Friday, November 8, 2019

लघुकथा -बेरोजगारी

"पाँय लागूं ताऊ, कैसा है ?"
"ठीक हूँ बेटा , तू सुना , आजकल तो  यहीं दिक्खे तू , पहले तो कई कई दिनों तक  बाहर ही रहे था "
" क्या बताऊँ ताऊ बस यूं समझ ले बेरोजगार हो गया " बिरू ने निराश स्वर में जवाब दिया ।
" क्या हुआ, तू तो कहे था तेरा अपना धंधा है "
"बस ताऊ ,अपने ही धंधे में ठाली हो गये "
" क्यूं क्या हुआ ?’
" अरे ताऊ , हर धंधे में होड़ इतनी बढ़ गयी कि गुजर मुश्किल हो गयी "
"तेरा ऐसा कौन सा धंधा था ?"
"अब तो धंधा बंद सा हो गया तो बताने में हर्ज भी ना है । बस आस पास के शहरों में जाकर बैंक डकैती कर लेंवे थे फिर पुलिस से बचने को कुछ दिन कहीं दूर जा मौज मस्ती करके आ जावें थे.. ।"
"अरे बाप रे, तो अब क्या हो गया " ताऊ की उत्सुकता चरम सीमा पर थी
"अरे ताऊ , अब तो बैंक के अंदर काम करने वाले ही इतनी बड़ी बड़ी ड़कैती मारने लगे कि म्हारे जैसों के हाथ ही कुछ न लगे "
"हाँ बेटा , सुनु तो हूँ खबरों में कि बैंक के कारिन्दे बैंक के पैसे को अपना समझ कर धड़ल्ले से लूटरे ,चल कोई ना, लूट खसोट के धंधों की कमी थोड़े ना, और मिल जांगे "
"बस ताऊ, तेरा अशीष चहिए " कह कर बिरू मंदिर की तरफ़ बढ़ गया
-ओंम प्रकाश नौटियाल

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