"लोन फॉक्स डांसिंग (Lone Fox Dancing ) " -आत्म कथा -श्री रस्किन बौन्ड़
पद्म श्री और पद्मभूषण से सम्मानित लेखक रस्किन बाँड़ की 2017 मे प्रकाशित तथा ‘अत्ता गैलाट्टा-बैंगलोर साहित्य महोत्सव पुस्तक पुरस्कार’ से सम्मानित आत्मकथा "लोन फॉक्स डांसिंग (Lone Fox Dancing ) " यूं तो अपनी शैली , संघर्षपूर्ण और समर्पित जीवन यात्रा के रोचक और प्रेरक प्रसंगो, अभूतपूर्व प्रकृति चित्रण के कारण सभी के लिये पठनीय है किंतु प्रकृति प्रेमी तथा शिमला , देहरादून , मसूरी दिल्ली और जामनगर में जीवन के कुछ वर्ष व्यतीत कर चुके पाठक तो अवश्य ही इसे पढकर बेहद प्रसन्न और लाभावन्तित होंगे । चालीस, पचास व साठ के दशकों में इन स्थानों की स्थिति, लोगों की जीवन शैली , प्राप्त सुविधाओं आदि का वर्णन आपको अतीत के गलियारों से इन स्थानों का जो चित्र प्रस्तुत करता है वह अत्यंत रोमांचित करने वाला है। देहरादून, शिमला , मसूरी के वह स्थान जो आज भीड़ और व्यस्तता के लिये जाने जाते हैं कभी दुर्गम रास्तों की पहुंच मे थे । विभिन्न प्रकार के पशु पक्षीयों , वृक्षों का वर्णन अनुपम है ।इन शहरों और देश की कुछ प्रसिद्ध हस्तियों के तब के जीवन की झलक भी, जिनसे रस्किन की मुलाकात अनायास ही जीवन के किसी मोड़ पर हो गयी, आत्मकथा को अविस्मर्णीय बनाती है । अविवाहित 84 वर्षीय श्री रस्किन ओवन बौन्ड़ ,जो किसी भी भारतीय से कम भारतीय नहीं हैं , आजकल मसूरी में अपने पहाड़ी दत्तक परिवार के साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं । ईश्वर उन्हें दीर्घायु करे ।
पद्म श्री और पद्मभूषण से सम्मानित लेखक रस्किन बाँड़ की 2017 मे प्रकाशित तथा ‘अत्ता गैलाट्टा-बैंगलोर साहित्य महोत्सव पुस्तक पुरस्कार’ से सम्मानित आत्मकथा "लोन फॉक्स डांसिंग (Lone Fox Dancing ) " यूं तो अपनी शैली , संघर्षपूर्ण और समर्पित जीवन यात्रा के रोचक और प्रेरक प्रसंगो, अभूतपूर्व प्रकृति चित्रण के कारण सभी के लिये पठनीय है किंतु प्रकृति प्रेमी तथा शिमला , देहरादून , मसूरी दिल्ली और जामनगर में जीवन के कुछ वर्ष व्यतीत कर चुके पाठक तो अवश्य ही इसे पढकर बेहद प्रसन्न और लाभावन्तित होंगे । चालीस, पचास व साठ के दशकों में इन स्थानों की स्थिति, लोगों की जीवन शैली , प्राप्त सुविधाओं आदि का वर्णन आपको अतीत के गलियारों से इन स्थानों का जो चित्र प्रस्तुत करता है वह अत्यंत रोमांचित करने वाला है। देहरादून, शिमला , मसूरी के वह स्थान जो आज भीड़ और व्यस्तता के लिये जाने जाते हैं कभी दुर्गम रास्तों की पहुंच मे थे । विभिन्न प्रकार के पशु पक्षीयों , वृक्षों का वर्णन अनुपम है ।इन शहरों और देश की कुछ प्रसिद्ध हस्तियों के तब के जीवन की झलक भी, जिनसे रस्किन की मुलाकात अनायास ही जीवन के किसी मोड़ पर हो गयी, आत्मकथा को अविस्मर्णीय बनाती है । अविवाहित 84 वर्षीय श्री रस्किन ओवन बौन्ड़ ,जो किसी भी भारतीय से कम भारतीय नहीं हैं , आजकल मसूरी में अपने पहाड़ी दत्तक परिवार के साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं । ईश्वर उन्हें दीर्घायु करे ।
-ओम प्रकाश नौटियाल
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