Friday, September 30, 2016
Wednesday, September 28, 2016
Tuesday, September 27, 2016
Monday, September 26, 2016
Sunday, September 25, 2016
Saturday, September 24, 2016
आराम
कुछ न करने के बाद जब आराम करता हूं ,
आलस की दी हुई सारी थकान हरता हूं !!
********
कुछ न करके अकसर जब , करता हूं आराम
न उतरे थकान फिर भी , ले लेता हूं जाम !
आलस की दी हुई सारी थकान हरता हूं !!
********
कुछ न करके अकसर जब , करता हूं आराम
न उतरे थकान फिर भी , ले लेता हूं जाम !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Tuesday, September 20, 2016
Friday, September 9, 2016
Saturday, September 3, 2016
Tuesday, August 30, 2016
Saturday, August 27, 2016
Wednesday, August 24, 2016
Saturday, August 20, 2016
Thursday, August 18, 2016
Sunday, August 14, 2016
मूल्याँकन: पुस्तक "पीपल बिछोह में "
जीवन के विविध पहलुओं और सामाजिक सरोकारों को आवाज़ देती एक कृति 'पीपल बिछोह में': के. पी. अनमोल
एक अच्छा साहित्यकार भावनाओं को सीमाओं में नहीं बाँधता बल्कि अपने मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते भावों को कलम का सहारा दे, काग़ज़ की ज़मीन पर उतरने में सहयोग करता है। फिर वे भाव चाहे किसी भी स्वरूप में हों, जैसे- गीत, कविता, कथा या कोई भी अन्य विधा।
भावों की आमद सहज होती है, वे किसी भी रचनाकार की क़लम को ज़रिया बना, अपना स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं। इनके साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करने या इन्हें किन्हीं निश्चित साँचों में फिट करने की कोशिशों में ये अक्सर अपना असर खो बैठते हैं, इसलिए इन्हें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़, जैसे ये चाहें, जिस रूप में चाहें, स्वतः आने दिया जाना चाहिए।
अभी पिछले दिनों 'पीपल बिछोह में' पुस्तक मिली, जो अलग-अलग विधाओं की काव्य रचनाओं का संकलन है। पुस्तक में गीत, नवगीत, गीतिका, दोहा आदि विधाओं के साथ-साथ छंदबद्ध व छंद मुक्त कविताएँ भी शामिल हैं। अलग-अलग विधाओं की रचनाओं में अपनी बातें कहती ये पुस्तक रचनाकार के बहुआयामी सृजक होने का प्रमाण है। पुस्तक का शीर्षक 'पीपल बिछोह में' बहुत आकर्षक और मन को दो पल रोकने वाला शीर्षक है।
यह कृति एक उम्रदराज़ रचनाकार की तीसरी किताब है, इससे पहले इनकी दो किताबें 'साँस साँस जीवन' और 'पावन धार गंगा है' प्रकाशित हो चुकी हैं।
'पीपल बिछोह में' नौकरी के सिलसिले में अपने गाँव से दूर रहे एक संवेदनशील मन की अभिव्यक्ति है, जो सालों अपने गाँव, अपने परिवेश, अपने परिवार से दूर रहने के बावजूद भी इन सबसे विलग नहीं हो पाया।
खोया कहीं बचपन
तरुणाई के मोह में
छोड़ दिया गाँव तभी
जीविका की टोह में
भटके आकुल अनाथ मन
पीपल बिछोह में!
गीत का मुखड़ा इस बात की गवाही है कि यह आकुल मन एक उम्र बीत जाने के बावजूद भी अपने गाँव की मिट्टी की महक, पीपल का प्यार और बचपन की स्मृतियाँ नहीं भुला पाया है।
इस गीत में पुस्तक के रचनाकार ओमप्रकाश नौटियाल जी ने ग्रामीण परिवेश का सजीव चित्रण करने के साथ ही ग्रामवासियों और पीपल के पेड़ के जुड़ाव को बहुत सुंदर तरीक़े से शब्दबद्ध किया है।
पुस्तक में कुल 66 काव्य रचनाओं में नौटियाल जी ने जीवन के विविध पहलुओं के साथ विभिन्न सामाजिक सरोकारों को आवाज़ दी है। नौटियाल जी के लेखन में समकालीनता और सामाजिक सरोकार बहुत मजबूती से उपस्थित रहते हैं और यही वजह है मेरे इनके लेखन से प्रभावित होने की।
पर्वतीय प्रदेश उत्तराखण्ड के देहरादून शहर में पले-बढे नौटियाल जी की कविताओं में प्रकृति-प्रेम मुखर होकर बोलता है। फिर चाहे वह 'पीपल बिछोह में' गीत हो, 'माटी की सौंधी महक' नाम से दोहावली हो या 'पर्वतवासी' कविता हो, सबमें प्रकृति का बारीकी से विश्लेषण हुआ है।
'पर्वतवासी' कविता में पहाड़ों के शांत, सुरम्य वातावरण का प्रभावी वर्णन और प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव अंकन मिलता है-
सभी कुछ दृष्टव्य स्पष्ट यहाँ
मानो खुली एक मुट्ठी है
जीवन है शांत, सरल, सादा
ना कोई उलझी गुत्थी है
है सुरम्य सौन्दर्य प्रकृति का
मनभावन मौन इशारे हैं
जीवन की परिभाषा इनसे
अंदाज़ यहाँ के न्यारे हैं
कितना सरल, सादा और मनभावन चित्रण है।
गोरैया के लुप्त होने की चिंता ने भी इनके प्रकृति-प्रेमी मन को व्याकुल किया और उसके गायब होने को हमसे रूठ जाने की उपमा देते हुए 'कहाँ गयी गोरैया' कविता का सृजन करवा लिया। आज के स्वार्थी परिवेश में न तो हमारे घरों में पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था रही, न ही हमने इनके आसरे 'पेड़ों' को रहने दिया, फिर इन बेज़ुबानों का हमसे रूठने का हक़ बनता ही है।
शहर शहर में ढूँढे गाँव/ गाँव गाँव में बाग
मिला न कोई नीम/ न ही खेत खलिहान
दिखे न बिखरे दाने/ कहाँ जाए भूख मिटाने?
न वृक्षों पर जल की हांडी/ न कहीं ताल-तलैया
रूठ गयी गोरैया!!
