Thursday, February 24, 2022
Tuesday, February 22, 2022
Sunday, February 20, 2022
Sunday, February 13, 2022
Friday, February 11, 2022
कहानी संग्रह "शतरंजी खंभा "
कलमकार मंच द्वारा प्रकाशित ओम प्रकाश नौटियाल जी का नवीनतम कहानी संग्रह "शतरंजी खंभा " कलमकार मंच वैब साइट और अमेजॉन पर भी उपलब्ध है ।
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Tuesday, February 8, 2022
स्व. लता मंगेशकर जी के पंजाबी गीत
दिवंगत लता मंगेशकार जी ने अपने सात दशक के सक्रिय कार्यकाल में तीस हजार से अधिक गीत गाए हैं, जिसका अर्थ यह होता है कि उन्होनें लगातार सत्तर वर्ष तक लगभग 1.2 गीत प्रतिदिन के औसत से गीत गाए हैं । उन्होंने हिन्दी और अपनी मातृ भाषा मराठी के अतिरिक्त भी लगभग सभी भारतीय भाषाओं में गायन किया । लता जी ने बीस पंजाबी फिल्मों में भी लगभग अस्सी गीत गाए ।
पंजाबी फिल्मों का इतिहास इसलिए और भी रोचक हो जाता है क्योंकि इसके साथ अविभाजित भारत की अनेकों दिलचस्प दास्ताने जुड़ी हैं । यह इतिहास हमें गायकों , संगीत कारों, निर्देशकों और फिल्म निर्माण तथा फिल्मों के उस शुरुआती काल में ले जाता है जहाँ बड़े बडे नामी कलाकार, संगीत घराने विभाजन से पूर्व मुख्यतया लाहौर में एक जुट होकर, एक देश के वासी के रूप में फिल्म निर्माण में कार्यरत रहे थे ।
पंजाबी फिल्मों की भी तब खासी प्रतिष्ठा थी जो भारत तथा उसके साथ ही पंजाब के विभाजन के बाद भी कम से कम दस वर्षों तक तो कायम रही ही।
विभाजन के बाद ’चमन’ पहली पंजाबी फिल्म थी जो लाहौर के रतन सिनेमा में 6 अगस्त 1948 को रिलीज हुई थी । लता जी ने उस फिल्म में तीन गाने गाए थे जिनका संगीत लाहौर के विनोद उर्फ एरिक रोबोर्ट ने दिया था । फिल्म का निर्देशन आर के शोरी ने किया था जो बाद में मुम्बई जाकर बस गए थे। लता जी के गाए यह तीनों गीत- गलयाँ फिर दे ढोला निक्के निक्के बाल वे , राहे राहे जान्दिया ,अस्सां बेकदरां नाल एक अन्य गायक पुष्प हंस से भी गवाए गए थे किंतु बाद में न जाने किन कारणों से हंस के गाए गानों को ही फिल्म में लिया गया । इन गीतों के बोल आजाद कश्मीरी ने लिखे थे ।
1949 में फिल्म ’लच्छी’ रिलीज हुई थी जो बहुत बडी हिट रही । इस फ़िल्म का संगीत हंसराज बहल का था । इसमें लता जी ने गीत- नाले लम्मी ते नाले काली- गाया था इसके अतिरिक्त उन्होंने मोहम्मद रफी साहब के साथ एक अन्य युगल गीत - काली कंघी नाल- भी गाया था ।लता जी और रफी साहब के अलावा शमशाद बेगम भी इस फिल्म की तीसरी पार्श्व गायिका थी । इन तीनों गायकों और संगीत निर्देशक की टीम ने बाद में अन्य पंजाबी फिल्मों में भी साथ काम किया और यह तब तक चलता रहा जब तक पंजाबी फिल्मों के उतार का दौर शुरू नहीं हुआ । कुछ प्रबुद्ध जानकारों का मानना है कि पहली पंजाबी फिल्म जिसमें लता जी ने गीत गाए ’लच्छी’ थी ’चमन’ नहीं ।
लच्छी फिल्म का निर्माण विभाजन से पूर्व आरंभ हो गया था और पचहत्तर प्रतिशत फ़िल्म विभाजन होने तक बन चुकी थी । विभाजन के बाद फिल्म का शेष पच्चीस प्रतिशत हिस्सा भारत में बना । हंसराज बहल, जिनको पहले बहल लायलपुरी के नाम से जाना जाता थे, लता जी से गवाने वाले प्रथम संगीत निर्देशक थे । बताया जाता है कि लता जी ने अंतिम पंजाबी गाना 1992 में रिलीज हुई पंजाबी फिल्म ’मेंहदी शगना दी’ मे गाया था यह गीत था "मत्थे उत्ते टिक्क ला के" जिसे बाबू सिंह मान ने लिखा था ।
