सदैव ही एक बेहद ईमानदार,कर्तव्य निष्ठ , दक्ष और अनुशासित कर्माचारी की रही ।सब उन्हें प्यार से बडे बाबू के नाम से पुकारते थे। कोई कितनी ही पहचान वाला या सगा हो ,फाइलों को वह हमेशा तथ्यों के आधार पर , न्यायोचित ढ़ंग से जाँच कर अपनी विस्तृत टिप्पणी लिखते थे । केस की पूरी जाँच परख करके तध्य      संगत टिप्पणी होती थी उनकी ।  उनके तर्क अकाट्य होते थे और उपर वाला उनके विरुद्ध निर्णय लेने की हिम्मत नहीं कर पाता था। निगम की उस नौकरी में घूस खाने का बेइंतहा स्कोप था पर उनकी ईमान दारी और निष्ठा के आगे सभी नतमस्तक थे। उनकी प्रसिद्धि आफिस के अन्य कर्मचारियों के साथ साथ पूरे शहर में फैली थी ।कुछ भ्रष्ट लोग चाहते थे कि वह कहीं और चले जाएं पर उन्हें किसी दूसरी जगह स्थानांतरित करने का जोखिम भी कोई अफसर नहीं उठाना चाहता था। वैसे सामने तो उन्हें सभी कर्मचारी बहुत सम्मान देते थे । उन्हें भी लगने लगता था कि मेरे जाने पर अन्य लोग इसे सुचारू ढंग से चला भी पाएंगे कि नहीं ।चूंकि वह एक एक फाइल को पूरी गहराई से अध्य्यन करते थे  इसलिए अपने काम को बहुत अधिक समय देते थे। उनके पास कभी गप मारने का वक्त होता ही नहीं था।
उसूल के पक्के गुप्ता जी का घर मे जरा भी मन नहीं लगता था । वह नियम से ठीक समय आफिस पहुँचते थे । एक दिन पत्नी ने झल्ला कर कहा भी:
" यह  तुम रोज रोज क्या मुफ्त की नौकरी बजाते हो? रिटायर हो गये हो, आराम करो, मुझे भी कुछ आराम मिलेगा । आराम से नहाना धोना नाश्ता किया करो। गप्पे मारो। अखबार पढ़ो इतमीनान से । सोचती थी इनके रिटायरमैंट के बाद मेरे उपर से भी समय की पाबंदी हटेगी । रिश्ते दारों से मिलना जुलना शुरू होगा । पर इनकी दिन चर्या में तो रत्ती भर फर्क नही आया "
"अरे विमला रहने दो, घर पर रहूंगा तो हमारे झगडे ही ज्यादा होंगे। तब तुम यह ताना दोगी कि तुम तो औफिस में ही ठीक थे। औफिस में कई कई बार चाय हो जाती है । तुमसे एक से ज्यादा बार कभी चाय बनाने को कह दिया तो दस सुनाओगी ।"
"हाँ मैं ही लडती हूं तुमसे । तुम तो जैसे कभी कुछ नहीं कहते।"
" लो अभी लड़ाई शुरु हो गई दिन भर घर पर रहूंगा तो हर वक्त गोला बारी हॊती ही रहेगी, इसलिए यह तुम्हारे और मेरे दोनों के हित में है कि मैं अधिकांश समय बाहर रहूं।"
पत्नी भी शायद मन ही मन इन तर्कों से सहमत थी । थॊड़ी नरम पडती दिखाई दी ।
" अच्छा ,अच्छा फिजूल बातें छोडो । पर अगर काम करना ही है तो यह बेगार क्यों करते हो ।  कोई और जगह तलाश करो । तुम्हारा दोस्त वर्मा नेशनल डिपार्टमैंटल स्टोर में मैनेजर है । इतना बडा स्टोर है कल ही मैंने अखबार में वहाँ कुछ रिक्त स्थान भरने का
विज्ञापन देखा था । उन्होंने लिखा है उसमें कि रिटायर्ड लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी । एप्लाई कर दो और वर्मा के कान में भी डाल दो ।इस उम्र में अगर सर खपाना ही है तो कम से कम दो पैसे तो मिलें ।"
"पैसा पैसा , क्या करना है पैसे का। फिर अब तो खर्च भी कम हो गया है । बच्चों कि जिम्मेदारियाँ पूरी हो गई हैं , पेंशन मिल ही रही है ।फिर दफ्तर का काम करके मैं देश का पैसा बचा रहा हूं वह भी तो हम सबके  ही काम आएगा ।" गुप्ता जी ने प्रतिवाद किया ।