पुस्तक में एक कविता 'पृथ्वी और नभ' में पृथ्वी और आकाश के माध्यम से मर्यादित प्रेम की बहुत सुंदर प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति हुई है। पूरी कविता को सिर्फ प्रेम की परिभाषा भी कह सकते हैं। यह एक परिपक्व रचना है। 'संध्या और भोर के समय आकाश द्वारा लालिमा से पृथ्वी की मांग भरा जाना' कितना सुंदर बिम्ब लिया गया है।
प्रेम का यह है/ सात्विक स्वरूप
आकाशीय गरिमा का प्रतीक
मिलन की व्यग्रता नहीं
चाह केवल
अपलक निहारने की
अपनी लालिमा से
भोर और संध्या में
मांग भरना पृथ्वी की
'बतियाने का मन होने पर धरती और आकाश रूपी दोनों प्रेमी क्षितिज पर लोगों की निगाहों से दूर कुछ घड़ी को मिल लेते हैं' क्षितिज का प्रयोग करते हुए कितना मनोहर मानवीकरण हुआ है। यह रचना पुस्तक की श्रेष्ठ रचना है।
प्रकृति चित्रण के अलावा भी पुस्तक में बहुत से विषयों पर रचनाएँ हैं। समकालीन घटनाओं पर भी कुछ कविताएँ दृष्टव्य हैं। आतंकवाद और आंतकवादी हमलों पर आधारित एक कविता में नौटियाल जी कहते हैं-
कोई धर्म ग्रंथ हो/ या फिर गुरू पंथ हो
सभी का निचोड़ यही/ श्रद्धा प्रेम अनंत हो
मस्तिष्क में कौन फिर
विष विचार टांग गया
दरिंदा दरिंदगी की
सीमा हर लाँघ गया
इसी तरह की एक कविता 'जीवन में केवल प्यार रहे' में जीवन में प्रेम के महत्त्व को स्पष्ट कर प्रेम से जीने और नफ़रत से दूर रहने का संदेश दिया गया है। इस कविता में कवि युवाओं को हर तरह की हिंसा को छोड़ सिर्फ प्रेमभाव से राष्ट्र निर्माण करने की सीख देता है।
देश में स्त्रियों के प्रति अमानवीय व्यवहार और भेदभाव से आहत हो नौटियाल जी एक कविता 'मैं कन्या' में अजन्मी बच्ची से लेकर विवाहिता युवती तक हर पल दहशत में जी रही नारी की मानसिकता का दयनीय चित्रण किया है।
'पेट के लिये' कविता में भी ये एक मजदूर के जीवन की भयावह स्थिति को हमारे सामने रखते हैं। 'पेट के लिए उसे कमर बाँधनी ही पड़ेगी और यही उसकी योग साधना है' इस भाव के साथ कविता में बहुत गहरा कटाक्ष किया गया है। सही भी है, जब तक पेट की आग नहीं बुझती, उसके अलावा इंसान को कुछ भी नहीं सूझता।
'बदलेगा देश' कविता के माध्यम से देश में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद की गयी है और साथ ही उस बदलाव के लिए रचना में कुछ उपाय भी बतलाये गये हैं।
पुस्तक में एक और महत्त्वपूर्ण कविता है 'समय की सापेक्षता' जो समय को उम्र के अलग-अलग कोणों से देखती एक बहुत अच्छी रचना है। महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन के समय की सापेक्षता के सिद्धांत को आधार में रख कवि ने बताया है कि विभिन्न अवस्थाओं में मनुष्य का जीवन के प्रति कैसा नजरिया रहता है।
एक कविता 'बजटीय सौन्दर्य' में बजट के पक्ष-विपक्ष में अलग-अलग मतों का सफल विवेचन हुआ है। इस व्यंग्यात्मक कविता में कवि नौटियाल जी ने बजट से बड़ा ही रोचक सवाल किया है। लेकिन साथ ही 'सौन्दर्य बस देखने वाली आँखों में होता है' कहकर व्यंग्य के ज़रिये तमाम उत्सुकताओं को विराम भी दे गये हैं।
एक गीत 'भीतर से भी राम' में आज के विकट युग में जहाँ हर ओर सिर्फ स्वार्थ का बोलबाला है, ऐसे में भी कवि किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में है जो भीतर और बाहर दोनों जगह से भगवान राम की तरह हो। इस गीत के माध्यम से रचनाकार ने अप्रत्यक्ष रूप से भगवान राम के अनेक गुणों का वर्णन किया है। हालाँकि नौटियाल जी यह भी जानते हैं कि इस कलियुग में श्री राम के जैसा चरित्र मिलना असंभव है फिर भी एक साहित्यकार उम्मीद नहीं हारना चाहता।
पुस्तक में पिता-माता को याद करते हुए क्रमशः 'खेवनहार पिता' और 'आँचल का अहसास' शीर्षक की अच्छी कविताएँ हैं। पिता का होना जहाँ बरगद की छाँव समान हैं, वहीँ माँ का होना जीवन में हरियाली के होने की तरह है।
इन सबके अलावा पुस्तक में हिंदी, बाल मजदूरी, होली, राखी, नव वर्ष, दीपावली, जन्माष्टमी, वेलेंटाइन डे और ऐसे ही बहुत से विषयों पर रचनाएँ पढ़ने को मिलती हैं।
अलग-अलग विषयों और अलग-अलग विधाओं को अपने में समेटे यह पुस्तक एक अच्छी कृति बन पड़ी है। लेकिन कहीं-कहीं रचनाओं में परिपक्वता की कमियाँ भी महसूस हुईं। गीत तथा दोहे छंदों में होने के बावजूद भी अपने प्रवाह में बाधित हो रहे हैं। कठिन तत्सम शब्दों के आधिक्य से भी कई स्थानों पर बोझिलता आई है।
प्रस्तुत पुस्तक में हमारे आसपास की कई चीज़ों व कई मुद्दों पर अच्छी अच्छी रचनाएँ हैं, जो पुस्तक को पठनीय बनातीं हैं। एक सुंदर व सफल काव्य संकलन के लिए इसके रचनाकार ओमप्रकाश नौटियाल जी को हमारे समय के चर्चित कवि डॉ. कुंअर बेचैन के पुस्तक की भूमिका में लिखे इन शब्दों के साथ बहुत बहुत बधाईयाँ और भविष्य के लिए शुभकामनाएँ-
"शाश्वत होते हुए भी समसामयिक और समसामयिक होते हुए भी शाश्वत हैं नौटियाल जी की कविताएँ......"