फिल्म मदारी 1950 में रिलीज हुई थी जिसमें लता जी ने दो गाने गाये थे -पूछ मेरा हाल कद्दे , उत्ते टंग्या दुपट्टा मेरा डोल दा । संगीत दिया था पंजाब तबला घराने के प्रतिपादक उस्ताद अल्लाह रख्खा ने ,जो पखावज मास्टर मियाँ कादिर बख्श के चेले थे और फिल्मों में ए आर कुरेशी के नाम से संगीत देते थे । बताया जाता है कि लता जी का अल्लाह रक्खा से परिचय म्यूजिक कम्पोजर मास्टर गुलाम हैदर ने करवाया था जिन्हे लता जी अपने एक पथ प्रदर्शक (मैंटोर ) के रूप में मानती थी । इन दोनों गानो को आजाद कश्मीरी ने लिखा था ।
उस्ताद अल्लाह रख्खा ने 1951 में एक अन्य फिल्म ’फुम्मन’ का संगीत भी दिया था । लता जी ने इस फिल्म में भी दो गाने गाए थे -’मैं उडियाँ चुक चुक वेखन’ और रातां अंधेरियाँ आ गैय्यां’ । 1954 में शमिन्दर चहल द्वारा निर्देशित फिल्म वंजारा में भी लता जी ने कुछ गीत गाए थे - जग जा नी बत्ती , साडे पिंडी विच पा के हट्टी । लता जी ने शमिन्दर के साथ फिल्म के तीन युगल गीत भी गाए - चरखे दियां घूकन ने , मारा कंधा उट्टे लीकां तथा तेरी रवांगी मैं हो के ।
1960 में रिलीज हुई फिल्म दो लच्छियाँ में लता जी ने रफी साहब के साथ एक युगल गीत गाया था -अस्सां कित्ती ऐ सांजना तेरे नाल ठू । इस गीत को वर्मा मलिक ने लिखा था और संगीत निर्देशक थे हंसराज बहल ।
इसी वर्ष लता जी ने एक और पंजाबी फिल्म पगडी संभाल जट्टा के लिए यह गीत गाए -राह जांगे माही नू, टप नी जवानी ऐ टप टप ,माही पल विच छलके जवानी ले गया ।
1961 में रिलीज हुई गुड्डी फ़िल्म के गीत आजाद कश्मीर ने लिखे जिनमें लता जी का रफी साहब के साथ गाया युगल गीत- प्यार दे भुलेख्खे -जबर्दस्त लोकप्रिय हुआ ।
लता जी ,रफी साहब ,शमशाद बेगम और हंसराज बहल की टीम एक बार फ़िर पिंड दी कुडी फिल्म के लिए इकट्ठी हुई । यह फिल्म 1963 में रिलीज हुई इसमें लता जी का गाया गीत था- मैनु तेरे पीछे सजना कद्दी हंसना पेया कद्दी रोना पिया । लता जी का महेन्द्र कपूर जी के साथ गाया गीत- लाई आ ते तोड़ निभाइं- भी खूब पसंद किया गया ।
1982 में रिलीज हुई फिल्म ’रेशमा’ अंतिम पंजाबी फिल्म थी जिसमें लता जी ने गाने गाए । फिल्म में गायक शैलेन्द्र नायक भी थे । फिल्म मे गाया लता जी का गीत ’पा केह विछोरे ’ लोकप्रिय हुआ । रफी साहब ने फिल्म में एक पंजाबी भजन भी गाया । इसके अलावा लता जी ने 1983 में कमला हसन और अनिताराज की हिंदी फिल्म ’जरा सी जिंदगी’ में भी एक पंजाबी गीत- कच्चा घड़ा मिट्टी दा- गाया था।
1960 के बाद पंजाबी फिल्मों का बनना नहीं के बराबर हो गया था और लता जी इस बात से परिचित थी लेकिन जब तक अच्छी पंजाबी फिल्मे -चाहे इक्का दुक्का ही सही- बनती रही लता जी उनमें अपनी आवाज देती रही ।
लता जी ने शबद कीर्तन और गुरू ग्रंथ साहेब भी गाए हैं ।उन्होंने लंदन के रौयल एल्बर्ट हाल में 1974 में लाइव भी परफौर्म किया था । उनकी शबद एलबम का एल पी रिकार्ड 1979 में रिलीज किया गया ।
अपने गीतों के माध्यम में स्वर सम्राज्ञी सदैव अमर रहेंगी और उनकी स्वर लहरी सदा गुँजायमान रहेगी । विनम्र श्रद्धांजलि !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
( इंगलिश समाचार पत्र डान व अंतर्जाल पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर साभार )
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Sunday, February 6, 2022
