Monday, October 24, 2016

कुछ लघु कथाएं !

लघु कथा-1
      36 दिन बाद उसे होश गया !- ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा,मोबा.9427345810

मित्रॊं ! अब वह कौमा से बाहर है ,फ़िलहाल चिन्ता की कोई बात नहीं है
36 दिन तक लगातार कौमा में रहने के बाद कल साँय 5 बजे उसने बात की ।भगवान का लाख लाख शुक्र है
घर में इतने लम्बे अर्से के बाद फिर से खुशियाँ लौट आई ।चार वर्ष की अल्पायु में उसे अनेकों बार बेहोशी के लम्बे दौरे पड.चुके हैं , विशेषज्ञों की हर बार बस एक ही राय होती है।मौसमी बिमारी है ठीक हो जाएगी,आजकल तो बहुत से बिमार हैं सचमुच बिमारी मौसमी है ,तभी तो हर मौसम में हो जाती है । पर यह बिमारी मच्छरों की देन नहीं है इसमें चिकन गुनिया , डेंगू , मलेरिया के कोई लक्षण नहीं है इसमॆं तो बस बोलती बिल्कुल बंद हो जाती है।

जिस अस्पताल से उसका जन्म हुआ था वहाँ के लगभग सभी डाक्टरॊं से मैने रोज ही उसकी दशा के बारे में बात की , घर पर देखनें तो कोई नही आया , हाँ , एक दो दिन में ठीक हो जाने की जबानी तसल्ली अवश्य मिलती रही मुझे उनकी संवेदनहीनता पर कई बार क्रोध भी आता था, पर उनका पाला तो रोज ऐसे कितने ही दुखी जनों से पडता था दास्त्तां--गम सुनने का उन्हे बहुत अभ्यास था

पर मेरी परेशानी हर गुजरते दिन के साथ बढती जा रही थी । तीस दिन गुजरने के बाद तो चिन्ता घोर निराशा में बदलने लगी यह नन्हा क्या कभी फिर से होश में पाएगा ? सभी लोगों की आवाज में बोलने में सक्षम, क्या यह फिर चहचहाएगा, किलकारियाँ मारेगा ? मित्रॊं और रिश्तेदारों के साँत्वना स्वर भी अब चुभने लगे थे।सबसे ज्यादा तकलीफ तो तब होती थी जब गुजरात से बाहर रहने वाले मित्र रिश्तेदार मोबाइल पर फोन कर कुछ इस तरह की बातें कह्ते थे , " अरे क्या हुआ , ऐसी बिमारी तो हमारे यहाँ भी होती रहती है, एक दो दिन में इलाज़ हो जाता है गुजरात तो इतना विकसित प्रदेश है ,वहाँ सब सुविधाएं उपलब्ध हैं ।फिर वहाँ इस साधारण बिमारी को इतना गंभीर रुप क्यॊं लेने दिया गया ? तीन चार महीने पहले भी वह इसी तरह लम्बी बेहोशी में चला गया था "
इन बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था बस दर्द और बढ़ जाता था सबकुछ सुनना पड रहा था

तीन दिन पहले ही मैंने अंतिम प्रयास के रुप में अस्पताल के प्रमुख डाक्टर ,जो अहमदाबाद के बडे अस्पताल में बैठते हैं, उन्हें -मेल द्वारा विस्तार से बिमारी के इतिहास सभी लक्षणों से अवगत कराया अब उन्होने वडोदरा में अपने मातहत डाक्टरों को क्या सलाह दी यह तो मैं नहीं जानता , पर कल साँय पाँच बजे उसके अचानक बोल उठने से घर भर आश्चर्य मिश्रित खुशी में झूम उठा

36 दिन बाद आखिरकार मेरे  लैन्ड लाइन फोन को नई जिन्दगी मिली सब परम पिता परमात्मा की कृपा है , आप जैसे मित्रों की शुभकामनाओं का फल है। दुआ किजिए कि मेरे चहेते को फिर कभी यह बिमारी ना लगे और वह हमेशा खट्टी मीठी बातों से घर में रौनक बनाए रक्खे
आपका अपना

ओंम प्रकाश नौटियाल,बडौदा , मोबा.9427345810




लघु कथा-2
एक और गौतम बुद्ध-ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा , मोबा. 9427345810

2 अप्रैल 2015 के दिन जीवन सहसा प्रकाश से आलोकित हो गया । यह सत्य घटना थी । पहली अप्रैल  गुजर चुकी थी अतः किसी मजाक की कोई गुंजाईश नहीं थी । मैंने आसपास देखा , उपर देखा कि कहीं मैं वट वृक्ष के नीचे तो नहीं हूं क्यों कि आज से 500 . पू. वटवृक्ष के नीचे ही राजकुमार गौतम को वैशाख (अप्रैल-मई) पूर्णिमा के दिन ज्ञान का प्रकाश मिला था । वडोदरा का तो नाम ही यहाँ वड़ वृक्षों के बाहुल्य के  कारण वडोदरा पडा है फिर महीना भी अप्रैल का था मुझे भ्रम सा होने लगा कि शायद इस संसार में व्याप्त अतीव हिंसा , घृणा और अशान्ति को  दूर कर पुनः शान्ति स्थापित करने  के लिए महात्मा बुद्ध ने मेरे रूप में पुनर्जन्म लिया हो , इस भ्रम का एक कारण और भी था , मेरे जीवन में  तम धीरे धीरे घर कर रहा था , जीवन धुंधला सा गया था मुझे भी प्रकाश की तलाश थी और इसी खोज में मैं यहाँ आया था । ज्ञान चक्षुओं पर जमी हुई समय की गर्द को साफ कर मैं जीवन आलोकित करना चाहता था , यह तपस्या की घडी थी । और तभी मैंने पाया कि मेरे चक्षु अतीव प्रकाश पुंज में नहाए हुए से हर साँसारिक वस्तु को स्पष्ट देख रहे हैं , किंतु मैं वट वृक्ष के नीचे तो कतई नहीं था ।
तभी एक आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई । परिचित सी आवाज थी , " मिस्टर नौटियाल, यौर कैटरेक्ट सर्जरी इन बोथ आईज इज़ डन सक्सेसफुली , य़ू कैन नाव सी एवरीथिंग ( अर्थात नौटियाल जी , आपकी दोनो आँखों का  मोतियाबिंद का औपरेशन सफलतापूर्वक हो गया है, अब आप सब कुछ स्पष्ट देख सकते हैं ) " डाक्टर की बात सुनकर बुद्ध होने के मेरे सभी भ्रम धराशायी हो गए । मुझे चक्षु खुलने की खुशी तो हुई किंतु साथ ही इस बात का दुख भी हुआ कि संसार आज के इस विषाद भरे माहौल में एक और बुद्ध पाने से वंचित रह गया ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा , मोबा. 9427345810