समीक्ष्य पुस्तक- पीपल बिछोह में (काव्य संग्रह)
रचनाकार- श्री ओमप्रकाश नौटियाल
संस्करण- प्रथम, 2016
प्रकाशन- शुभांजलि प्रकाशन, कानपुर (उ.प्र.)
उपलब्धता :Flipcart, Amazon,लेखक
- के. पी. अनमोल
Monday, August 8, 2016
Saturday, August 6, 2016
बेकारी
देश के एक प्रमुख नेता ने सड़क पर काँवडियों की निरंतर बढ़ती भीड पर अपनी प्रतिक्रिया दी।उनके भावों का दोहा रुपान्तरण कुछ इस प्रकार है।
_
काँवड़ियों की सड़क पर, बढ़े भीड़ प्रतिवर्ष
बेकारी अब छू रही , नित्य नए उत्कर्ष !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
_
काँवड़ियों की सड़क पर, बढ़े भीड़ प्रतिवर्ष
बेकारी अब छू रही , नित्य नए उत्कर्ष !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
Wednesday, August 3, 2016
Monday, August 1, 2016
Saturday, July 30, 2016
Friday, July 29, 2016
Saturday, July 23, 2016
वह लड़की -
ओंम प्रकाश नौटियाल (सत्य घटना पर आधारित)
मात्राभार २४,२८
-1-
लावण्या किशोरी एक
रहने पडोस में आई
लिए विरक्त सा चेहरा
अजब सी मुर्दनी छाई
न जाने किन खयालों में, वह खोयी सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-2-
किसी से बात न करती
सुनी न गुनगुनाती वह
सदा अनमनी सी रहती
न देखी मुस्कराती वह,
अकेली बैठ कोने में, कुछ सोयी सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-3-
शीतल उदास मौसम में
पवन जब सनसनाती थी,
कभी जुल्फ़ें झटकते ही
चूड़ियाँ खनक जाती थी,
दुपट्टे से ढ़क अंखियाँ, बस रोयी सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-4-
रोशन उसके कमरे को
किसी ने पर नहीं देखा
तिमिर दूर करने का भी
रहा हो मन, नहीं देखा,
अँधेरों को अँधेरों में ,वह पिरोइ सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-5
एक दिवस उसके घर से,
रूदन सा स्वर सुन कर के,
कौतुहलवश उधर झाँका
घर की छ्त के उपर से,
खाली था पड़ा कोना, वह जहाँ सोयी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-6-
उस दिन सुन ली मैंने जो
असीम करुण कहानी थी,
उसके जाने के पीछे,
सचाई वहशियानी थी,
गई खुद छोड दुनिया को, जो खोयी सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-7-
इक दानवी दरिन्दे ने,
दिया था घाव अति गहरा
प्रताडित भी किया उसको
बुझा मासूम सा चेहरा
जग से ली विदा उसने, जो प्रमोही सी रहती थी
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित- सर्वाधिकार सुरक्षित)
बड़ौदा ,मोबा.9427345810
(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन" से )
मात्राभार २४,२८
-1-
लावण्या किशोरी एक
रहने पडोस में आई
लिए विरक्त सा चेहरा
अजब सी मुर्दनी छाई
न जाने किन खयालों में, वह खोयी सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-2-
किसी से बात न करती
सुनी न गुनगुनाती वह
सदा अनमनी सी रहती
न देखी मुस्कराती वह,
अकेली बैठ कोने में, कुछ सोयी सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-3-
शीतल उदास मौसम में
पवन जब सनसनाती थी,
कभी जुल्फ़ें झटकते ही
चूड़ियाँ खनक जाती थी,
दुपट्टे से ढ़क अंखियाँ, बस रोयी सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-4-
रोशन उसके कमरे को
किसी ने पर नहीं देखा
तिमिर दूर करने का भी
रहा हो मन, नहीं देखा,
अँधेरों को अँधेरों में ,वह पिरोइ सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-5
एक दिवस उसके घर से,
रूदन सा स्वर सुन कर के,
कौतुहलवश उधर झाँका
घर की छ्त के उपर से,
खाली था पड़ा कोना, वह जहाँ सोयी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-6-
उस दिन सुन ली मैंने जो
असीम करुण कहानी थी,
उसके जाने के पीछे,
सचाई वहशियानी थी,
गई खुद छोड दुनिया को, जो खोयी सी रहती थी,
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-7-
इक दानवी दरिन्दे ने,
दिया था घाव अति गहरा
प्रताडित भी किया उसको
बुझा मासूम सा चेहरा
जग से ली विदा उसने, जो प्रमोही सी रहती थी
इक उदास सी पीडा मानो ढोयी सी रहती थी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित- सर्वाधिकार सुरक्षित)
बड़ौदा ,मोबा.9427345810
(मेरी पुस्तक "साँस साँस जीवन" से )
Thursday, July 21, 2016
Tuesday, July 19, 2016
ख़ास मुलाक़ात
प्रज्ञा प्रकाशन, सांचोर द्वारा
प्रकाशित
जुलाई 2016
अंक -16
अंक -16
प्रधान संपादक : के.पी. 'अनमोल'
संस्थापक एवं संपादक: प्रीति 'अज्ञात'
तकनीकी संपादक : मोहम्मद इमरान खान
ख़ास-मुलाक़ात
बहुआयामी
व्यक्तित्व के धनी श्री ओम प्रकाश नौटियाल से ख़ास मुलाक़ात
ओ.एन.जी.सी. से
महाप्रबंधक (इलैक्ट्रोनिक्स एवं कम्यूनिकेशन्स) के पद से सेवा निवृत होने के बाद
साहित्य सेवा, शिक्षण, परामर्श एवं समाज सेवा में समर्पित श्री ओम प्रकाश नौटियाल
का जन्म उत्तराखंड के देहरादून जिले के कौलागढ ग्राम में 16 जनवरी 1947 को एक
साधारण सौम्य परिवार में हुआ। मूलतः उत्तराखण्ड वासी, किंतु कुछ वर्षों से बड़ौदा
इनका निवास-स्थान है।
सहज भाव से,
गहरी बात कह जाना इनकी रचनाओं की मुख्य विशेषता है। नौटियाल जी की अधिकांश
रचनाएँ आम आदमी के संघर्ष, सामाजिक विसंगतियों, समस्याओं, बिगडते हुए राजनीतिक
परिवेश, मानवीय रिश्तों, भारतीय संस्कृति के बदलते मूल्यों पर केन्द्रित हैं।