Saturday, February 5, 2022
Wednesday, February 2, 2022
Monday, January 31, 2022
Saturday, January 29, 2022
Tuesday, January 25, 2022
Saturday, January 22, 2022
Monday, January 17, 2022
Thursday, January 13, 2022
Tuesday, January 11, 2022
Friday, January 7, 2022
Friday, December 31, 2021
Thursday, December 30, 2021
Wednesday, December 29, 2021
Tuesday, December 21, 2021
विदाई गीत
सिसक सिसक कर गा रहा,
वर्ष विदाई गीत,
मुश्किल में काटा समय ,
उमर गई अब बीत !
-ओम प्रकाश नौटियाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
Monday, December 20, 2021
Sunday, December 19, 2021
Thursday, December 16, 2021
Sunday, December 12, 2021
विश्व पर्वत दिवस
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को अंतराष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया था | तत्पश्चात 11 दिसमबर 2003 से प्रति वर्ष यह दिन अंतराष्ट्रीय पर्वत दिवस के रूप में विश्व भर में मनाया जाता है । पहाड़ सौन्दर्य, द्दढ़ता, शीतल सौम्य जलवायु के प्रतीक तो हैं ही ,किंतु इन पर मानव सभ्यता जन्य अतिरिक्त बोझ भी है । विश्व की आबादी के लगभग 12 प्रतिशत लोगों का निवास पहाडों पर है । लगभग इतने ही लोग इनके एकदम पास के क्षेत्रों में निवास करते हैं । विश्व का लगभग 25 प्रतिशत क्षेत्र पहाडो से ढका है । भारत का लगभग 33 प्रतिशत भू भाग पर्वताच्छादित है । भारत में भी लगभग 25 प्रतिशत लोग पहाडों या उनके निकटस्थ क्षेत्रों में सामान्य रूप से निवास करते हैं । अस्थायी मौसमी आबादी इससे काफी अधिक हो सकती है ।
पर्वतों का ध्यान रखना और उनका क्षरण रोकना न केवल उनकी प्राकृतिक, सांस्कृतिक ,आध्यात्मिक विरासत और वहाँ के जनजीवन और जलवायु संरक्षण के लिए नितांत आवश्यक है वरन वहाँ की जैव विविधता और सभी के भोजन और औषधियों के लिए अत्यंत उपयोगी पैदावार को बचाने और बढाने के लिए भी अत्यंत जरूरी है।
अंतराष्ट्रीय पर्वत दिवस के अवसर पर प्रति वर्ष पर्वतों के संरक्षण से जुडे विषयों में से एक विषय थीम के रूप में चयनित होता है । 2020 में विश्व पर्वत दिवस का थीम था “पर्वत जैव विविधता” । इस वर्ष 2021 का विषय “सतत पर्वतीय पर्यटन” है। पर्वतीय क्षेत्रो में जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण संतुलित विकास के साथ साथ हर कीमत पर बनाए रखना है । पर्वत वासियों के लिए गरीबी उन्मूलन के लिए आजीविका विकल्प ढूँढ़ने , स्थानीय शिल्प और उच्च मूल्य वाले उत्पादों को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है ।
इस दिन को मनाने के लिए विभिन्न मंचों विशेषकर पाठशालाओं में इस वर्ष के थीम पर भाषण , कविता निबंध आदि प्रतियोगिताएं होनी चाहिए लोग अपनी पर्वतीय यात्राओं के अनुभव , तस्वीरें और सुझाव भी एक दूसरे से साझा कर सकते हैं । पर्वतों के संतुलित विकास और उनके संरक्षण का विषय अब और अधिक टाला नहीं जा सकता ।
पहाडों से दूर
-
पहाडों से दूर रहकर, हुई जिन्दगी पहाड सी,
हरियाली दूर हो गई ये जिन्दगी उजाड़ सी ।
-
मिमिया गई आवाज शहर के शोर शार में,
गूंजी थी पर्वतों पर जो , सिंह की दहाड़ सी।
-
जीवन में ताजगी कहाँ, हवा नहीं ताजी नसीब,
मुर्दे मे प्राण फूंकने , हो मानो चीर फ़ाड सी।
-
हवा में शुद्ध गाँव की हर साँस को सुकू्न था,
