सदियों यह अँगना दीप्त रहा
तम पी पी दीया तृप्त रहा
थी दीप चाह केवल प्रकाश
ज्योत पर सदा आसक्त रहा
किरण किरण झरता झरना
झूम झूम निर्भय जलना
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क्षरते तन जन्य दैविक शक्ति
अविरल आलोक न दे थकती
दीया बाती का प्रणय मिलन
प्रदीप्त कुटिया हर कक्ष सहन
टुकुर टुकुर टक टक तकना
झूम झूम निर्भय जलना
माटी से जीवों का उद्गम
माटी में फिर अंतिम संगम
माटी बाती करते मंथन
माटी माटी का चिर बंधन
संग संग जीना मरना
झूम झूम निर्भय जलना
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जब मानव काया माटी की
शय्या बाती की माटी की
बंधुत्व भाव ले तिमिर अंत
रहे ज्योत दीप्त मृत्यु पर्यंत
हँस हँस बाती तन क्षरना
झूम झूम निर्भय जलना
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-ओंम प्रकाश नौटियाल, बडौदा
(सर्वाधिकार सुरक्षित )मोबा.9427345810
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