लघु कथा-3

डायग्नोसिस - -ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा , मोबा. 9427345810

शर्मा जी यूं तो निहायत शरीफ आदमी थे । घर से बाहर उनको कभी किसी से उंचे स्वर में बहस करते या किसी से झगडते नहीं देखा । हाँ घर में पत्नी और बच्चों पर वह अकसर बात बात में झल्ला उठते थे । घर के सदस्यों को   छोटी मोटी बात में डाँटना उनकी आदत में शुमार था । हर छोटी बड़ी बात की चीर फाड़ कर उसमें से कुछ ऐसा मथ लेते थे जो कई बार आम व्यव्हारिक बातचीत के अर्थ से कोसों दूर रहता था यानि उन्हें कुछ दूर की कौडी लाने की आदत थी । पत्नी उनकी मीन मेख से झल्ला कर कहती ,"आपको तो वकील होना चाहिए था तब कम से कम घर में बात बात पर मुकदमे बाजी और वकालत के पैंतरे चलने की जरूरत तो नहीं होती सारे शौक अदालत में पूरे करके  घर आते।" बेटा ,जो एमबीए की पढाई कर रहा था, अकसर  चिढाने के अंदाज में कहता ,"पापा आप तो कोई पोलिटिकल पार्टी जौयन कर लो , तकरीर अच्छी करती हो, बहस खूब कर लेते हॊ पर घर में आपकी सुनने वाला कौन है सिवा अम्मा के ।"
पर अभी पिछले कुछ दिनों से शर्मा जी अपेक्षाकृत घर में भी बहुत शांत हो गए थे । कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते जब उन्होंने डाक्टर की सलाह पर ब्रेन एम आर आई करवाया तो डाक्टर ने ब्रेन में एकौस्टिक नर्व पर ट्य़ूमर बताया जिसले लिए न्य़ूरो सर्जरी की सलाह दी । शर्मा जी ने अपने को पूरी तरह सर्जरी के लिए तैय्यार कर लिया था क्योंकि न्यूरोफिजिशियन के अनुसार यह सर्जरी अब सुरक्षित थी और इस ट्य़ूमर को निकालना ही बेहतर था । हाँसर्जन को इस बात का पूरा खयाल रखना होता है कि ब्रेन की किसी नर्व को  क्षति नहीं पहुंचे क्योंकि सर्जरी के स्थान से कई महत्वपूर्ण नर्व गुजरती हैं और उनको किसी प्रकार की हानि अन्य गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है , इसलिए इस माइक्रोसर्जरी में सर्जन के अनुसार 6 -7 घन्टे तक लग जाते हैं । शर्मा जी को सर्जन पर पूरा भरोसा था इसलिए वह निश्चिंत नजर आते थे ,उन्होंने अंतर्जाल से भी इस विषय में बहुत जानकारी इकट्ठी की थी जिसके आधार पर सर्जन से प्रश्न कर अपने को पूरी तरह आश्वस्त कर लिया था और अब वह इससे निजात पाने को पूरी तरह तत्पर थे । हाँ उनके व्यवहार में घरवालॊं के प्रति वह तीखापन न होने से शायद पत्नी और बेटे को यह बदलाव कुछ अखर रहा हॊ । खैर, नियत दिन पर उनकी सर्जरी हुई । 11 बजे दिन में उन्हें औपरेशन थिएटर में ले जाया गया । तकनीक के विकास के साथ  आजकल एनैस्थिसिया भी सर्जरी के समयानुसार माकूल वक्त के लिए ही दिया जाता है और मरीज को सर्जरी के बाद जल्दी होश भी आ जाता है। लगभग 630 बजे साँय उन्हें होश आने पर सर्जन ने बाहर प्रतीक्षारत शर्माजी की पत्नी , बेटे  से  कहा कि होश आ गया है आप लोग मिल सकते हैं ।
शर्मा जी का पुत्र सबसे पहले लपक कर अंदर गया और पूछने लगा, "पापा कैसे हो? औपरेशन जल्दी हो गया न?" शर्माजी ने उससे वक्त पूछा । उसके साढे छ्ः बताने पर शर्मा जी झल्ला कर उसे डाँटते हुए बोले , ,"मैं 11 बजे यहाँ आया था , सात घण्टे से ज्यादा हो गए हैं । तुझे यह जल्दी लग रहा है?" डाँट खाकर बेटा इंतहा खुशी के साथ तेजी से बाहर अपनी अम्मा को बताने के लिए निकलने लगा , जो द्वार से अभी अंदर  घुस ही रही थी । अम्मा को देखते ही खुशी से बोला ," अम्मा , पापा बिल्कुल ठीक हो गए , पहले की तरह डाँटना शुरू कर दिया है ।"
शर्मा जी ने भी उसकी बात सुन ली , और उसके इस डायग्नोसिस से उनके चेहरे पर भी एक हल्की मुस्कान तैर गई।
  -ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा , मोबा. 9427345810




