Saturday, March 30, 2024

कुछ व्यंग्यात्मक दोहे

 -1-

सत्य किसी ने यह कहा,   नहीं झूठ के पैर

इस कारण ना कर सकें , नेता पैदल  सैर !

-2-

होली में कैसे खिले, उन शक्लों पर रंग

जिन पर पहले ही चढ़ी , झूठ कपट की जंग !

-3-

महँगाई को क्या पता?,न्यूटन का सिद्धांत,

नीचे  आती  हो  कभी,याद  नहीं  दृष्टान्त,

-4-

तूती बोले झूठ की, यही सनातन सत्य,

इसी भरोसे चल रहे, दरबारों के कृत्य !

-5-

चुप  देखे   बूढ़ी  धरा, मानव की करतूत,

जन्मदायिनी को किया, तिरस्कृत, शिलीभूत !

-6-

"विधि"  पर रखिए आस्था, हो न यह जमींदोज

लोकतंत्र को दें नहीं , बुलडोजर की डोज

-7-

खेतों में उगते कभी , फसलें गेहूं धान

उर्वर माटी की बढ़ी , अब उग रहे मकान

-8-

सभा ,रैलियाँ रोड़ शो ,इन पर जो धन स्वाह

कोटि वंचित कर सकते ,जीवन भर निर्वाह

-9-

मेल मिलाप बंद हुआ, सुस्त पड़ गए पैर,

व्हाट्स एप पर बैठकर, शब्द करें बस सैर!

-10-

तनिक नहीं संवेदना , हृदयहीन है तंत्र

भूखी चीख पुकार को , संज्ञा दें षड़यंत्र

-11-

वंचित ,त्रस्त, दीन, दुखी, दिव्यांगी मजबूर 

स्व हिताय की राजनीति, कितनी इन पर क्रूर !

-12-

आँसू ,दर्द, बिवाइयाँ ,जनता की तकदीर

लूट , झूठ, चालाकियाँ , सत्ता की तसवीर

-13-

पद बिन सेवा हो नहीं, बिन रिश्वत न विकास

सेवक स्वामी बन गए , लोग दास के दास !

-14-

दौरा कर नेता हुए, गर्मी से बेहाल

अगन बरसती गगन से , उस पर मोटी खाल !

-15-

कबिरा देखे पार से, ढोंगी सब संसार,

इन पर होगी बेअसर, दोहों की अब मार !!

-16-

पैगासस सी चाँदनी , खुली खिड़्कियाँ देख

कक्ष कक्ष घुसकर करे, निजता मटिया मेट

-17-

राजनीति के मसखरे , बदलें पल पल रंग

धन, पद , कद जो दे सके, चले उसी के संग !

-18-

ठगी, गुण्डई, व्यभिचार , डाके, भ्रष्टाचार

अखबार के पृष्ठ चार , खबरें बढी़ हजार !!

-19-

तिलियाँ यदि गीली हुई, माचिस है बेकार

आग लगाने का करे , काम सदा अखबार

-20-

जो कहते उनको कभी ,छू तक गया न दर्प

अहं भरा यह कथन ही ,  करता बेड़ा गर्क

-21-

रावण अति विद्वान था , इसका नहीं महत्व,

विद्वता दानवी बनी, शोचनीय यह तत्व !