जो मिल रही है हवा, वो साँस का जुगाड सी।
-
छोटी लगी मुश्किलें , पहाड़ी निश्छ्ल प्यार में,
शहर के झंझट में बनी, तिल सी मुसीबत ताड सी।
-
-ओम प्रकाश नौटियाल ,बडौदा , मो. 9427345810
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
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Wednesday, December 8, 2021
Monday, December 6, 2021
Friday, December 3, 2021
Wednesday, December 1, 2021
Wednesday, November 24, 2021
Thursday, November 18, 2021
Monday, November 8, 2021
Sunday, November 7, 2021
Wednesday, November 3, 2021
Sunday, October 31, 2021
Thursday, October 14, 2021
Friday, October 1, 2021
Thursday, September 30, 2021
Wednesday, September 29, 2021
Friday, September 24, 2021
Tuesday, September 21, 2021
Tuesday, September 14, 2021
"हिंदी भूषण"
पखवाडा कैसे मने ,
इसके पक्ष अनेक,
"हिंदी भूषण" दें किसे,
यक्ष प्रश्न यह एक,
यक्ष प्रश्न यह एक,
हुई जब विस्तृत चर्चा,
निकला यह निष्कर्ष,
वहन जो कर ले खर्चा,
सबका भोजन भार ,
दे सके सारा भाड़ा,
वही श्रेष्ठ विद्वान,
नाम उसके पखवाड़ा !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
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Sunday, September 5, 2021
Saturday, September 4, 2021
शिक्षक दिवस
गीता में श्रीकृष्ण ने,
वाचा अद्भुत ज्ञान ,
मर्म मानव जीवन के,
धर्म ,कर्म, अज्ञान ,
धर्म, कर्म, अज्ञान ,
सत्य सनातन यह है,
नश्वर है यह देह,
जीव पर अजर अमर है
रहे बात यह ध्यान,
जीवन गुरू बिन रीता,
गुरू बने थे ईश,
सुवाची जब थी गीता !
-ओम प्रकाश नौटियाल
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Saturday, August 21, 2021
Monday, August 16, 2021
Saturday, August 14, 2021
Wednesday, August 11, 2021
मँहगाई
मँहगाई को क्या पता,
न्यूटन का सिद्धांत,
गुरूत्व शक्ति भंजन का,
पहला यह द्दष्टांत,
-
पहला यह द्दष्टांत ,
कि बस ऊपर को जाए,
जब अन्य सभी पिंड,
धरा पर नीचे आएं,
-
है घमंड में चूर ,
ज्ञान को धता बताई,
न्य़ूटन जी की बात,
नहीं माने मँहगाई !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
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Saturday, August 7, 2021
Thursday, August 5, 2021
Tuesday, August 3, 2021
Saturday, July 31, 2021
प्रेमचंद जयंती पर
उपन्यास और कहानी विधा के सम्राट हिंदी उर्दु के अत्यंत लोकप्रिय साहित्यकार प्रेमचंद का जन्म बनारस के लमही गाँव में 31 जुलाई 1880 में हुआ था । आठ अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की आयु में जलोदर रोग से उनका निधन हो गया । अपने जीवन काल में उन्होंने अधिकतर सामाजिक और कृषक जीवन से संबंधित विषयों पर लगभग डेढ दर्जन उपन्यास और 300 के आसपास अनूठी कहानियाँ लिखी । उनकी कहानियाँ अपने जमाने की सभी लोकप्रिय पत्र पत्रिकाओं जैसे मर्यादा, जमाना, चाँद, सरस्वती, माधुरी आदि में हिंदी और उर्दु दोनों मे प्रकाशित हुई । उनकी कहानियों और उपन्यासों की अतीव लोकप्रियता को देखते हुए उनके निधन के पश्चात कई निर्माता/निर्देशकों ने उन पर फिल्में बनाई । गोदान 1963 (त्रिलोक जेटली) , सेवा सदन 1938 (के सुब्रमनियम) और गबन 1966 (ऋषिकेष मुखर्जी ) उपन्यासों पर इन्हीं नामों से फिल्में बनी तथा उनकी अनेक कहानियों जैसे त्रिया चरित्र ( ए आर कारदार ,फिल्म स्वामी नाम से 1941),शतरंज के खिलाडी (सत्यजीत रे 1997 ),सद्गति (सत्य्जीत रे 1981 ), कफन ,मजदूर आदि पर भी फिल्में बनी ।