दोहे, नवगीत, छंद और छंदमुक्त शैली पर आधारित इनकी यथार्थवादी कविताओं को पाठकों
और साहित्यविदों से भरपूर स्नेह और प्रशंसा मिली है।
साहित्य से गहन
जुड़ाव के साथ-साथ, सेवानिवृति के बाद कक्षा बारह तक के बच्चों को गणित और
भौतिकी तथा प्रबंधन के विद्यार्थियों को प्रबंधन पढ़ाना इन्हें बहुत प्रसन्नता देता
है। बचपन से ही खेलकूद में विशेष रूचि लेने वाले नौटियाल जी, उत्तराखंड के निर्माण
से पूर्व शतरंज में उत्तर प्रदेश राज्य की अंतर-जिला प्रतियोगिताओं में देहरादून
जिले का कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इन दिनों वह गुजरात व देश की बहुत सी
साहित्यिक, तकनीकी एवं सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से अपना सतत योगदान दे रहे हैं।
सरल स्वभाव, मृदुभाषी, संवेदनशील और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री ओम प्रकाश
नौटियाल जी से प्रीति 'अज्ञात' के वार्तालाप के दौरान उनके जीवन के विविध पहलुओं और
कृतित्व पर खुलकर चर्चा हुई।
प्रीति 'अज्ञात'- 'पीपल
बिछोह में' के प्रकाशन के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई! सुन्दर मुखपृष्ठ, आपकी
काव्य-रचनाओं और विविध शैली से सुसज्जित यह पुस्तक पाठकों का ध्यान आकर्षित कर पाने
में सफल रही है। अपनी पूर्व प्रकाशित पुस्तकों के बारे में जानकारी देकर हमारे
पाठकों को लाभान्वित करें।
नौटियाल जी- 'पीपल बिछोह
में' से पहले मेरी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं,'साँस साँस जीवन' (काव्य
संग्रह ) एवं 'पावन धार गंगा है'। 'साँस साँस जीवन' में मेरी 83 और मेरी पत्नी
अर्चना नौटियाल जी की 5 कविताएं हैं। सामाजिक सरोकार और आम आदमी के जीवन से जुड़ी
इन कविताओं में जीवन के सभी रंग हैं। इस पुस्तक की भूमिका डा. सरोजिनी प्रीतम जी ने
लिखी है।
'पावन धार गंगा है' में मेरी
56 कविताएं हैं। इन कविताओं में अधिकांश के विषय सामाजिक हैं और हम सबके जीवन से
जुड़े हैं। इस पुस्तक की भूमिका डा. सुनीता ’यदुवंशी’ जी ने लिखी है। इसके
अतिरिक्त संयुक्त संकलन में सात पुस्तकें निकली हैं। इन पुस्तकों की सभी
रचनाएँ उपरोक्त तीन पुस्तकों में उपलब्ध हैं।
प्रीति 'अज्ञात'- रचनाएँ
लिखते समय आपके मस्तिष्क में प्रस्तुतीकरण को लेकर किस प्रकार के विचार घुमड़ते
हैं? आप कविता के मुख्य अवयव किन्हें मानते हैं?
नौटियाल जी- मेरी अधिकतर
रचनाएँ सामाजिक विसंगतियों, बदलते सामाजिक मूल्यों, व्याप्त भ्रष्टाचार, मानवीय
रिश्तों, प्रकृति आदि पर आधारित होती हैं । लिखते समय मेरे मष्तिष्क में सदैव यह
बात रहती है कि कविता आम आदमी तक पहुंच सके और वह उनके कथ्य का अर्थ आत्मसात कर
सके। कोई भी रचना केवल साहित्यकारों व भाषा विशेषज्ञों के पढने समझने और विश्लेषण
करने के लिए ही नहीं होती, उसका असली उद्देश्य तभी पूर्ण होता है जब उसे आम पाठक
समझ सके। हाँ रचना, यदि कविता है तो उसमें काव्यत्मकता अवश्य होनी चाहिए । पाठक को
समझ आने के साथ-साथ उसमें रसानुभुति भी होनी चाहिए, तभी कविता दिल में उतर सकती है
और अपनी छाप छोड़ सकती है । लावण्य ,लयात्मकता और गेयता भी कविता के वांछित अवयय
हैं।
प्रीति 'अज्ञात'- आपकी
साहित्यिक यात्रा के प्रारम्भ का श्रेय आप किसे देना चाहेंगे?
नौटियाल जी-
गर्मी की छुट्टियों में पिता जी शहर के पुस्तकालय से प्रेमचंद, वृंदावन लाल वर्मा,
बंकिम चन्द्र, शरत चंद्र, दिनकर, जय शंकर प्रसाद जी आदि की पुस्तकें लाकर देते थे।
मैं पुस्तक एक दिन में ही पढकर अगले दिन उनसे दूसरी लाने का आग्रह करता था। कभी कभी
उन्हें कुछ संदेह भी होने लगता था कि मैं पुस्तकें पढता भी हूँ या नहीं। कई बार
शायद यही परखने के लिए वह मुझसे पुस्तक का निचोड़ सुनाने के लिए भी कहते थे। दरअसल
मैं पुस्तक उसी दिन रात में या फिर अगले दिन सुबह तक उनके कार्यालय जाने से पहले
समाप्त कर उन्हें लौटा देता था, नई पुस्तक लाने की विनती के साथ। पिताजी सोचते थे
कि मैं छुट्टियों में कहीं इधर-उधर आवारागर्दी में समय न बिताऊं इसलिए याद से वह
शाम को मेरे लिए एक पुस्तक ले आते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि मैंने दसवी तक ही
हिंदी के बहुत से प्रतिष्ठित लेखकों की पुस्तकें पढ ली थी। प्रेमचंद के तो लगभग सभी
उपन्यास और कहानियाँ मैं तब तक पढ़ चुका था। पिताजी और माताजी सदैव ही मेरे प्रेरणा
स्त्रोत रहे हैं और साहित्य के प्रति बचपन से ही इतनी गहरी रूचि शायद उन्हीं की
कृपा से पैदा हुई है। मेरी माताजी शिक्षिका थी और पढने की बेहद शौकीन। छ्न्दों का
भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। कभी-कभी अपने जीवन के कुछ रोचक संस्मरण लिखती और सुनाती
थीं । उनकी स्मरण शक्ति भी कमाल की थी ।
मुझे याद है
मैंने अपने आप पुरानी नोटबुक्स के कोरे पृष्ठ निकाल कर एक डायरी बनाई थी और उसमें
अपनी कविताएं लिखता था । मुझे बेहद दुख हुआ, जब वह डायरी कहीं खो गई। मुझे अब भी उन
कविताओं को पढने की बडी इच्छा है। मेरी साहित्यिक यात्रा शायद तभी स्कूल जीवन से
शुरू हो गई थी ।
प्रीति 'अज्ञात'- ओह, काश
आपकी डायरी मिल जाए! आजकल लिखने से अधिक दुरूह किसी अच्छे प्रकाशन से प्रकाशित
करवाना है। लेकिन आपका इस सन्दर्भ में अत्यन्त सुखद एवं रोचक अनुभव रहा
है।
नौटियाल जी- हाँ, सचमुच!