लघु कथा-4


पुनर्मिलन -ओंम प्रकाश नौटियाल, बड़ौदा, मोबा.9427345810
विनोद और प्रिया ने लगभग चार वर्षों के प्रेम संबंध के बाद  अंततः शादी कर ली ।चार साल कैसे बीत गए उन्हें पता ही नही चला । पर शादी के कुछ दिन बाद ही उन्हें आभास होने लगा कि जिंदगी में चमकते हुए रंगो के अतिरिक्त स्याह रंग भी है। दोनों में छॊटी छोटी बातों का टकराव उग्र रूप धारण करते हुए छः माह बाद उन्हें संबंध विच्छेद के कगार पर ले आया और दोनों उसी शहर में अलग अलग रहने लगे ।दादी कहा करती थी कि प्रेम विवाह में सब कुछ अच्छा तो शादी के पहले हो जाता है , शादी के बाद तो केवल लडना झगडना शेष रह जाता है ।जीवन के एकाकीपन को दूर करने के लिए फेसबुक बडा सहारा है । विनोद ने महेश नाम से एक फेक ईमेल आई डी बनाया और लड्कियों  को मित्रता आग्रह भेजना शुरू कर दिया । उधर प्रिया ने भी एकाकी पन और नौकरी की थकान दूर करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया और फेसबुक पर निशा नाम से बिना चित्र के अपना फेसबुक प्रोफाइल बना लिया ।
दोनों की मित्र सूचि बढने लगी । कालान्तर में महेश की एक महिला मित्र से और निशा की एक पुरुष मित्र से घनिष्ठता बढने लगी । देर रात तक चैटिन्ग चलती । महेश ने महिला मित्र से तसवीर भेजने को कहा  तो उसने बदनामी की दुहाई देकर साफ इंकार कर दिया ।लम्बी चैटिंग पर बहुत मान मनुहार के बाद महेश की महिला मित्र रविवार को दिन में 11 बजे महेश यानि विनोद से शहर के उमंग रेस्तरां में मिलने को राजी हो गई । विनोद ठीक पाँच मिनट पहले रेस्तरां में पहुंच कर प्रतीक्षा करने लगा उसकी निगाहें प्रवेश द्वार की ओर लगी थी । ग्यारह बजे के लगभग वह एकदम  कुछ असहज हो गया जब उसने प्रिया को रेस्तरां में प्रवेश करते देखा । प्रिया ने भी उस पर एक नजर डाली और एक अन्य टेबल पर उसकी तरफ़ पीठ करके बैठ गई ।
निशा अभी तक नहीं आई थी। लगभग बीस मिनट की प्रतीक्षा के बाद उसने एक काफी मंगवाई और पीने लगा । प्रिया अभी तक बैठी थी । अचानक विनोद के दिमाग में कुछ कौंधा और वह ऊठकर प्रिया की टेबल पर साथ वाली कुर्सी पर बैठ गया । प्रिया को जैसे उसका वहाँ बैठना कतई अच्छा नहीं लगा और वह जाने के लिए उठ खडी हुई ।तभी विनोद के एक प्रश्न ने उसे चौंका दिया , "प्रिया तुम निशा हो न ? " वह भीतर तक काँप सी गई पर दूसरे ही क्षण कुछ चिड्चिडे और क्रोध भरे स्वर में बोली , " तुम महेश हो ?"
विनोद ने हामी में अनिच्छा से सिर हिला दिया । " हम दोनों जीवन भर कभी नहीं मिल सकते । मुझे पहले भी तुम पर शक होता था जो आज यकीन में बदल गया । हरजाई ।" यह कहकर प्रिया गुस्से से तेजी से बाहर निकल गई । और विनोद काफी के पैसे देते हुए सोच रहा था , " मैंने ऐसा क्या अलग किया जो प्रिया ने नहीं किया । फिर केवल मैं ही कैसे हरजाई हो गया ?"यह सोचता हुआ विनोद भी धीरे धीरे बाहर की ओर बढ़ने लगा ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल, बड़ौदा, मोबा.9427345810

