नीला नभ नत श्रंग पर, निज पर्वत की शान
मेघ मिलन हो राह में, कण कण में भगवान
कण कण में भगवान , पवन वृक्षों पर झूले
बहें झरने अलमस्त , नदी कलकल ना भूले
कहें ’ओम’ कविराय, प्रकृति की अनुपम लीला
शंकर जी का वास , जिनका कंठ है नीला
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मेघ मिलन हो राह में, कण कण में भगवान
कण कण में भगवान , पवन वृक्षों पर झूले
बहें झरने अलमस्त , नदी कलकल ना भूले
कहें ’ओम’ कविराय, प्रकृति की अनुपम लीला
शंकर जी का वास , जिनका कंठ है नीला
-ओंम प्रकाश नौटियाल
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