यादगार अनुभव रहा है। मेरे प्रकाशक कानपुर के शुभांजलि प्रकाशन के डा. सुभाष चन्द्र
हैं जिनके लिए प्रकाशन मात्र व्यवसाय ही नही है बल्कि उन्हें हिंदी साहित्य से
सचमुच दिल से प्रेम है। कुछ वर्ष पूर्व फ़ेसबुक और किसी पत्रिका में मेरी कविताएं
पढकर उन्होंने मुझे बधाई दी और न जाने क्यों मेरे प्रशंसक बन गए और तब से लगातार
मेरे संपर्क में हैं । मेरी दूसरी पुस्तक 'पावन धार गंगा है' का विमोचन तीन वर्ष
पूर्व बड़ौदा की प्रेमानंद साहित्य सभा के सभागार में हुआ था। डा. सुभाष से मैं कभी
मिला नहीं था । विमोचन में भी मैंने उन्हे यह सोचकर नहीं बुलाया कि कानपुर से इतनी
लम्बी यात्रा करके छोटे से कार्यक्रम के लिए इतने कम नोटिस पर उनका आना संभव नही
होगा, फ़िर व्यर्थ की औपचारिकता क्यों की जाए। कार्यक्रम छः बजे प्रारंभ होना था।
मैं एक घन्टा पहले तैयारी का जायजा लेने पहुंच गया। हॉल में सब आवश्यक तैयारी लगभग
हो चुकी थी, इस वक्त भीतर कोई नहीं था । एक युवक सबसे अगली कतार में अकेला बैठा था।
मुझे देखते ही उठ खडा हुआ और बोला 'सर मुझे पहचाना?" मुझे स्टेज का बारीकी से
निरीक्षण करते देख कर शायद वह मुझे पहचान गया था किंतु मैंने उसे नहीं पहचाना इसलिए
इंकार में सिर हिला दिया। वह बोला, 'मैं शुभांजलि प्रकाशन से सुभाष हूँ।' मुझे उनके
अचानक पहुंच जाने से खुशी तो बहुत हुई, साथ ही बड़ा ताज्जुब हुआ कि इन्हें कैसे
जानकारी मिली! इतनी दूर से कैसे आज अचानक आ गए। इसी जिज्ञासा में मन में कई प्रश्न
कौंध गए जो मैंने एक साथ उन पर दाग दिए। सुभाष ने कहा , 'सर, आपने कुछ दिन पूर्व
फ़ेस बुक पर कहीं अपने कमेन्ट में इसकी चर्चा की थी, मैंने तभी बड़ौदा जाने की ठान
ली थी। इतने कम समय में आरक्षण तो नहीं मिला। आज ही दिन में पहुँचा हूँ। रात 11बजे
एक ट्रेन है, उससे वापस चला जाऊँगा।और हाँ, मैं 25 हार्ड बाउन्ड पुस्तकें गिफ्ट रैप
करके लाया हूँ, विमोचन में पेपर बैक से मजा नहीं आता। ' सुभाष जी का यह जज्बा मुझे
कहीं गहरे तक छू गया। विमोचन के बाद 10 बजे मैं उन्हें घर लाया और भोजन आदि के
पश्चात स्टेशन छोड दिया।
प्रीति 'अज्ञात'- आपकी लेखनी
की गति को देखते हुए आशा है कि निकट भविष्य में आपकी नई पुस्तक पाठकों के
समक्ष होगी।
नौटियाल जी- जी, प्रीति
जी। आगामी वर्ष में मेरी दो पुस्तकें प्रकाशित करने की योजना है। एक में तो मेरे
दोहों, मुक्तक कुण्डलियों और घनाक्षरी का संकलन होगा और दूसरी में मेरी व्यंग्य तथा
हास्य कविताएं संकलित होंगी।
प्रीति 'अज्ञात'- प्रारम्भ
से ही आपकी खेलकूद में रूचि रही है। साहित्य से इतर, अन्य कोई गतिविधि, शौक़ या
संस्मरण भी जरूर होगा; जो अब भी चेहरे पर मुस्कान ला देता है।
नौटियाल जी- खेल
कूद का शौक बचपन से ही था। माँ सरस्वती की सदैव कृपा रही, इसलिए पाठशाला की पढ़ाई
के अतिरिक्त घर में पढ़ाई करने की विशेष आवश्यकता महसूस नहीं होती थी। खेल कूद में
अधिकांश समय निकलता था। हम लोग क्रिकेट, फुटबाल, बैड़मिंटन, गुल्ली डंडा, शतरंज,
कैरम आदि सभी खेल खेलते थे। उस जमाने में सभी बच्चों का पाठशाला के बाद का समय खेल
के मैदान या किसी के घर के चौक या आँगन में ही बीतता था।
गर्मी की
छुट्टियों में जब पिताजी ऑफिस चले जाते थे, तो पूरा दिन मस्ती में गुजरता था। नहर
में नहाना, बागों में लीची, आम, जामुन, आड़ू आदि फलों की तलाश में घूमना और फल
चुराना हमारे प्रिय शौक थे। फल चुराने और फल मालिकों की गाली खाने का रोमांच फल
खाने से भी अधिक मजेदार लगता था। कच्चे पक्के आडू, अमरूद, प्लम खाकर दाँत खट्टे हो
जाते थे, जिससे शाम को रोटी चबाने में तकलीफ होती थी।
वयस्क होने पर
गाँव की गतिविधियों में रुचि लेने का दायरा बढ गया । हमारे गाँव में हर साल दशहरे
के अवसर पर रामलीला होती थी, जिसे हम सब सभी भाई बहन बिना नागा हर दिन देखते थे ।
बडा होने पर रामलीला की अन्य गतिविधियों जैसे समिति का गठन, चंदा वसूली, रिहर्सल
आदि में भी मेरी रुचि और कुछ भागेदारी रहने लगी। कुछ इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि
पिताजी को यह सब विशेष पसंद नहीं था, फिर रामलीला अक्टूबर में होती थी इसलिए पढाई
का भी हर्ज होता था। फिर भी मैं चोरी छुपे कुछ समय निकाल कर रिहर्सल में बैठ जाता
था। गाँव में रामलीला के दौरान बडे किस्से होते थे। एक साल किसी लडके श्याम( असली
नाम नहीं है) को उसकी इच्छानुसार पार्ट नहीं मिला, उस पात्र के अभिनय के लिए किसी