चेतना

 चेतना
-ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा , मोबा. 9427345810
विरेन्द्र का घर मेरे घर से लगभग 1/2 कि.मीदूर था। उससे मेरी पहली मुलाकात मिल्क  बूथ पर  हुई थी और फिर अक्सर वहाँ मिलना होता रहता था। सुबह सुबह सभी हल्के फुल्के तरो ताजा मूड़ में होते हैं । शायद अहं उस वक्त जागा नहीं होता है। लोग दूध की गाडी आने से पहले ही बूथ पर जमा हो जाते हैं । देश की जटिल समस्याएं हल करते हैं रचनात्मक सुझाव उछालते हैं । विरेन्द्र से बातचीत में पता चला कि वह भी हमारे पास के गाँव का रहने वाला था और मेरी तरह ही नौकरी करने के लिए इस शहर में आया था। अब जब एक दूसरे के गाँव पास थे तो बातचीत बढ़ाने का मजबूत आधार मिल गया था। आस पास के गाँव वालों का इस तरह दूर किसी शहर में मिलना उन्हें बहुत जल्दी एक दूसरे के नजदीक ले आता है ।उनके पास राजनीति और महँगाई के अलावा भी बातचीत के लिए बहुत कुछ होता है गाँव का भूगोल, इतिहास ,लोग, किस्से आदि।यह सुबह की जान पहचान बहुत तेजी से एक दूसरे के घर आने जाने में और फिर गहरी मित्रता में बदल गई। मेरी और विरेन्द्र की शनिवार और इतवार की छुट्टी होती है ।
इन दोनों दिनों मे विरेन्द्र  शाम को लगभग 5 बजे मेरे घर आ जाता है । उसे पता है कि मैं इन दिनों नियम से आई पी एल के मैच देखता हूं इसलिए घर पर ही मिलता हूं ,घर पर ताला लगा होने का तो सवाल ही नहीं उठता है। फिर इस नियमबद्धता का एक कारण और भी है उसे कहानियाँ लिखने का बहुत शौक है जो आजकल किन्ही कारणों से चरम पर है । सप्ताह भर में वह जो भी नया लिखता है मुझे सुनाने को बेताब रहता है ।शनिवार को मेरी राय माँगता है और इतवार को कहानी में आवश्यक सुधार कर फिर हाजिर हो जाता है ।वह यही कोशिश करता है कि मुलाकात के दौरान उसके लिखे पर ही विश्लेषणात्मक चर्चा चलती रहे। कहानियाँ लिखने की उसकी गति भी 20-20 क्रिकेट मैच के स्कोरिंग रेट की तरह है । मुझे उसकी कहानियों में विशेष दिलचस्पी तो नहीं होती है पर उसका आना अच्छा  लगता है और इसीलिए इंतजार भी रहता है ।मैं उसका दिल रखने के लिए उसकी कहानियाँ सुनता भी हूं और अपनी राय भी देता हूं । कोशिश तो यही रहती है कि वह मेरी अरुचि भाँप न सके ।
कहानी सुनाने के उत्साह में वह चाय भी बनाकर ले आता है।
आज शनिवार को ठीक 5 बजे विरेन्द्र ने घन्टी दी। घुसते ही बोला ," आजकल छेड़खानी और बलात्कार की घटनाएं बहुत अधिक बढ़ गई है मोहन भाई, सरे आम होती हैं , कोई कुछ बोलता ही नहीं है । भरे बाजार में गुण्डे लड़कियों के साथ छेड़खानी करते हैं ,कोई कुछ नहीं कहता ।गुण्ड़ों के हौसले आसमान पर हैं ।" आज लगता है उसकी कहानी तैय्यार नहीं थी और वह किसी गंभीर चर्चा के लिए तैय्यार होकर आया था ।और मेरे घर आते हुए  उसे विषय भी राह में ही मिल गया था।
मैंने उसे जरा छेड़ने की नियत  से कहा ," यार जब तुम जैसे सिद्धांतवादी, संवेदन शील युवा आँखें बंद करके निकल जाते हैं तो और कौन बचाएगा उन्हें । तुम लेखक हो, पर अपनी कलम से आगे नहीं जा पाते हो। सब डरते हैं विरेन्द्र । "
उसने दुखी मन से कहा, "मोहन , शायद तुम ठीक कहते हो । और यही कुछ न कर पाने की खीझ और भड़ास मैं लिख कर निकाल लेता हूं ,जिसमें मेरा हीरो सब बुराइयों के खिलाफ़ अदम्य साहस से लड़ता है और विजयी होता है ।"
मैंने उसकी उदासी और चेहरे पर आए नैराश्य के भाव को पढकर उसे कुछ तसल्ली देने की गरज से कहा," अरे विरेन्द्र,क्या करें जमाना ही इतना खराब  आ गया है कि हर आदमी किसी भी पचड़े में पड़ते हुए डरता है।पता नही किस के पास क्या हथियार हो , अब  छुरे चाकू का जमाना तो चला गया हैं । गुण्ड़े पिस्तौल या कट्टे रखते हैं अपने पास । और जरा सी बात में चला देते हैं ।आए दिन अखबार में ऐसी ही खबरें आती रहती हैं ।पुलिस का इनको अलग से सहारा है ,फिर किस गुण्ड़े के सिर पर किस नेता का हाथ है यह भी पता नहीं होता। इन्ही सब बातों के डर ने आम आदमी को इतना  कायर बना दिया है कि किसी भी बुराई के खिलाफ सड़क पर आकर आवाज उठाने से वह कतराता है और घुट कर रह जाता है ।अपनी भड़ास वह फिल्मे देखकर निकाल लेता है जिनमें हीरो भ्रष्ट पुलिस अफसर और नेताओ से टक्कर लेता है और उन्हें सजा दिलवाता है। तुम्हारी कहानियाँ भी फिल्मी सी होती हैं जिनमे सर्व शक्तिमान हीरो अकेला ही सबको ठिकाने लगा देता है ।क्या करें बडा मुश्किल वक्त है। और फिर हमारे लिए तो यह शहर बिल्कुल अजनबी है ।हम तो यहाँ किसी को जानते ही नही ,अकेले पडे हैं। हमारे पीछे भी माँ बाप हैं , छोटे भाईबहन है। क्या करे। आँखें बंद रखनी ही पडती हैं।"
विरेन्द्र को जैसे मेरी बातों से विशेष तसल्ली नहीं हुई । उसके चेहरे से लग रहा था कि उसे कुछ भीतर ही भीतर कचोट रहा है । धीमे स्वर में बोला," लेकिन मोहन भाई , सैकड़ों की भीड़ में क्या आठ दस लोग भी ऐसे नहीं जो माँ , बेटी   बहन की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह न करें । आखिर हमारे वीर जवान भी तो हम लोगों की रक्षा के लिए रात दिन मोर्चे पर दुश्मन की गोलियों की परवाह किए बगैर डटे रहते हैं । सैकड़ों , हजारों की भीड़ एक दो गुण्डों के सामने अपनी जान अपने परिवार की दुहाई देकर कैसी कायरता से हथियार डाल देती है ।सचमुच बहुत शर्मनाक है। समाज तेजी से पतन की ओर जा रहा है  ।"
उसे इस तरह भावना में बहते देख मुझे हल्का सा तैश आ गया ।," अरे विरेन्द्र , यह सब कहना आसान है पर वास्तविकता इससे कोसो दूर है ।कानून और शांति स्थापित करना पुलिस का काम है । फिर तुम क्यों नहीं अपनी कहानियों के माध्यम से इस बारे में जन चेतना पहुँचाते हो। अगर सचमुच कुछ करना है तो अपनें कर्म के द्वारा लोगों के सामने उदाहरण पेश करने की हिम्मत करो ।"