पत्नी ने भी पैंतरा बदल कर दूसरा तर्क पेश किया : " अरे पैसा का मुझे कौन सा लालच है ? पर आप यह तो सोचिए कि आप अब उन्हें डिस्टर्ब करते हो। । एक कुर्सी मेज पर कब्जा जमाये हो। वह तुम्हारा लिहाज करके कुछ न कहते होंगे पर तुम उनको ऐसा मौका देते ही क्यों हो कि वह तुम्हें खुद मना कर सें ।"
गुप्ता जी को क्रोध आ गया , " अरे तुम क्या समझती हूं मैं उन पर बोझ हूं । उल्टे मैं उनका कान बाँटता हूं । अपना अनमोल अनुभव साझा करता हूं । मैं इतने सालों में जो इज्जत कमाई है उसका मोल तुम नहीं समझोगी । शर्मा तो मुझसे मेरी कुर्सी पर बैठे रहने का ही अनुरोध कर रहा था ।अगर इतना प्यार सम्मान न मिलता तो मैं भी वहाँ जाना उचित न समझता । "
पत्नी शायद अब इस बहस को आगे नहीं ले जाना चाहती थी । हथियार डाल कर बोली ," जैसी तुम्हारी मर्जी हो, वैसा करो । पता नहीं क्या गलत फहमी पाल ली है मानों इनके बिना दफ्तर बंद हो जाएगा। " कह कर वह बुद बुदाती हुई भीतर चली गई और गुप्ता जी सब कुछ अनसुनी करते हुए दफ्तर के लिए निकल पड़े ।

गुप्ता जी को याद नहीं कि वह कभी औफिस देर से पहँचे हों, यहाँ तक की सेवा निवृति के बाद भी । हमेशा  समय से कुछ पहले पहुंचते थे। पर आज गुप्ता जी शायद पहली बार कार्यालय पहुँचने में एक घन्टा लेट हो गए । वह घर से हमेशा किसी अनहोनी के लिए समय रखकर जल्दी निकलते थे ।पर आज  बहुत सी बातें एक साथ हो गई । एक तो पत्नी से बहस कुछ ज्यादा खिंच गई, जो आजकल अकसर होने लगा है। फिर रास्ते में  एक यात्री बस और ट्रक की भयंकर टक्कर हो जाने के कारण , जो शायद कुछ देर पहले ही हुई थी और  बचाव कार्य चल रहा था रास्ता गाडियों के लिए बंद था । काफी देर प्रतीक्षा के बाद भी जब जल्दी रास्ता खुलने की कोई संभावना नजर नहीं आई तो गुप्ता जी लौटकर पुराने बाजार वाले रास्ते से जाने के लिए वापस मुड़ गए वहाँ किसी राजनीतिक दल का जुलूस जा रहा था जिससे निकलने में उन्हें  बहुत सा अतिरिक्त समय लगा ।इन सब बाधाओं को पार करते करते वह औफिस पहँचने में लगभग एक घन्टा लेट हो गए। स्कूटर पार्क कर तेज कदमों से बरामदे के दूसरे छोर पर अपने कमरे की ओर बढने लगे, पूरा दफ्तर  लग चुका था । नियमित लेट लतीफ भी सब पहुँच चुके थे।
बड़े साहब के कमरे के सामने से निकलते हुए यकायक अपना नाम  सुनकर उनके कदम ठिठक कर स्वतः ही धीमे पड गए और फिर रुक गए । वह वहीं खुले दरवाजे की ओट लेकर उत्सुकता वश अंदर की बातें सुनने की कोशिश करने लगे । यह तो बडे साहब और शर्मा जी की आवाजें आ थी ।
" .... शर्मा तुम, गुप्ता को  क्यों नही कह देते कि तुम रिटायर हो चुके हो घर बैठो आराम करो , अब यह तुम सीधे सीधे कहो या डिप्लोमेटिक तरीके से, यह तो तुम जानो पर उसका यूं रैगुलर कर्मचारी की तरह दफ्तर आना फौरन बंद होना चाहिए ।अरे उपर तक शिकायत हो गई है ,यह सरकारी महकमा है कोई पनवारी की दुकान नहीं "
"सर , अब तक तो उनको उपर का ही सपोर्ट रहा है कि उन्हें कोई न ट्रान्सफर कर सका न उनकी सीट तक ही बदल सका । वरन गोपनीय प्रोपोजल तो कई बार भिजवाए गए। दरअसल चक्रवर्ती साहब को न जाने किसने इतना भर रखा था कि गुप्ता के होने से निगम की छवि बहुत अच्छी है । उन्हें तो उसके हटाने की बात से ही दाल में काला नजर आने लगता था । फिर पिछले वर्षॊं से चल रहा निगम का अध्यक्ष भी एक ही अपवाद है । ईमानदारी की दुम है ।उसने भी शायद चक्रवर्ती साहब को किसी बदलाव के लिए मना किया होगा " शर्मा जी ने कहा ।