दूसरे का चयन कर लिया गया। दो दिन बाद पता चला कि राम नाटक के संवादों की हस्तलिखित
मोटी नोट बुक गायब है। सभी को संदेह था कि यह श्याम का काम है, पर वह साफ मुकर गया।
अब बहुत मुश्किल हो गई। रिहर्सल का काम रुक गया। वह पुस्तक कहीं उपलब्ध नहीं हुई
क्योकिं शायद कई पुस्तकॊं का सहारा लेकर और अन्य जगहों के लोक प्रिय संवाद घुसा कर
इस हस्तलिखित पुस्तक का जन्म हुआ था। मैंने समिति के सदस्यों से कहा कि सात दिन आप
लोग केवल गानों की रिहर्सल करो मैं दूसरी पुस्तक तैयार करता हूँ । किसी को इस बात
पर भरोसा तो नहीं हुआ पर और कोई उपाय न होने के कारण अनमने मन से सब तैयार हो गए।
सात दिन मैंने अपनी बहनों, मित्रों और अपनी याददाश्त के बूते पर हाथ से लिखकर
पुस्तक तैयार कर दी। हर साल बिना नागा रामलीला देखना और फिर महीनों तक घर में वही
संवाद बोलना, गाने गाना इसमें बहुत सहायक सिद्ध हुआ। यह शायद मेरी साहित्यिक
यात्रा का एक बडा पड़ाव था, जिससे मुझे बहुत आत्मविश्वास मिला। पुस्तक देखकर और
पढकर सबके चेहरे खिल गए, सबने अपनी याद से छोटे-मोटे सुझाव दिए, जिससे संवादोंं में
और दम आ गया। रामलीला संपन्न होने के बाद श्याम ही एक ऐसा शख्स था जो सबसे कह रहा
था कि संवादों में मजा नहीं आया, बिल्कुल ही बदले हुए थे। उसकी इस हरकत से उस पर
लगे पुस्तक चुराने के आरोप को और मजबूती मिली।
प्रीति 'अज्ञात'- हा,हा,हा...! लेकिन श्याम जी की इस करनी
से एक उदीयमान लेखक की प्रतिभा पहली बार निखरकर
आई। उनके प्रति धन्यवाद तो बनता है।
नौटियाल जी- हा,हा,हा...! चलिए, आपकी पत्रिका के माध्यम से
उनका हार्दिक धन्यवाद!
मेरा छोटा भाई
,जो मुझसे लगभग 14 वर्ष छोटा है ,ONGC,अहमदाबाद में उपमहाप्रबंधक के पद पर कार्यरत
है। अपने कार्य में महारथ हासिल होने के साथ-साथ उसे फोटोग्राफी, पाक कला और लिखने
का भी शौक है। यद्यपि कार्यालय की व्यस्तता के कारण वह अपने इन शौक पर अभी समय
मुश्किल से ही दे पाता है। हर विषय जो उसे रुचिकर लगता है उसके विषय का वह गहन
अध्ययन करता है। यह बात मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि उसके जैसे तकनीकी ज्ञान
वाले लोग मुझे विरले ही मिले हैं । विशेषता यह है कि अपने ज्ञान को औरों के साथ
बहुत ही रोचक और सरल अंदाज में साझा करने की उसमें बेजोड़ प्रतिभा है। किंतु इन
सबसे उपर जो एक गुण उसमें है वह है मुश्किल के वक्त अपने मित्रों, रिश्तेदारों की
सहायता करना। मेरी पिछले चार वर्षॊ में अपोलो अस्पताल, अहमदाबाद में दो न्यूरो
सर्जरी हुई। मेरे भाई ने मेरी सर्जरी से पूर्व, उस दौरान और तत्पश्चात मेरी बडी
जिम्मेदारी और आत्मीयता से पूरी देखभाल की। मेरे छोटे भाई की पत्नी, मेरी पत्नी की
छोटी बहन भी है। शांत स्वभाव की मृदुभाषी और संतोषी शालिनी नौटियाल में अपनी बड़ी
बहन के भी सभी गुण हैं। भाई के परिवार में एक लड़की और एक लड़का है। लड़की NIT
सूरत से B.E.करने के बाद आजकल USA में M.S. कर रही है और वहाँ अपनी अतुल्य प्रतिभा
के बल पर वह सभी को प्रभावित करने में सफल रही है परिणाम स्वरूप उन्हें वहाँ
छात्रवृति के साथ साथ बहुत ही चुनौतीपूर्ण प्रोजैक्ट्स पर काम करने का अवसर मिल रहा
है। सातवीं कक्षा में पढने वाला दिव्यांशु नौटियाल भी अपने पिता, माता और बहन की
तरह बेहद प्रतिभासंपन्न है।
प्रीति 'अज्ञात'-
आपने कई डिग्रियाँ अर्जित की हैं तथा विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य भी किया।
शिक्षा के प्रति इतनी रूचि एवं कार्य के प्रति आपका समर्पण युवाओं के लिए प्रेरणा
है।
नौटियाल जी-
पिताजी शिक्षा पर बहुत जोर देते थे। सभी भाई- बहनों को उन्होंने उच्च शिक्षा
दिलवाई। लडकियों की शिक्षा के भी वह पक्षधर थे, नतीजतन मेरी सभी बहनों ने भी शिक्षा
प्राप्ति के बाद अध्यापन कार्य किया और कर रही हैं। मेरे ऊपर प्रभु की विशेष कृपा
रही और अव्वल रहने के कारण मुझे हमेशा शिक्षा विभाग से अच्छी खासी रकम छात्रवृति के
रूप में मिलती रही । डी ए वी कालेज से भौतिक विज्ञान में प्रथम श्रेणी में
स्नातकोत्तर परीक्षा उतीर्ण करने के पश्चात मैंने नौकरी के लिये साक्षात्कार दिये
और कई जगहॊं से नियुक्ति पत्र भी मिला। ओ ऐन जी सी में भी मैंने लिखित परीक्षा में
सफलता प्राप्त की और तत्पश्चात हुए साक्षात्कार के बाद मुझे नियुक्ति पत्र मिल गया।
