-ओंम प्रकाश नौटियाल
कई बरसों से हम सुनते आ रहे उनको ,
नहीं उम्मीद कभी उनका भाषण जुदा होगा।
गाली से शिकन इसके चेहरे पे नहीं आई,
यह शख्स मुझे यकीं है, शादी शुदा होगा।
वह देश रहे तोड़ शायद फ़िर से बनायेंगे,
पुख़्ता बनावट के लिए ये तय हुआ होगा।
मौसम है मानसूनी पर हैं नहीं ये बादल ,
शहर की किसी मिल से निकला धुंआ होगा।
जिन्दगी की जद्दोज़हद में मौत याद आई,
पता न था इधर खाई , उधर कुंआ होगा ।
जिन्दा रहने को लगी, दाँव पर ही जिन्दगी
मौत को हराने को अब खेलना जुआ होगा।
मालूम न था जब तक झाँका नहीं उस पार,
जो छुपा हुआ मंजर है निहायत बेहूदा होगा।
कुछ लोगों का खयाल है नेता भी आदमी हैं,
मुझको मगर यकीन है कि ये ही खुदा होगा ।
’ओंम’ हम नेता बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं ,
है कौन सा ’धंधा’ जो हमसे अनछुआ होगा।
(पुस्तक "साँस साँस जीवन " में प्रकाशित )
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