प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायबराय श्रीवास्तव था तथा वह डाकमुँशी के रूप में कार्यरत रहे ,उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था । प्रेमचंद का बचपन का नाम धनपत राय था । प्रेमचंद की संघर्ष कथा बचपन में ही शुरु हो गई थी जब सात वर्ष की उम्र में उनकी माता का देहांत हो गया था और उसके बाद उन्हें विमाता के कठोर नियंत्रण में रहना पडा था। उनका पहला विवाह पंद्रह वर्ष की आयु में ही कर दिया गया जिसके लगभग एक वर्ष पश्चात ही उनके पिता की मृत्यु हो गई । प्रेमचंद का दूसरा विवाह एक शिक्षित बाल विधवा शिवरानी देवी से 1906 में हुआ । शिवरानी देवी ने कुछ कहानियाँ तथा ’ प्रेमचंद घर में ’ नाम से एक पुस्तक भी लिखी । प्रेम चंद जी की प्रारंभिक शिक्षा फारसी में हुई । मैट्रिक करने के पश्चात ही वह स्कूल शिक्षक के रूप में कार्यरत हो गए । लेकिन नौकरी के बाद भी उन्होंने पढना जारी रक्खा | सुप्रसिद्ध साहित्यकार , विचारक एवं आलोचक डा. डॉ॰ रामविलास शर्मा ने लिखा है कि उन्होंने 1910 में अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास विषय लेकर इण्टर किया और 1919 बी. ए. किया जिसके बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। अंतर्जाल पर उपलब्ध प्रामाणिक सूत्रों की जानकारी के अनुसार उनके जीवन से संबंधित कुछ रोचक जानकारी इस प्रकार हैं :
--1918 से 1936 तक की समयावधि को कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद युग कहा जाता है ।
-- प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्म शताब्दी पर डाक टिकट जारी किया था।
--उनकी जन्म शताब्दी पर ही गोरखपुर के उस स्कूल में जहाँ वह शिक्षक थे ,प्रेमचंद साहित्य संस्थान की भी स्थापना की गई ।
--प्रेमचंद ने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया।
--’कफन’ प्रेमचंद की अंतिम कहानी थी तथा ’गोदान’ अंतिम उपन्यास था । उनका लिखा अंतिम निबंध 'महाजनी' सभ्यता एवं अंतिम व्याख्यान ’साहित्य का उद्देश्य ’ था । 'दुनियाँ के अनमोल रतन' को आमतौर पर प्रेमचंद की पहली कहानी माना जाता है जो उनके 1908 में प्रकाशित पहले कहानी संग्रह ’सोज ए वतन ’ की पहली कहानी थी ।
-- मंगल सूत्र उनका अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।उनकी बडी इच्छा थी कि इसे पूर्ण कर सकें पर वह असमय ही कालग्रस्त हो गए।
--असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर प्रेमचंद ने स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून 1921 को त्यागपत्र दे दिया था ।
-- त्यागपत्र के बाद प्रेमचंद ने लेखन को ही अपना व्यवसाय बना लिया था ।
--.प्रेमचंद ने 1933 में सिनेटोन फिल्म कम्पनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का अनुबंध किया था पर वह जल्दी ही मुम्बई छोडकर घर लौट गए क्योंकि उन्हे मायानगरी का जीवन रास नहीं आया।
--शुरू में प्रेमचंद नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे।
--1908 में देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत नवाबराय के कहानी संग्रह ’सोज़े-वतन’ को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी भी दे दी गई। इसके बाद उन्होंने नाम बदल कर प्रेमचंद नाम से लिखना शुरू कर दिया ।