"ठीक है , ठीक है पर अब इन बातों का कोई मतलब नहीं है । गुप्ता अब एक बाहरी व्यक्ति है और हम अपनी सब फाइल किसी बाहरी आदमी को कैसे दिखा सकते हैं । अब चक्रवर्ती साहब भी नहीं हैं । फिर यह हम लोगों का आंतरिक मामला है। ऊँच नीच की सारी जिम्मेदारी हमारी है । कल से वह दिखना नहीं चाहिए इस दफ्तर में "
"सर मैं  आज ही कुछ तरकीब भिड़ाता हूं ।और सर मैं तो आपको बताना ही भूल गया आज वह अभी तक नहीं आए हैं । पहली बार शायद ऐसा हुआ होगा कि बिना पूर्व सूचना के वह न आए हों ।" शर्मा जी बोले
शर्मा जी  बड़े साहब को ठीक  से जानते थे । उनका कच्चा चिट्ठा सारा उनके पास था ।एक नम्बर के खाऊ थे । शर्मा जी ने उनकी झिझक दूर करने की नियत से और उनका अपना कल संवारने की नियत से वह कह दिया जो अब तक सबकी चाहत थी पर जिस पर खुली पर्दादारी थी :
"और सर एक बात और बताऊ , अन्दर खाने सब लोग यही कहते हैं कि यही दफ्तर है जहाँ सब लोग शाम को खाली हाथ घर जाते हैं , यह ईमानदारी की औलाद हमारी ही किस्मत में थी।...."
गुप्ता जी सुनकर अवाक थे। और ज्यादा न सुन सके ।कुछ क्षणों में अपने को संभाला फिर वापस मुड़कर स्कूटर की तरफ़ गए और सीधा घर का रुख किया ।
सारे रास्ते अब खुल चुके था।
-ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा ,मोबा.9427345810
 

2.एक ईमानदार की मौत- लघु कथा
-ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा , मोबा. 9427345810
लगभग चालीस साल पुरानी बात है । मैं गुजरात के महसाणा में कार्यरत था । दूध सागर डेरी से कुछ दूर दक्षिण की ओर स्टेट हाई वे के दोनो ओर हमारा कार्यालय था। चन्दु हमारे कार्यालय का चपरासी था ,नाम तो उसका चन्द्रभान  था पर सब उसे चन्दु  कहकर ही बुलाते थे उसका असली नाम तो शायद बहुत ही कम लोग जानते  होंगे। कहते हैं न, पैसा और पद आ जाए तो गाँव का कल्लु भी सेठ कालूमल हो जाता है वरन गरीब बुद्धु का तो असली नाम भी उसके मरने के बाद तक किसी को पता नहीं चलता। हाँ, तो चन्दू की चर्चा चल रही थी लिखने पढने के नाम पर वह हाजरी  के रजिस्टर पर दस्तखत  कर लेता था वेतन के पैसे अच्छी तरह गिन लेता था। दूसरी कक्षा के बाद बाप ने  स्कूल छुडवा दिया था और अपने साथ मजदूरी पर ले जाना शुरु कर दिया था।फिर व्यस्क होने पर इस द्फ्तर में डेली वेजेज पर लग गया । कई साल काम करने के बाद अभी दो बरस पहले वह नियमित हो गया था ।बहुत भोला था बहुत लगन से काम करता था निष्ठावान था सबसे आदर के साथ बात करता था । सभी उसे बहुत पसंद करते थे ।  नतीजतन उसके इन गुणो से प्रभावित होकर उसे दफ्तर के ही काम में रख लिया गया । अब वह सबकी चाय पानी का खयाल रखता था और बाहर के छोटे मोटे सरकारी और गैर सरकारी काम करता था। दफ्तर में कौन अधिक महत्वपूर्ण  है किसके काम को प्राथमिकता देनी है, इसका उसे खूब ज्ञान था ।कार्यालय वह हमेशा समय से पाँच मिनट पहले आता था , याद नहीं आता कि वह कभी देर से आया हो। दस कि.मी. दूर गाँव से एक पुरानी साइकिल पर आता था देर से आने के उसके पास दसों अच्छे बहाने हो सकते थे पर उसे दफ्तर के काम के प्रति भीतर से श्रद्धा थी कहता भी था , " जब सरकार काम करने के लिए इतने पैसे देती है तो फ़िर दफ्तर का काम तो पूरे समय ठीक से करना चाहिए  न?"
