मालती देहरादून के लोकप्रिय दैनिक 'घटनाक्रम' में
रिपोर्टर थी । पिता जी एक प्राइवेट कंपनी
से सेवा निवृत हो चुके थे और अकसर बीमार रहते थे । घर पर एक छोटी बहन श्वेता थी जो
स्नातक होने के बाद मीडिया और मास कम्यूनिकेशन में डिप्लोमा कर रही थी । माँ का
स्वास्थ्य भी बहुत ठीक नहीं रहता था। इन परिस्थियों मे घर के प्रति मालती की बड़ी
जिम्मेदारी थी ।
मालती को कम्पनी के सीईओ केतन शुरु
शुरु में बड़े भले आदमी लगते थे उसके साथ
बड़ी आत्मीयता और सलीके के साथ पेश आते थे । पर धीरे धीरे उनका मुखौटा उतरने लगा और
मालती को उनकी नियत पढ़ने में अधिक समय नहीं लगा। वह बिना किसी विशेष कार्य के उसे
बार बार अपने चैम्बर में बुलाते थे । सैक्स और बलात्कार संबंधी रूटिन खबरों को
बेमतलब विस्तार देकर अभद्र टिप्पणियों के
साथ विश्लेषण की आड़ में खींचते रहते थे ।
उनके चेहरे पर उस समय एक कुटिल मुस्कान रहती थी जिसे देख मालती भीतर तक सिहर उठती
थी ।
बहुत तनाव में रहने लगी थी मालती ।
समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे । उधर केतन की हरकतें अब शारीरिक छेड़ छाड़ की ओर
बढ़ने लगी थी । कभी उसके कंधे पर हाथ रख देता
था कभी हाथ दबा देता था । नौकरी
छोड़ना मालती के लिये आसान नहीं था ।
आज औफिस खुलते ही केतन ने मालती को अपने चैम्बर
में बुलाया और कहा , " मालती आज एक गोपनीय और महत्वपूर्ण रिपोर्ट तैय्यार करनी है ।तुम औफिस के बाद सीधे मेरे साथ मेरे घर
चलना वहीं इस रिपोर्ट को तैय्यार करेंगे गोपनीयता के लिये यह अत्यंत आवश्यक है ।
और हाँ , खाना भी आज साथ ही खायेंगे । चाहो तो घर में बता
देना कि औफिस में आज बहुत देर हो जायेगी ,महत्व पूर्ण और अति
आवश्यक कार्य है ।कल रविवार के हमारे अखबार में इस भंड़ाफोड़ रिपोर्ट से देश भर में तहलका मच जायेगा। देखना यह स्टोरी तुम्हारे कैरियर को कहाँ से कहाँ
पहुँचाती है । और सुनो यह तुम हर वक्त
मुँह लटका कर क्यों रहती हो । मस्त रहा करो जिंदगी के मजे लेना सीखो ।"
यह कहकर केतन ने मालती की गाल पर उसी कुटिल मुस्कान के साथ चुटकी
काट दी । आहत मालती बिना कुछ कहे कक्ष से
बाहर निकल गयी और अपनी कुर्सी पर धँस गयी । केतन के कुत्सित इरादों के बारे में उसे
लेश मात्र भी शक नहीं था उसे पता था कि उसकी पत्नी भी आजकल मायके गयी हुई है। उसने
कुछ सोचते हुए काँपती उँगलियों से अपनी सहेली नीलम को फोन लगाया । "नीलम तू क्या कर रही है इस वक्त ? क्या तू अभी मुझे
लजीज रेस्तरां में मिल सकती है । खाना वहीं खा लेंगे ।" दूसरी ओर से नीलम ने शायद उसकी रोनी आवाज सुनकर और किसी अनहोनी की कल्पना
कर तुरंत आने को कह दिया था । मालती ने जल्दी जल्दी अपने ड्राअर से अपने कुछ कागज
वगैरह बैग में रक्खे और किसी से कुछ कहे बिना बाहर निकल गयी। ’लजीज’ पहुँच कर उसे
अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी । दस मिनट
के बाद नीलम भी कुछ घबरायी सी वहाँ पहुँच गयी, आते ही बोली ,"अरे, क्या हुआ मालती ? तूने तो मेरी जान निकाल दी ,
जल्दी बता बात क्या है ?"