विरेन्द्र के चेहरे पर कुछ ऐसे सख्त  भाव आए कि एक क्षण को मैं भी असहज हो गया। फिर बडे संयत स्वर में वह बोला ,"मोहन भाई, तुम शायद ठीक कहते हो , हम लोगों के गाँवों मे तो अब भी लोग ऐसी किसी वारदात के समय निर्भिकता से एक्जुट होकर गुण्ड़ों पर टूट पड़ते हैं । यहाँ तो शायद संवेदनाओं और साहस का भी शहरीकरण हो गया है ।"
इसी बातचीत में आज काफी वक्त निकल गया । मैच भी अब अपने अंतिम चरण के रोचक दौर में पहुँच चुका था। मैंने विरेन्द्र से कहा, " आज तो बात चीत में काफी वक्त निकल गया। अब तुम्हारी कहानी अगले सप्ताह सुनेंगे और हाँ आज घर पर खाना न बना कर, खाने के लिए कहीं बाहर चलते हैं।" और फिर बाहर एक ढाबे में खाना खाने के बाद हम अपने अपने घरों की ओर चल पडे।
लो आज फिर शनिवार आ गया है। शाम के पाँच बजने वाले हैं । । शनिवार को दो मैच होते हैं पहला 20-20 शुरू हो चुका है। विरेन्द्र भी आने वाला होगा । विरेन्द्र का मुझे हर शनिवार को बड़ी बेताबी से इंतजार रहता है । इस बार तो वह भी आने को बेताब होगा पिछली बार कहानी जो नहीं सुना सका था ।चाय की तलब लगी है पर चाय तो उसके साथ ही होगी न । साढे पाँच बज गये हैं । विरेन्द्र अभी तक नही आया । इतनी देर तो अमूनन करता नहीं है ।मैच भी वर्षा के कारण बंद हो गया है ।किसी पिछले मैच को दिखाया जा रहा है । कहीं इसीलिए तो उसने आना स्थगित तो नहीं कर दिया कि मैच न होने से मैं कहीं बाहर निकल गया हूंगा ।पर मैच तो अभी बंद हुआ है। फिर विरेन्द्र के पास तो टी वी भी नहीं है और फिर वह तो पाँच बजे तक ही आ जाता है।उसे आ जाना चाहिए था। कहीं गाँव  तो नहीं चला गया चार बजे की ट्रेन से। पर अगर ऐसा होता तो मुझे बता कर जाता वह । मैंने उसे कह भी रक्खा था कि अगर गाँव जाना हो तो मेरा भी एक पैकेट ले जाना , मेरा भाई तुम्हारे गाँव आकर तुमसे ले लेगा ।
अब कुछ कुछ चिंता भी होने लगी थी। आजकल वायरल बुखार भी बहुत फैला है ।कहीं तबियत खराब न हो उसकी। अगर ऐसा हुआ तो डाक्टर को दिखाना होगा । अब और इंतजार करना मुश्किल था ।
 मैंने कपड़े बदले । कमरे पर ताला लगाकर मैं उसके घर की ओर चल पडा। चौकन्ना था कि वह कही इधर उधर किसी दुकान पर न खड़ा हो या फिर मेरे घर की तरफ ही न आ रहा हो।मिल्क बूथ अब काफी पीछे छूट गया था।कपड़ा बाजार शुरु हो गया था ।सामने ही बहुत सी भीड़ जमा थी । मेरे पाँव भी ठिठक गये। लोग धीरे धीरे आपस में बातें कर रहे थे। मैंने एक गमगीन मुद्रा मॆं खडी बुजुर्ग महिला से पूछा," क्या हुआ माताजी ?"
" अरे क्या होगा इस शहर में । दुष्टों ने एक लडके को गोली मार दी और भाग गए।" तभी भीड़ को चीरती हुई एम्बुलैन्स आई और घायल लडके को लेकर चली गई।" तभी सुबह मिल्क बूथ पर मिलने वाले शर्मा जी दिखाई दिए। मन पहले ही आशंकाओं से भारी हो रहा था । मैंने उनसे पूछा ,"क्या हादसा हो गया शर्मा जी?"
"अरे मोहन जी , आपको नहीं पता । अरे अपना विरेन्द्र है न? आपका तो बड़ा मित्र है ।उसने एक गुण्डे को किसी लड़की का हाथ पकड कर अश्लील बातें कहते सुन लिया। उसका तो खून खौल गया जैसे। उसने उस गुण्ड़े के एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। तभी उस गुण्ड़े  के साथी दूसरे गुण्ड़े ने सामने से मोहन की छाती में दो गोलियाँ दाग दी । वह वहीं गिर पड़ा। लोग तो कह रहे थे कि बचना मुश्किल ही लगता है । सब उपर वाले के हाथ में है। हम तो दुआ ही कर सकते हैं । आप हौसला रक्खो। एम्बुलैन्स वैसे जल्दी आ गई।"
 एम्बुलैन्स सीटी अस्पताल की थी । मैंने तुरंत औटो किया और उसे सीटी अस्पताल चलने को कहा । मैं मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि ईश्वर विरेन्द्र को बचा लो। मुझे लग रहा था कि अगर उसे कुछ हो गया तो शायद उसका अपराधी मैं ही हूंगा। मुझे याद आ रहा था । मैंने ही उसे कहा था "...जब तुम जैसे सिद्धांतवादी, संवेदन शील युवा आँखें बंद करके निकल जाते हैं तो और कौन बचाएगा उन्हें ......अगर सचमुच कुछ करना है तो अपनें कर्म के द्वारा लोगों के सामने उदाहरण पेश करने की हिम्मत करो..........." विरेन्द्र बहुत भावुक है । किसी का दर्द देख नहीं सकता। उस दिन जब वह उस गुण्ड़ई की वारदात के बारे में बता रहा था । तो उसके चेहरे पर  स्वयं के लचर और असहाय  होने की विवशता थी। उसे लग रहा था मानों उस घटना के लिए वही जिम्मेदार है। फिर मैंने भी उसकी चेतना पर तीखा प्रहार कर दिया था। हे भगवान उसे बचा लो , नहीं तो गुण्ड़ों से रक्षा के लिए कौन उतरेगा ।
मैं अस्पताल पहुँचा । पता चला कि उसकी एमर्जेन्सी सर्जरी की तैय्यारी हो रही थी ।हालत अत्यंत नाजुक बताई गई । मैंने स्टाफ को बताया कि वह मेरे गाँव का है और रिश्ते का भाई है।  इस संबंध में किसी भी जरुरत के लिए वह मुझसे संपर्क कर सकते हैं । लगभग दो घन्टे तक  सर्जरी चली। आपरेशन थिएटर से उसे आईसीय़ू में शिफ्ट कर दिया गया । डाक्टर साहब ने बताया कि 24 घन्टो का समय ठीक से निकल जाए तो सब ठीक होने की उम्मीद है। औपरेशन तो ठीक हो गया है ।सौभाग्य से  दोनों गोलियाँ दिल को बचा कर निकली थी । चौबीस घन्टे बाद डाक्टर ने विरेन्द्र को खतरे से बाहर घोषित कर दिया । अगले दिन ही वह वार्ड में ले आया गया। जब मैं वार्ड में उससे मिलने पहुँचा तो उसने हल्की मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया ।और बोला, " मोहन भाई यह तुमने अच्छा किया कि घर में खबर नहीं भिजवाई । पिताजी बीमार हैं वह कैसे आते और बिन आए वह रह भी न पाते।"
"हाँ विरेन्द्र , मैंने भी यही सोचा। पर यह बहुत बड़ा अपराध किया मैंने । खैर तुम ठीक हो तो अब सबकुछ ठीक है।" वह फिर मुस्करा दिया और साथ ही एक आँसू तकिये को भीगा गया। मुझे खुशी हुई कि वह अब पूरी तरह होश में था।
और मुझे लगा कि विरेन्द्र की चेतना के  साथ अब सारा समाज चैतन्य हो गया है।

 ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा , मोबा. 9427345810

लघु कथाएं

दो लघु कथाएं
 1.गलत फ़हमी -ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा ,मोबा.9427345810
(लघु कथा)
गुप्ता जी को सेवा निवृत हुए तीन महीने हो गए थे लेकिन नियम से दफ़्तर जाने का उनका सिलसिला आज तक नहीं छूटा। दफ़्तर की फाइलों में उनकी जान बसती थी। सेवा काल के दौरान उन्होंने शायद ही कभी छुट्टी ली हो । पत्नी अकेले ही सारी सामाजिक , बच्चों के स्कूल संबंधी और बाहर की ,जिम्मेदारियाँ  निभाती रही । उनकी  छवि सदैव ही एक बेहद ईमानदार,कर्तव्य निष्ठ , दक्ष और अनुशासित कर्माचारी की रही ।सब उन्हें प्यार से बडे बाबू के नाम से पुकारते थे। कोई कितनी ही पहचान वाला या सगा हो ,फाइलों को वह हमेशा तथ्यों के आधार पर , न्यायोचित ढ़ंग से जाँच कर अपनी विस्तृत टिप्पणी लिखते थे । केस की पूरी जाँच परख करके तध्य      संगत टिप्पणी होती थी उनकी ।  उनके तर्क अकाट्य होते थे और उपर वाला उनके विरुद्ध निर्णय लेने की हिम्मत नहीं कर पाता था। निगम की उस नौकरी में घूस खाने का बेइंतहा स्कोप था पर उनकी ईमान दारी और निष्ठा के आगे सभी नतमस्तक थे। उनकी प्रसिद्धि आफिस के अन्य कर्मचारियों के साथ साथ पूरे शहर में फैली थी ।कुछ भ्रष्ट लोग चाहते थे कि वह कहीं और चले जाएं पर उन्हें किसी दूसरी जगह स्थानांतरित करने का जोखिम भी कोई अफसर नहीं उठाना चाहता था। वैसे सामने तो उन्हें सभी कर्मचारी बहुत सम्मान देते थे । उन्हें भी लगने लगता था कि मेरे जाने पर अन्य लोग इसे सुचारू ढंग से चला भी पाएंगे कि नहीं ।चूंकि वह एक एक फाइल को पूरी गहराई से अध्य्यन करते थे  इसलिए अपने काम को बहुत अधिक समय देते थे। उनके पास कभी गप मारने का वक्त होता ही नहीं था।
उसूल के पक्के गुप्ता जी का घर मे जरा भी मन नहीं लगता था । वह नियम से ठीक समय आफिस पहुँचते थे । एक दिन पत्नी ने झल्ला कर कहा भी:
" यह  तुम रोज रोज क्या मुफ्त की नौकरी बजाते हो? रिटायर हो गये हो, आराम करो, मुझे भी कुछ आराम मिलेगा । आराम से नहाना धोना नाश्ता किया करो। गप्पे मारो। अखबार पढ़ो इतमीनान से । सोचती थी इनके रिटायरमैंट के बाद मेरे उपर से भी समय की पाबंदी हटेगी । रिश्ते दारों से मिलना जुलना शुरू होगा । पर इनकी दिन चर्या में तो रत्ती भर फर्क नही आया "
"अरे विमला रहने दो, घर पर रहूंगा तो हमारे झगडे ही ज्यादा होंगे। तब तुम यह ताना दोगी कि तुम तो औफिस में ही ठीक थे। औफिस में कई कई बार चाय हो जाती है । तुमसे एक से ज्यादा बार कभी चाय बनाने को कह दिया तो दस सुनाओगी ।"
"हाँ मैं ही लडती हूं तुमसे । तुम तो जैसे कभी कुछ नहीं कहते।"
" लो अभी लड़ाई शुरु हो गई दिन भर घर पर रहूंगा तो हर वक्त गोला बारी हॊती ही रहेगी, इसलिए यह तुम्हारे और मेरे दोनों के हित में है कि मैं अधिकांश समय बाहर रहूं।"
पत्नी भी शायद मन ही मन इन तर्कों से सहमत थी । थॊड़ी नरम पडती दिखाई दी ।
" अच्छा ,अच्छा फिजूल बातें छोडो । पर अगर काम करना ही है तो यह बेगार क्यों करते हो ।  कोई और जगह तलाश करो । तुम्हारा दोस्त वर्मा नेशनल डिपार्टमैंटल स्टोर में मैनेजर है । इतना बडा स्टोर है कल ही मैंने अखबार में वहाँ कुछ रिक्त स्थान भरने का
विज्ञापन देखा था । उन्होंने लिखा है उसमें कि रिटायर्ड लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी । एप्लाई कर दो और वर्मा के कान में भी डाल दो ।इस उम्र में अगर सर खपाना ही है तो कम से कम दो पैसे तो मिलें ।"
"पैसा पैसा , क्या करना है पैसे का। फिर अब तो खर्च भी कम हो गया है । बच्चों कि जिम्मेदारियाँ पूरी हो गई हैं , पेंशन मिल ही रही है ।फिर दफ्तर का काम करके मैं देश का पैसा बचा रहा हूं वह भी तो हम सबके  ही काम आएगा ।" गुप्ता जी ने प्रतिवाद किया ।
पत्नी ने भी पैंतरा बदल कर दूसरा तर्क पेश किया : " अरे पैसा का मुझे कौन सा लालच है ? पर आप यह तो सोचिए कि आप अब उन्हें डिस्टर्ब करते हो। । एक कुर्सी मेज पर कब्जा जमाये हो। वह तुम्हारा लिहाज करके कुछ न कहते होंगे पर तुम उनको ऐसा मौका देते ही क्यों हो कि वह तुम्हें खुद मना कर सें ।"
गुप्ता जी को क्रोध आ गया , " अरे तुम क्या समझती हूं मैं उन पर बोझ हूं । उल्टे मैं उनका कान बाँटता हूं । अपना अनमोल अनुभव साझा करता हूं । मैं इतने सालों में जो इज्जत कमाई है उसका मोल तुम नहीं समझोगी । शर्मा तो मुझसे मेरी कुर्सी पर बैठे रहने का ही अनुरोध कर रहा था ।अगर इतना प्यार सम्मान न मिलता तो मैं भी वहाँ जाना उचित न समझता । "
पत्नी शायद अब इस बहस को आगे नहीं ले जाना चाहती थी । हथियार डाल कर बोली ," जैसी तुम्हारी मर्जी हो, वैसा करो । पता नहीं क्या गलत फहमी पाल ली है मानों इनके बिना दफ्तर बंद हो जाएगा। " कह कर वह बुद बुदाती हुई भीतर चली गई और गुप्ता जी सब कुछ अनसुनी करते हुए दफ्तर के लिए निकल पड़े ।

