-ओंम प्रकाश नौटियाल
मंदिर था घर माँ से, जब तक उनका साया था,
सब से था अपनापन , नहीं कोई पराया था,
पर माँ गई बैकुण्ठ तब, छोड स्नेह रिश्ते सब
हुई मुद्दत जब इस घर, कोई अपना आया था !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मंदिर था घर माँ से, जब तक उनका साया था,
सब से था अपनापन , नहीं कोई पराया था,
पर माँ गई बैकुण्ठ तब, छोड स्नेह रिश्ते सब
हुई मुद्दत जब इस घर, कोई अपना आया था !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
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