"भीतर चल कर बैठते हैं पहले काफी पीते हैं ।सब बताती हूं । और
फिर मालती ने सिसकियाँ भरते हुए अपनी संपूर्ण व्यथा कथा सहेली के सामने उँडेल दी ।
" तू गोली मार ऐसी नौकरी को और उस
कमीने को ।" कहकर नीलम ने एक नम्बर मिलाया । "मामा
जी, नमस्ते , सुनिये गणित शिक्षण के
लिये मैंने बढ़िया शिक्षिका ढूंढ़ ली है
आपके स्कूल के लिये । मेरी सहेली है ।
ग्रेजुएशन में मेरी क्लास फैलो भी थी । गणित में कालेज में उसके सर्वाधिक अंक थे ।
पढ़ाने का बड़ा शौक है उसे ।"
जवाब में मामा जी कुछ देर बोलते रहे । और फिर नीलम ने " ठीक है मामा जी " कहकर मोबाइल काट दिया ।
" सुन मालती , मामा
जी , जिनका शिक्षा मंदिर इंटर कालेज है , उन्हें तो तू जानती ही है ।उन्ही से बात की अभी , कह रहे थे कि कल स्कूल में
तुमसे मिलेंगे ।तुम कल दस बजे स्कूल में प्रिंसिपल को रिपोर्ट कर के कल से ही
क्लास लेना शुरु कर दो क्योंकि मामा जी कह रहे थे गणित की अध्यापिका के बिना किसी
पूर्व सूचना के विदेश चले जाने से बच्चों
का पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है । मामा जी तो बहुत खुश हो गये ,कह रहे थे उचित वेतन दिया जायेगा । कल तुम्हें स्कूल में वेतन मान के
साथ नियुक्ति पत्र मिल जायेगा । थोड़ा पैसा
कम मिलेगा पर सम्मान की नौकरी होगी । "
मालती के सर से जैसे बड़ा बोझ उतर गया उसने तुरंत
मोबाइल से मेल द्वारा अपना त्यागपत्र भेज दिया । जवाब में केतन की मेल आई । "मीट मी एन्ड डिसकस "
जिसे देखकर नीलम और मालती के मुँह
से एक साथ निकला "कमीना
"
मालती ने घर आकर पिता जी से कहा ," पिता जी , मुझे शिक्षा मंदिर इंटर कालेज में प्राध्यापिका की अच्छी नौकरी मिल गयी है
।मुझे बहुत शौक है पढ़ाने का ।अखबार की नौकरी में तो बेहद तनाव रहता है । असामाजिक
तत्वों की रिपोर्टिंग में खतरा अलग है ।"
पिताजी की उम्र ने जैसे सब भाँप लिया । बोले " जैसा भी तू ठीक समझे बेटा ।"
पिताजी की उम्र ने जैसे सब भाँप लिया । बोले " जैसा भी तू ठीक समझे बेटा ।"
बहन श्वेता को जरूर झटका लगा ।
मायूस सी होकर बोली , "क्या दीदी । इतनी अच्छी नौकरी छोड़
दी। तुम्हारी इस नौकरी के कारण मेरी भी कितनी तड़ी थी । मास्टरनी को भला कौन पूछता
है ?"
मालती चुपचाप अपने कमरे में जाकर
दसवीं बारहवीं की गणित की पुस्तकें ढूंढ़ने लगी ।
आज मालती को नयी जिंदगी शुरु किये
हुए पंद्रह दिन बीत गये । बड़ा अच्छा लग रहा था उसे स्कूल का माहौल भी और पढ़ाना भी
। अकसर वह नीलम को फोन कर स्कूल की बातें बताती रहती थी । मामाजी और केतन के साथ
की मुलाकात के अनुभव याद कर वह ईश्वर की लीला के बारे में सोचती कि उसने कैसे खोपड़ी
तो सबकी एक सी बनायी पर भीतर किसी में
निर्मल गंगा का बहा दी तो कहीं
गंदा नाला ।
आज स्कूल से आये उसे अभी एक घन्टा
ही हुआ था कि श्वेता ने बाहर ही से खुशी से दीदी , दीदी चिल्लाते हुए घर में प्रवेश किया ।
" अरे क्या हुआ क्यों घर सर पर
उठा रक्खा है ?" मालती ने कहा ।
" दीदी, बात
ही ऐसी है । तुम भी सुनोगी तो खुशी से पागल हो जाओगी । आज हमारे यहाँ प्लेसमैंट
इन्टरव्यू के लिये तुम्हारे ’घटनाक्रम’
वाले आये हुए थे । मेरा उसमें रिपोर्टर के लिये प्लेसमैंट हो गया है । "
" और सुनो दीदी , इन्टरव्यू उनके सीईओ केतन ले रहे थे । मुझसे पूछने लगे तुम्हें समाचार
पत्रों के रिपोर्टर कैसे और क्या काम करते हैं इसकी कुछ जानकारी है क्या ?"
" हूँ " मालती के मुँह से निकला ।
"और दीदी जब मैंने कहा । यस सर
मेरी दीदी पहले ’घटनाक्रम’ में काम
करती थी मुझे काम के बारे में कुछ जानकारी मिलती रहती थी ।"
"हूँ " मालती ने फिर कुछ आलसी स्वर में कहा ।
" हूँ,हूँ
क्या कर रही हो दीदी । आगे सुनोगी तो खुशी से फूल कर कुप्पा हो जाओगी ।जब मैंने
तुम्हारा नाम बताया न तो कहने लगे । वह तुम्हारी बहन है ?वैरी
ब्रिलिएन्ट गर्ल । पता नही किस सनक में इतना
ब्राइट कैरियर छोड़ दिया ।"
फिर एकदम बोले " तुम अगले माह परीक्षा समाप्त
होते ही जौयन कर लो । नियुक्ति पत्र
तुम्हे एक दो दिन में मिल जायेगा ।"
और मालती को लगा वह एक गहरे गड्ढे में धँसती जा रही है जहाँ से
बाहर निकलने की अब कोई संभावना नहीं है ।
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