गुप्ता जी को याद नहीं कि वह कभी औफिस देर से पहँचे हों, यहाँ तक की सेवा निवृति के बाद भी । हमेशा  समय से कुछ पहले पहुंचते थे। पर आज गुप्ता जी शायद पहली बार कार्यालय पहुँचने में एक घन्टा लेट हो गए । वह घर से हमेशा किसी अनहोनी के लिए समय रखकर जल्दी निकलते थे ।पर आज  बहुत सी बातें एक साथ हो गई । एक तो पत्नी से बहस कुछ ज्यादा खिंच गई, जो आजकल अकसर होने लगा है। फिर रास्ते में  एक यात्री बस और ट्रक की भयंकर टक्कर हो जाने के कारण , जो शायद कुछ देर पहले ही हुई थी और  बचाव कार्य चल रहा था रास्ता गाडियों के लिए बंद था । काफी देर प्रतीक्षा के बाद भी जब जल्दी रास्ता खुलने की कोई संभावना नजर नहीं आई तो गुप्ता जी लौटकर पुराने बाजार वाले रास्ते से जाने के लिए वापस मुड़ गए वहाँ किसी राजनीतिक दल का जुलूस जा रहा था जिससे निकलने में उन्हें  बहुत सा अतिरिक्त समय लगा ।इन सब बाधाओं को पार करते करते वह औफिस पहँचने में लगभग एक घन्टा लेट हो गए। स्कूटर पार्क कर तेज कदमों से बरामदे के दूसरे छोर पर अपने कमरे की ओर बढने लगे, पूरा दफ्तर  लग चुका था । नियमित लेट लतीफ भी सब पहुँच चुके थे।
बड़े साहब के कमरे के सामने से निकलते हुए यकायक अपना नाम  सुनकर उनके कदम ठिठक कर स्वतः ही धीमे पड गए और फिर रुक गए । वह वहीं खुले दरवाजे की ओट लेकर उत्सुकता वश अंदर की बातें सुनने की कोशिश करने लगे । यह तो बडे साहब और शर्मा जी की आवाजें आ थी ।
" .... शर्मा तुम, गुप्ता को  क्यों नही कह देते कि तुम रिटायर हो चुके हो घर बैठो आराम करो , अब यह तुम सीधे सीधे कहो या डिप्लोमेटिक तरीके से, यह तो तुम जानो पर उसका यूं रैगुलर कर्मचारी की तरह दफ्तर आना फौरन बंद होना चाहिए ।अरे उपर तक शिकायत हो गई है ,यह सरकारी महकमा है कोई पनवारी की दुकान नहीं "
"सर , अब तक तो उनको उपर का ही सपोर्ट रहा है कि उन्हें कोई न ट्रान्सफर कर सका न उनकी सीट तक ही बदल सका । वरन गोपनीय प्रोपोजल तो कई बार भिजवाए गए। दरअसल चक्रवर्ती साहब को न जाने किसने इतना भर रखा था कि गुप्ता के होने से निगम की छवि बहुत अच्छी है । उन्हें तो उसके हटाने की बात से ही दाल में काला नजर आने लगता था । फिर पिछले वर्षॊं से चल रहा निगम का अध्यक्ष भी एक ही अपवाद है । ईमानदारी की दुम है ।उसने भी शायद चक्रवर्ती साहब को किसी बदलाव के लिए मना किया होगा " शर्मा जी ने कहा ।
"ठीक है , ठीक है पर अब इन बातों का कोई मतलब नहीं है । गुप्ता अब एक बाहरी व्यक्ति है और हम अपनी सब फाइल किसी बाहरी आदमी को कैसे दिखा सकते हैं । अब चक्रवर्ती साहब भी नहीं हैं । फिर यह हम लोगों का आंतरिक मामला है। ऊँच नीच की सारी जिम्मेदारी हमारी है । कल से वह दिखना नहीं चाहिए इस दफ्तर में "
"सर मैं  आज ही कुछ तरकीब भिड़ाता हूं ।और सर मैं तो आपको बताना ही भूल गया आज वह अभी तक नहीं आए हैं । पहली बार शायद ऐसा हुआ होगा कि बिना पूर्व सूचना के वह न आए हों ।" शर्मा जी बोले
शर्मा जी  बड़े साहब को ठीक  से जानते थे । उनका कच्चा चिट्ठा सारा उनके पास था ।एक नम्बर के खाऊ थे । शर्मा जी ने उनकी झिझक दूर करने की नियत से और उनका अपना कल संवारने की नियत से वह कह दिया जो अब तक सबकी चाहत थी पर जिस पर खुली पर्दादारी थी :
"और सर एक बात और बताऊ , अन्दर खाने सब लोग यही कहते हैं कि यही दफ्तर है जहाँ सब लोग शाम को खाली हाथ घर जाते हैं , यह ईमानदारी की औलाद हमारी ही किस्मत में थी।...."
गुप्ता जी सुनकर अवाक थे। और ज्यादा न सुन सके ।कुछ क्षणों में अपने को संभाला फिर वापस मुड़कर स्कूटर की तरफ़ गए और सीधा घर का रुख किया ।
सारे रास्ते अब खुल चुके था।
-ओंम प्रकाश नौटियाल , बडौदा ,मोबा.9427345810
 