--'प्रेमचंद के फटे जूते' में हरि शंकर परसाई जी ने प्रेमचंद की दारुण आर्थिक अवस्था का वर्णन किया है।
-- ’ज़माना” के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम प्रेमचंद के अभिन्न मित्र थे । प्रेमचंद की मृत्यु के पशचात निगम जी ने प्रेमचंद द्वारा उन्हें लिखे गए पत्रों के आधार पर एक लेख श्रंखला प्रकाशित की थी जिसके माध्यम से प्रेमचंद्र के व्यक्तित्व के अनेकों पहलुओं तथा उनके विचारों के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है ।
--प्रेम चंद की लिखी लगभग 300 कहानियों को उनकी मृत्यु उपरांत मानसरोवर के आठ खण्डो में प्रकाशित किया गया ।
--आठवीं कक्षा की विद्यार्थिनी रही महादेवी वर्मा की पहली कविता ’दीपक’ जब ’चाँद’ में प्रकाशित हुई तब उन्हें प्रेमचंद जी ने आशीर्वाद स्वरूप कुछ पंक्तियों लिखकर भेजी थी । महादेवी जी को इस बात की अत्यंत प्रसन्नता हुई कि एक प्रसिद्ध उपन्यासकार और कहानीकार की कविताऒं मे रुचि है और उसने उनकी कविता पढी है ।
--प्रेमचंद ने ’संग्राम” ( 1923), ’कर्बला ’ ( 1924) और ”प्रेम की वेदी’ ( 1933) नामक नाटकों की भी रचना की। किंतु इस क्षेत्र में उन्हें अपेक्षाकृत कम सफलता मिली ।
--प्रेमचंद ने अपने सामाजिक और साहित्यिक चिंतन और अनुभव के आधार पर कुछ लेख और निबंध भी लिखे जो उनके पुत्र अमृतराय द्वारा संपादित ' प्रेमचंद : विविध प्रसंग ' ( तीन भाग ) ’ में संकलित हैं ।
--प्रेमचंद ने पंडित नेहरू द्वारा अपनी पुत्री इंदिरा को अंग्रेजी में लिखे पत्रों को हिन्दी में रूपान्तरित किया था।
--प्रेमचंद की सभी पुस्तकों के अंग्रेज़ी व उर्दू अनुवाद के साथ साथ उनकी कहानियाँ चीनी , रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में भी बहुत लोकप्रिय हुई हैं।
-- प्रेमचंद की श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी नाम से तीन संताने थी ।उनके पुत्र अमृत राय ने ' क़लम का सिपाही ' नाम से प्रेमचंद की जीवनी लिखी है।
--प्रेमचंद के समकालीन लेखकों में जयशंकर प्रसाद, राजा राधिकारमण प्रसाद, सुदर्शन, कौशिक जी, शिवपूजन सहाय, राहुल सांकृत्यायन, पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' जैसे ख्यातिप्राप्त साहित्यकार सम्मिलित हैं ।
प्रेमचंद का साहित्य उनके तीस वर्ष (प्रेमचंद की लेखनी अंतिम समय तक चलती रही ) के काल खण्ड में हुए समाजसुधारों ,प्रगतिवादी आंदोलनों ,स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों, परंपरागत रूढिवादिता के विरुद्ध संघर्ष ,जन साधारण की समस्याओं पर गहन चिंतन ,नारी की सामाजिक स्थिति और उसके अधिकारों के प्रति जागरुकता, कृषक की दुर्दशा और जमीदारी की जकडन में उसका शोषण , हरिजनों की स्थिति और उनकी समस्याएं , प्रकृति के ह्वास के प्रति चेतना तथा व्याप्त भ्रष्टाचार और विदेशी दमन के प्रति ध्यानाकर्षित करने वाले रोचक उपन्यासों और कहानियों का ऐसा कालजीवी दस्तावेज है जिसकी वैचारिक प्रासंगिकता युगों युगों तक रहेगी । उनकी भाषा और व्यक्तित्व दोनों ही सहज ,सरल और आडम्बर विहीन रहे हैं ।
हिन्दी साहित्य के इस अनुपम रचनाकार , रूढियों और अंधविश्वासों के विरुद्ध सतत लडने वाले कुशल कलमकार योद्धा को उनकी जयंती पर शत शत नमन । ईश्वर हमें उनकी तरह न्याय संगत मार्ग पर चलने की शक्ति और प्रेरणा दे ।
