Sunday, August 30, 2009

मैं -"कोई नहीं "

ओंम प्रकाश नौटियाल

मैं समय का बदलता नजरिया हूँ ,
स्वयं को भूलते रहने की प्रक्रिया हूँ ।
मुझे अब लोग कम पहचानते हैं ,
कुछ भ्रमित नवोदित तो
मेरा अस्तित्व तक नकारते हैं ।

उसने सभी को उनके नामों से बुलाया,
सना , शीना ,अलीना कई बार दोहराया ।
अपने भी होने का बोध कराने के लिए ,
उसका मासूम स्नेह पाने के लिए ,
मैंने कहा , मैं भी यहाँ हूँ ,
मैं सच हूँ
ना कि पौराणिक कथा का पात्र हूँ ,
या धुंधले इतिहास की व्यथा मात्र हूँ ,
पर उसका स्वर निर्णायक था , कहा -
नहीं मैं 'कोई नहीं'

मैंने फ़िर दलील दी ,
मैं भी सबकी तरह साँस लेता हूँ,
बेखुदी तक में ख़ुद को भांप लेता हूँ ,
मेरी धड़कनों की कम्पन स्पष्ट है ,
मैं हूँ -यह स्वीकारने में तुम्हे क्या कष्ट है ,
उसने कठोरता से कहा ,
मैं जब भी अपना मुंह खोलता हूँ
सिर्फ़ झूठ और झूठ बोलता हूँ ,

मैंने साहस कर पूछा
अगर मेरे झूठ का वजूद है
तो मेरा क्यों नहीं
उसने तिलमिलाकर कहा
अस्तित्व ? झूठ के तो पाँव तक नहीं होते ।

मैंने एक बार फ़िर अर्ज किया
अब बतला भी दो कि मैं कौन ,
वह कुछ देर तो रही मौन ,
फ़िर अविचलित स्वर में दोहराया ,
कि मैं " कोई नहीं"
(भाव स्त्रोत - रिया शर्मा उर्फ़ मिट्ठू )

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