2.एक ईमानदार की मौत- लघु कथा
-ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा , मोबा. 9427345810
लगभग चालीस साल पुरानी बात है । मैं गुजरात के महसाणा में कार्यरत था । दूध सागर डेरी से कुछ दूर दक्षिण की ओर स्टेट हाई वे के दोनो ओर हमारा कार्यालय था। चन्दु हमारे कार्यालय का चपरासी था ,नाम तो उसका चन्द्रभान  था पर सब उसे चन्दु  कहकर ही बुलाते थे उसका असली नाम तो शायद बहुत ही कम लोग जानते  होंगे। कहते हैं न, पैसा और पद आ जाए तो गाँव का कल्लु भी सेठ कालूमल हो जाता है वरन गरीब बुद्धु का तो असली नाम भी उसके मरने के बाद तक किसी को पता नहीं चलता। हाँ, तो चन्दू की चर्चा चल रही थी लिखने पढने के नाम पर वह हाजरी  के रजिस्टर पर दस्तखत  कर लेता था वेतन के पैसे अच्छी तरह गिन लेता था। दूसरी कक्षा के बाद बाप ने  स्कूल छुडवा दिया था और अपने साथ मजदूरी पर ले जाना शुरु कर दिया था।फिर व्यस्क होने पर इस द्फ्तर में डेली वेजेज पर लग गया । कई साल काम करने के बाद अभी दो बरस पहले वह नियमित हो गया था ।बहुत भोला था बहुत लगन से काम करता था निष्ठावान था सबसे आदर के साथ बात करता था । सभी उसे बहुत पसंद करते थे ।  नतीजतन उसके इन गुणो से प्रभावित होकर उसे दफ्तर के ही काम में रख लिया गया । अब वह सबकी चाय पानी का खयाल रखता था और बाहर के छोटे मोटे सरकारी और गैर सरकारी काम करता था। दफ्तर में कौन अधिक महत्वपूर्ण  है किसके काम को प्राथमिकता देनी है, इसका उसे खूब ज्ञान था ।कार्यालय वह हमेशा समय से पाँच मिनट पहले आता था , याद नहीं आता कि वह कभी देर से आया हो। दस कि.मी. दूर गाँव से एक पुरानी साइकिल पर आता था देर से आने के उसके पास दसों अच्छे बहाने हो सकते थे पर उसे दफ्तर के काम के प्रति भीतर से श्रद्धा थी कहता भी था , " जब सरकार काम करने के लिए इतने पैसे देती है तो फ़िर दफ्तर का काम तो पूरे समय ठीक से करना चाहिए  न?"
एक दिन मैंने उससे पूछा ,"चन्दु सुबह तुम कितने बजे घर से दफ्तर के लिए निकलते हो ?"
"साहब, साढे नौ बजे का औफ़िस है , मै घर से नौ बजे से दस मिनट पहले ही निकल जाता हूं " चन्दु ने जवाब दिया।
"अच्छा ,तुम शहर की भीड़ भाड़ पार कर लगभग आधे घन्टे में  पहुंच जाते हो ?"
" साहब कृष्णा सिनेमा के पास वन वे है , अगर उधर से आओ तो एक डेढ़ कि.मी. का चक्कर कम हो जाता है उधर से इस तरफ आना मना है पर शार्टकट होने के कारण मैं उधर से ही आता हूं , वहाँ पुलिस वाला खड़ा रहता है पकड लेता है । एक रूपया घूस लेता है। मैं तो साहब चालान कटवा लेता हूं । कोट में दो रुपया जुर्माना भरना होता है। मैं उसे कह देता हूं । तुझे एक रुपया क्यों दूं , सरकार को दो रुपये दूंगा जो हमे पगार देती है ।"
 "अरे , वाह तुम हो सरकार के असली भक्त" मैंने कहा ।
" हाँ साहब , सरकार का पैसा तो हमारा ही है ना? आज भी साहब चालान काट दिया उसने । अकसर वन वे के आखिर में छुप कर खड़ा रहता है और साइकिल पकड़ लेता है कभी कभी जब उसने किसी और को पकड़ा होता है , बच कर निकल भी जाते हैं । जब कोट से समन आता है तो चला जाता हूं दफ्तर में बाहर के काम तो आप लोगों के होते ही हैं उन्हीं के साथ कोर्ट की हाजरी का काम भी हो जाता है"
उस दिन अपना यह भे्द बताने के बाद शायद उसने भी कुछ हल्का महसूस किया । अब वह कोर्ट जाने वाले दिन मुझे बता देता है, " साहब कोर्ट जाना है आज दोपहर बाद । बाहर का कोई काम हो तो बता दीजिएगा "
"हाँ हाँ , अरे इस दफ्तर में इतने लोग हैं बाहर का काम तो रोज कुछ न कुछ निकल ही आता है ।सप्ताह में कितनी बार जाना पड़ जाता है कोर्ट ? मैंने पूछा।
" साहब, सप्ताह में तीन चार बार पुलिस वाले को चकमा दे देता हूं , पर फिर भी हफ्ते में दो तीन चालान तो कट ही जाते हैं ।"
एक दिन उसे कोर्ट जाना था । चन्दु मुझसे बाहर का काम पूछने आया । मैं ने उसे कुछ कागज जीरोक्स करवाने के लिए आवश्यक ताकीद के साथ थमा दिए । शायद अन्य लोगों ने भी कुछ इसी तरह के काम उसे सौंपे थे । लगभग दो  घन्टे बाद वह लौट कर आया । बुझा बुझा सा था , रोनी सी शक्ल हो रही थी । उसने कागज मेरी टेबल पर रक्खे और थकी हुई सी चाल से लौटने लगा । मैंने उसे आवाज दी और पूछा ,"क्यों चन्दू तबियत तो ठीक  है न तुम्हारी, बहुत उदास लग रहे हो?"
चन्दू रुक कर खड़ा हो गया और कहने लगा ," साहब , आज तो बहुत नुकसान हो गया । कोर्ट में मजिस्ट्रेट साहब कहने लगे कि यह चालान के केस बहुत आ रहे हैं , बड़ा टाइम लग जाता है इनमें । जुर्माना बहुत कम है लोग इसलिए कानून से डर नहीं रहे हैं आज से सबको इस जुर्म का जुर्माना 25 /- भरना होगा ।"
पच्चीस रुपये उस जमाने मे बहुत बड़ी रकम होती थी । मुझे भी उसकी बात सुनकर उससे सहानुभुति हुई और मन कुछ उदास सा हुआ । उसने मेरी उदासी का न  जाने क्या अर्थ लगाया । तुरंत बोला," साहब आप फिक्र मत करो । मैं औफ़िस पहले की तरह समय पर ही आउंगा । पर अब  पुलिस वाले को ही पैसे देने पडेगे,  अब पुलिस वाला भी रेट बढा देगा पर दो से ज्यादा तो क्या लेगा ? मुंह पर मार दिया करूंगा उसके।"
उसकी बात सुनकर मुझे और भी अधिक दुख इस बात का हुआ कि एक देश प्रेमी और ईमानदार की आज मौत हो गई ।

-ओंम प्रकाश नौटियाल,बडौदा , मोबा.9427345810

Saturday, October 8, 2016

भीतर से भी राम !

ढूंढ़ रहा हूं जगत में, उस मानव का नाम
बाहर से भी राम जो, भीतर से भी राम !
-ओंम प्रकाश नौटियाल

रावण मिला कुटुंब से

रावण मिला कुटुंब से , दी सबको शाबास
नाम खूब रोशन किया, तुमसे ही अब आस !
-ओंम प्रकाश नौटियाल

रावण

रावण आया देखने , धरती पर परिवार
सबको फलता देखकर, हँसा भरी हुंकार !
-ओंम प्रकाश नौटियाल

Monday, September 26, 2016

आतंक

क्या कभी भी  इस जग से जाएगा  आतंक
घूमेंगे स्वछंद सभी , बिन  तनाव  निःशंक !!
-ओंम प्रकाश नौटियाल

Saturday, September 24, 2016

आराम

कुछ न करने के बाद जब आराम करता हूं ,
आलस  की  दी  हुई सारी थकान हरता हूं !!
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कुछ न करके अकसर जब  , करता हूं आराम
न उतरे  थकान फिर भी ,  ले लेता हूं जाम !
-ओंम प्रकाश नौटियाल

Saturday, September 3, 2016

माटी के प्रेमी


एक दोहा !

वोट बैंक  को  चाहिए, रहें  गरीब   गरीब
चमका रहे सदैव ही,  सियासत का नसीब !
-ओंम प्रकाश नौटियाल