Sunday, December 12, 2021

विश्व पर्वत दिवस

 


 संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को अंतराष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया था | तत्पश्चात 11 दिसमबर 2003  से  प्रति वर्ष यह दिन अंतराष्ट्रीय पर्वत दिवस के रूप में विश्व भर में मनाया जाता है । पहाड़ सौन्दर्य, द्दढ़ता, शीतल सौम्य जलवायु के प्रतीक तो हैं ही ,किंतु  इन पर मानव सभ्यता जन्य अतिरिक्त बोझ भी है । विश्व की आबादी के लगभग 12 प्रतिशत लोगों का निवास पहाडों पर है । लगभग इतने ही लोग इनके एकदम पास के क्षेत्रों में निवास करते हैं । विश्व का लगभग 25 प्रतिशत क्षेत्र पहाडो से ढका है । भारत का लगभग 33 प्रतिशत भू भाग पर्वताच्छादित है । भारत में भी लगभग 25 प्रतिशत लोग पहाडों या उनके निकटस्थ क्षेत्रों में सामान्य रूप से निवास करते हैं । अस्थायी मौसमी आबादी इससे काफी अधिक हो सकती है ।  

पर्वतों का ध्यान रखना और  उनका क्षरण रोकना न केवल उनकी प्राकृतिक, सांस्कृतिक ,आध्यात्मिक विरासत और वहाँ के जनजीवन और जलवायु संरक्षण के लिए नितांत आवश्यक है वरन  वहाँ की जैव विविधता और सभी के भोजन और औषधियों के लिए अत्यंत उपयोगी पैदावार को बचाने और बढाने के लिए भी अत्यंत जरूरी है।

अंतराष्ट्रीय पर्वत दिवस  के अवसर पर प्रति वर्ष पर्वतों के संरक्षण से जुडे विषयों में से एक विषय थीम के रूप में चयनित होता है । 2020 में विश्व पर्वत दिवस का थीम था “पर्वत जैव विविधता” । इस वर्ष 2021 का विषय  “सतत पर्वतीय पर्यटन” है। पर्वतीय क्षेत्रो में जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण  संतुलित विकास के साथ साथ हर कीमत पर बनाए रखना है । पर्वत वासियों के लिए गरीबी उन्मूलन के लिए आजीविका विकल्प ढूँढ़ने , स्थानीय शिल्प और उच्च मूल्य वाले उत्पादों को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है ।

इस दिन को मनाने के लिए विभिन्न मंचों विशेषकर पाठशालाओं में इस वर्ष के थीम पर  भाषण , कविता निबंध आदि प्रतियोगिताएं  होनी चाहिए लोग अपनी पर्वतीय यात्राओं के अनुभव , तस्वीरें और सुझाव भी एक दूसरे से साझा कर सकते हैं । पर्वतों के संतुलित विकास और उनके संरक्षण का विषय अब और अधिक टाला नहीं जा सकता ।

पहाडों से दूर 

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पहाडों से दूर रहकर, हुई जिन्दगी पहाड सी,

हरियाली दूर हो गई ये जिन्दगी उजाड़ सी ।

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मिमिया गई आवाज  शहर के शोर शार में,

गूंजी थी पर्वतों पर जो , सिंह की दहाड़ सी।

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जीवन में ताजगी कहाँ, हवा नहीं ताजी नसीब,

मुर्दे मे प्राण फूंकने , हो मानो चीर फ़ाड सी।

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हवा में शुद्ध गाँव की  हर साँस को सुकू्न था,

जो मिल रही है  हवा, वो साँस का जुगाड सी।

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छोटी लगी मुश्किलें , पहाड़ी निश्छ्ल प्यार में,

शहर के झंझट में बनी, तिल सी मुसीबत ताड सी।

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-ओम प्रकाश नौटियाल ,बडौदा , मो. 9427345810

(सर्वाधिकार सुरक्षित )

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