-ओम प्रकाश नौटियाल
( लेख विकिपिडिया ,प्रेमचंद पर उपलब्ध लेखों एवं अतर्जाल की प्रामाणिक जानकारी के आधार पर -साभार)
Thursday, July 8, 2021
Friday, July 2, 2021
विनती
सावन के जलधर सुनो ,
विनती एक अशेष,
हद से अधिक जल भर कर,
करें न नभ प्रवेश,
करें न नभ प्रवेश ,
अतिवृष्टि अति विनाश है,
जल प्रलय,स्खलन ,बाढ,
ह्वास और संत्रास है,
बरसे नेह फुहार ,
द्दश्य हो हर मनभावन
सबकी हो तब चाह ,
कि अब आएगा सावन !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
https://www.amazon.in/s?k=om+prakash+nautiyal
Tuesday, June 29, 2021
Wednesday, June 23, 2021
Tuesday, June 22, 2021
Sunday, June 20, 2021
Friday, June 4, 2021
विश्व पर्यावरण दिवस -2021
अमेरिका के पूर्व राष्ट्र्पति अब्राहम लिंकन ने एक बार पाखंडी शब्द को परिभाषित करते हुए कहा था - "यह मुझे उस व्यक्ति की याद दिलाता है जो अपने माता पिता का वध करने के बाद अदालत में यह कहकर दया की भीख माँगता है कि वह अनाथ है ।" कुछ यही हाल आज हमारा है हम वर्षों से पर्यावरण की निर्मम हत्या करते हुए अब भगवान से हमें विष कूप से बाहर निकालने की प्रार्थना कर रहे हैं जो हमने तथाकथित विकास के नाम पर अपने लिए स्वयं तैयार किया है । हमारा साँसे आज सुरक्षित नहीं हैं । पर्यावरण के निरंतर ह्वास की चिंता भी बहुत पुरानी है किंतु इस विषय में गोष्ठियों, भाषणो अथवा कहीं कही यदा क्दा किए गए छुट मुट प्रयासों से अधिक कुछ विशेष नहीं हुआ है हाँ चिंता के उद्घोष में बुलंदी अवश्य आई है ।
आज से 49 वर्ष पहले स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पर्यावरण और प्रदूषण पर पहला अंतराष्ट्रीय सम्मेलन 5 जून से 16 जून तक आयोजित किया गया था इसी सम्मेलन में , जिसमें 119 देशों ने भाग लिया था , संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन किया गया था जिसका नारा था- "केवल एक पृथ्वी"। तभी से हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस हर वर्ष नए थीम के साथ मनाया जाता है । 2018, 2019 , 2020 में यह थीम्स क्रमशः इस प्रकार थी -बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन, वायु प्रदूषण एवं जैव विविधता ।
इस वर्ष अर्थात 2021 में ,शायद कोरोना महामारी में पर्यावरण असंतुलता का भारी योगदान देखते हुए, थीम है 'Ecosystem Restoration' यानि जिसका पारिस्थितिक तंत्र की पुनर्बहाली । इस थीम का उद्देश्य है - नष्ट प्रायः हो चुके पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्जीवित करने का यथा संभव प्रयास करना तथा उन पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण करना ,जो अभी बरकरार हैं, किंतु जिन्हे अत्यंत देखभाल की आवश्यकता है । पर्यावरण के प्रति हर व्यक्ति का सजग होना अत्यंत आवश्यक है । बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन आदि आपदाओं की तीव्रता कम करने के लिए वृक्ष लगाने और उनकी देखभाल करना सभी का कर्तव्य है तभी हम भावी पीढी को अच्छा पर्यावरण धरोहर के रूप में सौंप सकते हैं ।
लिए कुल्हाड़ी हाथ में, आया अंध विकास
बिन देर कर बिछा गया, शत वृक्षों की लाश ,
वृक्षों की रक्षा करें , नई लगाएं पौध
तब ही निकट भविष्य में, ले पाएंगे श्वास !!
-ओंम प्रकाश नौटियाल