एक दिन मैंने उससे पूछा ,"चन्दु सुबह तुम कितने बजे घर से दफ्तर के लिए निकलते हो ?"
"साहब, साढे नौ बजे का औफ़िस है , मै घर से नौ बजे से दस मिनट पहले ही निकल जाता हूं " चन्दु ने जवाब दिया।
"अच्छा ,तुम शहर की भीड़ भाड़ पार कर लगभग आधे घन्टे में  पहुंच जाते हो ?"
" साहब कृष्णा सिनेमा के पास वन वे है , अगर उधर से आओ तो एक डेढ़ कि.मी. का चक्कर कम हो जाता है उधर से इस तरफ आना मना है पर शार्टकट होने के कारण मैं उधर से ही आता हूं , वहाँ पुलिस वाला खड़ा रहता है पकड लेता है । एक रूपया घूस लेता है। मैं तो साहब चालान कटवा लेता हूं । कोट में दो रुपया जुर्माना भरना होता है। मैं उसे कह देता हूं । तुझे एक रुपया क्यों दूं , सरकार को दो रुपये दूंगा जो हमे पगार देती है ।"
 "अरे , वाह तुम हो सरकार के असली भक्त" मैंने कहा ।
" हाँ साहब , सरकार का पैसा तो हमारा ही है ना? आज भी साहब चालान काट दिया उसने । अकसर वन वे के आखिर में छुप कर खड़ा रहता है और साइकिल पकड़ लेता है कभी कभी जब उसने किसी और को पकड़ा होता है , बच कर निकल भी जाते हैं । जब कोट से समन आता है तो चला जाता हूं दफ्तर में बाहर के काम तो आप लोगों के होते ही हैं उन्हीं के साथ कोर्ट की हाजरी का काम भी हो जाता है"
उस दिन अपना यह भे्द बताने के बाद शायद उसने भी कुछ हल्का महसूस किया । अब वह कोर्ट जाने वाले दिन मुझे बता देता है, " साहब कोर्ट जाना है आज दोपहर बाद । बाहर का कोई काम हो तो बता दीजिएगा "
"हाँ हाँ , अरे इस दफ्तर में इतने लोग हैं बाहर का काम तो रोज कुछ न कुछ निकल ही आता है ।सप्ताह में कितनी बार जाना पड़ जाता है कोर्ट ? मैंने पूछा।
" साहब, सप्ताह में तीन चार बार पुलिस वाले को चकमा दे देता हूं , पर फिर भी हफ्ते में दो तीन चालान तो कट ही जाते हैं ।"
एक दिन उसे कोर्ट जाना था । चन्दु मुझसे बाहर का काम पूछने आया । मैं ने उसे कुछ कागज जीरोक्स करवाने के लिए आवश्यक ताकीद के साथ थमा दिए । शायद अन्य लोगों ने भी कुछ इसी तरह के काम उसे सौंपे थे । लगभग दो  घन्टे बाद वह लौट कर आया । बुझा बुझा सा था , रोनी सी शक्ल हो रही थी । उसने कागज मेरी टेबल पर रक्खे और थकी हुई सी चाल से लौटने लगा । मैंने उसे आवाज दी और पूछा ,"क्यों चन्दू तबियत तो ठीक  है न तुम्हारी, बहुत उदास लग रहे हो?"
चन्दू रुक कर खड़ा हो गया और कहने लगा ," साहब , आज तो बहुत नुकसान हो गया । कोर्ट में मजिस्ट्रेट साहब कहने लगे कि यह चालान के केस बहुत आ रहे हैं , बड़ा टाइम लग जाता है इनमें । जुर्माना बहुत कम है लोग इसलिए कानून से डर नहीं रहे हैं आज से सबको इस जुर्म का जुर्माना 25 /- भरना होगा ।"
पच्चीस रुपये उस जमाने मे बहुत बड़ी रकम होती थी । मुझे भी उसकी बात सुनकर उससे सहानुभुति हुई और मन कुछ उदास सा हुआ । उसने मेरी उदासी का न  जाने क्या अर्थ लगाया । तुरंत बोला," साहब आप फिक्र मत करो । मैं औफ़िस पहले की तरह समय पर ही आउंगा । पर अब  पुलिस वाले को ही पैसे देने पडेगे,  अब पुलिस वाला भी रेट बढा देगा पर दो से ज्यादा तो क्या लेगा ? मुंह पर मार दिया करूंगा उसके।"
उसकी बात सुनकर मुझे और भी अधिक दुख इस बात का हुआ कि एक देश प्रेमी और ईमानदार की आज मौत हो गई ।

-ओंम प्रकाश नौटियाल,बडौदा , मोबा.9427345810

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