-22-

प्रजा अगर चोरी करे, तनिक नहीं स्वीकार

प्रतियोगी इस क्षेत्र में,  नहीं चाहे  सरकार

-23-

गाँठ बाँध लें बात यह , किसका भी हो तख़्त

लौट कभी आता नहीं , कालाधन अरु वक्त

-24-

अहिंसा में कुछ जन का, ऐसा है विश्वास

इसकी रक्षा के लिए , मार बिछा दें लाश

-25-

सांसद,मंत्री अन्य सब ,हैं चुनाव में व्यस्त

देश उसी तरह चल रहा,सुस्त,पस्त पर मस्त 

-26-

हृदय नहीं सियासत का,न ही पेट में आँत,

खाने औ' दिखाने  के,अलग अलग हैं  दाँत

-27-

सच बोलता सहमा सा, झूठ दबंग बुलंद

विनाश की है द्यूत गति, रचना की अति मंद

-27-

सत्य रहा अविचल खड़ा , झूठ कर रहा सैर,

सच का क्या वजूद भला , ढपली , बीन बगैर 

-29-

जयंती पर  कुछ पल ही, जिंदा हुआ कबीर

साखी ,सबद गा कर फिर, चलता बना फ़कीर 

-30-

जल संकट के विषय में,हर सत्ता गंभीर,

कभी न देगी सूखने,इन नयनों का नीर 

-31-

राजनीति के वृक्ष पर , रही न उतनी शाख

हर उल्लू को दे सके , एक सुखद आवास 

-32-

वाणी से विष शर चलें, लुप्त हुआ सद्‍भाव

जहर उगलता खेल है, जिसका नाम चुनाव

-33-

बंदर की संतान हम , इसमें क्या संदेह

उछल कूद अभिनय कला, उस पर नंगी देह

-34-

काँवड़ियों की सड़क पर, बढ़े भीड़ प्रतिवर्ष

बेकारी अब छू रही  , नित्य नए उत्कर्ष 

-35-

सत्ता भटके राह से, कलम रहे पर मौन

ऐसे चमचों को भला , लेखक कहेगा  कौन ?

-36-
जिस नेता  के  पक्ष में, लड़े  मित्र  से  रात,
वह जा मिला विपक्ष में, अभी भोर की  बात
-37-
स्वर्ण महल में बैठ कर , जनता को उपदेश
नौटंकी से तो भला , दूर न होते क्लेश 
-38-
स्वप्न मरूथल से हुए ,गये  अश्रु भी सूख
मुँह बाए फिर भी खड़े , रोजी, रोटी, भूख !
-39-
नेता सब इक डाल के, बातों के उस्ताद 
प्रवचन देने में करें ,समय पूर्ण बरबाद 
-40-
ताने चाहे मारिए , करते रहिए तंज
चाल सदा टेढ़ी चले, सत्ता की शतरंज
-41-
न्याय भला कैसे मिले , विदुर ,भीष्म जब मौन
दुःशासन पर रोक अब ,  लगा सकेगा कौन ?
-42-
दीन दुखी का तो यही ,हाल मृत्यु पर्यंत
बड़ी विपद आकर करे , छोटे दुख का अंत
-43-
रिश्ते दुःशासन हुए , मर्यादा का अंत
आस्था का धंधा करें, पीर , मौलवी संत
-44-
दल बदलें, कुर्सी मिले , यह नेतन की जात
जन सेवा के नाम पर ,  वादों की बरसात !
-45-
जनता जा किससे कहे ,भूख प्यास का दर्द
अनुभूति पर चढ़ी हुई,  राजनीति की गर्द
-46-
पखवाडा फ़िर आ रहा , हिन्दी हुई उदास
शेष वर्ष तो यह मुझे , दें न बैठने पास
-47-
सीधी और स्पष्ट लगी, नेता जी की राय
सेवा करने के लिए,  कुर्सी मात्र  उपाय
-48-
आँखें   रहे   तरेरते,   जब थे सत्तासीन,
पग में बिछे चुनाव में, बन कर के कालीन !
-49-
पृथ्वी का रौंदा प्रथम, हरा भरा संसार
एक दिन का पर्व मना, जता रहे उपकार 
-50-
भाषण में जब की शुरू , दीन दुखी की बात
अभिनय किया कमाल का,सिसक उठे जज़्बात !
-51-
झाँसे , वादे, गालियाँ , झूठों की तकरीर
आँसू , दर्द बिवाइयाँ , जनता की तकदीर
-52-
रोता है पर्यावरण, वह दिन करके याद,
छक कर जब लेता रहा, हरियाली का स्वाद !!
-53-
नगर गाँव अतिवृष्टि ने ,खूब रचा षड़यंत्र
पानी में कंधों तलक , डूब  गया जनतंत्र !
-54-
वाहन कुल कितने जले , कितनी जली दुकान
बंद रहा कितना सफल ,इस संख्या से जान
-55-
हर नगर में मुख्य मार्ग , है गाँधी के नाम 
चलना उनकी राह पर , सरल हो गया काम
-56-
मँहगाई ने नहीं पढ़ा ,  गुरूत्व का सिद्धांत
नियम तोड़ने का मिला, पहला यह द्दष्टांत 
-57-
सब दल चिंतित हो रहे, आये पास चुनाव
देखें अब के लग सके, वादों का क्या भाव
-58-
घपले उजागर करिए , कीजे सतत कटाक्ष
साक्ष्य वही सच्चे जिन्हे , सत्ता माने साक्ष्य
-59-
रो रो बोला झूठ ने, सच सच अपना हाल
सत्य अगर कह दूँ कभी , तय है मृत्यु अकाल
-60-
गाँव नगर अतिवृष्टि ने, रचा खूब षडयंत्र 
पानी में कंधों तलक ,डूब गया जनतंत्र

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