बहुत सोचने- विचारने और मित्रों, संबंधिंयों से विचार विमर्श के बाद मैंने
विभाग में सर्विस करना तय किया । उसका कारण एक तो यह था कि वहाँ वेतन अपेक्षाकृत
कुछ अधिक था और बहनों की शादी वगैरह की जिम्मेदारी को समझते हुए यह एक कारंण निश्चय
ही महत्वपूर्ण था। दूसरे नये क्षेत्र की चुनौतियों और विकास की संभावनाओं ने भी इस
नए विभाग की ओर आकर्षित किया। ओ ऐन जी सी में मुझे पाँच वर्ष का बौण्ड देना था,
जिसकी रकम लौटाना मेरे लिये संभव नही था। इसलिये इस दौरान एक दो बहुत अच्छी
नियुक्ति होने पर भी मैं यहीं स्थायी होकर रह गया। इसका मुझे कोई अफ़सोस नही है
बल्कि यदि अतीत की ओर नजर करता हूँ तो पाता हूँ कि ओ ऐन जी सी ने केवल आर्थिक संबल
ही प्रदान नहीं किया बल्कि मेरे व्यक्तित्व को भी बहुआयामी और मजबूत बनाया। इस
संस्थान में रहते हुए मैंने पार्ट टाइम कक्षाओं द्वारा गणित में भी स्नाकोत्तर
परीक्षा उत्तीर्ण की और तत्पश्चात मैनेजमैंट में भी स्नाकोत्तर डीग्री हासिल की। ओ
ऐन जी सी में मैं महा प्रबंधक (इलैक्ट्रोनिक्स और टेलीकम्यूनिकेशंस) के पद से सेवा
निवृत हुआ।यहाँ के कार्यकाल में बहुत से बडॆ प्रोजेक्ट्स कार्यान्वित किये। समुद्र
सर्वेक्षण में पार्टी चीफ़ की भूमिका निभाई, अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों के कई
महत्वपूर्ण दौरे किये। असम, गुजरात, महाराष्ट्र समेत कई स्थानों पर नियुक्ति रही।
विभिन्न संस्कृतियों को देखने-समझने का अवसर मिला। मैनें कुछ अवधि के लिये कम्पूटर
सोसायटी ऑफ इन्डिया के देहरादून चैप्टर के चेयरमैन का पदभार भी संभाला। इंडियन
इन्सटिट्यूट ऑफ इलेक्ट्रोनिक्स एण्ड टेलीकम्यूनिकेशन्स इंजीनियर्स, बड़ौदा केन्द्र
का भी चेयरमैन रहा। इसके आतिरिक्त शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्रीय विद्यालय नजीरा,
असम के चेयरमैन पद का कार्यभार भी संपन्न किया। यह सब इसलिये संभव हुआ क्योंकि शायद
मैं लोगों का विश्वास जीतने में सफल रहा जो कि किसी भी क्षेत्र में आगे बढने के
लिये अत्यंत आवश्यक है ।अपने कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण, साथियों के प्रति सीधा
सच्चा और ईमानदार व्यवहार, सतत ज्ञान अर्जित करने की जिज्ञासा के माध्यम से मैं
अपने को औरों से कुछ अलग रखने में सदैव प्रयत्नशील रहा और बहुत हद तक सफल भी
रहा।
प्रीति 'अज्ञात'-
अधिकांशत: यह होता है कि हम सब व्यवस्था को दोष देते हैं। जो लोग समय का रोना
रोते रहते हैं, ये वही लोग हैं जो हर माह छह उपलब्ध छुट्टियों के अलावा चार और लेते
हैं। आपका जीवन सदैव अनुशासित रहा है, इसलिए इस मुद्दे पर आपकी राय जानना
चाहूंगी।
नौटियाल जी- कुछ
खास बातें जिन्होंने जीवन संघर्ष में मेरी बहुत सहायता की है, वह है समय की
पाबन्दी, कार्य के प्रति पूरी निष्ठा और ईमानदारी तथा हर कार्य में व्यक्तिगत रूप
से डूब जाने की प्रवृति। काम, व्यक्ति को बहुत कुछ सिखाता है। मैंने अकसर सरकारी
कर्मियों को कहते सुना है कि अमुक काम उनका नहीं है वह क्यों करें! उन्हें उसे करने
का वेतन नहीं मिलता है। कर्मचारियों को यह तो बिल्कुल स्पष्ट रहता है कि कौन सा
कार्य उनका नहीं है किंतु उन्हें क्या करना है इस बारे मे वह हमेशा अनभिज्ञ पाये
गये हैं । वास्तव में कार्य केवल इसलिये ही नहीं करना चाहिये कि उसकी एवज में पैसे
मिलते हैं । काम करने में न केवल हमॆं अति संतोष की अनुभुति होती है बल्कि हर कार्य
हमें अधिक आत्मविश्वासी, सुद्दढ बनाता है तथा बहुत कुछ सिखाता है व हमारे व्यक्तितव
में निखार लाता है। सर वाल्टर ने कहा है -"परिश्रम हमें तीन आदतों से उबारता है ऊब,
खराब आदत और जरूरत।" मैंने सदैव इसी सिद्धांत का पालन किया है और इससे मुझे जीवन
पथ पर चलना काफी सुगम हुआ है। अपने कार्यसंबंधी बातों की संपूर्ण और विस्तृत
जानकारी , पहल करने का साहस और इच्छाशक्ति ऐसे गुण हैं, जिन्हें हर कोई सराहता है
तथा जब भी कोई चुनौतीपूर्ण काम आता है आप उसका सामना करने वालों की कतार में अग्रणी
होते हैं।
प्रीति 'अज्ञात'- जी, सहमत
हूँ। आत्मसंतुष्टि भी इसी से प्राप्त होती है। हस्ताक्षर के पाठकों के लिए आपका
सन्देश।
नौटियाल जी- अपनी
एक कविता 'पीछे वाली पहाडी' से उद्धृत अंश द्वारा मैं पाठकों से यही कहना चाहूँगा
-
"...धूप को पाना
है
तो पहाडी के पीछे
से
स्वयं आना होगा
बाहर,
तुम्हारे
लिए
कोई वहाँ धूप
लेकर आयेगा,
मुझे शंका
है!"
