Sunday, August 5, 2012

सगर्व मने रक्षा बंधन

-ओंम प्रकाश नौटियाल
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स्नेह सिंचित भेज रही हूं
ममता की यह डोर तुम्हे
आ न पाई दूर देश से                        
यह व्यथा रही झकझोर मुझे !
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प्यार हमारा रचा बसा है
बचपन की अनगिन यादों में
स्नेह मेह की धारा अविरल
बहती रही सावन भादों में !
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दूर भले हो किया वक्त ने
मन बंधन बाँधे ये धागा है
पहुंचायेगा स्नेह संदेश तुम्हे
छत पर जो बैठा कागा है !
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प्यारी नन्हीं बिटिया से तुम
लगवाना भाल रोली चंदन
देना आशीष निर्भिक जिये
सगर्व मने रक्षा बंधन !!


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(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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