-1-
सत्य किसी ने यह कहा, नहीं झूठ के पैर
इस कारण ना कर सकें , नेता पैदल सैर !
-2-
होली में कैसे खिले, उन शक्लों पर रंग
जिन पर पहले ही चढ़ी , झूठ कपट की जंग !
-3-
महँगाई को क्या पता?,न्यूटन का सिद्धांत,
नीचे आती हो कभी,याद नहीं दृष्टान्त,
-4-
तूती बोले झूठ की, यही सनातन सत्य,
इसी भरोसे चल रहे, दरबारों के कृत्य !
-5-
चुप देखे बूढ़ी धरा, मानव की करतूत,
जन्मदायिनी को किया, तिरस्कृत, शिलीभूत !
-6-
"विधि" पर रखिए आस्था, हो न यह जमींदोज
लोकतंत्र को दें नहीं , बुलडोजर की डोज
-7-
खेतों में उगते कभी , फसलें गेहूं धान
उर्वर माटी की बढ़ी , अब उग रहे मकान
-8-
सभा ,रैलियाँ रोड़ शो ,इन पर जो धन स्वाह
कोटि वंचित कर सकते ,जीवन भर निर्वाह
-9-
मेल मिलाप बंद हुआ, सुस्त पड़ गए पैर,
व्हाट्स एप पर बैठकर, शब्द करें बस सैर!
-10-
तनिक नहीं संवेदना , हृदयहीन है तंत्र
भूखी चीख पुकार को , संज्ञा दें षड़यंत्र
-11-
वंचित ,त्रस्त, दीन, दुखी, दिव्यांगी मजबूर
स्व हिताय की राजनीति, कितनी इन पर क्रूर !
-12-
आँसू ,दर्द, बिवाइयाँ ,जनता की तकदीर
लूट , झूठ, चालाकियाँ , सत्ता की तसवीर
-13-
पद बिन सेवा हो नहीं, बिन रिश्वत न विकास
सेवक स्वामी बन गए , लोग दास के दास !
-14-
दौरा कर नेता हुए, गर्मी से बेहाल
अगन बरसती गगन से , उस पर मोटी खाल !
-15-
कबिरा देखे पार से, ढोंगी सब संसार,
इन पर होगी बेअसर, दोहों की अब मार !!
-16-
पैगासस सी चाँदनी , खुली खिड़्कियाँ देख
कक्ष कक्ष घुसकर करे, निजता मटिया मेट
-17-
राजनीति के मसखरे , बदलें पल पल रंग
धन, पद , कद जो दे सके, चले उसी के संग !
-18-
ठगी, गुण्डई, व्यभिचार , डाके, भ्रष्टाचार
अखबार के पृष्ठ चार , खबरें बढी़ हजार !!
-19-
तिलियाँ यदि गीली हुई, माचिस है बेकार
आग लगाने का करे , काम सदा अखबार
-20-
जो कहते उनको कभी ,छू तक गया न दर्प
अहं भरा यह कथन ही , करता बेड़ा गर्क
-21-
रावण अति विद्वान था , इसका नहीं महत्व,
विद्वता दानवी बनी, शोचनीय यह तत्व !
-22-
प्रजा अगर चोरी करे, तनिक नहीं स्वीकार
प्रतियोगी इस क्षेत्र में, नहीं चाहे सरकार
-23-
गाँठ बाँध लें बात यह , किसका भी हो तख़्त
लौट कभी आता नहीं , कालाधन अरु वक्त
-24-
अहिंसा में कुछ जन का, ऐसा है विश्वास
इसकी रक्षा के लिए , मार बिछा दें लाश
-25-
सांसद,मंत्री अन्य सब ,हैं चुनाव में व्यस्त
देश उसी तरह चल रहा,सुस्त,पस्त पर मस्त
-26-
हृदय नहीं सियासत का,न ही पेट में आँत,
खाने औ' दिखाने के,अलग अलग हैं दाँत
-27-
सच बोलता सहमा सा, झूठ दबंग बुलंद
विनाश की है द्यूत गति, रचना की अति मंद
-27-
सत्य रहा अविचल खड़ा , झूठ कर रहा सैर,
सच का क्या वजूद भला , ढपली , बीन बगैर
-29-
जयंती पर कुछ पल ही, जिंदा हुआ कबीर
साखी ,सबद गा कर फिर, चलता बना फ़कीर
-30-
जल संकट के विषय में,हर सत्ता गंभीर,
कभी न देगी सूखने,इन नयनों का नीर
-31-
राजनीति के वृक्ष पर , रही न उतनी शाख
हर उल्लू को दे सके , एक सुखद आवास
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वाणी से विष शर चलें, लुप्त हुआ सद्भाव
जहर उगलता खेल है, जिसका नाम चुनाव
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बंदर की संतान हम , इसमें क्या संदेह
उछल कूद अभिनय कला, उस पर नंगी देह
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काँवड़ियों की सड़क पर, बढ़े भीड़ प्रतिवर्ष
बेकारी अब छू रही , नित्य नए उत्कर्ष
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सत्ता भटके राह से, कलम रहे पर मौन
ऐसे चमचों को भला , लेखक कहेगा कौन ?
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