------------------------------
संक्षिप्त
परिचय
ओंम प्रकाश
नौटियाल
जन्म स्थान
देहरादून ,उत्तराखण्ड
जन्म 16 जनवरी
1947
M.Sc (Phy.)
,M.Sc.(Maths), MBA
FIETE, SM-CSI,
M-ISTD, SM-IEEE, SM-EMS
EX. General
Manager (ONGC)
EX. Chairman
,IETE ,Vadodara Centre
EX. Chairman,
CSI , Dehra Dun Chapter
संप्रति: साहित्य
सेवा, शिक्षण, परामर्श एवं समाज सेवा
साहित्य सेवा:
लगभग 600 कविताएं, विभिन्न विषयों पर अनेकों लेख, कहानी, राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं
में प्रकाशित
प्रकाशित
पुस्तकें: साँस साँस जीवन (काव्य संग्रह ), पावन धार गंगा है ( काव्य संग्रह ),पीपल
बिछोह में ( काव्य संग्रह )
शीघ्र प्रकाश्य:
दुक्के, चौके, छक्के (काव्य संग्रह )
संयुक्त संकलन:
त्रिसुगंधि ( काव्य संग्रह ),अंजुरी (काव्य संग्रह ), तेरी यादें, काव्यमाल
आदि
संपर्क-सूत्र: 301, मारुति फ्लैट्स, गायकवाड
कम्पाउन्ड
ओ.एन.जी.सी के सामने,
मकरपुरा रोड, वडोदरा
गुजरात-390009
दूरभाष:
0265-2635266
मोबाइल:
9427345810
E-mail: ompnautiyal@yahoo.com
- ओंम प्रकाश नौटियाल
Thursday, July 14, 2016
Saturday, July 9, 2016
Tuesday, July 5, 2016
Thursday, June 30, 2016
व्यथित बड़ी है क्वीन
नीला नभ नत श्रंग पर, मनभावन है सीन
पर इस अंध विकास से, व्यथित बड़ी है क्वीन
व्यथित बड़ी है क्वीन , कंक्रीट भार ढ़ो रही
हरियाली को हार , ज़ार ज़ार रो रही
इतनी खाई चोट , रूप पर बहुत सजीला
शंकर जी का वास , कंठ जिनका है नीला
-ओंम प्रकाश नौटियाल
पर इस अंध विकास से, व्यथित बड़ी है क्वीन
व्यथित बड़ी है क्वीन , कंक्रीट भार ढ़ो रही
हरियाली को हार , ज़ार ज़ार रो रही
इतनी खाई चोट , रूप पर बहुत सजीला
शंकर जी का वास , कंठ जिनका है नीला
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Sunday, June 26, 2016
Thursday, June 23, 2016
Wednesday, June 22, 2016
Tuesday, June 21, 2016
योग
देश वही मुद्दे वही , चही व्यथित मन लोग
आज एकता सूत्र में , बाँध गया पर योग !!!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
आज एकता सूत्र में , बाँध गया पर योग !!!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Sunday, June 12, 2016
Friday, June 10, 2016
Wednesday, June 8, 2016
Saturday, June 4, 2016
Friday, June 3, 2016
Wednesday, June 1, 2016
Saturday, May 28, 2016
Friday, May 27, 2016
Sunday, May 22, 2016
Sunday, May 15, 2016
Saturday, May 14, 2016
Friday, May 13, 2016
Thursday, May 12, 2016
Monday, May 9, 2016
Saturday, May 7, 2016
मेरे कुछ और दोहे
04.05.2016(FB)
नित्य सुने जनतंत्र में,ऐसे काण्ड अनेक ,
सत्य बैठकर सामने ,रोता घुटने टेक !!
03.05.2016(FB)
जिन कानन गूँजी कभी ,देवों की आवाज ,
देवभूमि के वन वही ,धू धू जलते आज !!
29.04.2016(FB)
पीपल छोड़ा गाँव का ,फिरे भटकते 'ओम ',
दाना पानी ढूंढते ,ज्यों खग नापें व्योम !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
नित्य सुने जनतंत्र में,ऐसे काण्ड अनेक ,
सत्य बैठकर सामने ,रोता घुटने टेक !!
03.05.2016(FB)
जिन कानन गूँजी कभी ,देवों की आवाज ,
देवभूमि के वन वही ,धू धू जलते आज !!
29.04.2016(FB)
पीपल छोड़ा गाँव का ,फिरे भटकते 'ओम ',
दाना पानी ढूंढते ,ज्यों खग नापें व्योम !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Thursday, April 21, 2016
"पृथ्वी दिवस "
"पृथ्वी दिवस " की हार्दिक शुभकामनाएं !!
-
पृथ्वी का छीन पहले, हरा भरा संसार
दिन इक नाम कर उसके, करते अब उपकार !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
-
पृथ्वी का छीन पहले, हरा भरा संसार
दिन इक नाम कर उसके, करते अब उपकार !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
दून में हूं आजकल
(21 अप्रैल 2016) -ओंम प्रकाश नौटियाल
वर्षों से बन रहे इन
उड़न पुलों के पास हूं
मैं दून में हूं आजकल
थोड़ा सा उदास हूं
उपवनों की वह सुगंध
अब लुप्त हो गई है
साँसों में धूल भरती
इस हवा से हताश हूं !थोड़ा सा उदास हूं !!!
वर्षों से बन रहे इन
उड़न पुलों के पास हूं
मैं दून में हूं आजकल
थोड़ा सा उदास हूं
उपवनों की वह सुगंध
अब लुप्त हो गई है
साँसों में धूल भरती
इस हवा से हताश हूं !थोड़ा सा उदास हूं !!!
Wednesday, April 13, 2016
Sunday, April 10, 2016
Wednesday, April 6, 2016
Sunday, April 3, 2016
Friday, April 1, 2016
Subscribe to:
Posts (Atom)